________________
ब्राह्मणत्वजातिनिरास: किञ्चेदं ब्राह्मणत्वं जीवस्य, शरीरस्य, उभयस्य वा स्यात्, संस्कारस्य वा, वेदाध्ययनस्य वा गत्यन्त रासम्भवात् ? न तावज्जीवस्य ; क्षत्रियविट्शूद्रादीनामपि ब्राह्मण्यस्य प्रसङ्गात्, तेषामपि जीवस्य विद्यमानत्वात् ।
नापि शरीरस्य ; अस्य पञ्चभूतात्मकस्यापि घटादिवद् ब्राह्मण्यासम्भवात् । न खलु भूतानां व्यस्तानां समस्तानां वा तत्सम्भवति । व्यस्तानां तत्सम्भवे क्षितिजलपवनहुताशनाकाशानामपि प्रत्येक बाह्मण्यप्रसङ्गः । समस्तानां च तेषां तत्सम्भवे घटादीनामपि तत्सम्भवः स्यात्, तत्र तेषां सामस्त्यसम्भवात् । नाप्युभयस्य ; उभयदोषानुसंगात् ।
नापि संस्कारस्य ; अस्य शूद्रबालके कत्तु शक्तितस्तत्रापि तत्प्रसंगात् ।
नित्य ब्राह्मण्य जाति के विषय में अनेक प्रश्न हुआ करते हैं कि वह ब्राह्मणत्व किसके होता है ? जीव के होता है, अथवा शरीर के, या दोनों के, अथवा संस्कार या वेदाध्ययन के ? इतनी चीजों में ब्राह्मण्य होता होगा अन्य किसी में तो संभव नहीं है। प्रथम विकल्प का विचार करें कि जीव के ब्राह्मण्य होता है तो ठीक नहीं बैठता, क्योंकि जीवत्व ब्राह्मणवत क्षत्रिय, वेश्य एवं शूद्र में भी रहता है। फिर उन सबमें भी ब्राह्मण्य मानना होगा ? क्योंकि जीव तो उनमें भी विद्यमान है ।
शरीर के ब्राह्मणत्व होता है ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि शरीर तो पंच भूतों से निर्मित है उसमें घट पट आदि के समान ब्राह्मण्य होना असंभव है। इसी को बताते हैं --व्यस्त भूत-एक एक पृथिवी आदिक अथवा समस्त भूत पृथिवी, अग्नि, जल, वायु एवं आकाश इनके ब्राह्मण जातिपना संभव नहीं है, यदि व्यस्त भूतों के ब्राह्मण्य है, तो एक एक पृथिवी आदि में भी ब्राह्मण्य उपलब्ध होने का प्रसंग आता है, तथा पांचों जहां संयुक्त हैं वहां ब्राह्मण्य रहता है ऐसा कहो तो घट आदि में भी ब्राह्मण्य मानना होगा ? क्योंकि उसमें समस्त भूत होते हैं। उभय-जीव और शरीर दोनों के ब्राह्मण्य जाति होती है ऐसा माने तो उभय पक्ष के बताये हुए दोष एकत्रित होवेंगे।
___ यज्ञोपवीत आदि संस्कार के ब्राह्मणत्व माना है ऐसा पक्ष भी गलत होगा, क्योंकि वह संस्कार तो शूद्र बालक में भी शक्य है फिर उसमें ब्राह्मण्य मानना पड़ेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org