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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
अंकुरोत्पादक शक्ति समाप्त हो जाती है उनसे फिर अंकुर पैदा ही नहीं होंगे । ऐसे ही माता पिता के रजोवीर्य शुद्ध नहीं होंगे अर्थात् उसमें जाति का मिश्रण - संकर है तो उससे होने वाली सन्तान आगे आगे अपने वंश परम्परा को चला नहीं सकती, थोड़े ही पीढ़ी के बाद वह खतम हो जायगी, स्वभाव से ही यह नियम है, इसमें तर्क तो कुतर्क कहलायेगा |
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जो ब्राह्मणत्व के अभिमान में चूर हो रहे हैं दूसरे को नीच दृष्टि से देखते हैं ब्राह्मण को ही सब कुछ समझते हैं, देव समझते हैं, जातिमद में चूर हैं, उन नैयायिक मीमांसक के ब्राह्मणत्व जाति का खंडन किया है। अंत के वाक्य ध्यान देने योग्य हैं " ततः सदृश क्रिया परिणामादि निबन्धनैवेयं ब्राह्मण क्षत्रियादि व्यवस्था..." सदृश क्रिया परिणाम आदि । यहां आदि शब्द माता पिता के परम्परागत रजोवीर्य शुद्धि द्योतक होना चाहिए । अर्थात् सदृश क्रिया - सदाचार की समानता, परिणाम क्रूरतादि रहित एवं माता पिता की शुद्धि के कारण ब्राह्मणत्व व्यवस्था है । ऐसे ही क्षत्रियादि में समझना चाहिये ।
॥ ब्राह्मणत्वजाति के निरसन का सारांश समाप्त ॥
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