Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BANAS Ran // श्रीजिनाय नमः॥ // श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः . * // श्रीप्रत्येकबुद्धचरितं // Pro उपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज.(जामनगरवाळा) वीरसंवत्--५४४६. विक्रमसंवत्-ए७६. सने-१९३०.. किं रु. 6-- श्रीजैनजास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेस. जामनगर. ..... - - Hit NAGAR P.P.AC. Guitar S Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___... ॥श्रीजिनाय नमः // :॥अथ श्रीप्रत्येकबुधचरित्रं पारन्यते // . (श्लोकबई) . - %3 - बपावी प्रसिद्ध करनार-पमित श्रावक हीरालाल हंसराज. (जामनगरवाला) जुवि नविकजनाविप्रीणनार्थ वसंतः / कुशलकमसमालोलासहंसोपमानः // प्रथमजिनवरेंद्रोऽन्येऽपि सीमंधरायाः। शिवमिह ददतां ते सर्वसंघाधिराजः॥१॥परमामोदसंपादिपादाय परमात्मने / चिदानंदखरूपाय / तीर्थपाय नमः सदा // 2 // यस्य पादप्याजोजे। ज्रमति ब्रमरा श्व // सुरासुरनराधीशा-स्तं श्रीवीर जिनं स्तुमः॥३॥प्रनावविनवावासं / // / प्रतिनादानदक्षिणं // स्पृशामि शिरसा सौव-गुरुपादरजःकणं // 3 // करकंम्वादिसाध भी बहानार जेन आराधना फल, कोषा आ.श्री. केटामसागर हरि शान दिए - P.P.AC.GunratnasuriM.S.. . . . Jun Gun Aaradhak Trust .. . Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र नां / वैराग्यरसहेतवे // किंचित्प्रत्येकबुझानां / चरित्र कीर्तयिष्यते // 4 // क्वाहं मंदमतिl स्तेषां / क चरित्रं महात्मनां // तदस्मि दमको मेरौ / ध्वजारोपणवांबकः // 5 // तथापि व चसां शुध्ध्यै / जन्मसाफल्यहेतवे // तेषां प्रत्येकबुझानां / नाममात्रमिहोच्यते // 6 // एकैकं | कारणं दृष्ट्वा / प्रबुझाः स्वयमेव ये // उच्यते ते महात्मानः। प्रत्येकबुसंज्ञया // 7 // शिष्या यस्य जिनेंद्रस्य / यावंतो हस्तदीक्षिताः // तावंतस्तस्य तीर्थे स्युः। प्रत्येकबुद्धसाधवः // 7 // तत्तेषां कः समस्ताना-मपास्ताशेषकर्मणां // पवित्राणि चरित्राणि / वचसा वक्तु नित्तिरापि यैः // 10 // करकंमुश्च हिमुखो / नमिराजो नगामतिः // इति नाम्ना प्रसिझास्ते / महात्मानोऽनवनिह // 11 // दृष्ट्वा गामिंद्रकेतुं च / वलयं चाम्रपादपं / / चत्वारोगस्वरान् देहान् / ज्ञात्वा दीदां प्रपेदिरे // 15 // तत्रादौ कथ्यते वृक्ष-वृषनं प्रेक्ष्य तत्क्षणं // प्रबुद्धस्य प्रसिद्धस्य / करकंमोः कथानकं // 13 // तथाहि पानिधो डीपो / लक्षयोजनविस्तृतः ॥चित्रं योजनकोटीना-माश्रयः शोजतेतरां Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पो चरित्रं // 14 // तत्रास्ति दक्षिणे नागे / जरतदेत्रमुत्तमं // षट्खंगमप्यखंझ य–दाश्चर्याय कथं न | तत् // 15 // भूलामिनीहृदि स्फार-हारलक्ष्मीसहोदरा // वैरिवर्गकृताकंपा। चंपा तत्रालवत्पुरी // 16 // यत्र प्रासाददंनेन / खयमेत्य सुराचलः // चलध्वजाजुजेनास्ते / सुरानाकारयन्निव // 17 // वसंति यत्र राजानो / नवप्रासादनंदिताः // परं यरिणश्चक्रु-नवप्रासादनंदिताः // 17 // यत्र श्रीवासुपूज्यस्य / कल्पकल्याणपंचकं // जगदानंदसंपादि। संजातं पापवंचकं // 15 // तत्र राजा महान्यायी / प्रजायामतिवत्सलः // खर्गे खर्गाधिप श्व / दधिवाहन इत्यनूत् // 20 // सुता चेटकराजस्य / नाम्ना पद्मावती सुता // सर्वांतःपुरमुख्याजूमाझी तस्य महीपतेः // 21 // अन्यदा सा महादेवी / शुजखप्नेन सूचितं // कुदौ सरोवरे गर्न / बजार कलहंसवत् // 25 // गर्नस्थार्जकमाहात्म्या-उत्पेदे दोहदो हृदि // रोचिर. ज्रकगर्नस्थाद् / गृहे गृहमणेरिव // 3 // प्रौढमातंगमारूढा / नृपनेपथ्यनूषिता॥ निजज= स्वहस्तेन / धृतबत्रपवित्रिता // 24 // ददाना बहुदानानि / शृएवती मधुरध्वनि // विहरामि कदा हंत / स्वोद्यानेषु यदृच्छया // 25 // इत्येवं दोहदस्तस्या / यावन्नो पूर्यते तदा // || . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृशदेहाजवत्कृष्ण-पहें चंडकलेव सा // 26 // अथ राज्ञान्यदा पृष्टा / प्रिये केनासि पुर्वला॥ किं केनापि तवाझेह / खमिता मम मंदिरे // 27 // अथवा केनचिनजे। पूनासि स्वजनेन किं // व्याधिर्वाधिः शरीरं ते / सांप्रतं बाधतेऽथवा // 27 // साब्रवीहिनयेनैवं / संयोजितकरांबुजा // स्वामिस्तव प्रसादेन / दुःखं मे नास्ति किंचन // श्एं // परं गर्नप्रनावोछो / दोहदोऽयं हृदा सह // देहं दहति हिमव-न्मालतीदलकोमलं // 30 // प्रिये पोपूर्यते त्वको / उःपूरोऽपि मनोरथः // सुखसाध्यः कियानेष / इत्युक्त्वान्युछितो नृपः॥३१॥राजाथ जयनामानं / राजेव पूर्वपर्वतं // श्रातपत्रं समादाया-रुरोह स्वमतंगजं // 35 // शुजाकारैरलंकारैः / स्फारहारैरलंकृता / सुनाखरमणिश्रेण्या / नासयंती दिशो दश // 33 // नृपादेशात्समारुह्य / तं गजं गजगामिनी // परीवारसमाकीर्णा / साचालीत्काननंप्रति // 3 // युग्मं // यशोनिदानदानानि / ददाना सा यथेप्सितं // शुशुन्ने कल्पवसीव / शैलशृंगसमुछि. ता // 35 // अस्मिन्नवसरे नव्य-मेघवृष्ट्यनुजावतः // सर्वतः सुरनिगंध / उदबलदिलातला| त् // 36 // तं तथाविधमाघाय / स्मृत्वा निजं महाटवीं // मतंगजो मदोन्मत्तः // स तत्क- | JN Jun Gun Aaradhak True Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक / मजायत // 37 // अ॒माद॑डेन चंडेन / मूलादुन्नूलयस्तरून् // पश्यत्सु सर्वलोकेषु / स च: चालटवींप्रति // 30 // विकटाः सुजटास्तत्र / विचित्राः शस्त्रपाणयः // समकालं गजं धर्तुचरित्रं मन्वधावंस्त्वरातुराः // ३ए / कांश्चिचरणघातेन / अ॒मादंडेन काश्चन // कांश्चिद्दशनंघातेन / दलयामास सोऽचिरात् // 40 // जटैरस्खलितगति-वेगवांश्चमवायुवत् ॥राज्ञी राजानमादा-यास जगाम महाटवीं // 41 // गबता चिरकालेन / जुजा मार्गमंतर // वटवृक्षोऽग्रतो || दृष्टः / शाखानिः शोनितोऽजितः // 45 // तेनोक्तं हे प्रिये हस्ती / वटाधस्ताद् ब्रजेयदा // तदा त्वया गृहीतव्या / लंबिता वटवबरी // 3 // एवमुक्ते नरेंद्रण | पद्मावत्यज्यधादिति॥ यदादिशति देवो मे / करिष्ये तदहं प्रनो // 4 // वेगात्तत्र गज़े प्राप्ते। लब्धलक्ष्यो. नरेश्वश्वरः // आखलंबेऽविलंबेन / प्रलंबां वटवल्लरीं // 45 // रांझी, तु स्त्रीखनावेन / लब्धलक्ष्यत्व- / वर्जिता // नाशकाबरी धतु / गजारूढेव निर्गता // 46 // नरेंडोऽपि विलक्षात्मा / संत्रांतनयनध्यः // स्फालच्युतो जुमालंबी / शाखामृग श्वानवत् // 4 // गजपृष्टे दधावेऽत्र / मु. हिं बध्वा नरेश्वरः // गजस्तु वायुवजवं-स्तस्यादृश्योऽवत्क्षणात् // 4 // धावनेन प्रजू- / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक तेन / विषमचरणघ्यः // स एवं चिंतयामास / किंचित्स्थित्वा स्वमानसे // 45 // श्तोम | म प्रिया याति / पुरी रे जवेदितः // हा हा करोमि किमह-मितो व्याघ्र इतस्तटी // // 50 // अथवा शीलमाहात्म्या-त्वयमेव महासती // एषा गृहं समेष्यति / किं क्लिशामि मुधैव तत् // 51 // एवं विचिंत्य राजाथ / चचाल वपुरींप्रति // चंपायामागतो राज्यं / स पूर्ववदपालयत् // 55 // बहुमार्ग समुवंध्य / तपनातपतापितः // गजोऽथ सखिलापूर्ण / प्रविवेश सरोवरं // 53 // स तत्र सलिलोबोले-झेलैश्चिक्रीम शीतलैः // पद्मावत्यपि सातंक -मुत्ततार शनैः शनैः // 54 // चंगं तरंगनंगीनि-ौरांगी सा पयोत्तरं // तरंती राजहंसी. व / निःससार सरोवरात् // 55 // सापश्यदेकतो व्याघान् / घुघुरारवजीषणान् // एकतः सिंहसंदोहान् / स्फारफूत्कारकारकांन् // 56 // एकतःप्रचलजिह्वान्। विजिह्वान् कृतफूत्कृतीन् // सनहानेकतो लिलान् / यमतानिवापरान् // 57 // युग्मं // कांदिशीका जयोसांतालोकयंती दिशो दश // संत्रस्तहरिणीवासौ / रराज तरबेक्षणा // // निश्चेष्टा काष्टवत्कष्टा-न्मूर्बितां पतितां त्रुवि // वातः सजनवडीतो / दुःस्थां सुस्थीचकार तां ॥५॥श्रवद-।। PPP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं श्रुपयोधारा-पवलीकृतनूतला // रुरोद प्रतिशब्देन / रोदयंती च रोदसीं // 60 // पद्मावती रुदंती ता-मवलोक्यैव पद्मिनी // मनुमरऊकारै-ररोदीच्छ्यामलानना // 61 // वा. तानिघातधूतान-शाखाः सर्वेऽपि शाखिनः // धूनयंति शिरांसीव / तस्या फुःखावलोकनात्॥ 6 // रुदित्वा चिरकालं सा। विललापेति पुःखिता // प्राणनाथ निराधारा / त्यक्तारण्ये कथं हहा // 63 // अथवा प्राणनाथस्य / न दोषोऽयं यतस्तदा // न मया प्रतिपद्यापि / गृहीता वटवलरी // 64 // अहं गर्भवती बाला / नीचित्तात्र कानने // एकाकिनी समानीता। दैव किं करुणा न ते // 65 // मुहुर्मुहुर्महादुःखा-मुमूर्ड च रुरोद च // करुणखरमत्यंतं / विलालापाप्यनेकशः // 66 // अथ धैर्य समालंब्य / सैवं चित्ते व्यचिंतयत् // शोकं विवेकमुक्ताना-मुचितं किं करोम्यहं // 6 // नानेकैः शोकसंतापै—न विलापैर्न रोदनैः // कदाचिन्मुच्यते प्राणी / पुरातनकुकर्मणा // 67 // मध्ये व्याघ्रादिजीवानां / कश्चिष्म्यापादयेयदि // परलोकस्य पाथेयं / किंचिधर्म करोमि तत् // ६ए // प्रपये देवमहतं / तथा चारित्रिणो गुरून् // जिनेंद्रनाषितं धर्म-मेवं सम्यक्त्वमग्रहीत् // 0 // अर्हतः शरणं संतु। सिका. P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MORIES श्व शरणं मम // साधवः शरणं शुद्ध-धर्मोऽस्तु शरणं मम // 71 // आशिश्रयदसावेवं / च- / तु शरणमजसा // पापान्यालोचयामास / निंदती स्वं मुहुर्मुहुः // 75 // कमयामि सर्वजंतूचरित्रं न् / दाम्यंतु मयि जैतवः // मैत्री समस्तचूतौ / वैरं नो मम कैश्चन // 13 // दांत्वा च क्ष। मयित्वा. च / शमसंवैगमार्गता // सा साकारं तदा जक्त-प्रत्याख्यानमशिश्रयत् // 4 // | तथाहि जश् मे हुज पमान / श्मस्स देहस्स श्माई वेलाए // आहारमुहिंदेहं / चरमे समयंमि वोसिरियं // 35 // सिडिसीमंतिनीकंठी–दारहारसहोदरं // परमेष्टिनमस्कारं / दध्यौ ध्यानपरायणा // 6 // नमस्कारप्रेजावेण / व्याघव्यालादयः समे // पशवः स्तंजिता. | जाता-चित्रेषु लिखिता इव // 7 // ततः सा निर्नया किंचि-जपंती श्रीनमस्कृति॥ एकां दिशं समादाय / प्रचचाल शनैः शनैः // // पदे पदे प्रस्खलंती / यावद् घरं गता. तदा // / / एकं तापसमद्रादी-तपसा शोषितांगकंपएाक्रमेण तस्य पार्श्वेगा-प्राषितः सोऽथ किंचन // पद्मावती परवं / तापसी मधुरस्वरं // 70 // का त्वं कुतः समायाता / क वा यास्यसि केन | मां // यानाषयसि पृष्टेवं / सावदमनदादरं // 2 // अहं चेटकराजस्यं / नाना पद्मावती / / 2 42- - .-. . .. ...... AWGuntanales Sun Gun Aaradhak Trul Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चरित्र सुतो // नार्या चंपाधिराजस्य / दधिवाहनभूलुजः // 3 // चंपातोऽहं समायाता / गमिष्यामि च तां पुरीं // विज्ञातुं वपुरीमार्ग / जवानाजाषितो मया // 4 // अरण्ये किमिहायाता / तेनैवमुदिते सति // सारज्य दोहदात्सर्व / खवृत्तांतमचीकथत् // 5 // तापसः प्राह हे वसे / खजातीयो जवेन्मम // त्वत्पिता चेटको राजा / दिष्ट्या दृष्टासि सांप्रतं // 6 // मा शोकं कुरु मारोदी-यतोऽपारे उरुत्तरे // संसारे संसरन् जीवः / क्वचिद् दुःखी कचित्सुखी // // सुघटं दुर्घटं कुर्याद् / उर्घटं सुघटं पुनः // तदेव घटयेद् दैवं / यन्मनुष्यों न चिंतयेत् // 7 // कस्यापि न सुखं नित्यं / दुःखं कस्येह नागतं // खंमितः को न दैवेन / संसारे संसरन् जनः // ए // शोकजन्मजरामृत्यु-वियोगरोगपूरितः // परानवैकप्रभवः / खजावानव ईदृशः // ए // अपारासारसंसार-पारावार निरूपणं // दुःखापनोदसंपादि / तापसेनेति निर्मितं // 1 // अथ वनफलैर्व-रनिबंत्यपि कारिता॥ सा तेनाग्रहमादाय / पारणं तृप्तिकारणं // ए // तस्याः स दर्शयन्मार्ग / तां निन्ये स जनावनिं // परोपकरणे यत्न। कुर्वते तीदपबुद्धयः // ए३ // अथाग्रे स बन्ज दृष्ट्वा / हलाकृष्टां वसुंधरां ॥पद्मावतीमुवा aamanansmara - P.P.AC. Guhratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trist Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 प्रत्येक चैवं / वचसा प्रीणयन्मनः॥ ए४ // एतस्यां जुवि नास्माकं / गंतुं समुचितं भवेत् // वत्से / गड यथेचं त्वं / नेतव्यं न कुतश्चन ॥ए॥ अत्र दंतपुरं नाम / पुरमस्ति समीपगं // ततश्चंपापुरी नित्यं / सार्था गत्यनेकशः // ए६ // नवत्या तत्र गंतव्यं / सार्थेन सह केनचित् // तव मार्गे शिवं नूया-दित्युक्त्वा ववलेज्य सः॥ ए // सा पुनस्तेन मार्गेण / चलंत्यचिरकालतः // विवेकिलोकसंपूर्ण / प्राप दंतपुरं पुरं // एज // धर्मार्थिनी धर्मशालां / पृष्ट्वा गत्वा महासतीः // विनयेन ववंदे सा। धर्मभूर्तीरिवांगिनीः // एy // क्रमेण सकलाः साध्वी -वंदित्वा जक्तिनाजिनी // राझी महत्तरापार्श्वे / समागत्य विवेश सा // 10 // दधार सं. पुटीकृत्य / सा मुखाग्रे करांबुजे // खनाववैरतो वक्त्रं-दुना संकोचिते श्व // 1 // महत्तरा बनाणैवं / श्राविके कुत आगता // धर्मध्यानसुधापानं / तापहृस्क्रियते न वा // 2 // तदा प्रादुर्नवदुःखा / सा साश्रुनयनाजनि // अनीष्टानाषणात्कस्य / कष्टं शव्यति नो दणात् // // 3 // तस्या मातुरिवाग्रे सा / कथामचीकथनिजां // गुरवो धर्मनिष्टानां / पितृमातृसमाः || खबु // 4 // महत्तरा बजाषेऽथ / तस्या हृदयमंदिरं // विरहानलसंतप्तं / शमयंती वचोऽमृतैः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus! Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 5 // उठेगः क्रियते कस्मा–न्न खकीयो हि कश्चन // संसारे विद्यते कोऽपि / न हि क स्यापि वसनः // 6 // एष जीवो नवं ब्राम्य-नकार्षीत्सर्वजंतुनिः // समस्तानपि संबंधांचरित्र|| स्तनोकं कियतां धरेत // 7 // माता पिता तथा वाता। जर्ता च स्वजनोऽपि चासोनि जायते वैरी। यदि स्वार्थो न सिष्ठ्यति // 7 // एको निःकारणं बंधुः / सर्वकल्याणकारकः // जवाब्धितारको धर्मः / स्नेहस्तत्र विधीयते // ए // शरीरमस्थिरं लोके / संपदो विपदास्पदं // एक एव स्थिरो धर्मः / श्रयणीयो विचक्षणैः // 10 // समीहितानि सिध्यति / धचिंतामणेरिव // दृष्टांतस्तत्र विषये / पद्मावति विभावय // 11 // तथाहि आसीत्पुरा श्रीपुरनामधेयं / पुरं गरीयो नगरेषु श्रेष्टं // तत्रानवामिपतिः प्रतापी।महानयो नाम नयिकधाम // 12 // पुरे च तस्मिन् वसतिस्म धन्या-निधस्तदा श्रेष्टीवरोधनाढ्यः // अनंगसेनाजितसेनसंज्ञा चुनौ शुजौ तस्य सुतावजूतां // 13 // तयोः सखा को ऽपि पयोधिमार्गा-दुपार्य वित्तं प्रचुर समागात् // तं वित्तवंतं धनदोपमानं / दृष्ट्वेति तौ || मंत्रयतःस्म तंत्रं // 14 // आवां न हद्दादिकमंगनेन / श्रियं कदाप्यर्जयितुं समर्थों // आरुह्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्मास्किल यानपात्रं / गत्वा विदेशं श्रियमर्ज़यावः // 15 // लक्ष्मीवतः कूटनृतोऽप्यदातुः / / प्रत्येक सर्वेऽपि लोकाः परितो तमंति // अहर्निशं चंद्ररविग्रहाः किं / प्रदक्षिणां मेरुगिरेन दयुः // // 16 // परस्परं ताविति मंत्रयित्वा / गत्वा च तातानुमात गृहीत्वा // नानाधनोपार्जनहेतवे तौ। पयोनिधौ पूरयतःस्म पोतं // 17 // तस्मिन् वहित्रे धनिनोऽपरेऽपि / प्रतिष्य - जांमान्यचटन्ननेके // वातानिघातैरथ तच्चचाल / रथो यथा सुंदरसौरलेयैः // 17 // पोते | गतेजोनिधिमध्यजागं / वायुर्ववौ कोऽपि महाप्रचंमः // उदबलस्तत्र च शैल,गो-तुंगास्तरंगाः कृतरंगनंगाः // 15 // इतस्ततो दोलयतिम पोत-स्तथांतरावर्तिजनस्य चेतः॥बुमामि हा बांधव रद रहे-त्याद्यारवस्तत्र निरंतरोऽजूत् // 20 // अकापुरेते कुलदेवताया।नानाप्रकाराएयुपयाचितानि // अस्मार्घरन्ये प्रवीतरागं / रोगातुरा वैद्यमिवानवयं // 21 // शेवालजालैरिव नीलवणेरंलोवपुन्मीलदगैः परीतः॥ श्वोपनीतः कुलदेवातनि-पोज नैस्तत्र गतैरदर्शि // 12 // बुजुक्षितैराम्रफलं रसालं / सारोवरं नीरमिवातपाः // श्वांधका॥रे पतितैः प्रदीपं / बीपं तमालोक्य जनैरतोषि // 3 // निर्यामकास्तं तटिनीपतेस्तटं / निः || / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust i Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्युर्व हिनं दणरक्षणाय तौ॥छीपं समालोकयितुं कुतूहला-सहोदरावुत्तरतःस्म पोतात् // 5 // अथोमनोइंवनमीदमाणौ / यावजतौ तौ सुचिरं विपूरे॥ अपश्यतां तावदतीवतुंग।प्रासादचरित्र मेकं कपिशीर्षचंगं // 25 // वेध्यानुसाराद् द्विशिखाविवैतौ।कोट्टानुसाराजवतोबतौ॥आश्चर्यतो विस्मरतः खपोतं / नवांतरं वा कलिकालवातात् // 56 // तान्यामशब्दा नगरी निदि / विशालशालोज्ज्वलयोगपढें // प्रक्षिप्य चेष्टारहितोपविष्टा / ध्यानाधिरूढा वनयोगिनीव // 7 // शून्यं पुरं. लोकपरंपरानि-बुद्धिप्रपंचैरिव मूर्खचित्तं // दृष्टं मणिश्रेण्यवजासमानं / निशीव तारांकितमंतरिकं // 27 // ततःपरं हट्टपरंपरायां। धनेन धान्येन च पूरितायां ॥प्राप्तो क. मात्तौ सहसं चरंतौ / कुहाविवाघ्राध्वनि चंद्रसूर्यों // ए॥ अपश्यतां वस्तुनिरंचितानि / शस्तैः समस्तैर्धनिनां गृहाणि // ततश्च सप्तक्षणराजमान। राजांगणं पर्वतराजमानं३॥ बालोऽपि वृद्धोऽपि युवापि कोऽपि / नो मानवो लोचनगोवरोऽभूत् // अचिंति ताज्यामिति विस्मिताच्या -माश्चर्यविस्फारितलोचनाच्यां // 31 // लोकाः किमेतस्य पुरस्य सर्वे / क्वचित्प्रणेशुः परचक्र || चीत्या किं राक्षसी कापि समस्त्यपूरे।ग्रस्तास्तया वा मनुजाः समस्ताः // 3 // एवं विकल्पाद् || P.P.AC.Gupratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र जो हृदये दधानौ / नरेंद्रगेहेऽचटतां नरौ तौ // क्रमागतो सतमभूमिकायां / सुवर्णमाणिक्यवि निर्मितायां // 33 // सुस्फारशृंगारविराजमाना / मुखश्रिया निर्जितराजमाना // शचीरति श्रीत्यनुरूपरूपा / श्रृंगारशृंगारसमखरूपा // 34 // चक्षुध्यस्यांजनरंजितस्य / कटाक्षविदेपण१४] | तः दणेन // विदोजयंतीव मनोऽमराणां / प्रचंमवातादिव सागरांजः॥ 35 // उहाय शय्या तलतः सबीलं / हे नाथ नाथेति मुदा वदंती // कन्या मनोज्ञा विनयानतांगी। तयोध्योः संमुखमाजगाम // 36 // त्रिनिर्विशेषकं // उवाच सा योजितपाणिपद्मा / निर्नायकाहं गम| यांबनूव // श्हाययावदिवसान्निरर्थान् / नाथाररयोजतमालतीव // 35 // कृता सनाथाद्यदिने जवद्न्यां / मत्पुण्ययोगेन समागतान्यां // तत्स्थीयतामत्र मया सहाहं / दासीव ना. र्या लवतोर्नवामि // 30 // इदं गरीयो नगरं सरंजं / तथा च धान्यानि धनान्यमूनि // एषा च कन्या सुकृतोपनीत-मिदं समस्तं नवदीयमेव // ३ए // श्रुत्वेति वाक्यानि तयोदि. तानि / प्रमोदतोऽचिंतयतां हृदेति // कन्यास्ति किं नागकुमारिकेयं / किं वामरी काप्यथ मानवी वा // 40 // किं वानया चेतसि चिंतया नौ / नैवेदशी कापि भृगेक्षणास्ति ॥जक्ता - - PPAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नुरक्ता विनयेन युक्ता / कुर्वोऽनया जोगसुखानुभूति // 41 // न मुखश्रीजितपूर्णचं विखोक्यते केन न कोऽपि लोकः // अस्मिन् पुरे धान्यधनालये पि / पृष्टेति तान्यां निज| गाद सैवं // 43 // निशम्यतामत्र समस्त्यपूरे / महापुरं नाम पुरं महीयः // तत्रास्ति लक्ष्मी| तिलकानिधानः। दोणीपतिः वीणरिपुप्रतानः // 44 // तस्याजवं सतसुतोपरिष्टा-दहं सुता रूपवती वरिष्टा // उद्यौवना यत्रदिने सजाया-मागम्य तातांगमुपाविशं च // 45 // अत्रांतरेऽष्टांगनिमित्तवेत्ता / समागतः संशयजावनेता // पृष्टः स राज्ञा मम पुत्रिकाया। अस्या वरः को नविता वदैतत् // 46 // स प्राह राजन् शृणु सावधानं / समुद्रतीरेऽस्ति पुरं प्रधानं // निष्कास्य तस्मान्मनुजान् समस्तान् / राजांगणे स्थापय तत्र पुत्रीं // 47 // समेष्यतस्तत्र नरावुनौ यौ / जाव्यौ वरौ तौ तव पुत्रिकायाः॥राजाह नैमित्तिक मे सुतेय-मेका वरौ कौ किमिदं त्वयोक्तं सप्राह नाश्चर्यमिदं नरें।यतोन नाव्यं ध्रुवमन्यथा स्यात् ॥कि पांमुपुत्रापदात्मजायाः।पंचप्रमाणाः पतयः श्रुता नए विसृज्य नैमित्तिकमुत्तमं तं / निर्वास्य लोकान्नगरादितश्च / / अस्थापयन्मामुपवेश्मनीह / विलोकयंती जवदागमार्थ // 50 // समागतौ संप्रति तो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवंतौ ।नैमित्तिकोक्तो प्रवरौ वरौ मे // वृत्तांतमाकर्ण्य तयैवमुक्तं / बनूवतुस्तौ मुदितावतीव || // 51 // कन्या पुनः प्राह विभू जवळ्या-मवशितिस्ताव दिदैव कार्या // बहिर्न हि वाचरित्री पि कदापि गम्यं / नैवेदृशं क्वापि समस्ति रम्यं // 55 // चतुर्दिशाखस्य पुरस्य पावे। चत्वा रि विस्तारिवनानि संति // विलोकनीयानि न तानि नित्यं / वनं विशेषादपि दाक्षिणात्यं // // 53 // ज़क्त्वेति तौ नानविलेपनाथैः / सेष्टानि मिष्टानि च जोजयंती // शुश्रूषयामास तथा कथंचि-गतं यथैकणव दिनेन // 55 // गेहेऽपि किंवः गमनेन साध्यं / किं वा महा. सागरलंघनेन // अत्रैव भोगादिसुखानि संति / तत्र स्थितौ ताविति चिंतयित्वा // 55 // वीणे मरुन्मोहमहाविकारे / पुमानिवापोपशमं पयोधिः // प्रस्यावमाप्ताद्य जनाः समस्ताः / प्रय पोतं खरहाण्यवेयुः // 56 // अथो द्वितीये दिवसे क्वचिरसा / जगाम बाला वचसा रसाला // कुतूहलानिःक्षणिको क्षणेन तौ / निर्गतौ लोकयितुं वनानि // प्राच्यासुदीच्यामपि च प्रतीच्यां / महीरुहैश्चंपकचूतमुख्यैः // विराजमानानि वनानि तान्यां / यथाक्रमं तत्र विलोकितानि // 7 // अन्योन्यमालोचयतां ततस्तौ.। मनोहराएयेव वनान्यमूनि // दृष्टा- || पाप P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaragihak Trust Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नि मेरोरिव नंदनाद्या न्यानंदनार्थ जुवमागतानि // एए // त्रयोपमानेन वनं चतुर्थ / ना. || व्येव जव्यं न हि संशयोऽत्र // चतुषु पादेष्वपि रुविकायाः / संजायतें किं विषमोऽपिकोऽपिः॥ 6 // // एकेन सिक्थेन विलोकितेन / स्थाख्याः स्वरूपं सकलं विदंति // निषेधयामाप्त तथापि कस्मा-छने वतुर्षे गमनं प्रिया सा // 61 // मन्यावहे किंचिदतीववयं / वेवियते तहिपिनं हि तूयं // तत्कौतुकं तत्र विलोकयावः / प्रायो निषिझे बहुला दिदृक्षा // 6 // सहोदसै ताविति मंत्रयित्वा / प्रचेलतुर्दविणदिखनाय // तदेव गंधो दुरजिः समागा-दाणेंद्रियामोटनहेतुभूतः // 63 // क्वचिकपालं क्वचिदस्थिजालं / क्वचित्कराला नररुममाला // क्वचित्प्रवालं कलिलप्रणालं / कंकालवेत्तालकुलं क्वचिच्च // 64 // क्वचिठ्ठगालेः कुधया कराबः / काकैश्च कोलाहलतो मिलनिः॥ आखाद्यमानानि कलेवराणि / निरैकिंषातां विपि. ने बतौः॥६५॥ युग्मं // किंचिदिली तो चकिती च किंचित् / किंचिंचवंत कातो वनां. तः॥ जीवंतमेकं नरमैतिषातां / विषाद्रितं खादितपादजंघ-॥६६॥ दृष्ट्वा तदा सन्मुखमा - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक मिहागतौ स्तः // 6 // अजागरीक्षा प्रतिकूलदैवं / प्राप्तौ युवामुत्कंटसंकटे यत् // दैवेऽनुकूले / / निकटेऽपि तक्त्व / किमंधकारं सति जाखति स्यात् // 67 // तयोर्वचस्तत्तुदतिम चित्ते / दारस्य निदेप श्व कतेषु // अपृचतां कंपितकाययष्टी प्रचंमवाताहतवलितुल्यौ // 6 // दं गरीयो नगरं किमस्ति / का सा च कन्या किमिदं वनं च // केऽमी जनाः केन निपातिताश्च / कोऽयं भवान् बांधवकल्पजल्पः // 70 // नरः स मंदखरमित्युवाच ।