Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
ayan
वज्रचूड़ उसके भरिचूड उसके अर्कचूड़ उसके वन्हिजटी उसके वन्हितेज इस भान्ति अनेक राजा भए। | तिन में कईएक पुत्र को राज देय मुनि होय मोक्ष गए कईएक स्वर्ग गए कईएक भोगासक्त होय बैरागी
न भए ते नारकी तिरयंच भए इस भांति विद्याधर का वंश कहा । आगे द्वितीय तीर्थंकर जो अजितनाथ स्वामी उनकी उत्पति कहे हैं।
जब ऋषभदेव को मुक्ति गए पचासलाख कोटि सागर गए चतुर्थकाल श्राधा व्यतीत भया जीवों की आयुकाय पराक्रम घटते गए जगत् में काम लोभादिक की प्रवृति बढ़ती भई तब इक्ष्वाकु कुल में ऋषभदेव ही के बंश में अयोध्या नगर में राजा धरणीधर भए उनके पुत्र त्रिदशजय देवों के जीतने वाले उनके इन्दुरेखा राणी उसके जितशत्रु पुत्र भया, सो पोदनापुर के राजा भव्यानन्द उनके अम्भोद माला राणी उसकी पुत्री विजया वह जितशत्रु मेपरणी जितशतुको राज देयकर राजा त्रिदशजय केलाश पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त भए, राजा जितशत्रु की राणी विजया देवी के श्रीअजितनाथ स्वामी भए उनका जन्माभिषेकादिक का वर्णन ऋषभदेववत् जानना जिनके जन्म होतेही राजा जितशत्रु ने सर्व राजा जीते इसलिये भगवान्का अजित नाम धरा अजितनाथ के सुनयानन्दा श्रादिक स्री भई जिनके रूपकी समानता इन्द्राणी भी न करसके एक दिन भगवान् अजितनाथ राजलोक सहित प्रभात समय मेंही बनक्रीड़ा को गए. कमलों का बन फलाहुवा देखा और सूर्यास्त समय उसही बनको सकुचा हुवा देखा सो लक्ष्मीकी इस भांति अनित्यता मानकर परम वैराज्ञको प्राप्तभए, माता पितादि सर्व कुटुम्ब | से क्षमाभाव कर ऋषभदेवकी भान्ति दीक्षा घरी दस हजार राजा साथ निकसे, भगवानने वेल्लापारणा
For Private and Personal Use Only