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अङ्ग
अङ्कस अङ्कुस पु., [अङ्कुश], अङ्कुश, 1. शा. अ. हाथी को हांकने तथा काबू रखने वाला दो मुंहा भाला, हाथी को निर्देश देने में व्यवहृत एक नियन्त्रक-यन्त्र या उपकरण - मत्थकम्हि तु असो, अभि. प. 367; - सेहि तृ. वि., ब. व. - दण्डेनेके दमयन्ति, असेहि कसाहि च, चूळव. 335; - से द्वि. वि., ब. व. - हत्थिनो तस्मिं काले अङ्कसे वा कुन्ततोमरे वा न गणेन्ति, चण्डा भवन्ति, ध. प. अट्ठ. 2.289; 2. फल तोड़ने के लिए लग्गी के सिरे पर बंधी छोटी लकड़ी या हुक, ब्राह्मण तापस के अनेक उपकरणों में से एक - किमसञ्च पत्तञ्च, जा. अट्ठ. 5.219; ... पच्छिखणित्ति अङ्कसहत्था अरज पविसित्वा, जा. अट्ठ. 7.281; 3. ला. अ. कर से व्यु., क्रि. रू. के साथ प्रयुक्त, सचेष्ट करना, नियन्त्रित करना, नियंत्रण में रखना - सो तयेव अङ्कसं कत्वा ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).245; अत्तनो वचनं अङ्कसं कत्वा, थेरीगा. अट्ठ. 195; 4. नेत्ति. के पांचवें नय का नाम - पञ्चमो अङसो नाम, सब्बे पञ्च नया गताति, नेत्ति. 3; - यट्ठि स्त्री., [अङ्कशयष्टि], अङ्कश लगाने की छड़ी, चुभोने की छड़ी-डिं वि. वि., ए. क. - अङ्कसयटिञ्च गहेत्वा, जा. अट्ठ 256; - गव्ह नपुं, अडसगह का भाव, हाथी को नियन्त्रित करने अथवा अपने वश में रखने की कला - रहे सप्त. वि., ए. व. - कुसलो अहं हत्थारुळ्हे असगरहे सिप्पेति, म. नि. 2304; - ग्गह पु. [अनुशग्रह], एक कुशल महावत, पीलवान, हाथीवान- हत्थिप्पमिन्नं विय अडसग्गहोध. प. 326; थेरगा. 77. अङ्केत्वा अङ्क का पू. का. कृ., चिह्नित करके, निशान लगा करके, पहचान करके - बन्धित्वालक्खणेन अङ्केत्वा दासपरिभोगेनपि परिभुजिस्सन्ति, जा. अट्ठ. 1.432; इमस्मि पन रुक्खे अम्बानि अङ्केत्वा गहितानि, जा. अट्ठ. 2.328. अकोल पु.. [अङ्कोल, अर्द्धमा. अकोल्ल], एक वृक्ष का नाम, पिस्ते का वृक्ष - लिकोचको तथाङ्कोलो, अभि. प. 557; अङ्कोला कच्छिकारा च पारिजञा च पुप्फिता, जा. अट्ट. 7.302; - कानपुं., पिस्ते के वृक्ष का फूल - अङ्कोलकादीनि पुप्फानि ओचिनामि, जा. अट्ठ. 4.400; - क पु., एक स्थविर का नाम - इत्थं सुदं आयस्मा अबोलको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. 1.206. अङ्कय पु.. [अङ्कय, अङ्की], एक प्रकार की खंजरी, वाद्यविशेष,
मृदङ्गविशेष - आलिङ्गयङ्कयोद्धका भेदा, अभि. प. 143. अङ्ग' निपा., व्यङ्ग्योक्ति-पूर्ण कथनों में प्रयुक्त सम्बोधन, कटाक्षपरक अभिव्यक्तियों में प्रयुक्त - अव्हाने भो अरे अम्भो हम्भो रे जेङ्ग आवुसो, हे हरे थ, अभि. प. 1139.
