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क्षणभंगवादः
७५ स्वेपि प्रतिपत्तुरक्षणिकत्वात् । प्रत्यक्षादिसहायो ह्यात्मैवोत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वं भावानां प्रतिपद्यते । यथैव हि घटकपालयोविनाशोत्पादौ प्रत्यक्षसहायोसौ प्रतिपद्यते तथा मृदादिरूपतया स्थितिमपि । न खलु घटादिसुखादीनां भेद एवावभासते न त्वेकत्वमित्यभिधातुयुक्तम् ; क्षणक्षयानुमानोपन्यासस्यानर्थक्यप्रसङ्गात् । स ह्य कत्वप्रतीतिनिरासार्थो न क्षणक्षयप्रतिपत्त्यर्थः, तस्य प्रत्यक्षेणैव प्रतीत्यभ्युपगमात् ।
न चानन्तरातीतानागतक्षणयोः प्रत्यक्षस्य प्रवृत्ती स्मरणप्रत्यभिज्ञानुमानानां वैफल्यम् ; तत्र तेषां साफल्यानभ्युपगमात्, अतिव्यवहिते तदङ्गीकरणात् । न चाक्षणिकस्यात्मनोऽर्थग्राहकत्वे
जैन-यह कथन ठीक नहीं है, ज्ञान या बुद्धि भले ही क्षणिक हो किन्तु जानने वाला आत्मा नित्य है, प्रत्यक्षादि प्रमाणों की सहायता लेकर यह आत्मा ही पदार्थों के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यपने को जानता है, देखा भी जाता है कि जिसप्रकार घट और कपाल रूप उत्पाद और व्यय को आत्मा प्रत्यक्षादि प्रमाण की सहायता लेकर जान लेता है उसी प्रकार घट आदि की मिट्टी रूप स्थिति को भी जान लेता है। घट कपाल अादि बाह्य पदार्थ तथा सुख दुःख आदि अंतरंग पदार्थ इनका मात्र भेद ही प्रतीत होता एकत्व प्रतीत नहीं होता ऐसा कहना तो शक्य नहीं है, क्योंकि इस तरह कहने से तो क्षणक्षयीवाद को सिद्ध करने के लिये जो अनुमान उपस्थित [ सर्व क्षणिक सत्वात् ] किया जाता है वह व्यर्थ ठहरेगा । अर्थात् अाप बौद्ध प्रत्येक वस्तु को क्षणिक सिद्ध करते हैं सो उसमें जो अनुमान प्रमाण प्रयुक्त होता है वह एकत्व-स्थिति की प्रतीति का निराकरण करने के लिये ही प्रयुक्त होता है न कि क्षण क्षय की प्रतीति के लिये प्रयुक्त होता है, आप स्वयं ही कहते हैं कि प्रत्येक वस्तु का क्षणिकपना प्रत्यक्ष प्रमाण से ही प्रतिभासित होता है।
___ यदि कोई कहे कि प्रत्यक्षादि की सहायता से आत्मा घट कपालादि रूप उत्पाद व्यय एवं मिट्टी रूप स्थिति को जानता है तो अनंतर अतीत क्षण और अनागत क्षणों में प्रत्यक्ष प्रमाण प्रवृत्त होता है ऐसा मानने पर उन अनंतर [ निकटवर्ती ] अतीतादि के ग्राहक स्मृति प्रत्यभिज्ञान, अनुमान प्रमाण ये सब व्यर्थ ठहरेंगे ? सो यह कथन ठीक नहीं, हम जैन ने प्रत्यभिज्ञानादि प्रमाणों की अनंतर अतीतादि क्षणों में प्रवृत्ति होना माना ही नहीं, प्रत्यभिज्ञानादिक तो अति दूरवर्ती क्षरणों में प्रवृत्त हा करते हैं। यहां पर कोई पर वादी आशंका करे कि नित्य स्वभावी आत्मा यदि पदार्थों
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