नार्योऽवधार्याः सकला अनार्याः // या ज्वालयंत्यो ननु जातरूपं / कांतं लभते ज्वलनाहिशेषं // 31 // विमोह्य चेतांसि शरीरकांति / सुवर्णरूपामिव दर्शविरवा // नरान् सलोनान् शलनोपमाना / दहत्यहो दीपशिखेव नारी // // स्त्रियो रमंते मनसान्यपुंसा / वाचापरेण क्रिययापरेण // मूर्यप्रिया किं तलिनी न हंसैः / संगं च लूंगैः कुरुतेंतरंगं // 33 // प्रचंझपाखंमकरंग जूता / रंगाः समस्ता अपि संति लोके // विशेषतोऽस्या नगरति ताया / नार्याः वरूपं शृ. णुतां जवंतौ // 4 // इदं पुरं रत्नपुरानिधान-मनेकपोरैः परिपूर्णमासीत् // अथात्तरत्नैरिव रत्नराशी-रोचिः प्रपंचैरिव चंझरोचिः // 35 // तनांग्यताम्यादुदपादि राक्षसी / कांता || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 रजूमौ विषवल्लीवन्नवा // सानीय पापा नगरस्य मानवा-नस्मिन् वने क्रूरमना व्यनाशयत् / / | // 76 // धनेषु धान्येष्वपि सत्सु पापा / वांडत्यसौ मानवमांसमेव // अत्येव मिष्टान्नमपास्य विष्टां / न रांसनः किं करजः शमी वा // 7 // नरान् समस्तानपि जदयित्वा / पुनर्बुजुक्षाकुलकुदिरेषा // विधाय रूपं नवकन्यकाया / मायावती तिष्टति नूपगेहे // // जलास्थलोछा समुपेत्य तस्या-मुन्निद्रमुख्यामनुरज्यते यः // अत्यल्पकालानते स मृत्यु-मलिनलि. न्यामिव गंधलीनः // ऽए // सुभोजनस्नानविलेपनाथैः / प्रपोष्य सा सप्तदिनानि यावत् ॥विनाशयत्यत्र वने मनुष्या-नजान् महायज्ञ श्व हिजाली // 70 ॥स्थलाध्वनाभूवमिहागतोऽहं। साश्चर्यनेत्रो नगरे मृगाजः // मां हावजावैः कपटस्वजावै / राक्षस्यरदद् हृदयं प्रतार्य // // प्रपोष्य मे सप्तदिनानि देह-माजंघम स्मिन् विपिने चखाद // क्षणादथोएष्यति जोक्ष्यते च / कायं महानंदकृतोऽपि शेषं // 2 // एवं स्वरूपं सकलं निशम्य / मुमूतुर्नीति वशंवदौ तौ // समीरणदेपणतो नरः स / आश्वासयामार कृपाप्रपानः // 3 // किं को प्यु. || पायो वरिवर्चि ताह-येनोत्कटासंकटतश्खुटिः स्यात् // तान्यां स पृष्टः पुनरेवमाह।स्वरे // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण कूपादिव निर्गतेन // // जयं जवद्या बहु नो विधेयं / यतोऽस्त्यरादिह तीर्थमेकं // || पीयूषवापीव मरुस्थलीषु / निदाघकाले सखिलप्रपेव // 5 // तत्रास्ति यदः किल धर्मराजो 14-दुष्टेषु सादादिक धर्मराजः // अत्रोपकारी हयरूंपधारी / समेत्यसौ सप्तमसतमेति // 6 // राजांगणाज्यर्णमुपेत्य यक्ष / उच्चैः खरेणेति करोति शब्दं // जलात्स्थलाधा य इहागतः स्या-स्पृष्टं समारोहतु सोऽवतीर्यः॥७॥ एषास्ति कन्या न हि किंतु राक्षसी / जनान् हनिष्यत्यमुरज्यः जोजनैः // निघ्नंति मत्स्यान् किमु मत्स्यबंधकां / आलोच्य मांसैबत नो उराशयाः // // यदोक्तमेवं वचनं निशम्य / राजांगणाद्यो मनुजोऽवतीर्य // तमश्वमारोहति साहसाय- खुटत्यतो दुर्घटसंकटोत्सः // नए // दिनध्यात्पूर्वमिहागतोऽनू-ड्रीधर्मराजानिधयकराजः // अथो पुनः पंचमवासरे स / समागमिष्यत्यनुराजवेश्म // ए // तत्पृष्टनागश्रयएं विधेयं / नार्युक्तवाक्ये हृदयं न देयं // बालानांध लजते न हस्ती / चेहस्तिनीसंगमलनमुखः स्यात् // ए१-॥ तत्पृष्टनागोपरि संस्थितान्नो / जनानुपद्रोतुमसौ समर्था // किमद्रि|| शृंगोपरि वर्तमाना-नाकामति क्रूरमति गारिः // ए // सा राक्षसी चाटुवचांस्यनेकशो।। .P. Ac. Guntatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jशं वदंती कंपटे पटीयसी // अनुव्रजंती नवतोर्न चक्षुषा / निरीक्षणीया क्षणमात्रमप्य हो / ए३ // क्षुब्धं तया चेयुवयोर्नचेतः / स्वैविनावैः पटुचाटुनिश्च // जयंकरं रूपमतीव चरित्रं कृत्वा / कृत्यानुधाविष्यति नापनार्थ // ए४ // परं जवद्न्यां न जयं विधेयं ।श्रीयपृष्ट त्व धिरूढवद्न्यां // मतंगजस्कंधतलाधिरूढं / शुनी किमुच्चाटयितुं पटुः स्यात् // एए ॥अयं धुपायश्खुटने समस्ति / स पंचमे वासर एव कार्यः॥ परं चिरं न स्थितिरत्र साध्वी / यतोऽथ सैष्यत्यचिरादिदेव // एद // जो जो जवंतौ बजतां त्वरेण / तस्याः पुरोऽत्रागमनं न प्रोच्य। ज्ञास्यत्यसौ चेगुवयोः स्वरूपं / विनाशयिष्यत्यधुनैव तर्हि // ए७ // हृद्येवधार्या हृदयस्य वा / चेष्टाः समाः पूर्ववदेव कार्याः // धूर्तेन लोकेन समं हि धूर्ते-विजीयते नो सरलैः का दापि // ए // तथा पिशाच्या सह दलवत्या / जाव्यं नवदन्यामपि दंनवव्यां // किंवा विधजनमंजनस्य / बको बकस्यप्यनलोऽनलस्य // एए // सुधासमानैर्मधुरैः प्रधानः / सा वंचनीया वचनप्रपंचैः // पूरस्तटिन्या न तरून् किणोति / किं स्वादुनिः शीतलवारिवारैः॥ // 20 // कार्य मुखांनोजविराजितायां / तस्यां सरस्यामिव संवसद्न्यां // चेतो नवद्न्यां P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खलु निर्विकल्पं / सा नो जवेबंशयमंमिता यथा // 1 // एवंविधां तस्य नरस्य शेषां / गुरोः // सुशिष्याविव तौ निशम्य // श्रद्धां दधानौ पवनोपमान-वेगवजाबजतुः पुरांतः // 5 // चरित्र थारुह्य राजांगणसप्तमदणं / शय्यातले पूर्ववदेव तस्थतुः // कणांतरे तत्र च सापि सर्पिणी -समा समागादतिदुष्टमानसा // 3 // यथा दर्दुरौ सर्पस प्रियाया। यथा मूषको सह मा. र्जारिकायाः // शृगालो यथा सक्षुधो व्याधिकाया। बिनीतौ तथा दर्शनादेव तस्याः // 4 // ईषजहसतुः स्मेर-वदनौ माययाथ तौ // सापि मायावती तस्था-वालिंग्य स्नेहविह्वला // 5 // विलासहासलासाथै / रज्यते न मनस्तयोः // विषवृतफलं ज्ञातं / सरसत्वाकिमद्यते // 6 // अप्यंतगोंपितात्तापा-त्तयोबिहायतालवत् // किमु कोटरसंरथेऽग्नौ / तरुनवति शाम्बलः // 7 // गोप्यीकृतोऽपि संताप-स्तयोः किंचित्स्फुटोऽभवत् // जस्मनाहादितोऽप्य. मि-रीषत्तापं तनोति यत् // 7 // योगिनः परमात्मानं / चक्रवाका दिवाकरं // चकोरा श्व शीतांशुं / मयूरा श्व वारिदं // ए // हंसा श्व शरत्कालं / वसंतं वनराजिवत् // पुमांसौ | तावतीवेष्टं। यदागमनमैहतां // 10 // युग्मं // वार्तालापकलापेषु / सचेतचेतसावुनौ // || Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक ददतुः शून्यहुंकारं / पुरंध्याः पुरतस्तदा // 11 // संसर्गजा गुणा दोषा / इति सत्यापयंत्यभू / त् // चेतोवृत्तिस्तयोः शून्या / शून्यतद्रंगसंगतः // 12 // तत्र शय्यातले नैव / खेजाते तौ चारत्र || धर्ति क्वचित // मत्स्या वाल्पपानीये। मखुणा यातपे यथा ॥१३॥जीत्यालिंगितदेहत्वा२३ सापत्न्यादिव वैरतः // न बुजुदा न निद्रा च / तयोः संनिधिमागमत् // 14 // तयोर्जयशिलापट्ट-रुडचेतोंतरालयोः // मुखप्रदितमप्यन्न-मघस्तादुत्ततार नो // 15 // राक्षस्युचेऽथ साशंका / जो नवंती कुतूहलात् // अभूतां किं गतौ कापि / वनादिस्थानके बहिः // 16 // अहो निपुणतामुष्या। अहो कपटपाटवं / लक्ष्मी तिलकपुत्र्यस्मी-त्याव्यलीकं जगौ हि या // 17 // आवयोः सहचारी हि / कोऽप्यस्ति पुण्यबांधवः // येन तत्र वने नीता-वावां कौतुककैतवात् // 17 // येन पीमातुरेणापि / वाक्यदीपेन कूपिका // एषा स्फुटीकृता तं हि / हितं मन्यामहे नरं // 17 // अवगण्य निजां पीमां / संतो जंतूपकारिणः॥ तिष्टंतोऽप्या. तपे वृक्षा / लोके बायां वितन्वते // 20 // रावस्येषा जवत्येव / नरेण प्रतिपादिता // मा. ज्ञासीत्तत्र गमनं / इसंताविति हेतवे // 1 // बुटिष्यावः कथं हा हा / संकटाधिकटादतः P AC Gunratnasuri M.S.. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / प्रत्येक // ध्यायंताविति चेतोंत-रूचतुर्माययेति तां ॥शानिः कुलकं॥आवाच्यां न प्रियेकिंचि-त्व निषिध्य विधीयते ॥मर्यादया निषिोऽपि / स्थाने किं याति वारिधिः॥३॥ अथ सा कन्यको. चरित्र वाच।जो लोः प्राणप्रियौ कुतः // विनायता शरीरेवां। लोजनेचन शेवते // 4 // तावूचतुः प्रिये कल्ये / सुस्निग्धं सोदकादिकं // जुक्तं बहुतरं तेन / विद्यतेऽद्योदरव्यथा // 25 // व्यथायाः संगतो दीप-शिखाया व सांप्रतं // श्यामलिप्तांजनेनेव / व्यायं तनुरस्ति नौ // 16 // नुक्केन बहुना नाय / जाग्रोऽग्निर्विजूंजते // एधोभिर्बहुनिः कितै-झटपो विध्याप्यतेनलः // 7 // एवमादिप्रकारेण / तस्मिन् वदति नृत्ये // कृत्याचेतोऽनवत्तुष्टं / शांते वायाविवांबुधिः // 27 // पंचाब्दानीव पंचाथ / वासरा ऐयरुः क्रमात् // यतः श्रीधर्मराजाख्यः। समा गोदश्वरूपत्नाक् // श्ए // मनुष्यवाचा सोऽवोच-जलस्थलमयाध्वनः // योऽत्रागतो जवेन्मुग्धः / स पृष्टं मेऽधिशेहतु // 30 // राजांगणस्थिता नैषा / मानवी किंतु राक्षसी // विश्वस्तान् मानवानेषा / विनाशयति निश्चितं // 31 // त्वक्सासं कूटहेमानां / दर्शयंत्यां तनुप्र|| जां // अस्यां कल्याणमिछनि-र्मा विश्वासो विधीयतां // 35 // अनया सह यः स्नेहं / करि- || 3D P.PAC Gunratnasun Aaradhak Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक Jष्यति स नंक्ष्यति // कुर्वाणं वह्निना स्नेहं / तत्कणं म्रक्षणं यथा // 33 // कृता अपि गुणा || नीचे / जति दुःखदेतवे // तन्वत्यपि गुणांस्तंतुः / पूर्णिकायाः दयाय यत् // 35 // यत्र त न हि स्नेहः। करणीयो विचरणैः // तिला यंत्रेण पीड्यन्ते / सर्वत्र स्नेहकारिणः // 36 // श्त्येवं तस्य वाक्यानि / श्रुत्वा तौ मुदितौ हृदि // हुं स एव समायातो / यक्षराजो दयानिधिः // 37 // उत्तरीतुमथो लग्नौ / तत्क्षणं सप्तमक्षणात् // नोजनार्थी कथं तिष्टे-सादरं चेन्निमंत्रितः // 37 // नाथ नाथेति जल्पाका / तन्वती प्रेम कृत्रिमं // देहबायेव संजाता / सा तयोः सहचारिणी, // ३ए // यक्षप्रजावतः कृत्या / न तयोर्गतिमस्खलत् // मेघे सति न. दीपूरः / स्खख्यते किं. शिलासिनिः // 40 // उत्तीर्य नूपतेर्गेहा-वेगवंतौ च वायुवत् // था. रोहता हयाकार-धारकं यक्षनायकं // 41 // यक्षश्चचाल वेगेन / तावादाय दयामयः // अन्वायाता पिशची सा / हावजावान् वितन्वती // 45 // उबलापानुगबंती विलापानि च तत्वती // चक्षुयाः सकटाक्षान्यां। सेक्षमाणा निरंतरं // 53 // तमितं किं त्यजेन्मेघः / कौमुदीशचः कौमुदी॥ दिवा दिवाकरः किं वा / रतिप्रीतिः किमंगजः // 4 // तन्मामेका P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येका किनी त्यक्त्वा / युवान्यां गम्यते कथं // कूपछायैव ही व्यर्था / यौवनश्रीयुवां विना // 4 // गमयिष्यामि हि जन्म / कथं ह्येकामपि क्षपां // पद्मिनी गमयेत्कष्टा-त्पद्मिनीखामिनं विना चरित्र // 46 // युवामनुगमिष्यामि / स्वप्रियौ विमुखावपि // विमुखस्यापि सूर्यस्य / बाया किं ना. नुगामिनी // 4 // निशां त्यक्त्वा निशानायो। वासरं जासुरं भजन // शुष्कपिप्पलपत्रानः / कलावानपि दृश्यते // 40 // सुतरां यामिनीतुल्यां। जामिनी विरहातुरां // जवद्न्यां सुखमिबद्न्यां / हित्वेतो गम्यते कुतः // 45 // एषोऽश्वोऽश्वो न यदो नो / किंवत्सौ पुष्टराक्ष सः // प्रतार्य मानवान्नित्यं / निजस्थाने विनाशयेत् // 50 // चतुर्थे विपिने ह्यस्य ।मायास्थानं प्रवर्तते // अनेके मारिता मुग्धा-स्तेन वां विप्रतारितौ // 51 // युवयोर्गतयोस्तत्र / मा कार्षीत्स प्रतारणं // अत एव मया पूर्व / निषिमं गमनं वने // 55 // इति नार्या वचः शृएवन् / हावनावैर्दिशन्मनः // अनंगव्याकुलस्वांतो-ऽनंगसेनो व्यचिंतयत् // 53 // अश्वेन राक्षसीत्येषा / कन्यका प्रतिपाद्यते // राक्षसश्चानयाश्वोऽयं / सत्यं किमुनयोस्ततः // 54 // // एषापी नस्तनी स्वर्ण सवर्णा वरवर्णिनी // कोमला कदलीवांगे-रुत्पलोत्फुललोचना // 55|| P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र अश्वस्त्वदृष्टपूर्वोऽसौ / वाक्याद्यदोऽवगम्यते // राक्षसोऽसौ नवेञ्चेत्त-विश्वासो न विधीयते | // 26 // धनधान्येन संपूर्ण / पुरं दृष्टं मया पुरा // अदृष्टपूर्वसंस्शने / न जानेऽयं क्व नेष्यति // 57 // अथवा वचनं तस्य / नरस्य न नवेन्मृषा // अथवा दैवती मायां / को वा वि. ज्ञातुमीश्वरः // 27 // इति संदेहसंदोह-दोलांदोलितमानसः // गिरेरिव महालोष्टो / य पृष्टात्पपात सः // एए // अनंगसेनमादाय / सा लक्ष्यं गृध्रपक्षिवत् // उड्डीय स्वाश्रयं नीत्वा / शूलायामध्यरोपयत् // 60 // देवताशक्तिमाहात्म्या-गाद्यदानुगामिनी // द्वितीयं पुनरेत्याहा-जितसेनं जितेंद्रियं // 61 // अथ नाथ कथं जावी। बांधवस्ते त्वया विना // सुखीस्यात्कुमुदं किं वा / विना कुमुदबांधवं // 6 // एकोदरसमुत्पन्न-देहयोमरणं हहा // जारंमपदिवनावि / नवतोर्जिनचेतसोः // 3 // मूढो न मन्यतेऽन्योक्ति / न जानाति स्वयं पुनः ॥राक्षसे कुरुते श्रकां / किं हा दैव करोम्यहं // 64 // तस्या इत्यादिवाक्येन / चलितं नो मनो मनाक् // उन्मूलिततर्वायुः / कि मेरुमपि चालयेत् // 65 // अयं हावैरजिन्नोऽपि नेत्स्यते नापकाकृतेः // अन्नेयमपि पानीयैः / स्वर्णमग्नेऽवीनवेत् // 66 // विचिंत्येति स्फु- / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / टीचक्रे / कृत्या रूपं स्खलावजं // करे यासीति जल्पाका / धावंती सा स्वरातुरा // 67 // || बुद्धदावामकुतिश्चा-दृट्टहास्यानि कुर्वती // प्रसारितकरायसी-च्यामला मुक्तलालका // . चरित्र // 6 // तमिहत्सकलत्कारां / दरअधिरशोणिता // जीपणां यमजिह्वाव-दधाना क्षुरिकां करे // ६ए // त्रिनिर्विशेषकं // तथाप्यजितसेनस्य / मनः कुब्धं न किंचन // वजं किं शक्यते नेतुं / वारिणा वह्निनापि वा // 70 // सा निष्फलप्रयासाथ / जगाम यमदिग्वने // अनंगसेनं साक्रंदं / जघान धनानिर्दया // 31 ॥केमेणा जितसेनं तं / महासाहसिनं क्रमात् // यदराजः समादाया-यातोऽसौ जनसद्मनि // 5 // निस्तुलं साहसं तस्य / ज्ञात्वा यतोऽनुरंजितः // आविश्चक्रे निजं रूपं / चलतुंमलमंगलः // 73 // सोऽवादीतं प्रसन्नोऽस्मिायाचख त्वं यथेप्सितं // अद्य यावन्मयान्यो नो। कोऽपि दृष्टो जवाहशः // 13 // विश्याजितसेनस्तं / चिंतामणिमयाचत // सर्वे सिध्ध्यंति येनार्था-स्तदिति विचक्षणाः॥ // // अथ प्रसन्नचित्तः स / तस्मै वांतिपूरकं // श्रीमचिंतामणिं दत्वा / यवराजस्तिरो|| दघे // 45 // उपवासत्रयं कृत्वा--जितसेनः सुरार्पितं // चंदनादिमिरज्ययं / चिंतामणि PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वारा मसाधयत् // 6 // चिंतामणिप्रनावेण / सुरणत्किंकिणीरवं // अमूख्यरत्नखचितं / दीप्यमानं दिनेशवत् // 7 // अवतीर्णमिव स्वर्गाद् / ध्वजवजविराजितं // दिव्यं विमानमानंदि। वांबामात्रादवांप सः॥ 7 // युग्मं // तत्र सिंहासनासीनः। स तस्थौ देवराजवत् // चामरिरमरीनिश्च / वीज्यमानो निरंतरं // ए ॥उतिबनरोचिष्णु-रलंकारैरलंकृतः॥देवतागीतगीतानि / शृण्वन् पश्यंश्च नाटकं // // श्रीपुरे नगरे गछ / हे विमानेति चिंतनात // चचाल दिवि तळेगा-नासुरं सूबिंबवत् // 1 // अचिरेण समायातं / विमान श्रीपुरोपरि // विधाकृततनु नु-वृहन्नानुः किमेष वा // 2 // तिर्यग्याति दिनाधीश / उध्वं वा ज्वलनो ज्वलेत् // पतत्येतत्पुनज्योति-स्तदेतत्किं विचार्यते // 3 // इतीक्षमाणं साश्चर्यमुन्मुख गरैजनैः // धन्यस्य श्रेष्टिना श्रेष्ट-स्योत्ततार ग्रहांगणे // 4 // त्रिनिर्विशेषकं // | धन्योऽयं धन्य एवाया-निधानेन गुणेन च // विमानागमनाइन्यो / जनैरिति ततः स्तुतः // 5 // उत्तीयोजितसेन आदरजरात्तस्माद्विमानात्वयं / श्रीतातापियोरुहे ब्रमरवक्त्या || सिवे ध्रुव // माताप्याप परां मुदं सुरसमं दृष्ट्वा निज नंदनं / इंगं रंगरण पूर्णमनवत्तु %E . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येका चरित्र र्ण स्फुरत्तोरणं // 6 // सुवर्ण धनधान्यढ्यं / यद्यच्चेतोऽनिचिंतितं // चिंतामणिप्रनावेण / तसर्व तस्य सिध्यति // 7 // एतत्कथोपमानेन / संसारस्य शिवस्य च // स्वरूपं विद्यते तच्च। पद्मावति निशम्यतां // 6 // संसारो धनधान्याढ्यः / शून्यपत्तनसन्निनः // चतुर्मिविपिनैस्तुल्या-श्चतस्रो गतयो मताः // // वनेन दाक्षिणात्येन / सदृशी नारकी गतिः॥तत्र ये नारका जीवा-स्ते पुनर्मतकैः समाः // ए // रासीसहगस्त्येषा। संसारे मोहवासना // तस्यां मुह्यति यो मर्यो / मृत्युमामोत्यनेकशः // 1 // तान्यां सहोदराज्यां च / समाः सर्वेऽपि मानवाः // श्रीधर्मराजयदेण / समानः सद्गुरुः स्मृतः // ए // सप्ताहोरात्रस.. दृशे / मनुष्यायुः प्रकीर्तितं // आश्रयः श्रेय श्वनि-स्तस्मिम् सत्येव सद्गुरौं / ए३ // चिं. तामणिसमः सम्यक् / चारित्रं धर्म उच्यते // श्रीपुरेण श्रियां धाम्ना / सदृदो मोद ईष्यते // एच // यः श्रयेत न मूढात्मा / मोहवासनयानया // गुरुं हितगिरं सोऽयं / सहते नरकेष्वशं // 5 // आश्रित्यापि गुरुं चित्ते / संदेहं कुरुते मनाक् // अधौ निपतितः सन् स / शोचतेऽनंगसेनवत् // ए६ // गुरुमाश्रित्य वामादी-कटादेयों न विद्यते // द्वाविंशत्युपसः || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HERE ज र्गाद्यै–यों बिनेति न साहसी // ए७ // तस्मै योग्य जति ज्ञात्वा / चिंतामणिसम गुरुः // // ददातु चारुचारित्रं / समीहितकरं करात् // ए७ // तपोनिहुनिः पुष्पैः। पावनै वनादिनिः॥ आराध्य साधितं सत्त-कुर्यात्सर्वं समीहितं // एए // स्यात्तस्याजितसेनवनिरुपम वैमानिकं चैहिकं / कालादल्पतरात्सुखं शिवपुरे प्राप्तिश्च निर्बाधने // यो धत्ते परमादरेण म. | तिमांश्चारित्रचिंतामार्ण / त्यक्त्वा मोहवशंवदत्वमिति तं पद्मावति त्वं जज // 30 // दुःख| मिश्रितसंसार-सुखं नैवानिकांदयते // विषसंसक्तमामोद-मोदकायं किमद्यते // 1 // | रघट्टघटीतुल्यो / जीवो ब्राम्यन् जवावटे लक्ष्मीसुखादिपानीयैः / क्षणं रिक्तः कणं नृतः // // पुण्यक्ष्यकरी संप-त्सतां नो हर्षदेतवे // पापक्षयकरी चाप-निंद्यते न विचक्षणैः // 3 // इंद्रजालमिवालीक-संसारं त्यज दुस्त्यजं // निर्व्याजं जज चारित्र-मिंडादेरपि 5बनं // 4 // एवं महत्तरासौम्य-प्रशस्यास्यसुधाकरात् // साप्रीयत चकोरीव / तां पीत्वा देशनासुधा / / वैराग्यरंगमापन्ना / व्यापन्नाशनदक्षिणां // अवैलक्ष्यामसौ दीक्षा-मयाचिष्ट महत्तरां // P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. * Jun Gun Aaradhak Trust Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र 32 // 6 // जगवत्याह किं गर्भो / जवत्याः श्राविकोत्तमे // सुंदरोदरदर्यतः / केसरीव न ति: // ष्ठति // 7 // मम दीक्षां न दास्यति / गर्नेऽस्मिन् कथिते सति // पद्मावती विचिंत्येति। ग नों नास्तीत्यलाषत // 7 // चारित्रं महत्तरातः / सा समीहितदायकं // रोहणाचलभूमीत // -श्चिंतामणिवदग्रहीत् // ए॥ किंयत्सु दिवसेष्वस्या / गर्ने जाते महत्तमे // महत्तरापुरः प्रह्वा ।साखनावमचीकथंत् // 10 // प्रबन्नं रक्षिता काले / प्रनानासितदिक्तटं // अजीजनसुतं साथ / पूर्वा दिगिव जास्करं // 15 // दीपवद्दीप्यमानांगं / रूपवंतमनंगवत् // प्रेक्ष्य सा तनयं स्वीयं / निर्ममापि मुदं दधे // 12 // पितुर्नामांकिता मुद्रां / दिप्त्वा बालकरांगुलौ // श्मशाने सात्यजद्यना-द्रत्नकंबलवेष्टितं // 13 // बालोऽयं मा शृगालायै-रद्यतेऽयेतिचिंतया // हिंता तिरोहिता सास्था-नाग्यरेखेव रक्षिका // 14 // पतितं जात्यरत्न किं / ज्वलज्ज्वलन एष वा // प्रदीपः किमयं दीप्र-स्तारको वा दिवश्युतः // 15 // इत्याशंकाकु खः स्फार-नेत्रों बालांतिकागतः // श्मशानपालकोऽपश्य-जातमात्रं स्तनंधयं // 16 // दे॥ वतानां कुमारोऽयं / किं वा पातालवासिनां // अनिरुकः कुमारो यः। श्रूयते सोऽयमेव वा - P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trus! Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक // 17 // अथवाहमपुत्रोऽस्मि / तेन मे कुलदेवता // एनं सुतमदान्नूनं / पूज्यमाना दिवा- | निशं // 27 // एवं विचिंत्य चमालो / गृहीत्वा बालकं करे // निधानमिव संप्रातं / जार्यायै चरित्र प्रददी मुदा // 25 // सापि दृष्ट्वा हृदा तुष्टा / स्फुरखोमांचकंचुका // मेघवृष्टेरिव स्पष्टं / / प्रादुर्जूतोंकुरा धरा // 20 // दंपतीच्यामपुत्रान्यां / प्राप्ते तस्मिन् स्तनंधये // चिंतामणौ दरिजेणे-वातोषि महिमावति // 1 // गूढगर्जा पुरैवासी-सुतं प्रासूत सांप्रतं // इति | लोकप्रथा जई। लोकाः खलु बहिर्मुखाः // 2 // पद्मावती निजं बालं / गतं चांमालवेश्मनि // विज्ञाय हृदये पूना / सखेदा सत्यचिंतयत् // 23 // मया ज्ञातमजूदेष / कस्मैचियदि दास्यते // तदा झातखरूपेऽस्मिन् / मां मोहों मम वर्धतां // 24 // अयं जाग्यात्मशानेऽपि / त्यक्तः सन् भूतुजादिना // आदास्यते न तजातं / धिग्मां दुर्मतिषितां // 25 // अयें चांमालगेहस्थो / नविता मलिनः खलु // निर्मलं किमु वासः स्या-न्मलिनं न मलस्थितं // 26 // निर्मला निर्मला एव / तिष्टंतोऽपि मलेऽथवा // अश्यामलः श्यामलव्योम-सं-| // स्थोऽपि न किमयमा // 2 // संगो न जायतें नूनं / सदसद्गुणकारण // मणिविषधरशिरः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येका -स्थितो विषहरः स्मृतः // 20 // संगो न जायते नूनं / सदसद्गुणकारणं // अपि राजा- | दनांतःस्थं / बीज कटुकमेव हि // 25 // अनेनैषोऽपि चांमालो / जविता निर्मलः खलु // श्यामलं व्योम चंद्रेण / नोज्ज्वलं क्रियते किमु // 30 // एवं विचिंतयंती सा। समागावमुपाश्रयं // वेगेन तत्र गत्वा. च / व्यलगनिजकर्मणि // 31 // महासतीनिः सा पृष्टा / क्व ते बालो महासति // मृतबालमजनिषि / तत् श्मशाने तमत्यजं // 35 // व्यलीवचनं सैवं / पद्मावत्यप्यनाषत // यतः सर्वत्र संसारे / नान्यथा नवितव्यता // 33 // चांमालस्य गृहे बालः / प्राप वृमि शनैः शनैः // कल्प मांकुर श्व / दैवादवकरावनौ // 34 // अथावकर्णिते इति / श्वपाकस्तस्य सोऽनियां // अकार्षीदुत्सवं कृत्वा / निजगेहानुसारतः // 35 // अथ पद्मावती साध्वी / श्वपिच्या सह सर्वदा // करोति प्रीतिसंसर्ग-माभाषयति बालकं // 36 // यत्किंचिखभते वस्तु / प्रशस्तं मोदकादिकं // तद्दालाय ददौ तस्मै / पुत्रस्नेहो हि उर्धरः॥ // 37 // अवकार्णितोऽपि तस्यों / नक्तचित्तोऽजवलृशं // मातुः स्नेहात्तथा चापि / यो ददाति स देवता // 30 // तदागमात् श्वपाकस्य / गेहान्नष्टा दरिद्रता // प्रदीपो हरति ध्वा / / Po 'PPAEGunratnasuins Jun Gun Aaradhak Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तं / यत्र कुत्रापि संस्थितः // 35 // अथावकर्णितः क्रीमन् / राजपुत्रखत्नावतः // विधाय || प्रत्येक वालुकापुंजे। सिंहासन श्वाविशत् // 4 // अपरान् क्रीमतो बालान् / रे रे ददत में करं // | राजाहमित्यनाषिष्ट / स सर्वेषु पराक्रमी // 41 // वखनावेन देहेऽसौ / रुदकंवा समाकु लः // कयत शरीर मे / करोऽयं जवतां मयि // 42 // एवमुक्त समस्तास्ते / संजूय शिशवः सदा // अकार्षुस्तस्य देहस्य / करैः कयनं घनं // 43 // तदादि बालकैः सर्वैः / करककुरितीदृशं // यथार्थ दत्तमेतस्या-निधानं परया मुदा // 4 // आददानः सौम्यमूर्तिः / क्रमेण सकलाः कलाः // राजेव शुक्लपक्षेऽसौ / रराज द्युतिराजितः // 45 // श्मशानं पालया मास / स पितुः स्थानके स्वयं // स किं पुत्रो निजं तातं / निश्चिंतं कुरुते न यः॥ 