अङ्ग नपुं॰ [अङ्ग]. शा. अ. शरीर का अवयव - अङ्गं त्ववयवो वुत्तो, अभि. प. 278; अङ्गमेतं मनुस्सानं, भाता लोके पवुच्चति, अङ्गस्स सदिसी वाचा, अङ्गं सम्म ददामि ते, जा. अट्ठ. 3.42; ला. अ. 1. किसी सम्पूर्ण वस्तु का एक अविभाज्य हिस्सा अथवा उसका गौण खण्ड - ओ अङ्गन्तेव सङ्घयं गच्छति, अ. नि. 1(1).277; अज्झत्तिकं, भिक्खवे, अङ्गन्ति करित्वा नाज एकङ्गम्पि समनुपस्सामि, अ. नि. 1(1).22; ला. अ. 2. बुद्ध के वचनों के नौ प्रकार के विभाजनों के लिए प्रयुक्त - नवङ्ग सत्थुसासनं, दी. वं. 4.15; - ङ्गानि प्र. वि., ए. व. - अङ्गतो नव अङ्गानि, ध. स. अट्ठ. 20; सत्तं गेय्यं वेय्याकरणं गाथुदानितिवुत्तक, जातकब्भुतवेदल्लं नवङ्ग सत्थुसासनं, दी. वं. 4.15; ला. अ. 3. कड़ी, योजक, जोड़, निदान, हेतु, कारण - अङ्गा देसे बहुम्हॉ तथावयवहेतुस, अभि. प. 955%; तत्थ तयो अद्धा द्वादसङ्गानि ..., अभि. ध. स. 56; अङ्गतोति एत्थ च पाणातिपातस्स पञ्च अङ्गानि भवन्ति, खु. पा. अट्ठ. 21; ला. अ. 4. गुण, विशेषता, अभिलक्षण, चिह्न, मापदण्ड, (प्रायः संख्याओं के साथ प्रयुक्त) - झेहि तृ. वि., ए. व:चतूहि, भिक्खवे, अङ्गेहि समन्नागता वाचा सुभासिता होति, न दुब्भासिता, सु. नि.(पृ.) 148; चतूहि अङ्गेहीति चतूहि कारणेहि अवयवेहि वा, सु. नि. अट्ठ. 2.112; ला. अ.5. शरीर के अंगों के विशिष्ट फल बतलाने वाली एक विद्या - सेय्यथिदं-अङ्गं निमित्तं ..., दी. नि. 1.8; अङ्गन्ति हत्थपादादीसु येन केनचि एवरूपेन अङ्गेन समन्नागतो दीघायु यसवा होतीतिआदिनयप्पवत्तं अङ्गसत्थं, दी. नि. अट्ट, 1.82; - घंसन नपुं., [अङ्गघर्षण], अङ्गों को रगड़ना या घिसना, अङ्ग-संघर्षण - अङ्गघंसनत्थाय चतुरस्से वा अट्ठसे वा थम्भे निखाते ... अङ्गं घंसन्ति, सु. नि. अट्ठ. 1.221; - जात नपुं.. एक विशेष प्रकार का शरीरावयव, स्त्रियों एवं पुरुषों की जननेन्द्रिय, - अङ्गजातं रहस्सङ्ग, अभि. प. 272; तस्मिञ्च सरीरे अङ्गजातसामन्ता वणो होति, पारा. 41; पञ्चहाकारेहि अङ्गजातं कम्मनियं होति, पारा. 45. अङ्ग पु., व्य. सं. [अङ्ग], 1. एक प्रत्येकबुद्ध का नाम - अङ्गो
च पङ्गो च गुत्तिजितो च, म. नि. 3.1163; 2. एक स्थविर (थेर) का नाम - तत्थ लोमसकङ्गियोति अङ्गथेरो किर नामेस, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.182; 3. अनेक राजाओं के नाम - ... अङ्गो नाम लोमपादो वाराणसिराजा, जा. अट्ठ. 7.49; 4. देश का नाम, सदा ब. व. में ही बिहार--प्रदेश के भागलपुर-क्षेत्र के निवासियों के लिए प्रयुक्त शब्द - वङ्गा विदेहकम्बोजा मद्दा भग्गाङ्गसीहळा, अभि. प. 185; एक समयं
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