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ब्राह्मणत्वजातिनिरासः एतेन वर्णविशेषेत्याद्यनुमानं प्रत्युक्तम् । नगरादौ च व्यक्तिव्यतिरिक्तकनिमित्तनिबन्धनाभावेपि तथाभूतज्ञानस्योपलम्भादनेकान्त:। न खलु नगरादिज्ञाने व्यतिरिक्तमनुवृत्तप्रत्ययनिबन्धनं किञ्चिदस्ति, काष्ठादीनामेव प्रत्यासत्तिविशिष्टत्वेन प्रासादादिव्यवहारनिबन्धनानां नगरादिव्यवहारनिबन्धनत्वोपपत्त:, अन्यथा 'षण्णगरी' इत्यादिष्वपि वस्त्वन्तरकल्पनानुषङ्गः।
सत्ता, आकाशः, अद्वतं इत्यादि पदों में जाता है जो कि साध्य से विपक्षी है अर्थात् जो पद है उसमें पदत्व नामा नित्य एक सामान्य रहता ही है ऐसा परवादी को सिद्ध करना है किन्तु सत्ता आदि शब्द पद रूप तो हैं किन्तु उनमें पदत्व संभव नहीं है, क्योंकि सत्ता नामा पदार्थ सामान्य से रहित होता है ऐसा मीमांसकादि स्वीकार करते हैं, अाकाश नामा पदार्थ एक अखंड होने से उसमें व्यक्ति भेद नहीं है अतः अनेक व्यक्तिगत एक सामान्य उसमें भी संभव नहीं है, एवं अद्वैत आदि पद तो काल्पनिक ही है अतः उनमें सामान्य रहना शक्य नहीं है । इस प्रकार जिस अनुमान का हेतु ही सदोष है तो वह साध्य को कैसे सिद्ध कर सकता है ? अर्थात् नहीं कर सकता है ।
ब्राह्मण पद वाला अनुमान जैसे बाधित होता है वैसे ही द्वितीय अनुमान"वर्ण विशेषाध्ययनाचार यज्ञोपवीतादि व्यतिरिक्त निमित्त - निबन्धनं 'ब्राह्मणः' इति ज्ञानं, तन्निमित्त बुद्धि विलक्षणत्वात्” वाक्य भी बाधित होता है, अब इसीका खुलासा करते हैं - "ब्राह्मण है" इस प्रकार का ज्ञान होता है वह यज्ञोपवीत आदि से न होकर व्यक्ति से पृथक् कोई एक ब्राह्मण्य जाति से ही होता है अर्थात् ब्राह्मणों में ब्राह्मण्य का ज्ञान ब्राह्मण पुरुष से न होकर अन्य निमित्त से (ब्राह्मण्य नित्य जाति से ) होता है, ऐसा आपका कहना है, किन्तु "नगरम्" इत्यादि पद में व्यक्ति से अन्य कोई निमित्त भूत सामान्य नहीं होते हुए भी उस प्रकार का ज्ञान उपलब्ध होता है अतः तन्निमित्तबुद्धि विलक्षणत्व हेतु व्यभिचारी है । यह नगर है, इत्यादि रूप जो ज्ञान होता है उस ज्ञान में व्यक्ति से भिन्न कोई कारण अनुवृत्तप्रत्यय का हो और वह नगरम्, नगरम इत्यादि ज्ञान का निमित्त हो ऐसा देखा नहीं जाता है, वहां तो काष्ठ, पत्थर, चना आदि पदार्थों की प्रत्यासत्ति विशेष से बने हुए प्रासाद, मंदिर आदि ही "नगर है" इत्यादि व्यवहार का हेतु देखा जाता है, यदि ऐसी व्यवस्था न माने तो "षण्णगरी" इत्यादि पदों में भी अन्य अन्य कोई वस्तुभूत निमित्त की कल्पना करनी पड़ेगी।
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