46 // तदा तत्र श्मशानांत-वंशजालसमाकुले // मूर्तिमंती धर्ममोक्षा-विव साधू समागतौ // 7 // तयोरायः समस्तानां / वंशानां वेत्ति लक्षणं // पर्वादिकविचारं च / गृहीतुश्च फलाफले // // 40 // पाश्चात्येनाथ मुनिना / श्मशाने गछता सता // एकः समुजको दंगो-दर्शि वंशस्य गहरे // 4 // स वाद्यं पृष्टवान् साधुं / जगवन् कीदृशो नवेत् // कल्याणदायकः कोह- // P.P.A. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोस गकल्याणाय दंगकः // 50 // वंशलक्षणविज्ञान-दक्षिणो मुनिपुंगवः // एवं प्रोवाच वाचालः / सद्यः संमोदयन्मनः // 55 // एकपर्वा प्रशस्या स्याद् / हिपर्वा कलहप्रदा / वंशयष्टिर्नवे* चरित्र खातु-स्त्रिपर्वा लाजहेतवे // 55 // मारणांता चतुःपर्वा / मार्गे कलहहारिणी // पंचपर्वा 36 जवेयष्टिः / षट्पर्वातंकदायिनी // 55 // सप्तपर्वारोग्यकरी / पृथुला चतुरंगुला // अष्टांगुलो / विता सत-पर्वा मत्तेनवारिणी // 53 // अष्टपर्वा नवेद्यष्टिः / सुसंपत्तिविधायिनी // नवप यशोहेतुर्दशपर्वा तु संपदे // 54 // वहुवर्णा सुशुषिरा / दग्धा वक्रा सकीटका // ऊँs+शुष्का जवेयष्टि-वर्जनीया प्रयत्नतः // 55 // एकवर्णा महानिग्धा / पंचवर्णविनूषिता / इत्यादिखदणा 'ज्ञेया। प्रशस्या वंशयष्टिका // 56 // अंगुख्या दर्शयित्वैकं / दंगकं प्रमदप्रदं // अयमेतेषु सारोऽस्ति / नंदत्रेष्विव चंद्रमाः॥५७ // नाग्यसौजाग्यसंपन्न / एतद्देमं ग्रहीध्यति // विना जाग्येन केनापि / चिंतारत्नं न खन्यते // 57 // गृहीतुः सप्तमे घस्ने / मह द्राज्यं नविष्यति // एषा राज्यकरी यष्टि-वर्धिता चतुरंगुलं // एए // तदा वैविद्यते योगः / || स पुनः सांप्रतं न हि // कार्य कुर्युः समस्तं हि / संयोगे सति नान्यथा // 60 // नैकं बी-|| P.P.AC. Gunratnasuri Ms.. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 39 जं प्ररोहाय / न पृथ्वी सलिल न च // सर्वेषामपि संयोगा-प्ररोहति तरुर्गुरुः // 1 // ए- // वैविधानि वाक्यानि / प्रजन्नं संस्थितोऽशृणोत् // करकंकुस्तदैवैको / ब्राह्मणोऽपि महामतिः चरित्र // 6 // अथ साधुम्यं वापि / विजहार महीतले // तृणे स्त्रैणेऽपि हि स्वर्णे / साधवः स. | मदृष्टयः // 3 // श्यं भूमिर्मदीयास्ति / तदियं वर्धतामिह // पश्चादेव गृहीष्यामि / मुनिनोक्तप्रमाणकां // 64 // एवं विचिंतयन् सुस्थः / करकंमुः स तस्थिवान् // महांतः सर्वकायेषु / तस्थुरौत्सुक्यजाजनं // 65 // युग्मं // अर्कोऽप्युदेति वारुण्यां / चलत्यपि सुराचलः॥ ज्वलनोऽपि नवेचीतो / हिमवज्ज्वलनी नवेत् // 66 // कदाचित्सागरांजोऽपि / मर्यादामतिवर्तते // परं न साधुवाक्यानि / प्रचलति कदाचन // 67 // अनेन मुनिरत्नेन / दंगरत्नं प्ररूपितं // तदस्य ग्रहणे यत्नं / करोम्यचिरकालतः // 6 // चतुरंगुलमेतस्य / वृतिं यावत्प्र- // तीक्ष्यते // श्रेयांसि बहुविनानी-तिहेतोस्तन्न युज्यते // ६ए // साधुवाक्यांजनेनायं / निधानमिव दृश्यते // पश्चादजाग्ययोगेन / मायं कदापि दृश्यतां // 70 // केनाप्यज्ञानतो दंको। मायं चेछिद्यतेऽथवा // अपि चिंतामणीरल-मझानां कर्करायते // 31 // सांप्रतं गृह्यतेऽयं | .. P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : चरित्र - . चे-तदा स्यानिष्फलः खलु // कृते कालविलंबे तुः। विघ्नानि स्युरनेकशः // 2 // किं करोम्यु- || जयोर्मध्ये / प्रपंच रचयामिकं // इति चिंतातुरस्तथौ / कणमात्रं स. वामवः॥ 2 // अष्टनिः कुलकं // या ज्ञातं सांप्रतं दंगो / यन्नो सिद्धिविधायकः // तन्नूनं न्यून एषोऽस्त्य-द्याप्यहो चतुरंगुलः // 4 // खनित्वा नूमिकामध्या-चतुरंगुलमंजसा // दमकं हि. गृहीष्यामि। स्त्री रत्नमित्र दुःकुलात् // 5 // एवं विचिंतयन् विप्रः / क्षिप्रं तत्र समेत्य सः // प्रबन्नं पृथिवीपीठं / चखान चतुरंगुलं // 6 // उत्खन्य दंगकं लात्वा / यावत्स वलितस्तदा // विलोकितोऽधिकं जाग्य-भांजिना करकंफुना // 7 // बलादुछिद्य विप्रस्य / पार्थादग्राहि दंगकः॥ तेन साकं स लोभत्वा-दारेने कलहं हिजः // // 7 // चक्रतुः कलहं गाढं / युध्यमानौ परस्परं // एकद्रव्यानिलाषो हिं। परमं वैरकारणं // पुए // युध्यमानौ पुरं प्राप्तौ। मिलितः | कौतुकाकुलः // लोको नागरिकस्तत्रा-पृष्ठध्यतिकरं तयोः // // करकंमुर्बजाषेऽथ। हि| जौयं चौरवन्मम // श्मशाननुवमागत्य / वंशदमकमग्रहीत् // 1 // मया दृष्टे समुन्नेद्य / गृही|| ते निजवस्तुनि // लोजानिजूतहृदयो / वृथायं कलहायते // 2 // द्विजन्माह मह्यं दंग-म- // P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यमेव ददात्वसौ // अहमस्मै महारम्यं / दास्ये दंगकपंचकं // 3 // करकंसुः पुनः प्राह / सहस्रैरपि मे न हि // अन्यैः प्रयोजनं किंचि दयमेव विलोक्यते // 4 // एकाश्चंतामणिः चरित्र|| सर्व-कार्यसिफिविधायकः // अतिदीतैरनेकैश्च / काचैः किं नाम साध्यते // 5 // लोकैः पृष्टं किमेतस्मि-स्त्वदीयो गाढमाग्रहः // तदोःखरमित्यूचे / बालत्वात्करकंमुना // 6 // | अस्य दमस्य माहात्म्या-सप्तमे दिवसे ममः॥ किंचिन्महत्तरं राज्यं / नविष्यति न संशयः || | // 7 // जहांस सकलो लोको / वचनं च निशम्य तत् // असंजाव्यार्थवाक्यस्य / प्रयोगो हासदेतवे // // जनैरुक्तं च ते राज्यं ।जायतेऽस्य प्रजावतः॥ अजिरामस्तदाग्रामो।दातव्योऽस्मै द्विजाय च // नए // तचः प्रतिपेदे स / उमित्युक्त्वा विशालधीः // मध्ये भू. याथ लोकेन / विजनः कलहस्तयोः // ए॥ विप्रेण मेलिताः सर्वे / खशातीया महत्तराः // सकलः पुरतस्तेषां / वृत्तांतोऽवाचि संत्रमात् // 1 // सर्वैरालोचितं रात्रा-वेतं चांमालचेटके // व्यापाद्याद्यैव लास्यामो / बलात्कारेण दंगकं:। ए३ // तेषां मंत्रममुं कापि।सश्वपालोऽ. शृणोत् क्षणात् // नूनं जाग्यवतां नैव / प्रजवेरिणा. उलं // ए३ // चांमाली स च चौमालः / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जोन करकरिति त्रयं // निर्जगाम पुरात्तस्मा-प्रत्नत्रयमिवालसात् // ए४ // नगरान्निर्गतांस्ता- // स्तान् / ज्ञात्वा कैश्चिन्महोतैः // हंतुं मृगानिवं व्याधे-रनुगंतुं प्रचक्रमे ॥ए॥ तावदेको चरित्रं | हिजो वृक्षो / वयसापि गुणेन च // थाह सुस्थी कृतान् सर्वा-नुताननुशासितुं // ए६ // 40 मात्वरध्वं कुरुष्वं मा। प्रयासं बहुधा वृथा // प्राप्यते सोद्यमेनापि / विना जाग्येन न श्रियः.. // ए७ // प्रधानानि निधानानि / विविधाः प्रधयोऽपि च // प्रादुर्नवंति तस्याये / यस्य जाग्यं शिरःस्थितं // ए॥ मानवा दानवा देवा-स्तस्य पादपयोरुहं // जतिनाजो नजंत्येव / यस्य. जाग्यं शिरःस्थितं // एए // श्रीपुण्याढ्यनरेश्वरस्य विलसत्पुण्यप्रनावात्प्रति-क्षितं वैरिषु वै. रतस्तृणमपि प्रातं ज्वलच्चक्रतां // चक्रं च प्रतिवासुदेवनृपतेः सेवाकरं नृत्यव-नाग्यस्यापचये हहा निजशिरश्छेदाय संजायते // 40 // उल्लासके सत्कमलावलीना-मुच्चैस्तरां तिष्ठति जाग्यमानौ // प्रादुर्भवत्यन्यपदार्थसाथैः / साकं निधानान्यपि संनिधाने // 1 // निर्जाग्या नैव पश्यति / निधानायं कदाचन // अंगारवृश्चिकापूर्णा-न्यथ पश्यति कुत्रचित् // 1 // श्रीजाग्याजाग्यविषये / दृष्टांतः श्रेष्टिचौरयोः // संभूय निश्चलीभूय / श्रूयतां जो द्विजोत्तमाः | PAP.AC.Gunratnasuriti. Jun Gun Aaradhak Trust Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र // 3 // पुरं बदमीपुरं नाम / पुराभूद्र रिजूतिनृत् // स्थिरचित्तोऽजवलेष्टी / तत्र नाम्ना गु-|| | णेन च // 4 // सदा सद्गुरुसंयोगा-कर्ममर्माणि वेत्त्यसौ // तसशस्तदासक्त-स्तिष्टत्यलिरिवांबुजे // 5 // तस्य गेहेऽस्ति पुण्यैक-प्रनवो-विनवो न हि // तथापि व्याकुलखांतो / नासौ ब्राम्यति कुलचित् // 6 // न वंचयति लोकांश्च / पुण्यकार्य न मुंचति // न्यायोपार्जितवित्तेन / कष्टा निर्वाहयेद् गृहं // 7 // तद्गेहिनी रहस्याह / स्वामिन्न क्रियते त्वया // धर्मेकतामचित्तेन / व्यवसायो न तादृशः // 7 // अयं धर्मः कृतो नूनं / फलिष्यति जवांतरे // स्यादवश्यं हि साम्यस्या-प्यवसाने फलावली // ए॥ गृहस्य गृहिणा कार्या / चिंता सर्वापि सर्वदा // सा त्वया क्रियते नैव / नाथ तत्किमु कारणं // 10 // प्राह श्रेष्ठमतिः श्रष्टी। निये किं स्यात्वचिंतया // पूर्व यदर्जितं कर्म / तां तदेव करिष्यति // 19 // गेरकुचयोमातुर्येन सृष्टं पयोमधु // दैवं तदेव मे चिंतां / करिष्यति न संशयं // 15 // जवांतरा. जितं पुण्यं / जुज्यतेऽस्मिन् नवे प्रिये // तत्साध्य ऐहिके कायें। खिद्यते को मुधा बुधः // 13 // कदाचिन्मुंचति स्नेहं / पीड्यमानापि वालुका // परं यल्लिखितं जाग्ये / तस्मान्न PP.AC.Gunratnasuri M.S. __Jun Gun Aaradhak Trust . Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र पोप्राप्यतेऽधिकं // 14 // प्राह प्रियाथ हे नाथा-वितथं नवतो वचः॥ परं फलंति कर्माण्यु- / पक्रमैः शस्यवजलैः // 15 // ऊचे स्थिरमतिः स्थैर्या--किमेतझाल्पमि प्रिये // यस्मादुपक मोऽप्यास्ते / सर्वकर्मवशंवदः // 16 // अपि जीवितुमिछतो / दुष्टकर्मनिरीरितं // कार्यते 42 चौर्यमुख्याणि / हंत कर्मखतंत्रता // 17 // अल्पोपक्रमवंतोऽपि / भूषितास्तत्र चामरैः॥ सुख तिष्टंति यद्भूपा-स्तत्र कर्मैव कारणं // 27 // रंकाः खोदरचिंतार्थ / रुलंतोऽपि दिवानिशं॥ न सजते सुखं कापि / तत्र कर्मैव कारणं // 15 // इत्येवं दंपती प्रीत्या / वदमानौ परस्परं // कियंत निन्यतुः कालं / तौ च संतोषतोषितौ // 20 // अन्यदा स गतः श्रेष्टी। बहिर्जुमौ कुतूहलात् // इष्टिकां चालयामास / लोजमुक्तमना मनाक् // 1 // सुवर्णटंककैः पूर्ण / जात्यरत्नैरलंकृतं ॥अधो निधानमजाक्षी-संतोषे किं न दृश्यते // 22 // एतदर्थ मया तावप्रयासः कोऽपि न कृतः // तद्यथा खयमेवैत-न्ममाध्यदमजायत.॥२३॥ तथा यद्यस्ति मे प्राप्त / तत्वयं गृहमेष्यति // एतत्कृते कृतीभूय / प्रयास कः करोत्यतः // 24 // विचिंत्येति निधानं त-त्पिधायेष्टिकया तया // निर्लोलहृदयः श्रेष्टी / समागानगरांतरा // 25 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -चरित्र श्रेष्टिनाग्योदयनानु-मिवामृष्यन्नमर्षतः // छीपांतरमगाम्नानुः / प्रससार तमोजरः // 6 // // श्रेष्टिनी श्रेष्टिनं प्राह / स्वामिन् किं वाचि धीयते // कुधाकरा लिता बालाः / प्रसुप्ता अद्य। संत्यमी // 27 // कन्येऽहं किं करिष्यामि / गेहे जोजनमस्ति नो // जवतोत्थाय नो कश्चिदुद्यमस्तु करिष्यते // 27 // श्रेष्ट्याह न प्रिये कार्यों / विषादः कोऽपि मानसे // मन्येऽद्य मम शीर्षस्थो-जागरीजाग्यनास्करः // श्ए // येनाद्य मयका दृष्टं / निधानं महदेककं // श्रेष्टिन्याह कृतः खामिन् / गृहीतं तन्न तत्क्षणं // 30 // जगौ श्रेष्टी मया ज्ञातं / प्राप्तव्य मिदमस्ति चेत् // तदा स्वयं समागत्य / पतिष्यति गृहांतरे // 31 // श्रेष्टिनी पुनराचष्ट। क थ्यते नवतः कियत् // प्राप्योऽपि कवलः किं वा / मुखे निपतति स्वयं // 3 // निधानस्थानक नपा-निझानानि च मत्पुरः॥ पश्चिमे प्रहरे गत्वा / नेष्यामि निजमंदिरे // 33 // अस्मिन्नवसरे तत्र / क्रूराश्चौरास्त्रयः स्थिताः // क्षात्रं प्रपात्य गेहांतः / शृएवंति तत्र तमिरः // 34 // श्रेष्टी चौरानविज्ञाय / जजल्प श्रेष्टिनीप्रति // अनिशानानि सर्वाणि / श्रुतान्यपि च तस्करैः // 35 // चौरैरचिंति किं ताव-दस्य गेहे गृहीप्यते // ब्रजामस्तत्र गृह्णीमो / नि BOMMISHNURAT Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasurt M.S. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोधानं तन्महत्तम // 36 // चौर्य हि क्रियते नैव / क्रियते चेत्कदाचन // तद्विधेयं यतो जूयो || भूयते नूरिभूतिलिः // 3 // एक्मालोच्य ते सर्वे / तस्करा सदनात्ततः // अप्रमादपरासाधोः / प्रमाद श्व निर्ययुः // 35 // गत्वा श्रेष्टयुदितस्थाने / चालायित्वेष्टिकां च तां // ददृशुः कलशं ताम्र-मयं कनं स्फुरत्ननं // ३एं // निधानं प्राप्तमित्यस्मा–कर्षादाकर्षणाय || ते // यदैव चितिपुर्हस्तान् / कृश्चिकैः खादित्तास्तदा // 40 // हंहो ही खादिता हस्ते-वे तक्किं नाम विद्यते // भूमावाहत्य स त्यक्त-स्तस्करैः संचमादिति // 1 // सर्वैरवाचि छष्दैन / वणिजा वंचिता वयं // योऽस्मान् विज्ञाय गेहांतः / प्रविष्टानुक्तवानिदं // 45 // तत्रै कस्तस्करः प्रोचे / कपटैकपटीयसा // पुरापि वणिजैकेन / वंचितस्तन्निशम्यतां // 43 // अस्मिन्नेव पुरे श्रेष्टी। विद्यते यो धनो धनी // प्रवेष्टुं तस्य गेहांतः। पश्याम्यवसरं सदा // 4 // विज्ञातमत्परीणामः श्रेष्टी निजगृहालके // वृश्चिकं स्थापयामास / कच्चोलकनियंत्रितं // 45 // अम्पदा रात्रिमध्येऽहं / प्रविष्टो गृहमंतरा // क्रूरं चौरं स मां ज्ञात्वा। श्रेष्टी खश्रेष्टिनी जगौ // // 6 // हे प्रिये लेदमूख्यं त-मुद्रारत्नं व विद्यते // प्रियाह शून्यचित्ताया। बालके वि- // %3 .: P:P. Ac: Gunrathasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृतं मम // 4 // श्रेष्टी कोपादिवाचष्ट / मुग्धे शून्यतया त्वया // मदीयमर्जितं वित्तं / / / सर्व निर्गमयिष्यते // // केनापि वस्तुना तत्किं / स्थगितं विद्यते न वा // प्रेयसी प्राह चरित्र कच्चोल-केनाडादितमस्ति तत् // 45 // वचांसीति तयोः श्रुत्वा / दिप्तस्तत्र करो मया // कचोलकं परावृत्त्य / वृश्चिकोऽदशदंगुलौ // 5 // कर फूत्कृत्य फूत्कृत्य / खथूत्केनास्पृशं यदा ॥श्रेष्टिना धर्षितस्ताव-न्मुद्रा किं माति नांगुलौ // 51 // अन्येन्योऽपि गृहेन्यो य-चौ. रयित्वा मयार्जितं // सर्वस्वं तत्र मुक्त्वाहं / जीवग्राहं पलायितः // 55 // इत्येवं वणिजा तेन / वंचितोऽस्मि पुराप्यहं // तावदन्योऽप्यवक् चौर-स्तेनाहमपि वंचितः // 53 // धनस्य मीनतुल्यस्य / ग्रहणाय दिवानिशं // अज्रमं बकवन्मायो / तस्य गेहस्य पार्थतः // 54 // अन्यदा खगृहामात्रा-वुत्सर्गार्थ स निःसृतः // मया फर्गितः कूर्चेऽसौ / विधृतः प्रबलावलात् // 55 // उक्तं च यदि में लद / टॅककानां प्रदास्यसि // तदा मोदयामि नो चेत्त्वों / इनिज्याम्यसिनामुना // 56 // श्रेष्टयूचे मुंच मुंच त्वं / लदं दास्यामि सांप्रतं // उच्चैरूचे कक्षत्रं च / रे रे वाक्यं प्रिये शृणु // 57 // सांप्रतं विद्यते कुर्च / चौरेणानेन मे धृतं / मेलष्टक P.PAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhek Trust Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं पोल कसदेणा-प्येकेनास्ति पतन्निह // 50 // कदाचिदेष चेत्कूर्च। त्यक्त्वा नक्रं गृहीष्यति // तदा || खम्येनापि / बुटिः कापि न विद्यते // 5 // // उत्तिष्टोत्तिष्ट रे तस्मा-प्रमादं मा कृथा वृथा // प्रदेहि तस्करायास्मै / शीघ्र टंककलङ्ककं // 60 // तदा कूर्च मया त्यक्त्वा / गृहीतं प्राण| मेव हि // धूनयित्वा शिरः शीघ्रं / बलान्नक्रममोचयत् // 6 // वजानेयं गृहकारं / पिधाय सोऽखपत्सुखं // विलक्षः सन्नहं नष्टो / वणिजां मतिरीशी // 6 // तृतीयोऽप्याह वणिजा / पुराहमपि वंचितः॥ एकस्मिन् वत्सरे कछः / कृतोऽभून्मयका पुरा // 63 // तदागामणि गन्येयुः / खादिता तेनं कर्कटी // भया दृष्टे च मुष्ट्याथै-राहतो नर्सितो नृशं // 64 // स रुष्टः प्राह रे दुष्ट / प्रमाणं मामकं तदा // यदा ते सकलं कहं / ध्वंसयाम्यचिरादपि // 65 // कथयित्वेति गत्वांतः-पुरं जे स वैद्यतां // सखिलिस्तत्र भूपोऽभू-तत्र राजागणे ततः // 66 // उवाच भूपति स्वामिन् / खिलिस्ते मस्तके कुतः // अत्र संति न वैद्याः कि-मौषधं यन्न कुर्वते // 67 // राजाह न निराकर्तुं / खजावः शक्यते यया // औषधं न * तथा खिल्ला-विति सर्वे जगुर्जनाः // 60 // अवग्वणिगसो वार्ता / मूर्खाणां विदुषां न च // // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / अहं निमेषमात्रेण / खिल्विं स्फाटयितुं दमः // ६ए // राजा सहर्ष आचख्यौ / त्वमेवैतां / / निराकुरु // योऽस्माकं वालयेगाव-मर्जुनः स्यात्स एव हि // 70 // वणिजोक्तं विना शस्त्रं / शूरः शास्त्रं विना हिजः॥ नेषजं च विना वैद्यो / न. कार्य कर्तुमीश्वरः // 1 // तत्प्रदेहि महाराज / सहायान् सेवकान् खकान् // येनानीयौषधान्यत्र / कुर्वे खिल्बेः प्रतिक्रियां // 7 // यमतानिवादाय / सेवकांस्तानदोऽवदत् // उन्मूख्य सकलं कळं / गृहत्वौषधहेतवे // 3 // ते तथा चक्रुरुञ्चमा / मयि पश्यति सत्यपि // दुर्निवारा नृपाझापि / सेवकानां तु का कथा // // गृहीत्वा सकलं कछ / स गत्वा नृपसद्मनि // थाम्बरं महञ्चके / तहि तन महत्वकृत् // 5 // आनालं वसुधापाल-शिरस्तलमलेपयत् // स ओंकारफुटफुट्खाहे-त्यमुं. मंत्रं जपेत्यवक् // 76 // कृत्वोपवासमन्त्रोप- विशोपकुलदेवतं // न स्मार्यो मर्कटश्चित्ते / परमद्य त्वया क्वचित् // 7 // कृपाणसदृशः कल्ये / वेणीदमस्तवैष्यति // औषधानां प्रजावण / किं किं वा नोपजायते // 7 // परं चेत्स्मरसि खाते / कदाचिदपि मर्कटं // तदा कृतःप्र. || यासो में / निष्फलोऽयं नविष्यति // 5 // राजा सर्व तथा चक्रे / वारंवार निवारितः // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोहादिव समायाति / मर्कटश्चित्तमंतरा // // प्रजाते. भूपतेः शीर्षे / रोममा न निययो // तावद् रुष्टेन भूपेन / वणिगाकारितः पुरः // 5 // वणिजावाचि राजें / वेणी ते निःमृता न कि // तन्मन्ये मर्कटश्चित्ते / चिंतितो हि जविष्यति // 7 // अयं सत्यं वदन्नस्ति / मया चिंतित एव सः॥ एवं विचिंतयन् राजा / सुप्रसन्नोऽजवत्पुनः // 3 // राजानं राज॥ लोकं च / वंचयामास यो धिया // अमुष्णान्मम सर्वस्वं / वणिजेऽस्मै नमो नमः // 7 // स्वानुजूताः कथास्तिस्र-स्त्रिजिरेवमुदीरिताः। पश्यनिर्वणिजो लोका-नस्तोककपटांबुधी नू // 5 // सर्पण यो जवेद्दष्टो / रजौ सर्प स मन्यते // वह्निना यो जवेदग्धों / फूत्कृत्य स| पिबेज़ालं // 6 // इति तेऽपि त्रयश्चौरा / वणिजिवंचिताः पुरा // स्थिरचित्तं सरलम-प्यमन्यंत स्ववंचकं // 7 // चौरैरालोचितं तेना-स्मासु यत्कपटं कृतं // पातयामः शिरस्यस्य / सन्मुखं धृष्यते हि सः // // एतं कलशमुत्पाट्य / वृश्चिकावलिनिनृतं // दिपामस्तद्गृहे | || येन / खाद्यते सकलाश्च ते // 7 // विमृश्येति त्रिनिश्चौरै-रुत्पाट्य कलशो महान् // स्थि|| रचित्तगृहे दिप्तो / नष्टं चौरैश्च तत्दापात् // ए० // प्रनाते ह्यथ संजाते / स्वखट्वासंनिधा - PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक नगं // निशान ए oli नगं // निधानं दृष्टपूर्व त-स्थिरचित्तो निरदत // ए१ // लात्वा रत्नान्यपूर्वाणि / नेटयि त्वा नरेश्वरं // सर्वामचीकथशाता / तुष्टो न्यायी स उक्तवान् // ए // त्वया चेन्निजलाग्येन / प्राप्तो विजव ईदृशः // तत्त्वं सुंदव निराशंकं / महानाग महामते // 3 // अथ गेहं समागत्य / सत्कृत्य वजनान् जनान् // किंचित्तेज्यो ददौ किंचि-निजगेहेऽप्यरदयत् ॥ए // कमले सलिले यह-दंकुरः पृथिवीतले // तस्य गेहे तथा लक्ष्मी-रवर्धिष्ट शनैः शनैः // एए॥ यचिरेणापि स प्राप / धनेन धनदोपमां // यः कल्पवूनधश्चके / दानापूर्वस्थि. तानपि // ए६ // प्रासादाः श्रीजिनेंद्राणां / सुधाधवलितोज्ज्वलाः // मूर्तिमंति यशांसीव / कारितास्तेन भूरिशः // एy // पात्रापात्रविचारइं / ददानं दानमजुतं // तं वीक्ष्य लड़ायेवायं / मेघः श्यामलतां गतः // ए // यदान निर्जितेनेव / विषादेन विषादनं // चक्रे कल्प| पुणा येन / तनुनीलास्य वर्ण्यते // एए // स्यानाग्यास्थिर चित्तवस्थिरतरा लक्ष्मीविनोपक मनि म्या अहिवृश्चिकादि च निरीदंते निधानेष्वपि // तस्मान्मा कुरुत प्रयासमधुना जायं न वो विद्यते / यस्माइस्तगतापि यष्टिरगमत्सा राज्यलक्ष्मीप्रदा // 50 // एवं हि-|| Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रोजेन वृद्धेन / सुधावन्मधुरोक्तिभिः ॥बोधिता उडताः स्थानं / जग्मिवांसो निज निज // 1 // अथाव बिन्नगमनै-गंबंतस्ते त्रयोऽपि हि // सतमे दिवसे प्रापुः / श्रीकांचनपुरांति. चरित्रं कं // 2 // श्रांता दीर्घस्य मार्गस्य / संघनेन निरंतरं // एकस्य पादपस्याधः / सुषुवुः सुखनिद्रया // 3 // अपुतस्तत्र भूपालो / जगाम यमसद्मनि // सामंतमंत्रिणश्चक्रुः / पंचदिव्याधिवासनां // 4 // राजपुत्रा अहंमन्याः / स्फारशृंगारधारिणः // मोटयंतो निजरमधूं-स्तस्थुरेत्य चतुःपथं // 5 // दैवादस्तं गते पूर्व-नूपे दिनपताविव // तारा व दिदीपुःस्मः / राजपुत्रा पुरांबरे // 6 // पंच दिव्यानि जव्यानि / राजलोकवृतान्यथ // देवताधिष्टितान्येतइज्रमुः सकलं पुरं // 7 // राज्ययोग्यमपश्यति / तत्र कंचन मानवं // करकंमुगुणाकृष्टानीवाजग्मुर्वनांतरं // 7 // तत्र सुप्तस्य निःशंकं / करकंमोः शिरस्तले // राज्याभिषेकमकरोकरी कलशढासनात् // 5 // यो हेषारवं चके / बत्रेणोद्रितमंबरे // अवीजि चामरान्यां नु / दधिवाहननंदनः // 10 // स ससंज्रममुत्तस्थौ / किमेतदिति चिंतयन् ॥.पश्यामि किमिदं स्वप्नं / किं वा प्रकटनाटकं // 11 // संजालमिदं किं वा / यथावस्थितमेव वा // दे. PP.AC.Gunratriasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - वतानुष्टिता मायां / पश्यामि किमु नेदृशीं // 15 // इत्येवं संशयापन्नः / स यावदवतिष्टते // तावत्सर्वेऽपि तत्पादौ / नेमुः सामंतमंत्रिणः // 13 // करकंमुममुं प्राज्ञा / जो नजंतु महीपति // इत्याकाश प्रदेशस्थ देवतानां गिरोऽनवत् // 14 // दीप्तिनिर्दीप्यमानेऽस्मि-नुदयत्यंशुमालिनि // जट्टेः कोलाहलश्चके / प्रबुद्धैरिव पक्षिनिः // 15 // प्रोत्फुलढोलमुख्यानि / बधिरीकृतदिङ्मुखं // वादका वादयामासु-वादित्राणि तदग्रतः // 16 // अलंकुरुष्व हे खामिन् / श्रीकांचनपुरं पुरं // निर्नाथं न पुरं नाति / निर्नेत्रं वदनं यथा // 17 // स्वा"मिन्नलं विलंबेन / मतंगजमलंकुरु // सामंतैरिति विज्ञप्तः / प्रारुरोह स हस्तिनं // 17 // स नेत्राण्यंबुजानीव / तत्रासीनो व्यकाशयत् // पूर्वाचलमिवारूढ / उदयन् भानुमानिव // 15 // कुंनिकुंजस्थलारूढः / कांतनिर्जितकांचनः // स कांचनश्रियं दः / श्रीकांचनपुरं विशन् // 20 // तत्पिता कुत्सिताकारा-चांमालोऽज्ञायि वामवैः // क्रोधेनाध्मातचेतोनिः / सर्वैः संजूय मंत्रितं // 1 // पशुत्वाद्विद्यते नैव / विवेकः कोऽपि दंतिनः // विवेकरहिता एते / | सामंताः पशुसन्निनाः // 15 // येनैतेषु महीपाल-कलनेष्वत्र सत्वपि // चांमालबालकस्या- || --.P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना स्य / कृतं राज्यानिषेचनं // 3 // मातंगः वोचितं चक्के / मातंगस्याजिषेचन // सदृशाः || || सदृशेग्वेवः। रज्यंते नापरेषु यत् // 54 // अस्माभिः शुचिलिर्नास्य / मलिनस्य प्रवेशनं // चरित्रं | दास्यते सति सूर्ये किं / प्रवेष्टुं दमते तमः // 25 // एवमालोच्य भूदेवा / मिनाथस्य सं: मुखं // चंमान् दंमान् समुत्पाढ्यो-दतिष्टन् दुष्टचेतसः // 16 // श्व सेतु पयःपूर / तमःपूरंच सूखत् // समुजमिव मर्यादा / द्विजालिः सैन्यमस्खलत् // // अग्रगास्तस्य योधा हि / योध्धुमुखतवृत्तयः // चिर युयुधिरे साकं / रंगजंगकरैर्हिजैः // // ब्रह्माहत्याजया. केचि केचिन्नक्तरजावतः // साथ सर्वेऽपि सुजटा / उदासीना वाजवन् // 25 // वंशयष्टिः स्वकीया सा। देधिवाहनसूनुना। क्रोधेनोत्पाटयामासे / वीर्यावेशपटीयसा // 30 // तत्क्षणं तेजसा साजू-ज्ज्वालंती ज्वलनोपमाः // जयंकरा नलः पाति / विद्युइंगदंम्वत् // 3 // अनाहत्ता जयादेव / जूदेवा मीलितेक्षणाः // तां दृष्ट्वा मूर्छिताः पेतु-निर्जीवा श्व भूतले // 32 // एवं विधानपाकृत्य / जायमाने महोत्सवे // ढोलेषु वाद्यमानेषु / गाय|| मानासु गीतिषु // 33 // दीयमानेषु दानेषु / मालाहालादिवर्तितिः // सर्वैर्विलोक्यमानोऽसौ / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रविवेश पुरांतरा // 34 // युग्मं // क्रमाद्राजांगणं प्राप्तो / गजेंडादवतीर्य सः // सिंहासनमलंचके / नजोंगणमिवांशुमान् // 35 // राजेंडा अपरे सर्वे / प्रणेमुस्तत्पदांबुजं // आज्ञा प्रौढप्रतापस्य / प्रससार महीतले // 36 // शुचित्वमानिभिर्विप्रैः / स्थाने स्थाने मया सह // क्रियते हठ श्त्यास्मा-प्रोषाप्राज्ञा हिजा धृताः // 37 // चांमालैम लिनैः साकं / बलात्कारेण जोजनं // ब्राह्मणाः कारिताः सर्वे / किसंसाध्यं बलीयसां // 30 // चांझालानां द्विजातीनां / विवादास्तु परस्परं // कारितास्तेन यदाज्ञा-माझा मान्येत मानवैः ॥