Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ब्राह्मणत्वजातिनिरास:
एतेन नित्यं निखिल ब्राह्मणव्यक्तिव्यापकं ब्राह्मण्यमपि प्रत्याख्यातम् । न हि तत्तथाभूतं प्रत्यक्षादिप्रमाणत: प्रतीयते । ननु च 'ब्राह्मणोयं ब्राह्मणोयम्' इति प्रत्यक्षत एवास्य प्रतिपत्तिः । न चेदं विपर्ययज्ञानम् ; बाधकाभावात् । नापि संशयज्ञानम्; उभयांशानवलम्बित्वात् । पित्रादिब्राह्मण्य
मीमांसक नैयायिक आदि के यहां पर जिस प्रकार गो आदि पदार्थों में गोत्व आदि सामान्य नित्य, व्यापक, एक माना है, उसी प्रकार संपूर्ण ब्राह्मणों में व्यापक, एक नित्य ऐसा ब्राह्मण्य माना है, सो जैसे गोत्वादि नित्य सामान्य की सिद्धि नहीं होती है, उसमें अनेक दोष हैं ऐसा अभी जैन ने सिद्ध किया, उस नित्य सामान्य के खण्डन से ब्राह्मण व्यक्तियों में माना गया ब्राह्मणत्व भी खण्डित हो जाता है । मीमांसकादि परवादी जिस प्रकार का नित्य एक व्यापक ब्राह्मणत्व मानते हैं उस प्रकार का ब्राह्मणत्व प्रत्यक्ष आदि प्रमाण से प्रतिभासित नहीं होता अतः असत् है ।
मीमांसक - जैन ने कहा कि ब्राह्मणत्व की प्रमाण से प्रतीति नहीं होती सो बात गलत है, "यह ब्राह्मण है, यह ब्राह्मण है" इस प्रत्यक्ष से ही इसकी प्रतीति हो रही है, इस ज्ञान को विपरीत भी नहीं कह सकते, क्योंकि इसमें कोई बाधा नहीं आती है । यह ब्राह्मण है यह ब्राह्मण है, यह ज्ञान संशय रूप भी नहीं कहलाता, क्योंकि
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