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प्रमेयकमलमार्तण्डे
ननु यथा सुवर्णादिकं परोपदेशसहायात्प्रत्यक्षात्प्रतीयते तथा सापि ; इत्यप्ययुक्तम् ; यतो न पोततामानं सुवर्णमतिप्रसंगात्, किन्तु तद्विशेषः, स च नाध्यक्षो दाहच्छेदादिवैयर्थ्यप्रसंगात् । तस्यापि सहायत्वे तज्जातौ किञ्चित्तथाविधं सहायं वाच्यम्-तच्चाकारविशेषो वा स्यात्, अध्ययनादिकं वा ? न तावदाकारविशेषः; तस्याबाह्मणेपि सम्भवात् । अत एवाध्ययनं क्रियाविशेषो वा तत्सहायतां न प्रतिपद्यते । दृश्यते हि शूद्रोपि स्वजातिविलोपाद्देशान्तरे ब्राह्मणो भूत्वा वेदाध्ययनं तत्प्रणीतां च
नहीं होती है, यदि मनुष्य का ब्राह्मणत्व प्रत्यक्ष से प्रतीत होता तो "यह मनुष्य ब्राह्मण है अथवा अन्य वर्णीय है" इत्यादि संशय होता ही नहीं। और यदि प्रत्यक्ष से ब्राह्मण जाति का निश्चय हो चुकता है तो उस मनुष्य के ब्राह्मणपने का संशय दूर करने के लिये नाम गोत्र आदि का पूछना व्यर्थ ठहरता है, अथवा पुत्रादि में ब्राह्मण्य का निर्णय होने के लिये वृद्धोपदेश की अपेक्षा क्यों कर होती ? जो प्रत्यक्ष गम्य वस्तु होती है उसमें उपदेशादि की अपेक्षा नहीं हुया करती, क्या प्रत्यक्ष दिखायी देने वाले गो आदि में "गो है कि मनुष्य है" ऐसी शंका हो सकती है ? अथवा उसके नाम अादि को पूछना पड़ता है ? अर्थात् नहीं ।
मीमांसक-जिस प्रकार परोपदेश की सहायता युक्त प्रत्यक्ष प्रमाण से सुवर्णादि को प्रतीति होती है, उसी प्रकार बाह्मण्य जाति परोपदेश की सहायता वाले प्रत्यक्ष से प्रतीत होती है ?
जैन- यह कथन अयुक्त है, क्योंकि प्रत्यक्ष से प्रतीत हुई जो पीतता ( पीलापन ) है उतना मात्र सुवर्ण नहीं हुआ करता, यदि केवल पीत को सुवर्ण माना जाय तो पीतल आदि को भी सुवर्ण मानने का प्रसंग आता है, अतः पीत मात्र को सुवर्ण नहीं कहते किन्तु उसमें जो वैशिष्ट्य है उसे सुवर्ण कहते हैं, यह जो वैशिष्टय है वह प्रत्यक्ष नहीं है, यदि होता तो सुनार आदि पुरुष उस सुवर्ण की दाह-जलाना, काटना अादि प्रयोग द्वारा परीक्षा करते हैं वह परीक्षा व्यर्थ ठहरती, यदि कहा जाय कि जलाना, काटना इत्यादि प्रयोग भी सुवर्ण की प्रत्यक्षता में सहायक हैं, तो ऐसे ही बाह्मणत्व जाति में कोई सहायक कारण बताना चाहिए। वह सहायक प्राकार विशेष है अथवा अध्ययनादि विशेष है ? आकार विशेष ब्राह्मण जाति का द्योतक होना असंभव है क्योंकि ब्राह्मण जैसा आकार विशेष तो अब्राह्मण मनुष्य में भी पाया जाता है। इसी प्रकार अध्ययन विशेष या क्रिया विशेष भी ब्राह्मणपने का ज्ञान होने में सहायक नहीं
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