३ए // योजिता केऽपि जूदेवा / नीचे चांमालकर्मणि // विपरीतं जगत्कर्तुं / क्षमस्तादृगियत्कियत् // 40 // कालांतरे श्यं जाता / प्रसिद्धिरस्य भूजुजः // नास्करो मेघवन्नोऽपि / तमोऽसौ नाशयेन्न किं // 41 // दधिवाहनपुत्रेण / नृपेण करकंमुना ॥धान्यवाटकवास्तव्या-श्चांमाला ब्राह्मणीकृताः // 42 // विधिवत्तेन नूपेन / करस्पृष्टा वसुंधरा // अवर्धिष्ट विशेषेण / पत्येव स्त्रीस्तनछयी॥४३॥ यत्प्रतापप्रदीपेन / दह्यमानोऽप्यहनिशं // चित्रं न सांजनो जझे। कदापि नुबनालयः // 4 // पराक्रमपराजूत-प्रशूतरिपुभूपतिः // सर्वत्राचिरकालेन / प्रसिधि प्राप P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चूतले // 45 // वंशयष्टिनिमित्तं य-श्चकार कलई हिजः // करकंठं स शुश्राव / श्रीकां- || चनपुराधिपं // 46 // सलोनः प्रतिपन्नस्य / ग्रामस्य ग्रहणाय सः॥ आजगामाजिरामांगपद्मावत्यंगजांतिकं // 4 // विनयं सूचयन् सम्यक् / प्रणम्य पदपंकजं // योजयित्वा करौ राझो-ऽसावपातीदिमां स्तुति // 4 // राजंस्त्वद्यशसा कृते त्रिजुवने गौदीर गौरप्रने / मन्येऽन्येष्वपि संज्रमं निजपतेराशंकमाना सती // आलिंग्यैव पतिव्रता स्थितवती गौरीश्वरं सादरं / रोहिण्याप्युपलक्षणाय विहितो लदमांकितश्चंद्रमाः // ४ए // राजन् कीर्तिनिदानदाननिवहं सम्यग्ददानस्य ते / दृष्ट्वैतामवतारतो बहुतमां शोनां धरती धरां // दैवौकेः किल दानवारिजननृबजाजरादंबर-मध्योदाद्यदि नैतदस्ति. किमहो व्योमांबरं कथ्यते // 50 // भूप त्वत्प्रनवप्रतापविनवानाखानयं निर्जित-स्त्यक्त्वा भूमितलं जगाम गगनं तत्रापि शंकाकुलः // संतापादिव वर्ततेऽनवरतं तातप्यमानस्तनौ / कृत्वा पादसहस्रमाशु ग. मनान्यासं वितन्वन्निव // 51 // जो नूपाल रणांगणे रिपुगणे व्यापारिता पुष्करं / कुर्वाणो|| ऽस्यनिघातजातवशतः स्फूर्जत्स्फूविंगाकुलं // शंकां खगलतेति ते वितनुते बाणावृतार्कप्रनं / / P.PAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीत्या ति तरणिर्ननाश रजनी जझे च तारांकिता // 55 // इति तं जूपतिं स्तुत्वा / विप्रः प्रो व्यजिज्ञपत् // नखमध्ये विशेल्लोकः। खार्थसाधनहेतवे // 53 // ते संति बहवो ये तू-पकारिएयुपकारिणः॥हित्रा एव परं ते ये-ऽपकारिएयुपकारिणः // 54 // दुष्टस्याप्याश्रिताः संतः। संतः संतोषदायिनः // बेतुकामस्य किं बायां / न कुर्वति महीरुहः // 55 // प. यसा शीतलेनापि / ताप्यमानेन तप्यते // परं सत्पुरुषेणेह / कणमात्रं नहि क्वचित् // 56 // कोपः संयमते नूनं / प्रणामांतो महात्मनां // तत्दमख नराधीशा-पराधं निर्मितं मया // 57 // अजिरामगुणग्राम-ग्राममेकं प्रदेहि मे // प्रतिपन्नस्य वाक्यस्य / महांतो नान्यथाकृतः // 7 // यत उक्तं-प्रतिपन्नानि महतां / युगांतेऽपि चलंति नो. // अगस्तिवचनादको / विंध्योऽद्यापि न वर्धते // एए // एवं सविनयं वाक्यं / श्रुत्वा पद्मावतीसुतः॥ प्रसन्नहृदयोऽवादी-दुदारो दानशौंमधीः // 61 // ग्रामो वा नगरं वापि / यसोचते हिजोत्तम // तद्याचस्व निराशंकं / तुन्यं दास्यामि याचितं // 6 // अथ विप्रः सचेतोंत-रिति चिंतां चकार सः // नायं देशः स्वकीयः स्या-त्तस्मान्न खजनोऽत्र मे // 3 // स्वदेशवासिनो || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. ' Jun Gun Aaradhak Trust . Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 पर नूनं / पछिणोऽपि मनोरमाः // न पुनः परदेशीया। बांधवा अपि बंधुराः // 64 // स्थान ज्रष्टमनुष्यस्य / प्रसूनस्येव जायते // विनिपातो न मोक्तव्यं / तस्मात्स्थानं निजं सदा // 65 // चरित्र|| उक्तं च राजा कुलवधूर्विश्रा-नियोगिमंत्रिणः स्तनौ / स्थानत्रष्टा न शोनंते / दंताः केशा // नखा नसः // 66 // तेजखप्यधिपो न स्या-दात्मवर्गविवर्जितः // ज्योतिष्कनायकश्चंद्रो। न पुनर्जानुमान् मतः // 6 // एकाकिनो हि संतापः / समर्थस्यापि जायते // त्यक्तेन ग्रहतासधैः / कि नादित्येन तप्यते // 6 // गुणैः सर्वकल्पोऽपि / सीदत्येको निराश्रयः // अनय॑मपि माणिक्यं / हेमाश्रयमपेक्षते ॥६ए // मदीयाः खजनाः संति / तथैव भवनं मम // श्रीमचंपापुरीदेशे। विद्यते नात्र किंचन // 70 // अतृर्षिज इत्येवं / विचिंत्योवाच भूपति // महाराज यदि ग्रामं / मह्यं दास्यसि याचितं // 1 // तदा चंपापुरीदेशे / ग्राममेकं प्रदेहि मे // ततस्तव प्रसादेन / तत्र स्थास्यामि सौख्यत्नाक् // 7 // यद्यप्येष न देशोऽस्ति / तवाझाप्रतिपालकः // तथापि बलिनां नैव / परदेशा हि कश्चन // 3 // तत्प्रसीद प्रजा|| नाथ / पूरयस्व मदीप्सितं // असंजाव्यापि यांचा स्या-न्महत्सु न हि निष्फला // 4 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक करकमुरजाषिष्ट / कस्तत्रास्ति महीपतिः // दुधिवाहन इत्येवं / वामवेन प्ररूपितं // 35 // // | अर्थ राज्ञा खहस्तेन / लिखित्वा खमुत्तमं // दुत्वाप्रेषि मिजो पूतो। दधिवाहनसंनिधौ | // 76 // स गत्वा लिखितं दत्वे-त्युदारवचनोऽवदत् // करकंमुर्मम स्वामी / नवंतमिति मा. षते // // दधिवाहनपाल / देहि त्वद्देशमंतरा // मजिरा ग्राममेकस्मै / ब्राह्मणाय यथेप्सितं // 7 // पश्चायो रोचते तुल्यं / ग्रामो वा घुरमेव वा // याचनीयो महीपाल दा. स्याम्यहमपि दाणात् // 5ए // अद्भुतेऽपि चे सामर्थे / न्यायमागों न मुच्यते // इति हेतो. वहारस्ततः कार्य-स्त्वयायं शुजमिछत्ता॥ // इति संदेशकं पूत-मुखेनावीवदद्यदा // करकंमुस्तदा राजा / चुकोप दधिवाहनः // 2 // चुकुटिं चाटयामास / नूपो जालस्थले रुषा | // कोदमचंगप्रोईनै-युफबुध्यैव मार्गणं // 3 // स्फुरदोष्टो बनाणैवं / दधिवाहनभूपतिः // रेरै चामालपुत्रस्य / कः संसर्गों मया सह // 4 // उत्तमानां जन_न-व्र्यवहारो न पूज्य| ते॥ किं काकैः सह संसर्ग / राजहंसाः प्रकुर्वते // 5 // श्रात्मानं स न जानाति / करक P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पर मुस्तव प्रजुः // यदस्मानिः श्वपाकः सन् / व्यवहर्तुं समीहते // 6 // अज्ञातं निर्धनो नूनं / कदाचिल्लनते धनं // तदा तस्यानिमानेन / तृणवन्मन्यते जगत् // 7 // तथा चोक्तं-अ. चरित्रं वंशपतितो राजा / मूर्खपुत्रो हि पंमितः // अधनेन धनं प्राप्तं / तृणवन्मन्यते जगत् // 7 // 5 हीना जवंत्यहंमन्या / बलेनाल्पीयसापि हि // महतोऽपि न सामर्थ्या-न्महांतस्त्वनिमानि नः ॥ए // यतः-वृश्चिको विषलेशेना-प्यटत्युत्पाट्य कंटकं // गर्व विषजरेणापि / सो नै वापसर्पति // ए // मामप्यपरभूपाल-सममेव स मन्यते // बिले बिले न गोधाः स्युः / कचित्स्युः पन्नगा अपि // ए१ // तद्याहि न हि दास्यामि / ग्रामं कंचन मामकं // लजाकर मिदं दानं / क्षत्रियेषु ददाति कः // ए // वसुना गृह्यते वस्तु / व्यवहारोऽयमीदृशः // वणिजामेव योग्यः स्या-द्वयं तु दतियाः पुनः // ए३ // आजन्म न मया चक्रे / याश्चानंगो हि कुत्रचित् // परं येन परादेशं / विनाहं प्रार्थितो नृणा // ए४॥परं पराझथा यो मां। यदि किंचन याचते // प्राणानपि ददाम्येव / परं तस्तु न खकं // ए५ // तमन रे यथा|| यात-मित्युक्तस्तेन जूजुजा // अर्धचंडं गले दत्वा / दूतो निर्वासितस्ततः // 6 // करक P.P.Ac:Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोः समीपेगा-तं वृत्तांतमचीकथत् // पूतः प्रभूतकोपेना-रक्तनेत्रपयोरुहः // ए॥ नि शम्य तस्य वाक्यानि / करकंगोरभूत्तनौ // स्वानाविक्या समं कंम्वा / युद्धकंमू सहायिनी चरित्र // ए७ // सर्वांगोड्वासमासाद्य / सद्यः कोपारुणेक्षणः // सेवकानित्यत्नाषिष्ट / सऊसैन्यं वि धीयतां // एए // एकोऽप्येष महाघरट्टपुटवत्पेष्टुं पटीयानहं / सजेनास्मि नुजहयेन सकलान्माषानिव षिणः॥ जो जो नृत्यजना जवनिरसितः सन्यैः समैः सादिनि- व्यं तत्र नरांगणे नरपतिः प्रोवाच सर्वानिति // 600 // उत्तिष्टन्नासनात्पूर्वा-चलादिव दिवाकरः // राजापि शुशुन्ने क्रोधा-ज्ज्वलन्नारक्तदेहलाक् // 1 // आदाय खजमुख्यानि / शस्त्राणि तं. च दंगकं // निर्जगाम गजारूढो / नगरानगरेश्वरः // 2 // तदा प्रस्थानवादित्रै—रवादि प्र. तिशब्दिभिः // जेजू रणरणकतां / रणे शूरा मन खिनः // 3 // उझराः सिंधुरा नैके / पुर्धराकारधारिणः // जूधरं परिवत्रुस्तं / जंगमा श्व भूधराः // 4 // खुराघातक्षमापीठ-स्फोटका घोटकास्तदा // अत्युच्चैःश्रावसोऽभूवन् / भूपसंनिधिवर्तिनः // 5 // महारथा रथारू. ढाः / प्रौढप्रौढिमधारिणः // रणोत्सवोत्कसर्वांगा / नेजुः पद्मावतीसुतं // 6 // पदातयो म- | PP.AC.GuriratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हावीर्याः / खवटकपाणयः // उमलतो-रणोत्साहा-सह सर्वतोमुखाः॥७॥ चतुरंगः मथो सैन्य / दोणिपीठमचुकुनत् // चलत्पृथुलविस्तार-ममर्यादपयोधिवत् // // अपरा चरित्र अपि पाल-श्रेण्यः सबलवाहनाः // करकंमुबलं जेजु-निम्नगा व सागरं // ए. बलोऽधू: | तरजीव्याजा-धासांसि विविधान्ययं // भूयो देशांतरं गहन् / ददौ दिग्ज्यो दिशांपतिः॥॥ समुध्धूते रज घुले / रणोत्साहोत्सलद्दलं // विलोक्यादृश्यतां प्रापं / जयादिव दिवाकरः // 11 // सामदानददैन रतरावर्तिभूपतीन् / साधयन्नाययों चंपा देशसंधि स विक्रमी // 15 // तदुर बलं दृष्ट्वा / ग्राम्यैरुच्चलितं जनैः॥सिंहदर्शनमासाद्य / शृगालैः स्थीयते कथं // 13 // सर्वश्चंपापुरीदेशः / शून्योऽभूमीतमानसः // उडूंखलैटेचूंरि-जूतिरपाहि बुंटनात् // 14 // " करकंमुनराधीशः / पुनः संदेशहारकं // चातुर्यधारक प्रैषी-दधिवाहनसंनिधौ // 15 // स गत्वोवाच नूपालं / प्रबलं दधिवाहन // पराक्रमात्कृतं येन / वीरवर्गावगाहनं // 16 // जो || जोः शृणु महाराज / मन्मुखेन मम प्रतुः // त्वदेशसंधिमायातो। भाषते करकमुराद // 17 // // मदादेशाद् द्विजायास्मै / ग्राममेकं प्रदेहि भोः // अथवा कुरु संग्राममिति कोटिठयी // AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मता // 17 // पुंसां कुलोनवानां नो / न चातुर्यविदातृणां // केवलं बलिनामेव / बलसाध्या वसुंधरा // 15 // शृगाला श्व जूपालाः / पालयंति पितुर्जुवं // सिंहा श्व परं द्वित्राः / खचरित्र यमार्जतजोजकाः // 20 // अयं चांमालबालः सन् / संग्रामं किं करिष्यति // गर्वावेशाछि६१ // शांनाथे-त्यवझा मा कृथा वृथा // 1 // एकग्रामस्य चेल्लोशं / करिष्यसि तदा तव // चिरस्थायि न पश्यामि / राज्यराष्ट्रादि किंचन // 25 // देशस्याथें त्यजेदग्राम / ग्रामस्यार्थे || कुलं त्यजेत् // कुलस्यार्थे त्यजेद् गेहं / गेहस्यार्थे त्यजेन्नरं // 3 // प्राणान् देशं च राज्यं च / चेत्ते पालयितुं दमः // ग्राम एकस्तदादेय- स्तोषणीयः स भूपतिः // 24 // ग्रामदानेन ते. नाद्य / संधिं कुरु महाजुजा // विपत्सु तव साहाय्यं / प्रसन्नः स करिष्यति // 25 // खतो हीनबलेनापि / विरोधो न सुखश्रिये // नृपेणाधिकवीर्येण / किं वाच्यं करकंफुना // 26 // आक्रमत् क्रमतो भूपान् / स खबाहुपराक्रमात् // विचारय विचार / साधं तेन विधीयतां // 27 // एवं विधानि वाक्यानि / श्रुत्वा साटोपकोपनाक् // दधिवाहन आचष्टे / क एष करकमुराट् // 27 // यदेष मामुदासीन-मागत्यैवमुपस्थितः // तत्प्रसुप्तस्य सिंहस्य / कर्णन 'P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्र % 3D चकार सः // // सन्ये दूत तव स्वामी / कृतांतेन कटाक्षितः // विजिगीषुर्जुजगें। कि. || यजीवति दुर्दुरः // 30 // यदेष मम देशस्थ-ग्रामग्रहणमिवति // शेषनागशिरोरत्नं / नेक श्व समीहते // 31 // कदाचिन्मृगतष्णायां / प्राप्यते शीतवं जलं // परं न मामकं वस्तु / लप्स्यते स तव प्रनुः // 32 // कपिकडूलतानेना-सिंगिताशुलमिलता // यन्मया सह दुमेंधो। युबै मृगयतिस्म सः // 33 // मायन्मदेन मां दृष्ट्वा / गर्जतं जलदोपमं // मंदधीरधिकंमन्य-स्त्वत्प्रनुः शरजायते // 34 // पूर्व निर्जत्सितोऽप्येष / पुनः किमिति जाषते // अथवा न हि मूर्खाणां / प्रत्ययस्तामनां विना // 35 // पराजयौषधं दत्वा / बित्वा मानमयामयं / एष सुस्थीकरिष्ये तं / निषग्वर श्वातुरं // 36 // सर्वांगोछ्वसितो राजा / त्रुटस्कवचकंचुकः // आदिशत् सैनिका सैन्यं / सज्जं कुर्वतु सत्वरं // 37 // मतिचंअस्तदा मंत्री। नत्वा नूपालमब्रवीत् // अधुना मधुना तुल्यं / मम वाक्यं निशम्यतां // 30 // दृष्टस्त्वं वि. क्रमी राजन् / श्रूयते सोऽपि विक्रमी // नानालोकदयो भावी / युवयोयुध्यमानयोः // 35 // उजयोरिजयो -मानयोयुध्यमानयोः // पराजयजयो नैव / परं वृक्षक्षयो नवेत् // 4 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || तन्मुंच समरारंजं / निर्दन करुणापर // परमामोदसंपादी / साधीयान् संधिरेव हि // 1 // दधिवाहनपाल-माक्रम्य ग्राममग्रहीत् // इति लोकापवादस्य / जयं कार्य न किंचन // 4 // चरित्र | सर्वथा स्वहितं कार्य / लोकः किं वा करिष्यति // नोपायः कोऽपि तादृक्षो / येन सर्वोऽनुर ज्यते // 53 // एकग्रामकृते नाथ / संग्रामः किं विधीयते // लाजालानौ विचार्या यै-ोने कायें हि यत्यते // 4 // उक्त च-पुष्पैरपि न योधव्यं / किं पुनर्निशितैः शरैः // युद्धे विजयसंदेहः / प्रधानपुरुषक्षयः // 45 // त्वयापमानितेनापि / न कार्यों रोषविप्लवः // अग्निना तापितं वापि / दुग्धं मधुरमेव हि // 46 // नमंति सफला वृक्षा / नमंति गुणिनो जनाः // दुर्जनाः शुष्ककाष्टं च / न नतिं कुरुते क्वचित् // 47 // इति मंत्री सुधानाजि-ग्नि'पं व्य जिझपत् // तावत्तद्देशवास्तव्य-लोकैरागत्य प्रत्कृतं // 4 // महाराजनवद्देशं / करकंकु. नरेश्वरः // अध्वंसिष्टेव निर्नाथं / मत्तेन श्व काननं // 4 // ततो जीताः प्रविष्टा स्मो। नगरेऽस्मिन् महीपते // ध्वांताराताविवायाते / कायरा व सद्मसु // 50 // निर्नाधानामिवास्माकं / वस्तूनि सकलान्यपि // मुषाण स नृपो हाहा / खामिनि त्वयि सत्यपि // 51 ॥क P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिष्टामः कं महामः / किं ब्रूमः किमु कुर्महे // सर्वस्वमपि चास्माकं / तेन भूपेन लुंटितं || // 55 // इति लोकवचो भूपो-रसि रोषं पुपोष च // ज्वलंतं ज्वलनं या-त्प्राज्याज्यदेपणं णात् // 53 // भूपे शिक्षासुधाधारा / मतिचंऽस्य मंत्रिणः // कुंभस्य परिपूर्णस्योपरिष्टादिव सावहत् // 54 // इतः कारयते संधि-मितो देशं च बुंटति // सूत ते मलिनः स्वामी / जातितः कर्मणोऽपि च // 55 // त्वं भूत इत्यवध्योऽसि / कोपपाटलया हशा // रा. झेति नहिँतो पूतो / निर्गत्यागात्स्वभास्पदं // 56 // अथ प्रस्थातुकामोऽसौ / पुर्यां जंजामवादयत् // मिमिवुः सुजटाः स्फूर्त्या-स्फालयंतो निजान् जुजान् // 57 // स्थानात्स्थानादथायोते-र्दीर्घहुंकारकारिनिः॥ पुरं शूरैश्चलत्पूरै-रकारि तुमुलाकुलं // 50 // दधिवाहनभूपालो / विपक्षदेपदक्षिणः // प्राचालीदावृतः सम्यक / सेनया चतुरंगया // 5 // // श्रागमद्देशसीमायां / यत्रास्ति करकंकुराट् // शूरसेनं स्वसेनायां / सेनान्यं कुरुतेस्म सः॥६० // क रकं मुनरेंद्रोऽपि सेनान्यं सैन्यरक्षकं // आनंदाहीटकं दत्वा / जयानंदमतिष्टपत् // 61 // सै|| न्ये संबवले ते / उन्ने अपि परस्परं // आसन्नमीयतुः कुब्धा-विव पूर्वापरांबुधी // 65 // P.P.AC.Gunratnasurn.M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust: Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र // रणतूर्याणि वर्याणि / सैन्ययोरुनयोरपि // अन्योन्यं दोभकारीणि / वादितानि मुहुर्मुहुः / / / / 63 // हस्तानुत्पाव्य साटोपं / बप्प बप्पेति वादिनः // उच्चैरूचुस्तदा चट्टा। नटानां बिरुदावलीः // 6 // // अग्रगा अथ योहारो। दुर्धरा युष्मुखताः॥ आरेनिरे महारं / प्रेककाणां जयंकरं // 65 // मुक्तैराकर्णमाकृष्य / गणनातीतमार्गणैः // अभूत्सैन्यध्यस्यापि / मस्तकोपरि मंगपं // 66 // आस्फलत्सादिना सादी / निषादी च निषादिना // रथी च रथिना साकं / पदातिश्च पदातिना // 6 // सामंतेन च सामंतः। सेवकेन च सेवकः // सैन्य: योरुनयोरेवं / न्याययुद्धमजायत // 67 // युग्मं // बाणैः प्राणहरैवेगा-न्मुक्तैः कोदंमदमतः॥ घोरांधकारमत्रानू-सर्वत्रापि रणांगणे // ६ए // खजाखग्यंकुशांकुशि / कुंताकुंति शराशरि // दंगादमि तथा मुष्टा-मुष्टि दुष्टो रणोऽनवत् // 30 // सुजटालीः करालेषु / क. रवाजेषु सेवते // प्रतिबिंबबलादेत्य / कंप्रकायो रविनयात् // 31 // युध्यमानाः कबंधायाः / करिवाजिरथादिषु // मस्तकानि यथा यातं / नलिनीदलनीलया // 3 // करकंफुनरेंजेणोत्साहितैरुत्कटैटैः // बले चंपापुरीशस्य / सकले व्याकुलीकृते // 4 // क्रुकं खसैन्यन्नंगस्य। P.P.AC.Gunratnasuri M.S...' Jun Gun Aaradhak Trust Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक दर्शनाद्दधिवाहनं // उत्तिष्टंतं नृपं प्रह्वः / सूरसेनो व्यजिज्ञपत् // 35 // तेन चांमालबालेन / | समं योऽधुं समुद्यते // त्वयि नो श्लाध्यता कापि / जयेऽपि च पराजये // 76 // करिकुनस्थलस्थायि-मुक्ताफलहरे हरौ // शृगालास्फालनस्तुत्या / निंदैव न पुनः स्तुतिः ॥७॥ततस्वयं तिष्ट हे स्वामिन् / मामेवात समादिश // मया प्रजुप्रसादेन / तस्य शिक्षा करिष्यते // 70 // यथा ननःस्थितः सूर्यः / करैविध्वंसयेत्तमः // तथा स्थानस्थितो राजा। वैरिवर्ग खसेवकैः // पुए // दधिवाहन इत्येवं / विज्ञप्तो नूरिजक्तितः // सेनान्ये सूरसेनाय / रणार्थ बीटकं ददौ // 70 // सूरसेनोऽथ सेनानीः / प्राप्यादेशं निजप्रनोः // वयं योध्धुं समुत्तस्थौ / धनुरांस्फालयन् बली // 2 // स शरासननिर्मुक्तैः / शरैरापूरयन् दिशः // शुशुन्ने ज्ञानपदीय-पयोद व वारिभिः // 2 // नाददानः संदधन्नो / न च मुंचन् शिलीमुखान् // केवलं प्रहरन्नेवा--वेदि वेदनयारिनिः॥ 3 // वेगवथमासीनो / नान्यस्थानं परित्रमन // एकोऽप्यनेकरूपोऽभू-स बाणैः प्राणहारणः // 4 // परं पराक्रमं दृष्ट्वा / करकंमुटैयात् // नमोऽकारि प्रणश्यनि-राहवे तस्य बाहवे // 5 // सैन्यमालोमयामास / स सु. P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | राद्रिरिवांबुधिं // करकंकुजटा मत्स्या / श्व व्याकुलतां ययुः // 6 // वैरिकासारविदोनं / / / कासरेऽस्मिन् प्रकुर्वति // बभूवुः सुभटास्तीरे / दर्दुरा श्व नीरवः // 7 // यदा न कोऽप्य-- चरित्र भूवरः / सूरसेनस्य सन्मुखः // मदात्तदावदत्सोऽपि / तृणवरुणयन् जगत् // 7 ॥मा जेषु नं हनिष्यामि / क्षत्रियोऽहं प्रणश्यतः // तथा कृते मम स्वामी / लज्जते दधिवाहनः // 5 // चांमालः करकंकुराहवकलां बाल्ये न योऽन्यस्तवा-नशानः समरेऽधुना कथमसौ युझार्थमाहूयते // निःसत्वोंत्यजसेवकः किमु जयानंदः स आकार्यते / तस्मात्संप्रति मे रणांगणरसं कः पूरयिष्यत्यहो // ए // स्मरति न मृदेहां गेहिनी नापि गेहं / धनकनकसमूहं यः खः चित्त न धत्ते // मरणमनिलषेद्यो जीवितव्यान्निराशः / स समरजुवमेतां मत्पुरस्तात्समेतु // ए१ // गर्जतमिति साटोपं / सेनान्यं जितकाशिनं // श्रुत्वा कोपाजयानंद / उत्तस्थौ रण. कर्मणे // ए // सूरसेनं बनाषे स / बहु मा बेहि पौरुषं // क्षत्रिया न हि वाक्शूराः। शू राः किंतु रणांगणे // 3 // इत्युक्त्वा सोऽचलाक-सज्जीभूतवपू रुषा // सहतेऽरिपराजूति / || पौरुषान्न हि पूरुषाः // ए४ // ववर्ष शरधारानिः / स लाउपदमेघवत् // विधापि दुर्दिनं || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो जज्ञे / वैरिवर्गावरांतरे // ए५ // न सादी न निषादी च / न पदाती रथी न च // सूरसेनं विना शूरो / नाजूकश्चन सन्मुखः // ए६ // सूरसेनजयानंदौ / नदंतौ सिंहनादतः // वनचरित्र| सिंहाविवोन्मत्ता-वारेनाते रणांगणं // एy // उजावपि महाबाहू / उन्नावपि महौजसौ // जनावपि महामर्षा-द्विविधायुधवर्षिणौ // ए // युध्यमानावुनौ दृष्ट्वा / ननःस्थितदिवौकसः // न स्थातुं शेकिरे गंतुं / नीतिकौतुहलाकुलाः // एए // युगलकं // वेणीदंमः प्रचंमः किमयमकृपणः स्यात्कृतांतस्य किंवा / स्फूर्जप्रत्यर्थिपृथ्वीपतिविनतिनवं दुर्यशो मूर्तमेतत // किंवा कोपा निधूमः किमियमसिलतेत्याद्यमाशंकमानै-मेंने वैमानिकौघैरुभयसुजटयोरीक्षमाणैः कृपाणैः // 70 // उनयो रथचारिजि-श्चकंपे कोणिमंगलं // चुकुन्ने सागरेणापि / कंपितं पर्वतैरपि // 1 // कारं कारं टणत्कारान् / मोचं मोचं शिलीमुखान् // युयुधाते तथा किंचि-द्यथा नीतं सुरैरपि // 2 // खन खनमास्फाल्य / सुनटाच्यां स्फुलिंगकैः // शराछादितमातम। नभस्तारांकितं कृतं // 3 // एवमादिप्रकारेण / तयोरास्फाल्यतोरभूत् // 6 // तिकतरस्यापि / दृढयोर्वज्रगोलवत् // 4 // अजेयमपरैः शस्त्रै-स्तं ज्ञात्वा वैरिणं रणे // अ- || %3EED: PP, Ac Buntainasun MS. Jun Gun Aaradhak Trust Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - स्मार्षीदेवतादत्तां / शूरसेनस्तदा गदां // 5 // निर्दयं गदया हत्वा / ज्वालामालाकरालया // // शूरसेनो जयानंद / नूमीपीठमलीबुग्त् // 6 // पतितस्यापि घाताय / स प्राणहरणोयतः॥ गदामुत्पाटयन् दृष्ट्वा / हक्कितः करकंफुना // 7 // किमेतत्कुरुषे पाप / क्षत्रियानास रेऽधम // पतिता न हि हंतव्या / उत्तमैर्वीरमानिनिः॥ // इति निर्सितः शूर-सेनोवोचदरे जम // किं प्रत्ययो न जातस्ते / सेनानीसैन्यवीक्षणात् // ए॥किं ब्रूषे रे श्वपाकात्र। पराक्रमविवर्जित // श्मशानं विद्यते नेदं / क्षत्रियाणां रणो ह्ययं // 10 // यद्यंतकग्रहं गत्वातिथीनवितुमिबसि // तदाग त्वमप्यत्र / पूरयामि मनोरथं // 21 // प्रत्युत्तरमनुक्त्वैव / करकमुनरेश्वरः // अचीचटनुर्बाणौ / विशिष्य तस्य सन्मुखं // 15 // एकेन तेन बाणेन / स तत्कोदेममविदत् // द्वितीयेनार्थ बाणेना-ध्वंसिष्ट रथसारथी // 13 // लीलयैव स भूपीते / शूरसेनमपातयत् // महांती नैव जल्पंति / कृत्वैव दर्शयति यत् // 14 // पदातीभूय | संक्रुद्धः / शूरसेनोऽन्यधावत // गदामुत्पाव्य हस्तान्यो / करकमुनृपंप्रति // 15 // कदाचिं॥ बन्यते रत्नं / पतितं सांगरांतरे // परं पुरुषरत्नं नो / हतं वचन दृश्यते // 16 // इदं पुरुष / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust - Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जो रत्नं त-न्मा विनश्यतु सांप्रतं // इत्यायति चिंतयन् दीर्घ-मतिः स करुणापरः // 17 // रथादुत्तीर्य वीर्याढ्यः / शूरसेनस्य तां गदां // स तूर्णं चूर्णयामास / स्वेन दंडेन केवलं चरित्र | // // त्रिनिर्विशेषकं // गदांचूर्णमयीं दृष्ट्वा / जयोडेकवशंवदः // दुःस्खापनोदनसखीं / मूर्जा लेने स सैन्यपः // 25 // उपाचरन्नरेशस्तं / वारिचंदनवीजनैः // महांत उपकुर्वति / दुःस्थावस्थानरीनपि ॥२०॥हिषं व्यावृत्तचैतन्यः / सैन्यपः स्वौपचारकं // दृष्ट्वा मानधनो मेने / जीवितान्मरणं वरं // 1 // अंतरिक्षमिवातार-मतारमिव लोचनं // कासारमिव निर्नीरं / निःशाखमिव शाखिनं // 25 // चं निश्चंजिकमिव / निर्नृत्यमिव जूजुजं // जुजंगमिव निर्दष्ट्र-मंगवातजूषणं // 3 // निस्तोरणमिव छारं / निर्दत मिव दंतिनं // निरस्त्रं शूरसेनं तं / वीदयेषजहसुर्जनाः // 24 // त्रिभिर्विशेषकं // ह्रिया नम्रमुखः पश्यन् / विविकुस्वि जूतलं // अनश्यजीचमादाय / सेनानीः सेनया सह // 25 // जयानंदः समुत्तस्थौं / सजीजूतः क्षणांतरे // अजूजयजयारावः / करकंमुबलेऽखिले // 26 // करकंमौ महाशूरे / || स्वयं योऽधुं समुद्यते // जयादिव दिवाधीशो / निलीनः पश्चिमांबुधौ // 27 // प्रससारांधका P.P.AC.GunratnasurrM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सैघो / विवेकी करकंडुराट् // निवार्य संयतो नृत्यान् / स्कंधावारमवीविशत् // 27 // दधि- / वाहनराजोऽथ / क्रुको नृकुटीजीषणः // तदैव योध्धुमुत्तस्थौ / दतैर्दैतबदे दशन् // 25 // खामिन् रात्रिरियं जाते-स्यायुक्त्वा मंत्रिनिर्नृपः // सुस्थीकृतो यथास्थानं / सोऽपि सैन्यं न्यवेशयत् // 30 // प्रातःकालेऽथ संजाते / रणतूर्यादिपूर्वकं // उने अपि महासैन्ये / आरेलाते रणांगणं // 31 // दर्शयैतेषु चांमालः / करकंमुः स को नवेत् // दधिवाहनराजेन / पृष्ट एकः पुमानिति // 32 // स प्राह साहसाधारो / ज्वलदंगस्फुरत्करः // यो धुन्वन् वैरिणो वृक्षा-नागबन्नस्ति हस्तिवत् // 33 // स्फूर्त्यांकृत्या शरीरस्य / वर्णेन च महौजसा // तवैव सहशो योऽस्ति / करकंमुमुवैहि तं // 34 // निशम्येति नराधीशः / श्रीकांचनपुराधिपं // विलोक्योहतयोछार-मिति चेतस्याचंतयत् // 35 // यत्राकृतिस्तत्र गुणा भवंति / यस्मिन् गु. णास्तस्य कुलं प्रधानं // तस्मादयं क्षत्रिय एव कश्चि-त्स्फूर्त्या तथा स्यान्न पुनः श्वपाकः // 36 // विमृशन्निति साश्चर्य / श्रीमच्चंपापुरीश्वरः // करकंडं समायांत-मत्यासन्नं समैक। तः॥ 37 // तस्य दर्शनमात्रेण / दक्षिणेनास्य चक्षुषा // स्फूरितं तत्कणं दक्षिणेष्टसंगम P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर सूचकं // 3 // सांप्रत दक्षिणं चतुः / स्फुरित केन हेतुनी // उत्कटो दृश्यते वैरी / कुत्रा || बानीष्टसंगमः // 35 // तदिदं निष्फल नून-मथवा नात्र संशयः // अनेंके प्रत्यया जाता / येनैतस्य पुरा मम // 40 // एवं विचितयन् राजा / नृपेण करकंमुना // सह संग्राममारे ने / सहसा साहसालयः // 1 // त्रिनिर्विशेषकै // श्रीकांचनपुरेशस्य / दर्शनादमृतांदिव // दधिवाहननूपस्यो-पशाम्यत्कोपपावकः // 42 // अन्योन्यं पितृपुत्रत्व-प्रेमप्राग्लारपूरितौ // युध्यमानावुनौ बाणान् / साशंकं मुंचतःस्म तौ // 43 // चपेशस्तत्र जानाति / यदेतस्य सुतेजसः // निजांगजवदुत्संग-मारोप्या श्लेषमादधे // 4 // करकंमुश्च जानाति / विनयेन नमाम्यहं // तातस्येवास्य पत्पद्मं / युध्येऽहं किमनेन हि // 45 // इत्यन्योन्योबलत्प्रेम-कलितावपि लीलया // अयुध्येतां तथा किंचि-यथाश्चर्यमिवाजवत् // 46 // चिरात्पद्मावतीजा|| त-चपेशचापमछिदत् // खजादीन्यपि शस्त्राणि / खंगशोऽन्यान्यखंम्यत् // 7 // अहो शौ यमहो वीर्य-महो रूपमही महः // अहो माहात्म्यमेतस्य / जगदाश्चर्यकारणं // 4 // अ॥ स्याग्रतो न जेतव्यं / पलायनमितो वरं // एतद्विमृश्य संग्रामा-प्राणशदधिवाहनः॥ ४ए / un Gun Aarashak P.P.AC.Gunratnasuri M.S Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक नंष्ट्वा प्राप्तः पुरीं चंपा / पुर्गरोधं चकार सः // खसैन्यैः करकंडुश्च / तं को पर्यवेष्टयत् || // 50 // कपिशीस्थितानेक-सुनटैः सह पुःसहः // संग्रामो जायते नित्य-मन्योन्यं नृपयोस्तयोः // 51 // अस्मिन्नवसरे पद्मा-वती व्रतवती सती // अौषीजनचक्रेन्यो / विग्रहं पितृपुत्रयोः // 55 // विज्ञप्य सकलं बाल-त्यायाद्यं निजचेष्टितं // सागान्महत्तरादेशा-निधिवत्सैन्यसन्निधौ // 53 // करकंम्वतिके सागा-त्तस्याः सन्मुखमुत्थितः // स पादयोर्मुठन्मौलि-रिति प्रांजलिरच्यधात् // 54 // धन्योऽहं कृतपुण्योऽहं / जाग्यवानहमेव हि // मद्गृहे जगवत्या य-त्कृतं पादावधारणं // 55 // अद्य मे सफले नेत्रे / अद्य मे सफलं शिरः // अद्य मे सफला वाणी। यत्त्वं दृष्टा नता नुता // 56 // नेत्राच्या प्रमदामृतेन ज. रितं देहेन रोमांचितं / शीर्षेणोत्सुकितं ममोत्तमनमस्कार क्रियायां तथा // चित्तेनोब्वसितं सितं गुणगणं स्तोतुं गिरा कांदितं // हर्षाद्वैतमिवाभवनगवति त्वदर्शनात्सांप्रतं // 5 // जवती जगवत्यस्ति / सर्वजीवेषु वत्सला // सर्वकाले विशेषेणा-बाह्यान्मयि कृपापरा // 5 // || निषीदात्र प्रसीद त्वं / वदागमनकारणं // अमंदानंदसंदोह-कंदकंदलनांबुदं // एए // जगव Jun Gun Aaradhak Trust 'PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होना त्याह हे वत्स / कुलीन क्षत्रियोत्तम // पित्रैष सह संग्रामः / किमारब्धस्त्वयाधुना // 6 // || सविस्मयः स वक्तिस्म / प्रसादसदनाशये // जगदे जगदेकार्थ्ये / भगवत्या किमीशं // 6 // चरित्र पितायं मम चांमाल-स्तत्पादयुगपंकजं // देवस्येवास्य सेवेऽहं / विरोधः क्वास्ति तेन मे // 6 // साध्वी पुनर्बनाणैवं / वत्स नायं पिता तव // किंतु माता त्वदीयाहं / पिता तु दधिवाहनः // 63 // सा दोहदात्समारज्य / गजेंद्रहरणादिकं // श्मशानत्यागपर्यंतं / सर्व वृत्तांतमच्यधात् // 64 // आहूतः सोऽपि चांमालः। पृष्टश्च करकंमुना // अनेकान् शपथान् दत्वा / स सत्यं प्रोक्तवांस्ततः // 65 // पितुर्नामांकितां मुद्रां / रत्नानं रत्नकंबलं // श्रानीय दर्शयामास / स तस्य पुरतस्तदा // 66 // ज्ञातोदंतो महानंद-पूरपूरितमानसः // तस्या मातुः पदां नोजे। स ननाम महर्महः॥६७॥ वत्सैनं विग्रहं मंच / पद्मावत्येति जाषिते // स गर्वपः र्वतारूढः / प्रांजलिः संस्तदावदत् // 67 // क्षत्रिय व गण्यते / पितृवात्रादयो रणे॥ तत्कथं सांप्रतं युद्धं / सह पित्रा त्यजाम्यहं // ६ए // तथा कृते कथं तात-पादैरेव न लज्ज्यते // तदुपेत्य न स्यामि / श्रीतातानपि सांप्रतं // // हे मातस्तावकादेश-पालको बालको P.P.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % 3D ह्ययं // तथापि त्रपयैवाहं / न कुर्वाणोऽस्मि ते वचः // 31 // निशम्य तस्य वाक्यानि / म हासत्येति चिंतितं // इकिमान् यौवनोन्मादी / वयं नस्यति न ह्ययं // 32 // उक्तं चचरित्र यौवनं धनसंपत्तिः / प्रजुत्वमविवेकिता // एकैकमप्यनर्थाय / किं पुनर्मित्रिसंगमः // 3 // तथा च-दानानुसारिणी कीर्तिः / स्फुर्तिर्वित्तानुसारिणी // वयोऽनुसारिणी बुधिः / सिकिर्जाग्यानुसारिणी // 4 // कुशाग्रीयमतिर्दकः / प्रपन्नो दधिवाहनः॥ वर्तते यौवनातीतस्तस्य पाद्यं व्रजामि तत् // 5 // ज्ञातोदंतः स एतस्य / हर्षात्सन्मुखमेष्यति // पश्चादेषोऽपि तस्यांही। कुलीनो नमसिष्यति // 76 // विमृश्येति समुखाय / धर्मलानं प्रदाय सा // गता चंपापुरीलोकै-दृष्टा दृष्टचरा चिरात् // 7 // पद्मावती समायाते त्याचख्यौ कश्चित्सुकः // राजांतःपुरनारीणां / पुरतः परया मुदा // // निशम्यास्तोकशोकास्ता-श्चेतस्येतदचिंतयन् // हागतं खामिनो मानं / स्त्रीरत्नं चेत्तदागतं // ए // अथ राजांगणायातं / संयतीवेषधारिणीं // दृष्ट्वा पद्मावती सुस्थी-बभूवुर्जूपवबजाः // 70 // प्रणेमुस्तत्पदांजोजे / राझ्यो नतिजरान्विताः // सत्वरो नरनाथोऽपि / समायातस्तदंतिकं // 1 ॥प्रणम्या Jun Gun Aaradhak Trust ..R.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक खदानंदा-द्राजा रोमांचकंचुकः // महासत्यधुना गों / मामकीनः क्व विद्यते॥ ॥अ. || य यावद् घ्यं चित्ते / शल्यवबव्यतिस्म मे // एको जवतीविरहो / द्वितीयो गर्न एवः सः॥ चरित्र // 3 // यस्यावतारतो मातु-रुत्तमो दोहदोऽनवत् // नविता लाग्यवान् गाढं / स नूनं नं |दनो मम // 4 // राजीवेषु विकासः क्व / विना राजीवबांधवं // क्वोत्तमो दोहदो मातु- - ग्यवंतं सुतं विना // 5 // एवं पृष्टा नरेंप्रेण / बजाषेऽथ महासती // करकंसुरयं राजा। स गों द्वारि संस्थितः // 6 // सिक्तोऽमृतलरेणेव / वचसा तेन नूपतिः // महासत्यपि वृत्तांतं / सर्वं सौवमचीकथत् // 7 // राजा गजेंजमारुह्य / कृत्वा च रणवारणं // प्रतस्थे सपरीवारो। निजनंदनसन्मुखः // 7 // अथ राजानमायांतं / प्रेक्ष्य संतोषिताशयः // करकं. मुनरेंजोऽपि / तस्य सन्मुखमागमत् // ए१ // गजेंद्रादवतीर्यायो / नूमीपीठे बुग्न् बुग्न् // आगत्य विनयात्तात-पादपी नमोऽकरोत् // ए५ // पादौ प्रमार्जयामास / बोटितैर्निजमू. धजैः // तत्पादौ दालयामास / श्रवनिः प्रमदाश्रुभिः // ए३ // सुतमुत्थाप्य हस्तान्यां / ल(जया प्रणताननं // आलिलिंगोबलत्प्रेम्णा / पिता हर्षाश्रुलोचनः // ए४ // निपत्य पादयो . PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोन स्तातं / करकंफुर्व्यजिझपत् // हे हे तात तितिक्षखा-पराध्यं निर्मितं मया // 5 // क- / / दाचिदपराध्यति / कुपुत्रीभूय पुत्रकाः // कृतेष्वप्यपराधेषु / तातस्तातः स एव हि // ए६ // सुते कृतापराधेऽपि / तातःप्रीत श्वांबुधेः // दोषाकरः स्पृशन् पादै-रप्युद्धासकरः शशी॥ // ए७ // पिताह सहसाश्लिष्यन् / स्नेहसंश्लिष्टया गिरा // अयं तवापराधोऽपि / नंदनानंदनो मम // ए // श्त्युदीर्य महावीर्यं / चुचुंब निजमंगजं // गजमारुह्य राजेंडः। खांकमारोपयत्सुतं // एए // नाना मंगलगीतगाननिवहैः संतोष्यमानश्रुतिः / प्रेक्ष्यप्रेक्षणकक्षणेक्षणचरञ्चक्षुईयव्यापृथिः // उत्संगोपरि संस्थितांगजवपुः प्रेम्णा कराच्यां स्पृशन् / पौरोनिततोरणां नरपतिश्चंपापुरीं प्राविशत् // 7 // // आगत्य सिंहासनसंस्थितस्य / चिंतेति चित्तं समजून्नृपस्य // स्वजावतो जर्जरमस्थिरं य-ग्रंस्तं पुनस्तजरया वपुर्मे // 1 // शरीरशोजा सुमनोवनोपमं / गतं समस्तं मम यौवनं वयः // कृतः कृतार्थो न हि मानवो नवो। हा हाद्य यावत्स मुधैव हारितः // 5 // उझरस्कंधरा एते / राज्यलारधुरंधराः॥ करकंकुस. माः पुत्रा / ममाजूवन्ननेकशः // 3 // तस्मात्सद्गुरुसंयोगः / सांप्रतं जायते यदि // इदं राज्यं PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक राज्यं परित्यज्य / प्रव्रज्याराज्यमाददे // 4 // एवं यावत्समारूढो। मनोरथरथं नृपः // व नपालः समागत्य / तावदेवं व्यजिज्ञपत् // 5 // श्रीधर्मघोषसूरींद्रा / श्व चंदा अवातरन्॥ चरित्र || वने व्योम्नीव ताराभिः / साधुराजिलिरावृता // 6 // इत्याकर्य नराधीश-स्तोषितः पारि तोषिकं // तस्मै सर्वांगाजरणा-दिकं दानं ददौ मुदा // 7 // सपुत्रः सपरीवार / उद्यानमचलन्नृपः // चिंतयन्निति सानंदं / सिको मम मनोरथः // ॥राजेंद्रादवतीर्य नक्तितो / जूमीपति—मितले बुग्न् बुग्न् // आगत्य वारत्रितयं प्रदक्षिणां / दत्वा गुरोरं हियुगं नमो. ऽकरोत् // // श्रीधर्मघोषसूरीजः / प्रारेने धर्मदेशनां॥ जो जो जव्या जवांभोधि-रपारोऽयं दुरुत्तरः // 10 // तत्र कर्ममहावाते-रितश्चेत्. त्रिजगजनः // मोहावर्ते पतेत्तर्हि / स विदध्यादधोगतिं // 11 // मोहव्याघ्रो जवाटव्यां / असते शीघ्रमंगिनः॥ आरोहति परं यो नो / जिनधर्मतरुं गुरुं // 15 // राज्यलक्ष्मीः समस्तेयं / चपला गजकर्णवत् // संध्यारागानुकारं || च / जीवानां जीवितं खलु // 13 // निजसद्मनि पद्मापि / याहोरात्रं न तिष्ठति // सा क॥ परगेहेषु / श्रीः स्थिरत्वं करिष्यति // 14 // सुखैकाकांक्षिणो जीवाः / सुखं तु सुकृतान-|| PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | वेत् // तत्तदेव विधातव्यं / प्रयत्नेन विचक्षणैः // 15 // जीवोऽयमुद्यमी याह-गर्योपार्जन- || || हेतवे / तादृक्चेधर्मकार्याय / तदा किं नास्य सिध्यति // 16 // अर्थमूलो गृहावासः / स चरित्र त्वार्थोऽनर्थकारणं // सर्वसंग्या परित्यागः / कर्तव्यस्तेन हेतुना // 17 // अर्थेन दृष्टमात्रेण / जीवो नवति लोजवान् // लानेन गणयेन्नैव / सुहृदो न च बांधवान् // 27 // अर्थस्यानर्थमूलत्वे / कथ्यमानाधुना कथा // चित्तेन सावधानेन / जो जो सन्या निशम्यतां // 15 // ' श्रीवसंतपुरं नाम / पुरमासीन्महत्तमं // कृतारिमर्दनो राजा / तत्रादरिमर्दनः // 2 // राज्यकार्यविधौ धुर्यो--ऽनिधानाबुद्धिसागरः // बुद्धिसागरजूतोऽभू-मंत्री तस्य महीपतेः // 1 // बभूव गुणसाराख्यो / हितो राशि पुरोहितः // प्रशस्तः सेल्सहस्तोऽभू-न्महासेना- || निधोऽपि च // // सप्रजायां सजायां ते / प्रजाते पुरुषोत्तमाः॥ चत्वारस्तस्थुरागत्य / पुरुषार्था श्वांगिनः // 3 // भवतां मंदिरेष्वद्य / खयंभूवदनेवि // चंगा रंगकरै रंगैः। सुव. रुचिरोचिताः // 24 // श्व वेदा अनिर्वेदा-श्चत्वारो जझिरेंगजाः // नृत्यास्तान् वर्धया| मासुः / सानंदमिति वादिनः // 25 // युग्मं // अथ राजा हृदा हृष्टः / सचिवादीनदोऽवदत्॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो समकालममी जाता / वर्धतां मम मंदिरे // 26 // एवमस्तु महाराज / सर्वैरित्युदिते सति // पुत्रस्येव नृपोऽन्येषां / जन्मोत्सवमचीकरत् // 27 // राजांगणं समानीय / चतुर्णा सहशाचरित्र दरांत् // राज्ञा पृथक्पृथग्धात्र्यः / प्रपालनकृते कृताः // 27 // महाराजकरस्पर्शा-विशवः परमोदकाः // शनैः शनैद्धिमापुः / सागरा जागरा श्व ॥श्ए // पाठिताः पाठशालायां / कलान्यासं च कारिताः // शस्त्रंशिस्त्रकचतुराः। क्रमाद्यौवनमाययुः // 30 // तेजखिनो मेंहावीर्याः। श्रीतिमंतः परस्परं // एवमालोचयामासुः / संभूयैव सहोदराः // 31 // निःसत्वा श्व किं कालं / गमयामः पितुर्रहे // नमामो वसुधामध्ये-र्जयामः खजुजैः श्रियः // 3 // तातेनोपार्जितं वित्तं / जुज्यते सत्ववर्जितैः // सत्ववंतो जुवं ब्रांत्वा / स्वयमर्जितनोजकाः // // 33 // आलोक्यते जनविचित्रचरित्रचित्रं / विज्ञायते सुजनऽर्जनयोर्विशेषः // संलच्यते निजबलाबलयोर्विवेकः / बज्रम्यते सकल एव महीतले तत् // 34 // एवमालोच्य चत्वारो नापृच्छयैव महीपति // खसककृतसाहाय्याः। प्रदोषे निर्ययुः पुरात् // 35 // श्रीपतिपतेः // सूनु-मैत्रिणश्च महामतिः // मन्मथः सेलहस्तस्यां-गदाख्यश्च पुरोधसः // 36 // इति || . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्र नाम्ना प्रसिद्धास्ते / महासाहसिनः क्रमात् // पितुर्देशं परित्यज्य / परदेशं समासदन् // 3 // अन्यदा तेषु गबत्सु / चतुलपि महाटवीं // अस्तं जगामोष्णधाम / दीपवन्मार्गदीपकः॥ // 30 // मार्गामार्गमजानंतो। निर्झना श्व मानवाः // विटस्येव वटस्याधो। निवासं चकिरे निशि // 3 // घुर्घरंति महाव्याघ्राः / फुच्चक्रुश्च फणीश्वराः // चक्रुरट्टहास्यानि / भूतप्रेतादयस्तदा // 40 // चतुर्जिमंत्रितं तत्र / काननेऽत्र विजीषणे // ये सुप्तास्ते विगुप्ता हि / श्रेयो जागरणं ततः // 1 // उक्तं च-उद्यमे नास्ति दारिद्र्यं / जपतो नास्ति पातकं // मौनेन कलहो नास्ति / नास्ति जागरतो जयं // 42 // चत्वारः स्मों वयं रात्रे-श्चत्वारः प्रहरा अपि // एकैकं प्रहरं याव-जाग्रत्वेकैक एव तत् // 43 ॥श्त्यालोच्यापरे सुप्ताः। पुरोधःसुत एककः // प्रथमे प्रहरे जाग्रं-नस्थात्खजसहायकः // 44 // अपरेषां समस्तानां / घो. रा निखा यदागता // तदोच्चैरिति शब्दोऽभू-टोपरि परिस्फुटं // 45 // अनर्थवेष्टितोस्त्यर्थः / पन्नगैरिव चंदनं // यदि त्वं कथयस्याशु / पतामि त्वत्पुरस्तदा // 46 ॥श्त्याकण्या. गदोऽध्याय-कस्येदं शब्दितं किल // हुँ देवतानुजावोऽयं / तेनेदं बुध्यते मया // 4 // क- || 4 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक श्चित्कांचनरत्नादि-रूपार्थोऽस्ति महानिह // देवताधिष्टितः स्पष्टं / परं सोऽनर्थवेष्टितः // | // 47 // तत्तेनार्थेन किं साध्यं / योस्त्यनर्थेन वेष्टितः // तेन वर्णेन किं कार्य / येन कर्णस्तु| टेरपुनः // ४ए // एवमायतिमालोच्य / मा पतेति निवार्य तां // प्रथम प्रहरं स्थित्वा / सुष्वा. | प स्वयमंगदः // 50 // अथ यामे द्वितीयेऽस्मिन् / महामतिरजागरीत् // खजसाहाय्यकस्त स्थौ / सुप्तेष्वन्येषु त्रिष्वपि // 51 // पुनर्वाणी तथैवाचू-चिंतयित्वा तथैव च ॥वारयित्वा तथैवार्थ / स्वावधि सोऽप्यपूरयत् // 55 // अथ मन्मथमुछाप्य / निद्रां चक्रे महामतिः॥तादृगेवानवत्सर्व / तस्मिन् जाग्रति मन्मथे // 53 // चतुर्थे प्रहरे जाते / श्रीपति नृपतेः सुतं // उबाप्य मन्मथो जज्ञे। निद्रामुद्रितलोचनः // 54 // जाग्रन् श्रीपतिरोषी-दस्त्यर्थोऽनर्थवेष्टितः // पतामि जवतादेशः / पतेति यदि दीयते // 55 // वटमूर्धन्यमुं शब्द-माकायमचिंतयेत् // अर्थाः सर्वेऽप्यनर्थेन / वेष्टिता एव संत्यमी // 56 // अनर्थनीरवो नार्थान् / परं निःसाहसा नराः // संग्रामे जयलक्ष्मीव-प्राप्नुवंति कदाचन // 57 // विदार्यानर्थसं|| दोहान् / कुंतिकुंजस्थलानिव // गृहंति मौक्तिकान्यान् / सिंहा श्व. ससाहसाः // 5 // PPAC.GupratnasuriM.S..' Jun Gun Aaradhak Trust Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स एवं विमृश्य सोऽवादी-साहसी क्षत्रगोत्रः // जो अर्थ कांचनीभूय / ममाग्रे पत सांप्रत॥1 // 5 // // इत्येवमुक्तमात्रेण / सुवर्ण पुरुषो महान् // कुमाराग्रेऽपतत्तूणं / दीपवहिवदीधितिः | // 60 // तस्य प्रपातघातेना-परे जागरितास्त्रयः // विद्युदंमः किमुइंमः / पतितोऽथ दिवश्यु| तः॥६१ // इति संत्रांतनेत्रास्ते / संत्रस्तहरिणा श्व // सुवर्णपुरुषं सादाद् / दृष्ट्वा मुमुदिरे हृदि // 6 // सर्वेषां ग्रहणाकांदा / पृथक् पृथगजायत // हृद्गुहायां लोनसिंहो-ऽनर्थमूलं समाविशत् // 63 // एनमर्थ समादाय / बजामो निजमंदिरं // चिंतामणिमपिप्राप्या-न्यतो ब्राम्यति कोऽपि किं // 64 // बांधवान्यधिकैमित्र-मंत्रयित्वा परस्परं // चैलेऽनुखगृहं श्रोत -खिनीनीरिवांबुधिं // 65 // प्रलंवदेहं गुरुनारगेहं / नैकस्तमुत्पाटयितुं पटीयान् // उत्पाटतस्तैः सकलर्मिलित्वा / किंचिबघूभूत स्वार्थलोजात्॥६६॥ बुजुदा कुदिमध्येता-नदंशद्वृश्चिकोपमा // ततो व्याकुलीता जाता / न लगते धृति क्वचित् // 6 // महापुरपुरान्यणे तं सुवर्णमयं नरं // न्यवीविशन्नमी नावं / तीरे नीरनिधेरिव // 6 // एकः पुरोधसः सूनु|हितीयः सचिवात्मजः // भोजनानयनायैतौ / नियुक्तौ नगरांतरे // ६ए // मंत्रितं गलता PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर मंत्रि-पुत्रेणेति दुरात्मना // श्रीपतिपतेः सूनुः / सर्वेष्वस्मासु साहसी // 70 // तेनैव निज धैर्येण / सुवर्णपुरुषोऽर्जितः / तस्मादस्माभिरेतस्य / विजागो लन्यते कुतः // 31 // यः शूरः चरित्र स हि सर्वस्वं / गृह्णाति हरतोऽपि च // बृहनानोरहः काले / जानु नून् हरेन किं // 2 // न्ध तदेषोऽपि महाशूरः / सर्वस्वमपि लास्यति // अस्ति मैत्र्यधुना तेन / परं सा न स्थिराज्रवत् // 3 // अस्मिन् जीवति नामानि-लप्स्यते हेममानवः // सति सिंहेशृगालः किं / जदयं नक्षयितुं दमः // 4 // तस्य व्यापादनं बुद्ध्या / कुर्वेऽहं मन्मथस्य च // यतो देहबलाबुद्धिबलं कोटिगुणं स्मृतं // 35 // इति चिंतातुरं प्रेक्ष्य / पुरोहितसुतोऽवदत् // का चिंता जवतो जाता। ममाग्रे वद बांधव // 76 // कथंचित्कथयामास / स्वानिप्रायं स दुर्मतिः // अं. गदोऽप्याहं हे मित्र / मंत्रितं साधु साध्विदं // 7 // किं नाम क्रियते मित्र-रेका श्रीरेव युज्यते // यस्याः प्रजावतो विश्वं / मित्रमेवा खिलं जवेत् // 7 // दारिद्यजाजः श्रुतनाषि णोऽपि / क्षणादमित्रत्वमुपैति मित्रं // लक्ष्मीवतो दुर्वचसोऽपि चित्रं। जजंत्यमित्रा अपि मित्र|| भावं // 5 // श्रियाश्रितत्वेन जनार्दनोऽपि च / प्रगीयते यत्पुरुषोत्तमो जनैः॥ विजूतिदेहो || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तय जो जनशंकरोऽप्यहो / इहांगिनिः स्थाणुरिति प्रकथ्यते // 70 // अविद्यमानानपि मूलतो गु- || णान् / वदंति लोका धनिनः प्रियंवदाः // श्रितः श्रिया सत्पुरुषेषु गण्यते / त्यक्तस्तया कापुचरित्रं पावन रुषोऽवगण्यते // 1 // अमूलमंत्रं गतयंत्रतंत्रं / लक्ष्मीरियं कार्मणमद्वितीयं // यस्याः प्रभावेण जनाः समस्ता / अवश्यमेवाशु वशीजवंति // 5 // आजन्मतो बांधवतुल्ययोरपि / पंचत्वमापादयितुं तयोर्डयोः // किंचित्प्रपंच रचयाशु घातकं / लक्ष्मीकृते किं क्रियते न पातकं // 3 // अंगदेनैवमुदिते / मुदितोऽभून्महामतिः // पापाः पापोपदेशेन / पूष्यंति दितिमंगले // 7 // नसावत्केवलं नाम्ना / स महामतिरस्पधीः // जोज्येन सह कूटात्मा। कालकूटं गृहीतवान् // 5 // एकस्य सदने गत्वा / कारयित्वा च जोजनं // जुक्तवंतावुलौ त त्र। पुरोधःसचिवात्मजौ // 6 // पाचयित्वान्यमाहारं / विषं प्रक्षिप्य तत्र च // आदाय च तमाहारं / निर्गतौ नगरात्ततः // 7 // अत्रांतरे बहिःस्थेन / चिंतितं नृपसूनुना // सुवर्णपुरुषो धैर्या-न्मयैवायमुपार्जितः // // अधुना धनिका जाता। हंहो सर्वेऽपि पार्श्वगाः॥ दाक्षिण्यांबुधिमझो हि / किं जल्पामि करोमि किं // ए // आः ज्ञातमधुनैवैनं / कृत्वा सा- / / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasur M.S. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं | हाय्यकं खकं // बलाढ्यापादनं कुर्यां / पुरांतर्गतयोस्तयोः // ए // एनं विनाशयिष्यामि / / / पश्चादध्वनि कुत्रचित् // एकाकिनार्जिता लक्ष्मी-मयैकेनैव जोयते // 1 // विचिंत्येति स मायावी / मन्मथं प्राह सांजसं // हे मित्र मनसो वार्ता / वदामि यदि मन्यसे // ए॥ अगोचरं न ते किंचि-त्करवाणि कदाप्यहं // तवैव मेऽस्ति विश्वासो / जीवितादपि वडन // 3 // सुवर्णपुरुषस्यास्य / विनागे विहिते सति // शृणु मित्र चतुर्थोश-स्तव लागे समेष्यति // ए // आवां व्यापादयावश्चे-नगरांतर्गतावुजौ // एकीभूय मुदावाच्यां / भोयते विनवस्ततः // ए५ // जपतमिति नूपाल-नंदनं मन्मथो जगौ // यन्मित्र रुचितं तु. ज्यं / तदेव मम संमतं // ए६ // अवांतरे समायातौ / पुरोधः सचिवात्मजौ // विषयुक्तान संपूर्णा / दधानों स्थालिकां करे // ए // नोः पश्यंत्वनयोलौट्यं / मित्ररूपेण वैरिणोः॥ स्वयं जुक्त्वा समायातौ / पश्चिमे प्रहरेऽधुना // ए // एवं कपटकोपेना-क्रोश्यंतावरुणेक्षणौ // जनितो खजमाकृष्य / नृपनंदनमन्मथौ // एए // युग्मं // नूबाये श्व दीप्यमानदिनकृद्दीपो || सुदीप्रविषा / पदो दोणिनृतामिवामरपती तीक्ष्णेन दंनोलिना // राजस्यादकृपौ कृपाणक्ष P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक S तया दात्रेण कालिंगव-बीर्षे मंत्रिपुरोधसोस्तनययोस्तौ बेदयामासतुः ॥ए॥ विषसंपृक्तमन्नं त-न्मन्मथः श्रीपतिस्तथा // बुजुक्षितावजुदातां / जग्मतुर्यमसद्मनि॥१॥एवंप्रकारतो हत्वा / चतुरश्चतुरानपि // सोऽर्थोऽनर्थममुं कृत्वो-ड्डीय स्थानं निजं ययौ // 2 // तस्मात्सर्वोऽप्ययं राज-नर्थोऽनर्थंककारणं // पंमितास्तं परित्यज्य / प्रव्रज्याराज्यमाश्रिताः // 3 // निपीयेति गुरोर्वाचं / वैराग्यापन्नमानसः // राजा प्रबजितुमना / गुरुमापृच्छ्य नक्तितः // 4 // आगत्य नगरी चंपां / निजे राज्ये बलादपि // अनिबंतं सुतं स्वीयं / करकंमुमतिष्टपत् // 5 // नानाविधे धवलमंगलगीतगाने / चंपाचतुःपथपथादिषु जायमाने // दीक्षामनेकविधनागरिकादिलोकैः / साकं नृपो जगवतां सविधौ प्रपेदे // 6 // प्रणम्य तातं व्रतमाश्रितं यति / सदश्रुनेत्रः करकंमुनूपतिः // आगत्य राज्यं निजकं च पैतृकं / प्रपालयामास पितुः पथानुगः // 7 // स प्रतापी यशस्वी च / प्रकृत्या गोकुलप्रियः // अन्यदा गोकुलं प्राप। गवां दर्शनहेतवे // 7 // कोमलोज्ज्वलसुस्निग्ध-रोमराजिविराजितं // सौम्याकारं सोमरूपं / स्फुरत्कातिकरंबितं // ए // कन्यकास्तनववृत्तो-गबबंगविभूषितं // घटितं म्रक्षणेनेव / मंमितं शु. ...PD.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जखदणैः // 10 // एकं गोवत्समालोक्य / लोकलोचनहर्षतः // गोपालानाह नूपाल-धुंब- / / न्नुत्पाव्य तन्मुखं // 11 // त्रिनिर्विशेषकं // जो गोपाला न दोग्धव्या। मातास्य सुजगावचरित्रं तेः // यथारुच्येष पातव्यो-ऽन्यासामपि गवां पयः // 15 // राजादेशममुं प्राप्य / राजपुत्रमिवादरात् // गोपालाः पालयामासु-स्तं वत्सं वत्सलाशयाः // 13 // गर्जन्नन्यान् बलीबदी-श्चमान् संमांश्च मर्दयन् // ककुंजान् पिबलबायः / स्थूलकायो निरामयः // 14 // सुतीक्ष्णशृङ्गः शुत्रांगो। गोष्टांगणविनूषणं // स एव वृषलीजूतो। राज्ञान्येयुर्विलोकितः // 15 // युग्मं // जातो मनसि संतोषः / प्रोक्तं तेषां पुरः पुनः // लो गोपाः साधु साध्वेष / नवतिः प्रतिपालितः // 16 // इति स्तुत्वा नृपो दत्वा / दानं तेभ्यः प्रमोदनाक् // आनयन्गतिस्तं / वृषनं पुत्रवत्स्पृशन् // 17 // स्वकीयेनैव हस्तेन / सौवर्ण शृंखलं गलें। अंबध्नाद् घुघुरांश्चापि / सौवर्णाश्चरणादिषु // 27 // लोकान् सर्वान् समाहृय / नूपतिः प्राह जो जनाः // सर्वत्रास्खलितः सन्मे / संमोऽयं विचरिष्यति // १ए। वर्जयिष्यति योंगुख्या-प्येतं स्वेछा| विहारिणं / निर्ग्राह्यः स मया नूनं / मान्योऽपि क्रूरचौरवत् // 20 // चतुरशीतिचतुःपथम- / ' SaradhakTrust APP.AC.Gunratnasuri M.S.... Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ए प्रत्येक जो मितां / गुमघृतादिकवस्तुपरंपरां // अथ सुखादपि संचरतीलया। प्रकुरुते न हि कोऽपि निवारणां // 1 // .... कियत्यपि गते काले / स एव वृषनोऽनवत् // जराजर्जरिततनू / रोगोरगनिपीमितः॥ | // 25 // अपश्यन्नगराधीश-स्तं संमें नगरांतरे // व्याकुलो गोकुलं गत्वा-पश्यदेकं जरजवं // 23 // नूपो गोपानुवाचैवं / कुत्र मे पुत्रसन्निजः // इनवत्क्रीमति स्वैरं / सांप्रतं वृषनोत्त मः // 24 // तैरवाचि महाराज / जराजर्जरितोऽधुना // स एवैतादृशीं ताव-दवस्थां प्राप.फुःस्थितः // 25 // युद्धंगणस्स' मज्जे / ढिकियसदेण जस्स नऊंति // दित्तावि दरियवसहा / सुतिरकसिंगा समावि // 26 // पोराणियगयदप्पो / गलंतनयणो चलंतदिसमुहो / सो चेव श्मो वसहो / पम परिघट्टणं सह // 27 // गलितोरुककुद्देशं / स्फूटीजूतास्थिपंजरं // गलबालाकरालास्यं / वायसैाकुलीकृतं // 27 // अनेकत्रणबिज्राम्य-न्मक्षिकाकुलसंकुलं // जरजवं तमालोक्य / राजा वैराग्यमासदत् // श्ए // युग्मं // विषादापन्नचित्तेन / चुपेन प... रिजावितं // असारः खलु संसारः / खलप्रीतिवदस्थिरः // 30 // विद्युझतेव जीवायु-यौवनं || Jun Gun Aaradhak Trust .P.P. AC: Gunratnasuri MS Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक जलबिंदुवत् // आतपाक्रांतसिंहस्य / लोलावच्चपलं बलं // 31 // एवं वैराग्यमापन्नं / स्वयं लोचं विधाय च // प्रत्येकघुः संजातः / करकंमुनरेश्वरः // 35 // संजातजातिस्मरणः। स्मृ चरित्रं तपूर्वनवो नवात् // विरक्तो मोहनिर्मुक्तः / स्वयं दीदां गृहीतवान् // 33 // देवतादत्तलिं. गेन / निःसंगेन महात्मना // बिजहे पृथिवीपीठे / राजर्षिकरकंमुना // 34 // सयं सुजायं सुविजत्तसिंग / दळूण गावं खलु गुठमज्के // रिहिं अरिकिं समुपेहियाणं / कलिंगरायावि | समिक धम्मं // 35 // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे करकंसुवर्णनो नाम प्रथमः प्रस्तावः समाप्तः. ॥अथ द्वितीयः प्रस्तावः प्रारज्यते // अथाद्वितीयस्य गुणैहितीय-प्रत्येकबुझहिमुखोत्तमर्षेः // वये चरित्रंसुतरां पवित्र-मेनौलताया लवने लवित्रं // 1 // समस्तरत्नादिखनिप्रधानः / सम्स्ति सुग्रामविराजमानः // धान्यैर्धनैषितभूप्रदेशः / पंचालदेशः शुजसन्निवेशः // 2 // अधिष्ठितं यन्न पुरंदरेण / न दानवारिप्रजया समैतं // अप्यूर्वलोकं यदधश्चकार / तत्तत्र कांपिठ्यपुरं वजूव // 3 ॥जयानि // PP , Mgratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धस्तत्र बनूव भूपः / शुज्रप्रनो यस्य यशोमरालः // रिपुप्रियासांजननेत्रवारि-सरस्सु नित्यं / / / कृतखेलनोऽपि // 4 // गुणमालानिधानास्य / नृपतेः पट्टपत्न्यनुत् // गुणमालां दधानापि / या नात्माश्रयदोषनाक् // 5 // एको पूतोऽन्यदा नाना-देशमालोक्य संसदि // समागतो नरेंजेण / पृष्ट एवं कृतादरः ॥६॥श्तो पूत प्रभुतेषु / ब्रांतोऽसि नृपसद्मसु // आश्चर्यकारिकिं किंचि-तत्र दृष्टं त्वया नवा // 7 // तेनोक्तं चित्रकारिण्यो / विचित्रचित्रचित्रिताः॥ चित्रशाला मया राजन् / दृष्टा अन्यमहीनुजां // 7 // तानिर्विना न ते धामा-निराममजिजासते // शोजनांजनरेखानि-मंगाया श्व लोचनं // ए // इत्याकर्ण्य नृपो नाना-जनानाहृय तत्क्षणं // चित्रशाला निवेशाय / नूमिशुधिमकारयत् // 10 // अथ मां खनतां तेषां / ज्योतिज्योतितदिक्तटः // मुकुटः प्रकटो जर्छ / रत्नराजिविराजितः // 11 // तैः समादाय साश्चर्यैः / स नूपाय समर्पितः // सोऽप्युत्सवैर्नवैर्दिव्यं / जव्यरीत्या तमर्चयत् // 12 // शिरस्योरपयामास / तत्प्रनावादसौ नृपः // हिमुखो दृश्यते तत्र / मुख्यस्य प्रतिबिंबितं // 13 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Guri Aaradhak Trust Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक तत्रान्यदा समायातो / मुनिनिघुमावनिः // ज्ञानाकरो नरेंप्रेण / वने गत्वा ,नमस्कृतः // // 15 // पृष्टश्च देशनाप्रांते / जगवन्नेष नासुरः // सुराणामसुराणां वा / किरीट इति मे मतिः // 16 // परं देवस्य कस्यैष / विशेषाञ्च कुतो जुवि // प्रयातस्तत्वरूपं. मे / निवेदय वि| दास्पद // 17 // ततस्तंपोधनः प्राह / कृतसंशयशोधनः // यशोधनधराधीश / शृणूदंतममुं समं // 17 // तथाहि नगरी तामलिप्तीति / विद्यतेऽत्र गरीयसी // धर्माब्जिन्यामलिस्तत्र / तामलिः श्रेष्टिरामजूत् // १ए // सलौकिकेन वैराग्य-रंगेणादाय तापसं // तं तस्थौ पुरोपांते / तप्यमानस्तपोधनं // 20 // पुरुषाहारमानं स / नेयमादाय पत्तनात् // गत्वा तपोवने नागां-श्चतुरः कुरुते सदा // 1 // तत्रैकं जलचा रिज्यः / स्थलचारिषु चापरं // तृतीयं व्योमचारिन्यो। द. ते नागं स तापसः // 12 // एकविंशतिवारं स्वं / भागं प्रदाय वारिणा // षष्टिवर्षसहस्रा‘णि / स जुंजानस्तपोऽकरोत् // 3 // कुशस्त्रस्तरसुप्तोऽसौ / प्रांते जीवदयापरान् ॥र्यासमितिसंयुक्तान् / ददर्श मुनिपुंगवान् // 24 // धन्या एते तपस्तथ्यं / सर्वजीवदयापरं // एषा P.R.AC.Gywotoasuri M.S.. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं मेव मया हाहा / मौढ्यालाचीर्णमीदृशं // 5 // इत्येवं चिंतयन्नेवं / संपूर्णायुर्विपद्य सः // उत्पेदे प्रतिपातालं / चमरेंसोऽसुरेश्वरः // 16 // रत्नसिंहासनासीनो / मंत्रिदपरिवृतः // नानानागांगनावीज्य-मानचामरकंबरः // 7 // उध्धृतछत्ररोचिष्णुः / सुदीप्तांगस्तपोबलात्॥ स प्रयुक्तावधिज्ञान / उर्वलोकमलोकत // 27 // पश्यन्नूज़ देवलोके ।सुधर्मासंसदि स्थितं // सुरेंचं स्खशिरोन्यस्त-पादं ज्ञानेन दृष्टवान् // शए // रोषवांश्चिंतयामास / क एष मम मस्तके // न्यस्तपादः स्वस्थचित्तो / मुमूर्षुर्मूर्खधीः स्थितः // 30 // तदितः सांप्रतं गत्वा / दः शयित्वा खविक्रम // पूरीकरोम्यमुं तस्मात् / पातयाम्यथवासनात् // 31 // स सानाध्यक्ष माचख्यो / स्वानिप्रायं रुषातुरः // अथासुराः सत्तामुख्या। मतिमंतो बनाबिरे // 32 // देवेंद्र कालतोऽनंता, स्थितिरेषास्ति शाश्वती // सौधर्मेऽपदौ स्यातां / चमरेंशिरःस्थितौ // // 33 // चमरेंद्रः पुनः प्राह / चमरेंद्राः पुरातनाः // सर्वेऽपि निर्दला जाताः / सोढवतो यदीदृशं // 34 // परं पराक्रमधरं / क्रमेणाक्रम्य मामयं // कीदृशं बनते देवा-स्तहोकध्वं कु. .: तूहलं // 35 // छात्रिंशतकसंख्यानां / विमानानामधीश्वरैः // लौश्चतुरशीत्या च / देहर- || Jun Gun Aaradhak Trust .RP.AC.Gunratnasuti M.S. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं दापरायणैः // 36 // चतुर्निरधिकाशीत्या / सहरिंद्रसंनिनैः // सुरैः सप्तमहानीकैः / शतानि नाकिनायकैः // 37 // अहर्निशं सेव्यमानं / छारबछात्रमुप्रियं // श्रितमुच्चैःश्रवोश्वेनाखंमिताझं त्रिविष्टपे // 30 // नूतलाखिलपाताल-विमर्दनमविक्रम // सौधर्मे सुखार्थीकः / शुधबुद्धिर्विरोधयेत् // 35 // चतुर्जिः कलापकं // यस्योपरि स रुष्टः सन् / वज्रं मुंचति दारुणं // स देवो दानवो वापि / षएमासानाकंदकृघ्नवेत् // 40 // इत्येवं तेषु जम्पत्सु / ज्ञातव्यं सांप्रतं बलं // चमरेंलो वदन्नेवं / वार्यमाणोऽपि निर्ययौ // 41 // दणानिर्गत्य पातालादूतलाञ्चोपरि व्रजन् // सभां दोजयितुं देवि / रूपं चक्रे महत्तरं // 42 // स्वाजाविका अ. लंकारा–श्चमरेंजस्य देहतः // निपेतुः सकलाजूमौ / केयूरमुकुटादयः // 43 // लक्षयोजन-/मानं स / श्यामं क्रूरतराकृतिः // रूपं विकृत्य सौधर्म-सजायां समुपस्थितः // 4 // तिलोत्तमादिपात्रेषु / नृत्यं कुर्वत्सु लीलया // हूहूतुंबरुमुख्येषु / गायत्सु मधुरखरं // 45 // दिव्येषु वायमानेषु / वादित्रेषु सुरेषु च // चित्रालिखितवृत्त्यैव। कुतूहलविलोकिषु॥ ४६॥श| कस्मादेत्य दैत्योऽसौ / सादादंजनपुंजवत् // श्रीसुधर्मासनास्तंनं / तामयामास पाणिनाnam || Jun Gun Aaradhak Trus! P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक - चरित्र त्रिनिर्विशेषकं // तत्रादृश्यानिघातेन / रूपेण दोनकारिणा // किमेतदिति सातका ।कांदिशीका सजाजवत् // 40 // ब्रह्मांमस्फोट एषोऽभू-विंचोत्पाद्य जनाचलः // अत्र केनापि निःदिप्त / इत्याशंकापराः सुराः॥४ए // प्रपलाय ततः स्थाना-च्चेबुः समांतचेतसः // देव नो रद रद्देत्या-येक एवारवोऽजनि // 50 // जनिताखिलवैत्रासं / पुरालोकं दुरासदं // तं वी. क्ष्यावधिनासाक्षी-त्कोऽयमस्तीति देवराट् // 51 // ज्ञातव्यतिकरः स्फार-मत्सरः सोऽमरेश्वरः // प्राह रे चमोऽसौ / मां पातयितुमागतः // 55 // दणमामथ स्थेयं / वदन्नेवं खपाणिना // ज्वालामालाकरालं खं / दांनोव्यस्त्रं मुमोच सः // 53 // श्रुतप्रजावं मंत्रिन्यो। दृष्ट्वा तत्तादृशाकृति // आपतजमालोक्या-नश्यङ्गीतोऽसुरेश्वरः // 54 // महता तेन रूपेण / पलायितुमनीश्वरः // अल्पमपं वपुश्चके / तावद्यावदभृदतिः // 55 // स नश्यन् जूत लं प्राप्तः / पश्यन् पृष्टे बिजीषणं // वजं स कांदिशीकः सन् / शरण्यं समलोकत // 56 // वीरं पर्वतवझीरं / कायोत्सर्गस्थितं प्रजुं // विधाय शरणं कूर्मा-कारः पादतलेऽविशत् // 7 // तत्पृष्टमत्यजत्रं / तत्रायातं जिनेशितुः // प्रनावाच्च निहंतुं त-मदम परितोऽनमत् // 5 // // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratrasuri M.S. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक अथेंसोऽप्यपरावृत्तं / चिराद् शाखा स्वमायुधं // प्रयुक्तावधिविज्ञानो। ज्ञातव्यतिकरोऽजनि / / चरित्रं / // एए // हाहा साधर्मिकावज्ञां / कुर्वदेतत्वमाबुधे // संवृत्त्य दमयामीति। चिंतयामास वा. | सवः // 6 // ततः सत्वरमुखाय / प्रस्थाय जिनसंनिधौ // गत्वा नवा प्रचुं नक्त्या। वजं प्रत्यादुदे हरिः // 61 // ऊचे च चसरेंप्रेतो / बहिरागछ निर्नयः // साधर्मिकोऽसि संजातः। श्रीवीरश्रयणाश्रयात् // 65 // श्रुत्वेति चमराधीशो / निहृत्य जिनपांहितः // कृतखानाविकाकारः / श्रीवीरं ज़क्तितोऽनमत् // 63 // महता स्पर्धमानं तं / झावा स्वामिनमाकुलः // चमरेंद्रपरीवारो / अमंस्तत्रागमत्तदा // 34 // उबलन्महतीनक्ति-यथाशक्ति जिनेशितुः // पुरस्तादकरोन्नाट्यं / साकें परिकरेण सः // 65 // अथासुरांगना नाना-नृत्यांते मधुरस्वरं॥ श्रीमहीर जिनेंजस्य / गुणान् गायितुमुद्यताः // 66 // जय हेमसमानशीर वीर। जय मेरुमहीधरसारधीर // जय पातकरेणुमहासमीर / जय दुःखदवानलमेघनीर // 67 // जय जंतु शरण्य वरेण्यपुण्य / जय मानवदानवदेववर्ण्य // जय गांगतरंगयशोऽनिराम / जय कामविजं- || | जनधारधाम // 6 // जय मेरुमहागिरिकंपनेश / जय पादपवित्रितजूप्रदेश // जय निर्जय- || / Jun Gun Aaradhak Trust .'pp.Ac. Gunratnasuri M.S. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जर्जरजावकार / जय खंमितपंमितमानजार।॥६ए॥ जय सोढविमूढ दृढोपसर्ग।जय सेवकवर्ग कृतापवर्ग ॥जय गौरगुणावलिवर्धमान जय देवजयापरवर्धमान // // इत्यादिस्तुतिभिः स्तुत्वा चरित्रं भावयित्वा च नावनां॥ विरताखसुरस्त्रीषु।श्रीवीरं तौ प्रणेमतुः॥७॥अन्योन्यजातसौभदौ / परिवारसमन्वितौ // सौधर्मेंद्रचमरेंौ / खं स्वं सद्म समापतुः // 72 // अथ ये चमरेंद्रस्य / गतस्त्रिदिवंप्रति // ब्रष्टा आसन्नलंकाराः। किरीटस्तेविहापतत् // 73 // विपूरतरपातालं। जगामेति जुवोंतरे // सप्रजावोऽयमिति नो। विना जाग्यं स्फुटोऽजवत् // 7 // सांप्रतं तव राजेंड। जाग्यादाविरजूदयं // अथैतस्य प्रनावेण / त्वमजेय्योऽसि जुजां // 5 ॥श्रुत्वेति द्विमुखो राजा। प्रणम्य मुनिपुंगवं // आजगाम निजं धाम / प्रमोदजरमेदुरः // 6 // कालेन चित्रशाला स / चित्रकारकपूरुषैः // समाप्य शोजने घने / प्राविशत्तत्र नृपतिः // // 7 // अथान्यदा महाराझी / गुणमालां विषादिनीं // विनायवदनां दृष्ट्वा / किमीगिति पृष्टवान् // 7 // सा प्राह प्रिय ते राज्य-प्रसादादस्ति मे सुखं // सुता अप्यद्भुताः सप्त / सप्तसप्तिसमौजसः // ए // परमेकापि. नो पुत्री / पवित्रीकरणक्षमा // विवाहाद्युत्सवारने / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्र श्रीमाता निजवेश्मनः // 70 // विहस्याथ नृपः प्राह / परगेहविषया // पुत्र्या खगेहशोषिण्या। प्रिये किं नाम साध्यते // 1 // जायते सह दैन्येन / वर्धते वरचिंतया // भवेत्कुलकलंकाय / याल्पदोषेण सूषिता // 2 // गुणमालाह नैकांता-सुता कुलकलंककृत् // सर. खतीव कापि स्या-त्कुलोन्नतिविधायिनी // 3 // तथाहि___श्रीवर्धनपुरे राजा / जयवर्धन इत्यनृत् // बुद्धिवर्धननामा च / मंत्री तस्य प्रशस्यधीः॥ // 4 // जायाजायत सद्बुद्धि-मैत्रिणो बुद्धिसुंदरी // तत्कुतिकमलोद्लूता। पुत्रिका जूत्सरस्वती // 5 // समस्तान्यस्तविद्यां तां / सुतामुनिन्नयौवनां // विवादयितुमारेने। पितात्यंतं महोत्सवं // 6 // समस्तनगरोद्ध-तोरणै रत्ननूषिजः // पुरी रत्नमयीं कृत्वा / परमामबरं व्यधात् // // आकार्य सकलं लोक-मेकेन श्रेष्टिसूनुना // सुतां व्यवाहयत्स्वीयां / दुदहानमुदारधीः // // अथो नोजयितुं नूपं / मंत्र्यामंत्रयितुं ययौ / तावदूचे सुता तात। नाकार्योऽत्र नृपस्त्वया // ए // राझामागंबरं दृष्ट्वा / चनुश्चलति लोजतः // विसृज्याडंबरं सर्व / जोज्य आकार्य भूपतिः // ए // स तथापि महत्त्वेच्छ-स्तदैवाकारयन्नृपं // सोऽपि || Jun Gun Aaradhak Trust PP.Ac:Gunratnasuri M.S. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ eme तत्तादृशं दृष्ट्वा / विमानसदृशं गृहं // // सर्वखमप्यदो मंत्री / दत्ते जुक्ते ममैव हि // ए.।। वं च जितचित्तोऽपि / किंचिदमुक्त्वा गृहं ययौ // ए // वैवाहिकविधिं सर्वा / स समाप्य सनां ययौ // बले पातयितुं राजा। दंमनार्थीत्यनाषत / ए३ // कः कृतज्ञः कृतघ्नः कः / को मूढः को विचक्षणः // मंत्रिनेतत्स्फुटं ब्रूहि / निग्राह्योऽस्यन्यथा पुनः // 4 // विचार्य कथयिष्यामि / खामिन्निति निवेद्य सः // प्राप सो विना स्फूर्त्या / मनसोऽर्त्या निपीमितः // 5 // नोजनावसरेऽतीते-ऽप्यनुत्तिष्टति चिंतया // ताते सरस्वती पुत्री / समागत्येत्यना. षत // ए६ // तात जातमहं मन्ये / बलं त्वयि नरेशितुः // यतश्चिन्तातुराकारं / वदनं तव वीक्ष्यते // ए७ // मंत्रियोक्तं ततः सर्व। स्वरूपं तत्पुरस्तया // उक्तं तात नृपाहुतिः। पूर्वमेव निवारिता // ए // परं नवंतु निश्चिन्ता / नवंतः प्रातरुत्तरं // वचसोऽस्य प्रदास्यामि / सम्यक्कुर्वन्तु जोजनं // एए॥ अथ निश्चिन्तचित्तोऽसौ। जोजनं विधिवट्यधात् // प्रातः सुता सहादाय / नरराजसत्तां ययौ // 100 // अन्नपिएकीप्रदानेन / लोनितं श्वानमेककं // सहादाय ययौ बाला-कारयद्रजकं तथा // 1 // राज्ञा निवेदितं मंत्रिन् / पृष्टमर्थ समर्थय।। semeeyoneypr P.P. Ac. Gunatrasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र 100 / ऊचे मंत्री महाराज / दास्यत्यस्य सुतोत्तरं // 5 // एवमस्त्विति राझोंके। भूपमाह सरस्वती / / / देवाकर्णय ददोऽयं / रजको मूढधीः पुनः // 3 // ममायं जनकः सोऽयं / कृतज्ञः कुर्कुरः || पुनः // कृतघ्नश्च महाराज / इत्युक्ते स चमत्कृतः // 4 // युग्मं // ऊचे कथमिदं वत्से / प्राहैं सा शृणु भुपते // रजकोऽयमनेकेषा-मादत्ते वसनावलीः // 5 // पुनः प्रदाय सर्वेभ्यः / / स्वं स्वं दन्ते किलांशुकं // अतोऽयं रजको ददो। मूढधीमत्पिता पुनः // 6 // वस्तून्यादाय लोकेन्यो / याचित्वा निजमंदिरे // परमाम्बरं चक्रे / सुतुबप्रविणोऽपि यः // 7 // अल्पपिएमीप्रदानैनं / मन्यमानो महत्तरं // उपकारं समभ्येति / कृतज्ञस्तेन कुकुरः // 7 // राज्यकार्यविधौ सजा-चित्तेऽस्मिन्मम तात // कुविकल्पं मुधा कुर्वन् / कृतघ्नस्तु नराधिपः // 5 // सरखत्या इति वाक्यं / युक्तं श्रुत्वा नरेश्वरः // संतुष्टो मंत्रिणं पुत्र्या। समं दानादतोषयत् // 10 // तस्मै व्यापारजारं च / पूर्वस्मादधिकं ददौ // तदेवं देव काचित्स्या-त्कुलौन्नत्यकरी सुता // 11 // सा च मे नास्ति कापीति / चिंता चेतसि वर्तते // तत्प्रसीद प्रजो पुत्र्यु-त्पत्युपायं समादिश // 15 // अथ द्विमुखराजेन / जणितं देवि तर्हामुं // तनावसदनं देवं / / Jun Gun Aaradnak True P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र मदनाख्यं त्वमर्चय // 13 // इत्थं नाथ करिष्यामि / प्रतिपद्येति सा तथा // कुर्वाणा तत्प्र- || जावेण / गर्नवत्यचिरादभूत् // 14 // खप्नेऽपश्यदसौ सारां / पारिजातस्य मंजरीं // निर्जरा. मिव सपूपां / कालेनाजनयत्सुतां // 15 // अतः प्रतिष्टितं नाम / तस्या मदनमंजरी ॥पितृल्यामुत्सदैव्यैः / पुत्रजन्मोत्सवाधिकैः // 16 // अथ सा पंचधात्रीनिः। पाठ्यमाना प्रव र्धते // नरेंजमंदिरे मरौ / कल्पमोरिव मंजरी // 17 // अथ द्विमुखराजस्य / सनां संदेशहारकः // आगान्मालवदेशेश-चंगप्रद्योतनूजुजः॥ 27 // उवाच स महाराज / प्रेषितोऽहं त्वदंतिके // चंम्प्रद्योतभूपेन / तेनादिष्टं तवास्त्यदः // रए // मुकुटोऽयं त्वया प्रेष्यः / शेषार्थकुशखबुना // मबीर्ष एव नात्येष / खणे रत्नमिवोत्तमं // 20 // श्रुत्वेति छिमुखो राजा / विहस्याह ससाहसः // ददाम्येतत्तवेशाय / स चेद्दत्ते मदर्थितं // २१॥किमर्थयसि तब्रूहि। / तेनेति निवेदिते // राजाह तर्हि ते स्वामी / दत्ता वस्तुचतुष्टयं // 25 // हस्तिराजोऽनलगिरि-रग्निजूतिस्तथा रथः // लोहजंघानिधो पूतः / शिवादेवीति दीयतां // 3 // वृतः प्राह महाराज / चमप्रद्योतनूजुजः // राज्यसर्वखमप्येत-तत्कथं ते प्रयचति // 24 // उक्तं | . Jun Gun Aaradhak Trust .P.P.AC. Sunratnasuri M.S. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक हिमुखराज्ञापि / प्रजावविनवालयः // राज्यसर्वखमप्येष / मुकुटः कथमर्थ्यते ॥२५॥तेनो तं नूप चौराणां / राज्ञां चाधिक्यशालिनां // बलिनां च निजं. वस्तु / कोऽपि दत्ते किमित्रया // 6 // यस्य गर्जगजघटा-देमघंटातमिहरा // विशालहस्तिशालायां / मेघमालेव लोक्यते // 7 // यस्यैकदिनमात्रेण / शतयोजनलंघकः // साक्षादैरावणाकारो। छारेऽनल गिरिगंजः // // प्रद्योतनप्रतापेन / चंप्रद्योतभूलुजा // क्षणं कटादितः कोऽपि / स्थातुं नास्ति कमः दितौ // 25 // यं सानीकं शतानीकः / श्रुत्वायांतं जयातुरः // रात्रौ विशूचिकां प्रा. प्य / गतवान् यमसद्मनि // 30 // उत्पत्तिक्यादिबुद्धीनां / निधिः श्रेणिकसंजवः॥ बवाजयकुमारोऽपि / येनानीतः स्ववेश्मनि // 31 // विहस्य द्विमुखमाप-मंत्र्यूचे मतिसागरः॥ संति पूतावदातास्ते / स्वामिनः कामिनो घनाः // 35 // अन्यस्तश्राजधर्मानि-र्वेश्यानिर्ध. मैकैतवात् // बलयित्वा किलानीत-स्तेनाजयकुमारराट् // 33 // परं तत्र स्फुटीकृत्य / बुछिकौशलमात्मनः // स्वं विमोच्य खयमसौ / प्रतिज्ञां तत्पुरोऽकरोत् // 34 // अहं बलादी|| लाधीश / उन्नमानायितस्त्वया // मध्याह्नेऽहं सफूत्कार-मुज्जयिन्याश्चतुःपथे // 35 // लवंतं | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक यदि बध्वेतो / नये तर्हि मतिर्मम // एवं निर्जयचेतस्कः / सप्रतिज्ञोऽनयो ययौ // 36 // खतातश्रेणिकदमाप-समीपे स कियच्चिरं // विलंब्य परमं सार्थ / विधाय प्राचलत्पुरात् // 37 // क्रमेणोजयिनी प्राप / वस्तुस्तोमसमन्वितः // कृतरूपपरावर्तो / दधावजयमाभिधां // 3 // तत्र तिष्टन् जनं सर्वं / तोषयन् क्रयविक्रयैः // प्रासादसन्निधौ राज्ञो / निजस्थानं विनिर्ममे॥ // 35 // चंम्प्रद्योतनामानं / खनृत्यं महिलाकृति // कृत्वा चतुःपथे नित्यं / पुरोगमकारयत् / / 40 // अनादि घृतजामानि / शस्तवस्तून्यपातयत् // उठेगमकरोन्नित्यं / स नृत्यो ग्रहिलाकृतिः // 45 ॥