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प्रमेयकमलमार्तण्डे
'प्रत्र घटो नास्ति' इति प्रतीतिरस्ति । कथं चैवं स्थास्नुता न प्रतीयेत? सापि हि पूर्वोत्तरयोर्मध्ये कथञ्चित्सद्भावस्तस्य वा तत्र, स च तदात्मकत्वात्तद्ग्रहणेनैव गृह्यत ।
ननु स्थास्नुतार्थानां नित्यतोच्यते, सा च त्रिकालापेक्षा, तदप्रतिपत्ती च कथं तदपेक्षनित्यताप्रतिपत्तिः ? तदसाम्प्रतम् ; वस्तुस्वभावभूतत्वेनान्यानपेक्षत्वान्नित्यतायाः, तथाभूतायाश्चास्याः प्रत्यक्षादिप्रमाणप्रसिद्धरवेन प्रतीते: प्रतिपादनात् । न खलु स्वयं नित्यतारहितस्य त्रिकालेनासो क्रियतेऽनित्यतावत् । न हि वर्तमानकालेनानित्यता क्रियते तस्याऽसत्त्वात्, सत्त्वे वा तदनित्यत्वस्याप्यपरेण करणेऽनवस्थाप्रसङ्गः। ततो यथा स्वभावतः पूर्वोत्तरकोटिविच्छिन्नः क्षणो जातः क्षणिको विधीयते कालनिरपेक्षश्च प्रतीयते तथाऽक्षणिकत्वमपि ।
प्रतीति होना आप बतला रहे हैं वैसे स्थास्नुता (नित्यता) प्रतीति होना भी क्यों नहीं बनता ? बन ही सकता है, क्योंकि पूर्वोत्तर क्षणों का मध्य में कथंचित् सद्भाव है वही स्थास्नुता है, अथवा मध्य का उन क्षणों में सद्भाव है वही स्थास्नुता कहलाती है, और वह तदात्मक होने से क्षणों के ग्रहण से ही ग्रहण में आ जाती है, इस प्रकार स्थास्नुता सिद्ध होती है।
बौद्ध-पदार्थों की नित्यता को आप स्थास्नुता कहते हैं, और वह त्रिकालभूत वर्तमान और भविष्यति की अपेक्षा रखने वाली हुआ करती है, किन्तु तीनों काल प्रतीत नहीं होते तो उनकी अपेक्षा से होने वाली नित्यता भी कसे प्रतीत होवेगी ?
जैन-यह कथन गलत है, नित्यता तो वस्तु का स्वभाव है स्वभाव अन्य की अपेक्षा नहीं रखता है, वस्तु का उस तरह का नित्य स्वभाव प्रत्यक्षादि प्रमाण से प्रसिद्ध है ऐसा प्रतिपादन करने वाले ही हैं । यह नियम है कि जो स्वयं नित्यता से विहीन है वह तीनों कालों से नित्य नहीं किया जा सकता, जैसे कि अनित्यता नहीं की जा सकती है। अब अनित्यता त्रिकाल से कैसे नहीं की जा सकती सो बताते हैंवर्तमान काल द्वारा अनित्यता नहीं की जाती, क्योंकि उसका असत्व ( सौगत मतानुसार ) है यदि वर्तमान में अनित्यता का सत्व मानेंगे तो उसको अन्य कोई काल करेगा इस तरह तो अनवस्था होगी। इसलिये जिस प्रकार आप स्वभाव से पूर्वोत्तर कोटि विच्छिन्न क्षण होता है वह क्षणिक एवं काल निरपेक्ष प्रतीत होता है इस प्रकार मानते हैं, ऐसे ही अक्षणिकत्व या स्थास्नुता काल निरपेक्ष होती है ऐसा मानना चाहिये।
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