श्रेष्टिनोऽनयमाख्यस्य / दाक्षिण्येन न तं जनाः // निघ्नंतिस्म किंतु गत्वो -पालनं श्रेष्टिनो ददुः // 42 // सोऽपि स्वयं समागत्य / बध्ध्वारोंप्य निजे रथे // अरेऽहं चं. मप्रद्योतो / बको नीयेऽधुनामुना // 43 // पाखंमिनो जनाः सर्वे / रे रे धावत धावत // फू. कुर्वतं तमादाय / स ययौ नगराबहिः // // इत्येतत्कुरुते नित्यं / मध्याह्नेऽजयमः सुधीः // अथ पण्यांगनायुग्मं / सहानीतं शुजाकृति // 45 // दर्शयित्वा निजं रूपं / चंकप्रद्योतभू|| पति // विमोह्य विज्रमैः सारैः / प्राविशन्निजवेश्मनि // 46 // तयोः पार्श्वे निजां इती। प्रै- || - PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रहरीका पीकामारो नृपः // ऊचे सा युवयोस्य / संगं नृपतिरीहते // 7 // तदायातं नरेन्मस्य / / / मंदिरेऽस्ति रहोऽधुना // तान्यामुक्तं कुलस्त्रीणां / युक्ता नान्यगृहे गतिः // 47 // एकाकी नृप एवात्र / कट्ये मध्यंदिने किल // आयातु येन नः खामी। तदा याति गृहाहहिः / 104 ए: // मुक्त्वा लोकेषु सुतेषु / तदा नियंजनं नवेत् // सूती श्रुत्वेति गत्वा च / राज्ञः सर्व न्यवेदयत् // 50 // उक्तं पण्यांगनाभ्यां च / खरूपमजयप्रितः॥ समग्रां सोऽपि सामश्री। चके तबंधनोचितां // 51 // तत्र नूपतिरेकाकी / ,पटाादितमस्तकः // आगाताव. ज्करिति तं / बध्ध्वा निजस्थेऽक्षिपत् // 55 // अंजयः प्राचलंदयो / उज्जयिन्याश्चतुःपथे // // चरेऽहं चंप्रद्योतो / बद्धो नीयेऽधुनामुना // 53 // इत्यादिकृतपूत्कारं / नीयते पहिलो ह्ययं // उपेक्षितमिति जनै-स्तमादायाजयो ययौ // 54 // अथाजयकुमारेण / नीत्वा राजगृहै पुरै // श्रीश्रेणिकनरेंद्राय / स प्रद्योतनृपोऽर्पितः // 55 // सोऽपि प्राह महाराज / किं कर्तव्यं तवाधुना // स ऊचे स्वगृहप्राप्त-स्यातिथे हिंधीयते // 56 // श्रुत्वेति श्रेणिकदमापः / परिणाय्य निजांगजां // अमुचत्वपुरं प्राप्य / तस्थौ प्रद्योतराट् सुखं // 57 // कियत्यपि / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं जागते काले / सुसुमारपुरेशितुः // धुंधुमारनरेंजस्य / श्रुत्वांगारवती सुतां // 50 // सुरूपां या- / / चतेस्मासौ। चंप्रद्योतभूपतिः // स्त्रीलोल इति नो तस्मै / धुंधुमारनृपो ददौ // 55 // प्र द्योतः कुपितवांतः / सैन्येन महतान्वितः // प्राचलत्सोऽपि राजेंद्रः / किंचिठ्याकुलतां ययौ ! 105 // 60 // एको मंत्री निमित्ताः / शब्दग्रहणहेतवे ॥प्रेषितो नगरस्यांतः / स गत्वात्रासय बिशून् // 61 // तेऽपि नीतास्ततस्त्रस्ता / गता देवकुलांतरे // कृपया तत्र वार्तर्षि- बिजीतेति तानवक् // 6 // तं सुंदरतरं शब्दं / मंत्र्यादाय समाययौ // प्रद्योतेन समं युकं / धुंधुमारनृपो व्यधात् // 63 // जंक्वाखिलं बलं तेन / बद्धः प्रद्योतनृपतिः॥ आनीतश्च निजं वेश्म / किं विधेयं तवाधुना // 64 // इत्युक्तः प्राह त्वश्मिा -तिथेर्यझा विधीयते // अतस्तेन प्रसन्नेन / तामंगारवती सुतां // 65 // परिणाय्य विमुक्तोऽसौ। निजं धाम.समागमत् // एवं डूत तवेशस्या-वदाताः संत्यनेकशः // 66 // अथोंदायनराजेन / न्यस्ता शीर्षेऽकरावली // दासीपतिरिति स्पष्टा / तस्येत्येतन्निशम्यताः // 6 // अस्ति वीतभयं नाम / पुरं वीतनयं संदा // तस्योदायनपोऽस्ति / तत्प्रियात्प्रजावती // 6 // विद्युन्माविकृतां / / P.PAC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक % 3D | सप्त-हस्तमानां मनोहरां // चांदनी वीरतीर्थेश-प्रतिमां स ह्यपूजयत् // 6 // // प्रतिपाख्य | निजमायु-र्जगाम त्रिदशालयं // तदासी कुब्जिकानाम्नीं / प्रतिमामार्चयत्ततः // 70 // तपरित्रं त्रान्यदा समायातो / विद्यासिद्धो विशुद्धधीः // श्राजस्ता प्रतिमां लक्त्या / पूजयंस्तत्र तस्थि१०६ वान् // 1 // मंदीभूतस्तया दास्या / श्राद्धः शुश्रुषितश्चिरं // प्रसन्नःसोऽप्यदात्तस्यै / गुटिकां दिव्यरूपदां // 7 // तस्याः प्रत्नावतः साभू-दिव्यरूपा सुरीसमा // कदाचिच्चंगप्रद्योतस्तामोषीबुलाकृति // 73 // स चंचलमनास्तस्या / आमंत्रणकृते निजां // पूती प्रेषीदियं गत्वा / नृपसंदेशमन्यधात् // 14 // ऊचे सा नाग्यमेवैत-न्मम चेत्स नवेत्पतिः // परं नाहं समन्येम्ये-तया प्रतिमया विना // 35 // चंप्रद्योतभूपश्चे-स्वयमादातुमेष्यति // तदाहमागमिष्यामि / नेष्यति प्रतिमां यदि // 6 // श्रुत्वेति सा ततो गत्वा / प्रद्योतस्य न्यवेदयत् ॥प्रतिमां चांदनीं सोऽपि / कारयामास तादृशीं // 7 // तामारोप्यानल गिरौ / गजेंडे प्राचलन्नृपः // रात्रौ वीतनयउंग्रे। प्राप्तो दास्या सहामिलत् // 7 // आदाय प्र. तिमां जीव-स्वामिनस्तां पुरातनीं // नव्यां तत्र तथा मुक्त्वा / समं दास्या ययौ नृपः // P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Con Aaradhak Trust Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्रं 107 // ए॥ माल्यम्लानेरदैवीं तां / प्रतिमां ज्ञातवान् प्रगे // गंधेजस्यागमं चात्म-गजानां दोनदर्शनात् // 70 // दास्याश्चादर्शनात्स्येक-लोलं प्रद्योतभूपतिं // ज्ञात्वोदायनराद कु5-श्चातुरंगबलोऽचलत् // 1 // आगान्मालवदेशस्य / संनिधौ तावता नृपः // प्रयोतो निर्ययौ जज्ञे ।योर्युङ बिनीषणं // 7 // कृत्वा रथचामं सद्यो / मयित्वा रिपोर्गजं // लघुहस्ततयाविध्य-सूचीमुख शिलीमुखैः // 3 // गजेऽनल गिरौ विद्ध-चरणे पतिते रणे // उत्पत्योदायनो राजा / पतंतं तमुपाददे // 4 // बध्ध्वारोप्य रथे स्वीये / स स्वस्थानं समाययौ // प्रद्योतस्याथ निर्नाथं / सैन्यं नग्नं गतं कचित् // 6 // शिलीमुखमुखेनैष / रोषात्प्र. द्योतभूपतेः॥ शीर्षेऽक्षरावली न्यस्य-दासीपति रितीहशीं // 4 // प्रविश्योज्जयिनीमध्ये। प्रतिमा लातुमुद्यते // तस्मिन् सा नाचलत्स्थाना-चालितापि धनैर्जनैः // 5 // उपोषित स्थितमथो / नरें निशि देवता // ऊचे मा नय मां तत्र / नविता यापवः // 6 // अथो निःसृत्य भूपालः / प्राचलत्स्वपुरंप्रति // वर्षाकालः समायातो। मार्गनंगैककारणं // // // निवेश्य नगरं नव्यं / श्रीमदशपुरानिधं // दशभिः सह भूपालै-रुदायननृपः स्थि- || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust. . Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तः // ॥आगात्पर्युषणापर्व / सर्वधार्मिकहर्षकृत् // विधायोपोषितं राजा। पौषधवतमग्रहीत् // नए // सूपकारैरथो बरूं / चंप्रद्योतभूपतिं // प्रत्यूचे भूप किं कार्य / नवद्योग्यं नु जोजनं ॥ए॥तेनोक्तमद्य किं प्रश्न / उदायननराधिपः // यशोदयते समं तेन / जुक्तिः कार्या मयापि 100 हि // 1 // अद्य, पर्युषणापर्व / तेनोदायनभूपतिः // उपवासं व्यधादेव / तैरुक्ते स नृपो जगौ ॥एशामा विषादिप्रयोगो मे / जायतेऽयेति शंकितः ॥अस्माकमुपवासोऽद्य ।श्रावकाः किमुनो वयं ॥ए३॥ सूपकारो वचस्तस्यो-दायनाय न्यवेदयत् // मया साधर्मिकस्यास्य / धिगवा वि. निर्ममे // ए४ // विचिंत्येति समाहृय / प्रद्योतं मस्तकोपरि // बंधवा स्वर्णमयं पढें / क्षमयित्वा मुमोच सः // ए५ // उज्जयिन्यामसौ प्राप्तो / निजं राज्यमपालयत् // वर्षाकाले व्यती. तेऽयो-दायनः स्वं पुरं ययौ // ए६ // एवमादिप्रकारेण / स्थाने स्थाने नराधिपः // विखंमिताजिमानोऽपि / प्रद्योतो द्योतते कथं // ए // अथो पूत त्वया वार्यः / स्वस्वामी परवस्तुषु // सानिलाषो वध्यमानो / वधं प्राप्स्यति कुत्रचित् // 7 // बंदिनावे पुनः स्थातुं / तवेश। स्यास्ति चेन्मनः // तदा सद्यः समायातु / संना सह सेनया // एए // सोपहासमिति प्रो. // M P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते। बुद्धिसागरमंत्रिणी // सुकरं वदतस्तेऽदो / उकरं तु नविष्यति // 20 // द्विमुख| स्वास्य भूपस्य / तस्मिन्नत्र समागते // एवं वदन् नर्सितोऽन्यै-जनैर्दूतः स निर्ययौ // // 1 // प्रद्योतभूपस्य / स आगत्य न्यवेदयत् // द्विगुणीकृत्य वृत्तांतं / प्रकोपमुददीपयत् // 2 // अथो विजययात्रायै / प्रतस्थे नरनायकः // पुर्यां प्रयाणढक्कायां / वादितायां मुहुर्मुहुः // 3 // वेगवंतोऽनिलसमा / गरीयांसो गिरीजवत् // गजा अनिल गिर्याद्या / हिलकाः प्रा. चलस्ततः // 4 // निर्महारथैर्युक्ता / महांतोऽथ रथोत्तमाः // जाता दिलदसंख्याकाः / प्रद्योतेस्यानुगासिनः // 5 // पंचाशवक्षसंख्याका / अश्वा विश्वाधिपानुगाः // अजूवन भूरितेजस्का / उच्चैरुच्चैःश्रवासमाः // 7 // संग्रामाग्रेसराः साराः / खजखेटकपाणयः // पदातयोऽग्रगास्तस्य / बभूवुः सप्तकोटयः // ए // एवं स चतुरंगेण / बलेन कलितोऽचलत् // उद्नांत इव पाथोधिरचलामपि चालयन् // 10 // अपरा अपि भूपाल-श्रेण्यः सबलवाईनाः॥प्रयोतसैन्यमाजग्मु-निम्नगा श्व सागरं // 11 // संधौ पंचालदेशस्य / भूपालेऽस्मिन्नुपस्थिते // संनयासह्यतेजस्कों / हिमुखोऽनिमुखं ययौ // 15 // गर्जति रणतर्याणि / से PP.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्ययोरुजयोरपि // शब्दातमिवाकार्षु-विश्वं तध्वनिपूरितं // 13 // तत्सैन्ययुगमारेने।।। जीरुलोकजयंकरं // संग्रामारंजसंरंज / धीरां गिप्रमदप्रदं // 14 // आस्फलत्सादिना सादी। धरित्रं विषादी च विषादिना // रथी च रथिना साकं / पदातिश्च पदातिना // 15 // चीत्कारतो 110 रथोऽलदि / गजो घंटारवात्तथा // रजोंधकारे खखामि-कीर्तनात्स्वः परो जटः // 16 // श. स्त्रनिन्नेजसूजन्यो / व्यूढा रुधिरवाहिनी // प्रौढे तस्या बनूः पूरे / शिरांसि नालिकेरवत् // // 17 // चिकिले रुधिरामर्दा-त्पतत्सिंधुरसंकरैः // स्थलीजूते रथपंथा। दुर्गमो नितरामभूत् // 10 // अत्यंतप्रचुरत्वेन / चंम्प्रद्योतसैनिकाः // उत्कटानपि हिमुख-सुनटांश्चक्रुराकु. लान् // 15 // अथोत्तस्थौ स्वयं राजा। हिमुखोऽनिमुखागतान् // अरीन् पराङ्मुखीकुर्वन् / शिलीमुखसुवर्षणैः // 20 // वेगवप्रथमासीनो-ऽन्यान्यस्थानं परिमन् // एकोऽप्यनेकरूपोऽभूत् / स प्राणप्रतिहारणः // 1 // शत्रून् संत्रासयन्नाशु / सरित्पूर श्वाशुगः // केनाप्यस्खखितो मागें ।प्राप प्रद्योतसंनिधिं // 25 // तं राहुबद्रथारूढं / प्रौढं स्वर्गमनोयतं // प्रद्योतन || श्वालोक्य / प्रद्योतः कंपमासदत् // 53 // द्विमुखोऽनिमुखे शत्रो-हिगुणीनृतविग्रहं // विग्रहं / / , PP.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधे बाण-श्रेणीवर्षन्नमर्षतः // 4 // शरधाराधोरणी जिर्जर्जरं तस्य कुंजरं // विधाय किरणं || दत्वा-रोहत्तं सोऽनलागिरि // 25 // हत्वा हस्तिपकान् सर्वान् / बध्ध्वा प्रद्योतभूपति॥क्षिप्त्वा चरित्रं कदापुटे नूयः ।करिणः सारथं ययौ॥६॥ नूयः संनाशयन् वैरि-नरान् परमविक्रमः // सैन्यं निजं समायातः / स समं जयमंगलैः ॥शा निर्नाथमथ तत्सैन्यं ।प्रद्योतस्य दिशो दश॥ महदप्यगमननं / हतं सैन्यमनायकं // 2 // वाद्येषु वाद्यमानेषु ।गीयमानासु गीतिषु // दीयमानेषु दानेषु / जवत्सु प्रोत्सवेषु च ॥शए // श्रीकांपीव्यपुरं प्राप / पौरोत्तंजिततोरणं // द्विमुखस्तं सहादाय / शृण्वन् जयजयारवं // 35 // युग्मं // तत्रासौ विदधे तस्य / प्रतिपत्तिं महत्तरां // महांत उपकुर्वति / कृत्वा मानाभिमर्दनं // 31 ॥स्वनावाद पिसपां / यौवनात्तु विशेषतः॥ संचरंती गृहे साक्षा-बक्ष्मी मूर्तिमतीमिव // 32 // निर्जरीनिर्जयकरी / सौनाग्यतरुमंजरी ॥स प्रद्योतोऽन्यदाऽजादी-त्कन्यां मदनमंजरीं // 33 // युग्मं // स एवं चिंतयामास / मदनातुरमानसः // एषा लेखांगनाश्रीका / लन्यते यदि वदना // 34 // तदा बंधनमप्येत | -स्यात्सुखैकनिबंधनं // विनानया मया प्राणा / धियंतेऽथ वृथैव तत् // 35 // युग्मं // या are P.P.AC. Gunratnasuri M.S.' Jun Gun Aaradhak Trust Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो च्यमानामिमां सजा / स्त्रीलोल इति दोषतः // न दास्यति बलं किंचि-न्न चलत्येव मेऽधुना || // 36 // इति चिंताचितावहि-दह्यमानमना धनं // विछायवदनः वीण-क्षीणदेहः सदानपरित्रं बत् // 30 // युग्मं // हिमुखस्तं तथा दृष्ट्वा / पृष्टवान् दुःखकारणं // प्रयोतोऽपि कथंचित्तं / खानिप्राव न्यवेदयत् // 30 // अथ सजा प्रसन्नस्तु / पुत्रीपाणिग्रहोचितां // सामग्री कारयामास / समग्रामचिरादपि // 35 // महेन महता लोऽपि / परिणाय्य निजांगजां // गजादिदानसन्मान-र्जामातरमतोषयत् // 40 // अत्यंतं तेन सत्कृत्य / चंम्प्रद्योतभूपतिः // विसृष्टः प्राप्तवान् राज्य-मुजयिन्यामपालयत् // 41 // द्विमुखक्षितिपालस्य / श्रीकांपील्यमहापुरे // प्रतिपालयतो राज्यं / वत्सरा ऐयरुर्घनाः // 42 // अथान्यदा समायातः / शरकालस्तदा जनाः // बारेलिरे महीयांसं / सम्यगिंद्रमहोत्सवं // 43 // राजा पौरजनैः साक-मिंद्रस्तंनमनहत् // यारोप्य कारयामास / प्रतिष्टां सत्तमैः // 4 // सुकोमलैः पहकूलैः परितः कृतवेष्टनः // शुजाकारैरलंकारैः / सोऽलंकृतस्ततो बनौ // 45 // नाव्यगीतप्र| बंधेन / सुगंधेन च वस्तुना // करमाख्यमुख्येन / तत्पूंजामकरोजानः // 46 // अपूजयत्व PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P - - ये राजा / नानोपायनपाणिनिः॥ प्राणिनिः सह चक्रे च / विश्वाश्चर्यकृदुत्सवं ॥४७॥स एवार्थ गते काले / पतितः पृथिवीतसे // लोकैः कृतपदामृष्टि-दृष्टो हिमुखनूजा // 4 // सोऽथ वैराग्यतोऽध्याय-संसारासारतामिमां // धिग् घ्यः समस्तास्ता। ह्येतस्येवास्थिराः किल // 4 // संपदश्चमवंत्येताः / परिणामसुखप्रदाः // नाकरिष्यंस्तदेतासां / त्यागं तीर्थकरादयः // 50 // एवं विज्ञावयन्नेव / प्राप्य प्रत्येकबुझतां // द्विमुखो देवतादत्त-लिंगां दीदाप्रपन्नवान् // 51 // उक्तं च-जा इंदकेचं समलं कियंतें / दहुं पमंतं पविलुप्पमाणं // रिडिं अरिति समुपेहियाणं / पंचालरायावि समिक धम्म // 55 // वैराग्यं प्रतिपन्नमानसमतिः संजातजातिस्मृतिः / संभूतोत्तमपूर्वजन्मजणितखाध्यायशुद्धस्मृतिः // मायामोहमदप्रमादरहितः साधुक्रियासंगतो। राजा:मुखो वने विहृतवान् प्रत्येकबुद्धश्चिरं // 53 // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरिते छिमुखराजर्षिवर्णनो नाम द्वितीयः प्रस्तावः संपूर्णः // श्रीरस्तु // P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 प्रत्येक ___ // अथ तृतीयः प्रस्तावः प्रारभ्यते // फणिमणिकिरणालियोतिताशाविजागो। विततदुरितवृक्षोन्मूलने मत्तनागः // प्रमदपरित्रं कुमुदखंमोबासने चारुचंयो। दिशतु शिवसुखं मे पार्श्वनाथो जिनेंद्रः // 1 // सिद्धार्थादपि संभूतो / यः प्रभूतपराक्रमः // अकंपयन्मेरुमपि / श्रीवीरः स शिवाय वः // 2 // श्तो नमिनरेंजस्य / चरित्रं कीर्तयिष्यते // जवांतरेज्य आरज्य / जो जो सच्या विजाव्यतां ॥३॥मंगलस्थालवनाति / नक्षत्रादतनूषितः॥ जंबंधिपः सुपर्वाधि-नालिकेरविराजितः॥४॥ न. रतक्षेत्रमतास्ति / क्षेत्रवधर्मशस्यनृत् // वितिप्रतिष्टितं नाम / पुरं तत्राजवत्परं // 5 // तस्मिन् दृढरथो राजा / बिमोजा श्व ताविषे // सुंदर्या सुरसुंदर्या / सह क्रीमां करोति सः॥ // 6 // समुदत्तसंज्ञोऽथ / तत्र श्रेष्टयुत्तमोऽवसत् // तन्नार्याभृत्समुश्रीः / सलावण्या समु. द्रुवत् // 6 // तयोर्जुजानयोः सौख्यं / गुणिनावंगजावुजौ // गुणचंछो गुणधर / इतिसंझौ ब भूवतुः // 7 // कखाकलापकुशलौ / मातापित्रोर्मनोरथैः // सहैव जग्मतुधि / प्रीतिमंतौ प. || रस्परं // 7 // बहिर्गतोऽन्यदा दान-शौंमो गुणधरोऽशृणोत् ॥श्रवणत्रीणकं श्लोक-मित्येकं || % 33 Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक मागधाननात् // ए // अपूर्वः कोऽपि दाता त्वं / चिरं नंद ददासि // “अविद्यमानमा प्यात्म-न्यमानं मानमर्थिने // 10 // तस्मै संतुष्टचित्तः सन् / गुणी गुणधरो ददौ // दीनाराणां पंचशतीं / दानं मानपुरस्सरं // 10 // पुत्रदानमिदं बुध्ध्वा / श्रेष्टी रुष्टमना मनाक् // आकार्य तर्जयामास / शिदायै निजमंगजं // 11 // रे पुष्ट धृष्ट नवता / समस्तमपि मामके // कष्टादुपार्जितं वित्तं / नूनं निर्गमयिष्यते // 11 ॥धनमेवं ददानोऽपि / शोजते खजुजार्जितं // परकीयं ददानस्य / तत्र पीमा न काचन // 13 // उदश्रुनेत्रः पुत्रोऽथ / पतित्वा तातपादयोः॥ अवादीस्कृतमझाना-दपराधं दमख मे // 14 // पुन वं करिष्यामि / ततस्तातः पुनर्जगौ // वत्स प्रदीयते दानं / परं परिमितं हि तत् // 15 // नत्वा गुणधरः प्राह / परदेशाय तात मां // आदिशाहं यथा तत्र / गत्वा श्रियमुपानये // 16 // उवाच सहसाश्लिष्य / गलन्नेत्रजलः पिता // मा गड वत्स कुत्रापि / शिदार्थमिदमुच्यते // 17 // तथापि मनसोऽमर्षा-अजन्यां निःसृतः सुतः॥ तेजस्वी तुरगः किंवा / तर्जनं सहते क्वचित् // // 17 // सह सार्थेन केनापि / गबन प्राप महाटवीं // यावत्तन्मध्यमागछत् / स सार्थोऽर्थः / / ...P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %D प्रत्येक / निकेतनं // 25 // तावनटिति निबाना / महाघाटी समुत्थिता // कोदमदमीनिर्मुक्त-का मखंमितविग्रहा // 2 // उत्कटा सुनटाः पेतुः / सार्थस्तै टितस्ततः // बध्वा नीता नि. परित्रं जां पह्रीं / नरा गुणधरादयः // 21 // दत्वा अव्यं जनाः सर्वे / स्वजनों चिता गताः॥ स्व स्थान परमेकाकी / तस्थौं गुणधरस्ततः // 2 // ताताझानंगवृक्षस्य / स्यादेष कुसुमोनमः चिंतयन्निति निःक्षिप्तः / कारागारे वसत्यसौ // 23 // सुजानोऽतिकदन्नानि / सहमानः पराजवान् // कष्टेन गमयन् कालं / स चित्तांतरचिंतयत् // 24 // विज्ञापितेऽथ तातस्य / हस्येऽई स्वजनैरिति // अहो विदेशं गत्वायं / साध्वीं श्रियमुपायत् // 25 // उपायंचिंतयन्नन्यं / स कारागारर वितुः // दृष्टवान् कुष्टरोगेण / व्याप्तं सर्वांगमंगजं // 26 // ऊंचे गुणधरः किं नो / त्वया पुत्रोऽप्युपेक्ष्यते // व्याधिना बाध्यमानोऽसा-वुदासीनैजनैरिव // 27 // तेनोंक्तं विहितान्यस्यौ-षधानि विविधान्यपि // परं कोऽपि गुणो नास्य / संजातो जातकस्य मे // 20 // यदि त्वं वैत्सि किंचिनो। तदेतं प्रगुणीकुरु // तेनोक्तमौषधं वेदमि। कुष्टहृद् दृष्टप्रत्ययं // 39 // श्रीफलं फलिनीकंद-इत्यायेरौषधैर्युतः // क्वाथः पीतो हरेत्कुष्टं / पुष्टं च कु. || PPP.AC..Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक . रुते वपुः // 30 // तेनोक्तमेवमेतस्य / परं पुरुषसत्तम // औषधान्यननिझत्वा-नाहं मेलयितुं कमः // 31 // अथो गुणधरेणोचे / सांप्रतं चेचिकित्स्यते // तदाद्याप्यस्ति. साध्योऽसौ / प- 1 श्चायास्यत्यसाध्यतां // 35 // तत् श्रुत्वा स्वगृहं प्राप्तः / स गेहिन्येति जाषितः // अद्य त्वं वीक्ष्यसे कस्मा-हिबायवदनबविः // 33 // तेन सर्वोऽपि वृत्तांत-स्तस्या अंग्रे निवेदितः // विमृश्य दणमाख्यायि / प्रियया प्रियया गिरा // 34 // दिनमेकममुं मुंच / मेलयत्यौषधं यथा // पश्चात्पुनरपि देप्यः / कारांतरुपकार्यपि // 35 // अथ तं प्रेषयामास / स्वकीयजनसंगतं // औषधानि समानेतुं / कारागारस्य रक्षकः // 36 // बज्राम सुचिरं गृह्णन् / यानि तान्यौषधानि सः // तावद्यावत्तमिस्रागा-त्तमिस्रकुलसंकुला // 3 // सुप्तावेकरतो यावनिग्या मुजितो जनः // स तावहागुरामुक्त-मृगवत्प्रपलायितः // 30 // अचिरेणापि कालेन / पूरं गुणधरोऽगमत् // जनोऽपीतस्ततः पश्यन् / विलक्षश्च स्वमास्पदं // 3 // पुरं सुरपुरं प्राप / स सुरालयभूषितं // अस्य श्रेष्टिनों हट्टे / गत्वा गुणधरः स्थितः // 40 // ह. दृसत्कानि कार्याणि / स्वयं चक्रे स पुत्रवत् // तुष्टेन श्रेष्टिना नीतो / निमंत्र्य निंजमंदिरं॥ P.P.AC. GunratndsuriM.S. - Jun Gun Aaradhak Trust Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक 110 प्रत्येकी // 41 // नानजोजनतांबूल-मुख्यां गुणधरस्य सः॥ अकरोत्प्रतिपत्तिं यत्सर्वत्र वर्णम य॑ते // 42 // त्रिंशद्दीनारमात्रं स्वं / मासे मासे समर्पयन् // अरदत्वसमीपे तं / श्रेष्टी सुतमिवादरात् // 43 // अथो चतुषु मासेषु / व्यतीतेषु बताण सः॥ ताताऽज्ञातकुलस्यापि / त्वया मे निर्ममेन किं // 44 // अत्राणस्य मम त्राणं / विहितं जवता बत // श्यंति दिवसान्यत्र / सुख्यस्थां त्वत्प्रसादतः // 45 // त्वं सन्मार्गतरुश्चाहं / पथिको यामि सांप्रतं // न श्रेष्टीति विज्ञप्तः। कथंचित्तं विसृष्टवान् // 46 // तेन अव्येण वस्तूनि / गृहीत्वा चखितस्ततः // संप्राप्तो विजयपुरं / वाणिज्यं तत्र सोऽकरोत् // 4 // तत्रैको वणिगेकांते। कात्युत्करकरवितं // तस्याग्रे दर्शयामास / रत्नमेकं महागुणं // 4 // तद् दृष्ट्वा चिंतितं तेन / विषभूतादिदोषहृत् // कुद्रोपऽवदारिय-विद्रावणविचक्षणं // 45 // श्दं चेबज्यते रत्नं / तदान्यत्किं विलोक्यते // एतदीयमिदं करमा-दुपायलप्स्यते मया // 50 // इति चिंतातुरः सोऽभू-हिबायवदनबविः // सुप्तमूर्छितवत्तस्थौ / निश्चेष्टोऽस्पष्टकष्टनृत् // 55 // तं तथाविध|| मालोक्य / सशंकहृदयो वणिक् // उवाच जोः किमेवं वं / चिंतातुर श्वेदयसे // 55 // || P.P.AC. GunratnasyriM.S. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / तेनोक्तं नास्ति मे चिंता / ततो वणिगजापत // वदं मित्रास्य रत्नस्य / गुणान् दोषांश्च द- / विण // 53 // प्रस्तावे कथयिष्यामि / तेनैवमुदिते सति // सादरं पृष्टवान् येन / पीमाकृचरित्रं जम्मस्फुटं // 55 // अत्रांतरे हयो हेषा-वं कुर्वन् बिभीषणः // संशोजितपुरस्तत्रै-वागतोऽतर्कितागतिः // 55 // तदेशवर्तिनो लोका / नष्टा गुणधरोऽपि च // तद्रत्नग्रहणोपायांश्चिंतयामास नूरिशः // 56 // ततो वणिग्गृहं गत्वा / तदासी पृष्टवानिति // त्वत्स्वामिना च यसब्धं / तात्नं वेत्सि किं न वा // 57 // तयावाचि मम स्वामी / निलपवीं गतोऽनवत् // श्दं मौल्येन पल्लीश-शिवपार्श्वगृहीतवान् // 5 // तीक्ष्णबुद्धिर्निशम्येति / लब्धो. पायः कियत्यपि // गते काले मिषं कृत्वा / स तद्गृहमुपाययौ // ५ए // दत्तासनः स एकांते / नीत्वा गुणधरं जगौं / पूर्वपृष्टं ममार्थ जोः / कथयावसरोऽस्त्ययं // 60 // ऊचे गुणधरेणैवं / शुबुद्धिजिरंगिनिः॥ आदरादत्तवस्तूनां / गुणो दोषश्च नोच्यते // 61 // धनित्वं निर्धनत्वं वा / सुखं वा दुःखमेव वा // यत्प्राप्यं जायते यस्य / संयोगस्तस्य तादृशः // 6 // गंजीरार्थमिदं वाक्यं / युजानं तं वणिग्जगौ // अस्पष्टं वचनं किं त्व-मुन्मत्त श्व जाषसे // || Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 63 // सदोषं चेदिदं वेसि / स्फुटं तत्किं न कथ्यते // ध्रियते मौलिवन्मौलौ / किं वहिरतिनावरः // 65 // अथो गुणधरो मौनं / दणं स्थित्वा बलादिव // जाषितोऽजापतास्मानि-रयुक्तं न हि कथ्यते // 6 // प्राणिपीमा नवेधेन / परो येन च पीड्यते // आत्मा च पतति क्वेशे / न तजापति पंमिताः // 66 // तथापि कथ्यते किंचि स्वदत्याग्रहतो, म. या // वहिवद्विद्यते दीप्र-मिदं खस्थानहानिकृत् // 6 // एतस्यैव प्रजावेण / प्राप्तोऽस्मयेतादृशीं दशां // यतो मम पिता पूर्व / कुतश्चिदिदमाप्तवान् // 60 // इदं प्रदीपवद्दीनं / दृष्ट्वा मम पिताजवत् // विमोहितोऽतियत्नेन / स्वपार्श्वे रक्षतिम सः // 6 // एतदागमनाहा-हिनवः प्रपलायितः // चांमालागमनाबुध-श्रोत्रीयब्राह्मणो यथा // 70 // दारिद्यपीमितस्तातः / प्राहिणोन्मां सशंबलं // विदेशाय करे दत्वा / रत्नं विक्रयहेतवे // 1 // अस्थाय यावंदायातः / सह सार्थेन संचरन् // बटव्यांमुत्कटा धाटी / जिवानां तावास्थिता // 7 // तया हता जटाः केचि-इसा अन्यऽथ मानवाः // इदं च रत्नमग्राहि / ब|| ध्वा नीतोऽहमप्यहो // 73 // तर्जनक्षुत्पिपासादि / तंत्रातंत्रतया मया // सोढमेतत्प्रजावे - - P.P.AC.Gunratnasury Jun Gun Aaradhak Trus! Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाण / नष्ट्वास्मि बुटितोऽधुना // 4 // अस्मिन्मम समीपस्थे / समाधि कदाप्य भृत् // गते पु- / / नर्महाव्यांधा-विव जातं सुखं सखे // 5 // तदेतत्त्वत्समीपस्थं / दृष्ट्वा दोषजरं स्मरन् / चरित्रं जयजीतो जवत्पृष्टो / विनायवदनोऽनवं // 76 // वणिजोक्तं त्वया सत्यं / महानाग प्ररूपि तं // यस्मादेतन्मया तस्मा-देव निहाङ्पाददे // 7 // सदोषेण सुरूपेणा-प्येतेन किमु | साध्यते // सौवर्णी बुरिका तकि-मुदरे क्षिप्यते क्वचित् // 7 // तत्त्वमेव गृहीत्वैत-विक्रीणीष्व पुरांतरे // मह्य द्रव्यं प्रदातव्यं / यावदेतेन लन्यते // 7 // तेनोक्तं न करस्पर्श-मासमस्य करोम्यहं // कपिकचूलतां ज्ञात्वा / स्पृश्यते किं सुखेन्दुना // 70 // तथाप्यनिछत श्व / तस्मै रत्नमदाछणिम् // जुगुप्सवानवद्धर्षों-त्कर्षवानप्युवाच सः // 1 // नैतन्निर्लक्षणं ददो। ग्रहीष्यति गृही दितौ // तथापि तेजसा मुग्धो / गृह्णात्वेतत्तु कश्चन // 5 // इत्युक्त्वा तद्गृहं त्यक्त्वा / ब्रांत्वा च नगरांतरे // पंचाशन्निजदीनारा-नानीय वणिजे ददौ // 3 // दृष्ट्वा तान् सोऽपि संतुष्ट-स्तुष्टाव श्रेष्टिनंदनं // अहो गुणधरोऽसि त्वं / नामतो गुणतोऽपिच || // // कियन्मूल्यं समानीतं / निर्मूल्यस्यापि वस्तुनः // धिषणा तावकी ताव-वाणिज्ये / / P.P.A. Gunratnasuri M.S.I S Jun Gun Aaradhak Trust Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्रं वतिदक्षिणा // 5 // ऊचे गुणधरेणाथो / ईषद्धसितपूर्वकं // क्रियते किं जवाक्या-छ। राकः कोऽपि वंचितः // 6 // इति बुट्या तदादाय / रत्नं यत्नेन पालयन् // कियतो वासरांस्तत्रै-वातिवाहितवानसौ // 7 // अयत्नं रत्नलाजेन / परमामोदमेदुरः // तस्यैव वणिजो गेहे / सोऽतिष्टदतिसुष्टुधीः // 7 // कपटं प्रकटं मा मे / कदाचिदिह जायतां // इत्याशकाकुलोऽचाली-देकाक़ी स पुरात्ततः // ए // मार्गे गबन्नरण्यांतः / सोऽशृणोत्करुणस्वरं // हाहा नाथाथ कस्मान्मे / प्रतिवाक्यं ददासि न // ए॥ रे दैव प्राणनाथं मे। हरताहं हृता न किं // अरे हृदय दैवेन / निर्दयेन हृते प्रिये // ए१ // तवाह्लादकरे रेरे। कटिति स्फुटितं न किं // तन्मन्ये दृढमेताह-वजेण घटितं ह्यसि // 55 // युग्मं // अशोकवृद त्व मशोक एतां / बिजय॑निख्यां नियतं मुधैव // जाता यतोऽहं त्वदधःस्थितापि / शोकाकुला दैवहता देताशा // ए३ // अस्ति सत्पुरुषः कोऽपि / परोपकरणोद्यतः // संजीवयति यो दुःस्था-वस्थमेतं मम प्रियं // ए // उत्संगे प्रियमारोप्ये-त्येवमादिविलापिनीं // अनादीकामिनीमेकां / काननांतः कृपापरः // ए५ // षनिः कुलकं // रुदती सुदतीमेतां / दृष्ट्वेव || Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोमा तरवः समे // सितपुष्पमिषाजाता / गलदश्रुजला श्व // ए६ // तेन पृष्टा महारण्ये / जड़े | किमिति रोदिषि // थाह सा वायुवेगोऽयं / विद्याधरनरेश्वरः // ए.॥ मस्त्रियो मयका साकं चरित्रं / क्रीमार्थ मलयाचलं // प्रति प्रस्थाय खिन्नात्मा ।क्षणमत्रावतीर्णवान् // ए॥क्षणमात्रं च सुप्तोऽयं / विश्रामाय मया समं // तावत्कृष्णेन सर्पण / दष्टो दुष्टेन केनचित् // एए // उप| चाराः कृता नैके / मया विषहराः परं // सर्वेऽपि निष्फला जाताः। प्रभातोन्नतमेघवत् // // 10 // अहो सत्पुरुषोऽसि त्वं / यदि जानासि किंचन // तदैतं प्रगुणं कृत्वा ।प्राणनिदां प्रदेहि मे // 1 // पानीयमानीय सरोवरांतरा-प्रदाव्य रत्नं निजमजुतप्रनं // असिंचदंगानि स तस्य सांजसं / विद्याधरस्तत्क्षणमाप चेतनां // 2 // निद्राबेदादिवोत्तस्थौ। किमेतदिति जावयन् // सहर्षा तत्प्रिया सर्व / वृत्तांतं तं न्यवेदयत् // 3 // सोऽपि प्रांजलिराचख्यौ ।जीवितव्यप्रदायिनः // कथं प्रत्युपकाराय / प्रत्यलोऽहं जवामि ते ॥४॥जीमूतस्त्रि. जगंति जीवयति तत्किं किंचनापीहते / किं भानुः प्रतिजासयंश्च जुवनं किंचित्प्रतीत्यसौ // चंद्रश्चंजिकयाखिलं क्षितितलं प्रीणाति मुक्तस्पृहः / प्रायः प्रत्युपकारकारणनिराकांदा नवं // P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak, Trust Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र पोमा त्युत्तमाः // 5 // निरीहोऽपि गृहाणेति / जल्पस्तं बहु मानयन् // विद्याधराधिपो विद्यां / / प्रददौ वहुरूपिणीं // 6 // वायुवेगः प्रियायुक्तो / गगनाध्वनि सोऽचलत् // इतरोऽपि रत्नविद्या | |--कलितश्चलितोऽग्रतः // 7 // लक्ष्मीपुरपुरं प्राप्तो। वेश्याकामलतागृहे // मुंजानो विषयानेष / वासरानत्यवाहयत् // 7 // दत्तं पूर्जितं वित्तं / सर्वं तस्यै माणि विना // अन्येार्याचितं किंचि-तया नादादनावतः // // // कुहिन्या चिंतितं वित्तं / नास्य पार्श्वेऽस्ति किंचन // अधुना याचिंतं चापि / नार्पयामास यहनं // 10 // चंप्रश्चंडिकया हीनो। धनेन रहितः पुमान् // पत्रैश्च विकलो वृक्षो / विवाय श्व दृश्यते // 11 // परमद्यापि सहाय-काय एष निरीक्ष्यते // तबोधयामि सर्वांग-मव शिष्टमुपाददे // 15 // कुहिनी चिंतयित्वेति। सुप्तं गुणधरं निशि // शोधयित्वाग्रहीद्रत्नं / यत्नेनापि सुरक्षितं // 13 // तत्स्थाने कर्करं क्षिप्त्वा / कृतकार्याथ साखपत् // नन्निद्रः सोऽपि तन-मपश्यन् व्याकुलोऽजवत् // 14 // सोऽचिंतयत्सलोनेय-मक्का मे रत्नमग्रहीत् // परमेतस्य पापस्य / दर्शयाम्यचिरात्फलं // 15 // / धैर्यमेवं समालंब्य / सोत्कर्षामर्षवानपि // पूर्ववत्सुप्रसन्नास्य-स्तदिनं तु व्यतीतवान् // || PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पो // 16 // विचक्षणानामिदमेव लक्षणं / यहक्षणीया न जति कस्यचित् // अत्यंतरुष्टा अपि / / निष्टुराक्षरं / वदंति वाक्यं न हि येन कुत्रचित् // 27 // स कामलतया साकं / रजन्यां वासमंदिरे // सुष्वापापश्चिमे यामे / बोधितो रत्नचिंतया // 27 // रत्नोपायान् स्मरन् विद्यां / सस्मार बहुरूपिणीं // सिंहरूपं तया कृत्वा / गृहछारि स्थितो नदन् // 29 // प्रबुझा तध्ध्वनिं श्रुत्वा / दृष्ट्वा कामलताथ तं // करालं लंबलांगूलं / जीता संमूर्छितापतत् // 20 // अ.. थो प्रनाते संजाते / सुताऽनागमशंकिता // अका तबुझये प्राप्ता / द्वितीयां गृहभूमिकां // // 1 // निश्रेणीसं स्थितैवैषा / दृष्ट्वा सिंहं स्खलत्पदा // तथाऽपतद्यथा सर्वे / पतिता वद. नाउदाः // 2 // सा किंचिदविचार्यैव / तथैव रुधिरारुणा // समागात् श्वासपूर्णास्याऽरिमर्दननृपांतिके // 3 // स्खलत्पदा बनाणैवं / रद रक्ष दितीश मां // पंचाननेन मत्पुस्त्री / पंचत्वं प्रापिता प्रजो // 24 // सर्व कथय वृत्तांतं / मा जैषीर्जव सुस्थिता // राझेत्या. श्वासिता साख्यत् / सर्व सिंहनवं जयं // 25 // चचाल भूप उत्थाय / कौतुकाकुलमानसः // // थागत्य तद्ग्रहे सिंहं / मंदिरोपरि दृष्टवान् // 26 // अरण्यवासिनो जीवाः। संजवंत्यपि || PP.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक नो पुरे // विशेषेण कथं सिंह। आरोहत्युत्तरां जुवं // 27 // परं कृतिमरुपोऽयं / कोऽपि कोपातुरोऽजवत् // विमृश्येति महीपालः / पृष्टवान् कुटिनीमिति // 20 // नुजंगः संवसन् को ऽस्ति / सांप्रतं तव मंदिरे // साह देशांतरायातो / नरो गुणधरा निधः // 25 // राज्ञोक्तं वि१५६ || प्रियं किंचि-त्तया तस्य कृतं किमु // थाह सा न मया किंचि-चेतसापि विचिंतितं // 30 // ततो गुणधरोऽवोचत् / सिंहरूपो मनुष्यवत् // रेरे कुहिनि पापिष्टे / कनिष्टे पुष्टचेष्टिते // // 31 // अमूल्यं रत्नमेताहक् / हरत्यापि त्वया मम // विप्रियं विहितं नो चे-तदान्यत्किं करिष्यसि // 32 // साधिदेपमिदं वाक्यं / श्रुत्वा नूपतिरब्रवीत् // कपट रे ममाग्रेऽपि / स्फु. टयिष्यति राक्षसि // 33 // गृहीतं यत्त्वया रत्नं / तदत्वा प्रणता जव // दमयस्व स्वयं येन। खन्नावस्थो नवत्यसौ // 34 // नीषणीय भूपेन / भूयस्तर्जितया तया // जीतया रत्नमा. नीय / तस्याग्रे तन्निवेशितं // 35 // अग्रतो रत्नमालोक्य / लोक विस्मयकारकं // स्वजावाव स्थितो जझे। विद्यां गुणधरः स्मरन् // 36 // आगतो दैवयोगेन / गुणचंसो विलोक्य तं // || मनःकुमुदचंडोऽयं / नाता मम किमुत्तमः // 3 // अथवा तत्समाकारो / विपश्चित्कश्चिद- || PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'चरित्रं प्रत्येक स्त्यसौ // इत्येवं संशयापन्नः। कणं तस्थौ सविस्मयः // 30 // तावद्गुणधरो वीक्ष्य / बृहः / / वातरमग्रतः॥ आसिलिंग समागत्य / सहसा स्निग्धमुग्धदृक् // 35 // रोमांचकंचुकः प्रोचे / गुणचं कथं नवान् // श्यती जुवमायातः / कथयस कथां तव // 40 // तेन सर्वोऽपि वृत्तांतो-sतुबकेन प्ररूपितः // सर्वेऽपि विस्मिता जाताः / श्रुत्वा तद्बुद्धिकौशलं ॥४१॥राजा च राजलोकोऽपि / जातरौ तावुनावपि // सर्वेषामनवों / मुक्त्वैकं कुहिनीमनः // // 42 // राज्ञादिष्टं जना जो लो। एषा प्रबन्नतस्करी // नित्वा नाशां च कौँ च / वेश्या निर्वास्यतामितः // 43 // ततो गुणधरो भूपं / विज्ञप्यात्यंतमाग्रहात् // कुहिनी मोचयामास / दीने संतो हि वत्सलाः // 44 // त्राता चेद्गुणचंऽस्य / तन्मे मान्योऽसि सर्वथा // . त्युक्त्वा भूजुजानीतो / निजं गुणधरो गृहं // 45 // सनायामासने दत्वा / निवेश्य जातरावुजौ // ऊचे भूपो महाजाग / गुणचंद्रगुणान् शृणु // 46 // यदेतत्सांप्रतं राज्यं / क्रियते जी व्यते च यत् // तत्सर्वं हि नवज्रातृ-गुणचं प्रसादतः॥४७॥ यतः-अपाहरन्मां विपरीतशिदितो। हयो महावायुवदुगवेगवान् // निन्येऽटवीं खिन्नकरोऽमुचं यदा / स्थितः स Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक तत्रैव पपात मूर्छितः // // अहं तृमातुरो ब्राम्य-नातवान् सलिलं क्वचित् // गवेष्य / / || माणं नो किंचित् / प्रायशः प्राप्यतेंगिन्निः // 45 // एकस्य पादपस्याधो-ऽपतं मूर्छितवद्य दा॥ तावत्तत्रैष थायातो / गुणचंडः कुतश्चन // 50 // दुःस्थितं मामयं दृष्ट्वा / सकृपः शीतलं 127 जलं // आनीय पाययामासा-जवं सज्जवपुर्यथा // 51 // परिपक्काम्रवृक्षादेः / पेशलानि फ लान्ययं // अर्पयामास सप्रीति / कारयामास जोजन // 55 // पृष्टलग्नं समायातं / सैन्यं -दैन्यविवर्जितं // अज्ययँह समानीतो / गुणचंद्रो मया सह // 53 // पृष्टः किमनिधानोऽसि / कुतः कुत्र च यास्यति // जुवं ब्राम्यसि केनैवं। ततोऽनेन प्ररूपितं // 54 // क्षितिप्रतिष्टितानाम्नो। नगरात् श्रेष्टिनः सुतः // अहं समुदत्तस्य / गुणचंद्रानिधोऽधुना // 55 // ज्रातुर्गुणधराख्यस्य / शुद्धये जुवमत्रमं // अथ मुंच यथेदे तं / ग्रामारण्यपुरादिषु // 56 // जायसे दुःखहेतु, / रदंस्त्वं सुखकार्यपि // तावन्मया पुनः प्रोक्तं / सुस्थीजव महामते // // 5 // त्रिनिर्विशेषकं // शोधयिष्यामि ते बंधुं / प्रेष्य प्रेष्यान्निजान् जुवि // भ्रातरं मेलयिष्यामि / करिष्यामि सुख तव // 5 // इत्या श्वास्य नरान् दत्वा / परिचर्याकरान् वरान् // || Juan Arad P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक // प्रदाय पृथगावासं / निवासं तत्र कारितः // 55 // नैमित्तिकेन पृष्टेन / झानगर्नेण जः || पितं // मासांतेऽत्रान्यरूपेण / बांधवोऽस्य मिलिष्यति // 60 // इति देशांतरान्वीक्षा-परिचरित्रं क्लेशो न कारितः // गणयन् गमयामास / कथंचिछासरानयं // 61 // अथो त्वयि स्फुटीशए भृते / पूर्णमेतन्मनोरथैः // प्रतिझ्यापि चास्माकं / जवन्मेलनसंझया // 6 // नत्वा गुणधरो ऽवोच-दल्पाः संत्युपकारिणः // कृतज्ञा द्वित्रिचत्वारो-ऽधिकझः केवलं भवान् // 63 // उपकारे कृतेऽस्पेऽपि / महांतो बहुमन्वते // इत्याकर्ण्य नृपो दानं / तुष्टोऽदात्पारितोषिकं // 4 // विसृष्टोऽसौ नृपेणाप / गुणचंडस्य मंदिरं // तेनापि स्नानजोज्यादि-नक्तिस्तस्य विनिर्ममे // // 65 // उक्तं चावसरे वत्स / गम्यते तातमंदिरे // वयोविरहेणैष / खिद्यते हृद्यतीव यत् // 66 // यदासि निःसृतो रात्रौ / प्रातस्तातः पुनः पुनः // विलोकयन्नपश्यंस्त्वां / स गाढं व्याकुलोऽनवत् // 67 // आहारं नैव गृह्णाति / निशां न लनते पिता // जनन्यापि प रित्यतं / वराक्या जोजनादिकं // 67 // दुःस्थावस्थाविति प्रेदय / पितरौ प्रोक्तवानहं // वही विशामि वर्षांते / भ्रातरं नानयामि येत् // ६ए // मा केप्सीस्त्वं ते कार-मित्येवं वदतो. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो स्तयोः // निर्गतोऽहं ततोऽब्राम्यं / पृथिव्यां त्वां विलोकयन् // 70 // मया ग्रामे पुरेऽरण्ये / त्वं त्रमतापि नेदितः // सांप्रतं पुण्ययोगेन / मिलितः कौतुकं दिशन् // 1 // तदितो गम्यचरित्रमा ते तात-पदपीतं प्रणम्यते // पिलोश्च क्रियते हर्षः / खजनः परितोष्यते // 7 // एवं गुण धरः श्रुत्वा / बृहज्रातुर्वचः पितुः // मिलनोत्कंठितो जातः / सायं गोरिव तर्णकः // 3 // सत्कृत्याश्वरथअव्यैः / सेवकादि प्रदाय च // विज्ञप्तो भूमिपालोऽथ / कथंचित्तौ विसृष्टवान् // 4 // चेलतुस्तौ पुरात्तस्मात् / कृत्वा साथै निजं नवं // अजस्रं च प्रयाणेन / प्राप्तौ श्री. पुरसन्निधौ // 35 // मनोरमण नद्याने / स्थितौ जोजनहेतवे // रसवत्यो रसोपेताः। सर्वाश्च प्रगुणीकृताः // 76 // तयोर्जाग्यादिवाकृष्टो / मासपणपारणे // चारणर्षिः समायातो / मायामोहविवर्जितः // 7 // तान्यां रोमांचितांगाभ्यां / शुद्धान्नं प्रतिलानितः॥ सोऽपि चित्तं च वित्तं च / शुद्धं ज्ञात्वा समाददे // // धर्मलानं प्रदायायं / पारणं कृतवान् कचित् // तौ च प्रचल्य संप्राप्तौ। हमेण निजपत्तनं // ए॥ पिता वर्धापनं // चक्रे। सर्वत्र नगरांतरे // हर्षाश्रुसिक्तसर्वांगौ / पितरौ तौ प्रणेमतुः // 7 // * मिलि. || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक तौ च महीनर्तुः / पृष्टौ च सकलां कथां // उक्ते च गुणचंडेण / वृत्तांते विस्मितं जनैः // // // 1 // मीमांसमानौ वरशास्त्रतत्वं / दानं ददानौ यशसो निदानं // शाशंसमानौ कुलधर्मरत्नं / लक्ष्मीकृते तौ कुरुतःस्म यत्नं // 2 // अचिरेणापि कालेन / धनेन धनदोपमां // लेजाते राजमान्यौ च / संजातौ पूज्यपूजकौ // 73 // गुणश्रीगुणचंद्रस्य / नार्या गुणधरस्य च // जज्ञे गुणमतीनाम्नीं। शीलशोजाप्रजावती // 4 // सजायामुपविष्टेष्व-न्येयुर्गुणधरादिषु // अतर्कितः समायात-श्चारणश्रमणोंबरात् // 5 // ससंज्रमं समुत्थाया-सनं दत्वा निवेश्य तं // ववंदे नृपतिः सर्व-सजाजनयुतो मुनि // 6 // धर्मलानं प्रदायाह / मुनिर्धन्योऽसि भूपते // यस्य वासे वसंत्येते / नरा गुणधरादयः // 7 // मम पुष्टाहिदष्टस्य / नामिलिष्यदयं यदि // प्रवज्याराज्यमीहदं / नालप्स्येऽहं तदा खलु // 7 // स एव वायुवेगोऽहं / विद्याधरनरेश्वरः // गांधर्वगीतनगरे / प्राप्तो वैराग्यमाप्तवान् // जए // जीवितव्यं क्षणाद्याति। जीवस्य जलबिंदुवत् // यौवनं च तटध्वंसि-नदीपूरसहोदरं // ए // इंदिरेंदीवराक्यालि-मंदिरादि च जंगुरं // विमृश्येति सुतं राज्ये / संस्थाप्य व्रतमाददे // 1 // अन्य --PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक स्तहिंविधशिक-स्तपः कुर्वन् सुदुस्तपं // अवापमवधिज्ञानं / गुरुसेवापरायणः // ए // // ज्ञात्वा गुणधरं ताव-दात्मीयमुपकारिणं // गुरुमापृच्च्य धर्मार्थ-बोधनार्थमिहागमं // ए३॥ चरित्रं जो जो जव्यंजना मनांगपि मनः कृत्वैकतानं निजं / यूयं संशृणुतोच्यमानमधुना तत्वं मया किंचन // रत्नहीपमिवाप्य मानवनवं संसारसिंधौ चिरीत् / मिथ्यात्वादिकपर्दसंग्रहपरा निमति मा निःफलं // ए४ // देवा जिनेडा गुरवो मुनींद्र / धर्मो जिनेउप्रेतिपादितश्च // एतत्रयं यः कुरुते स्वचित्ते / लोकत्रयाधिपतिर्भवेत्सः // ए५ // इत्यादिदेशनां श्रुत्वा / प्रबुद्धा सकला सजा // कैश्चिनागवती दीक्षा / जाग्यवङ्गिः समाददे // ए६ // रांझा च गुणचंप्रेण / तथा गुणधरेण च // तैर्वादशनियुक्तं / श्रीसम्यक्त्वमुपाददे // एy // सवरेतपात्तं स्वं || / पालनीयं दृढाशयैः // इत्युक्त्वा दीक्षितैः साकं / विजहारावनौ मुनिः॥ ए७ // कुरुतेऽथ नृ पो धर्म-मुन्नयन् जिनशासनं // तथैव सकलो लोको / जिनधर्मरतोऽनवत् // एए // प्रातः श्रीजिनमंदिरेषु सकलो लोको जिनान् वंदते / मध्यो परिधाय धौतवसनान्यन्यर्चयत्यन्व॥ 6 // षोढावश्यककर्म कर्मनिपुर निर्माति निमोयक स्तस्मिन् धर्मपरायणे नरपतौ जज्ञे || . P.P.AC.Gurvatnasur M.S Jun Gun Aaradhaku Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रोजनो धार्मिकः // 20 // अग्निशर्मा निधो राज-मान्यः पूर्वपुरोहितः // सजासमक्षमाच ख्यौ / नास्तिको नूपतेः पुरः ॥१॥राजन् सर्वधर्मादि / नास्ति किंचित्खपुष्पवत् ॥प्र. माणपंचकेनापि / येनैतन्न प्रमीयते ॥२॥राज्ञोक्तं किमसंबई / नाषसे सुकृतादिकं // अ. नुमानागमाच्यां वा-पत्तेरवगम्यते // 3 // तेनोक्तमप्रत्यदत्वा-प्रतीतिस्तत्र नोंचिता // तर्हि पूर्वजसत्तायां ।युज्यते सा न ते हिंज // 4 // इत्यादिवचनै राजा ।तं तथा निरलोग्यत् // यथा निरुत्तरो जातो / हसितश्च सन्जाजनैः // 5 // कोपातुरः स निर्गत्य / तापसं व्रतमग्रहीत् // मृतस्तीनं तपः कृत्वा / जज्ञे यदो महर्डिकः // 6 // स प्रयुज्यावधिज्ञानमजादीद्वैरिणं नृपं // अकार्षीनगरे मारी / संमुखसितवैरजाक् // 7 // दाहज्वरश्च भूलतुः। शरीरे तेन निर्ममे // निर्ममेण नरेंडेण / गणिता न खवेदना // // परं परां म्रियमाणां / दृष्ट्वा जनपरंपरां // भूपो धूपं समुत्दिप्य / प्रांजलिः सन्नदोऽवदत् // ए॥ देवी वा दानवी वा मे / यो रुष्टोऽस्ति पुरोपरि // स जस्पतु स्फुटीभूय / प्रसन्नीय सांप्रतं // 10 // साधि। क्षेपमयो यद / बाचचद्दे नवांतरं // राज्ञा मधुरवाग्नीरैः / सिक्तः किंचिदशाम सः // 1 // P.P: Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक उवाच जो महीपाल / त्वयैकैको नरोऽन्वहं // मम प्रेतवने प्रेष्य-स्तेन कथ्या कथा पुनः || // 15 // न वेत्स्याम्येव यस्याहं / कथाया अर्थमद्भुतं // तस्मादेव नरान्मारिः / सर्वथा न जविष्यति // 13 // अंगीकृतं नरेंखेण / सर्वथानिष्टमप्यदः // शेषपत्तनरदायै / ततो यद१३४ स्तिरोदधे // 14 // राजा च प्रगुणीभूतो। मारिस्तत्र न्यवर्तत // एकैकः पुरुषो नित्यं / प्रे ष्यते प्रेतकानने // 15 // रूपं बिजीषणं कृत्वा / तत्र यतः स्फुटो जवेत् // कथां पृबति नीतात्मा / कश्चिन्नाख्याति तां पुनः // 16 // तत वाहत्य खगेन / मानवं मारयत्यसौ // मृतेीतः समारेने / पलायितुमितो जनः // 17 ॥राज्ञा खसेवकैश्चम-निरुध्येतस्ततो ब्रजन् // जनः कारागृहे क्षिप्त / श्व तत्रैव रक्षितः॥ 17 // अन्यदा गृहपार्श्वस्थां / स्थविरां करुणखरं // रुदती करुणापूर्ण-चित्तो गुणधरोऽशृणोत् // 15 // स तस्या मंदिरं गत्वा / मातः किमिति रोदिषि // अकस्मादत्र कस्मात्त्वं / पृष्टवानिति सांजसं.॥ 50 // तयोक्तं पुत्र निर्ना ग्या / किं वदामि त्वदग्रतः // एक एवास्ति मे सूनु-राधारोंधस्य यष्टिवत् // 1 // अद्य // सोऽपि नृपादेशाद् / गत्वा प्रेतवने निशि // यक्केण मारितो नून-मशरण्यो मरिष्यति // 25 // - Jun Gun Aaradhak Trust . PP.AC.Gunratnasuri M.S. ' Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र प्रत्येक मारोदीरद्य यास्यामि / तत्स्थाने प्रेतकानने // आह सा खवहृत्स त्वं / मम पुत्रोऽसि नो // किमु // 3 // श्तो मातनं वक्तव्य-मित्युक्त्वा दृढसाहसः // राजाद्यैर्वार्यमाणोऽपि / वने गुपंधरोऽगमत् // 24 // निशायां दारुणं रूपं / कृत्वा यदः समाययौ // पृष्टः कथानकं तेन / धैर्याधारः स उक्तवान् // 25 // धारावासपुराधीशो। धराधीशानिधो नृपः॥आसीत्तस्य सुतो नाम्ना / सुतेजास्तेजना निधिः // 26 // अकृत्रिमाणि मित्राणि / तस्याभूवन्निति त्रयः // सूत्रधारस्वर्णकार-पुरोहिततनूरुहाः // // कुलोचितकलास्वेते। चत्वारोऽपि विचक्षणाः॥ क्रीमत्येकत्र तिष्टंति / दर्शयति खकौशलं // 27 // अत्यन्यायकरश्चौर / पारदैर्वध्यभूमिकां // नीयमानः कुमारस्य / प्रपेदे शरणं रयात् // श्ए // शरणागतवज्रपंजरः / कथयामास कुमार उध्धुरः // किमनेन कृतं हि दुःकृतं / यदयं बाग श्वेति बध्यते // 30 // रदकैरथो कचे / कुमार नृपमंदिरे // अनेन विहितं चौर्य / क्रूरमेतं विमुंच तत् // 31 // विहस्योचे कुमारेण / साधुः सत्कर्मगर्जितः // शरणं न विशत्येव / यद्यसाधुन रयते // 35 // तचरणागतपालन-मेव कथं जायते महापुंसां // तबक्रोऽपि न शक्तो / लातुं मम पृष्टगतमेतं // 33 // || - PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्या / अथो आरदकैरेतत् / सर्व राज्ञे निवेदितं // राजापि सहसा क्रुद्धः। समस्तांस्तानदोऽवदत्, // 34 // मदीयेन प्रसादेन / जात उन्मत्तवत्सुतः॥ तच्चौरपदपात्येष / पुरान्निर्धाव्यतामिति चरित्रं // 35 // सोऽपि ज्ञात्वा नृपादेशं / तत्कणं चलितस्ततः // अन्वगछत्कुमारं तं। मित्रत्रयम | कृत्रिमं / / 36 // खकलाकौशलेनैव / पूज्यमाना महीतले // अर्जयंतः सुवर्णादि। स्थिता निश्यन्यदा वने // 37 // अस्मिन् बिजीषणेऽरण्यें / व्याघ्रसिंहादिसंकुले // ये सुप्तास्ते विगुता हि / श्रेयो जागरणं ततः // 30 // चत्वारः स्मो वयं रात्रे-श्चत्वारः प्रहरा अपि // एकैकं प्रहरं याव-जागत्वैकक एव तत् // 35 // एवं विमृश्य सर्वेऽपि / सुषुपुः सुखनिद्रया // सूत्रधारसुतः स्मैको / जागरूकोऽवतिष्टते // 40 // तेन तक्षणिकत्वेन / विलोक्येतस्ततो वनं // दृष्ट्वा काष्टं विशिष्टांगी। घटिता तस्य पुत्रिका // 41 // अथ यामे द्वितीयेऽस्मिन् / सूत्र धारसुतोऽखपत् // स्वर्णकारसुतस्तस्थौ / जाग्रदुग्रकलानिधिः // 45 // सोऽपि तां पुत्रिका इ. ट्रा / हृष्टचित्तो व्यचिंतयत् // अलंकारैर्विना नैषा / जोति जव्यापि काव्यवत् // 43 // घट॥ यित्वा त्वलंकारान् / सर्वांगेषु विष्य तो // स्वावधि पूरयित्वा स / निद्रया मुद्रितोऽनवत् | A Jun Gun Aaradhak is Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रये // // नृपपुत्रः समुत्थाय / तृतीये प्रहरे स्थितः // दृष्ट्वा तो पुत्रिका हृष्ट-श्चेतसेंति व्य जावयत् // 45 // पनप्रोज्कितबलीव / वसनेन विवर्जिता // जाति नैषेति सा तेन। वसनं परिधापिता // 46 // चतुर्थे प्रहरे जाते / पुरोहितसुतः स्थितः // सालंकारां सुरूपां च / 137 / सवस्त्रां तां व्यलोकत // 4 // मनोहरापि नादेया। केसरेण विवर्जिता // एषा राजीवरा जीव / जीवेन रहिता सती // 4 // त्रैलोक्याश्चर्यमा / यद्येषापि च जीव्यते // तदा ह. रति चेतांसि / देवानां किं पुनर्नृणां // भए ॥एवं विमृश्य सन्मंत्रं / मंत्रयित्वा स मांत्रिका ॥जीवंतीमकरोदेतां / तत्कणं हरिणेक्षणां // 60 // समुभते दिवानाथे / चत्वारश्चलितास्ततः ॥चचाल कामिनी सापि / तावत्तदनुगामिनी // 51 // सूत्रधारसुतः प्राह / मयेयं घटिता यतः // अतोऽसौ मामकीनैव / मम मंदिरमेष्यति // 55 // स्वर्णकारसुतोऽप्यूचे। विभूषणविभूषिता // एषा मया कृता तस्मा-वित्री मम गेहिनी // 53 // तावद्भपसुतोऽप्याह / मयेयं परिधापिता // उकूलानि स्वकीयानि / तदसौ मम वलना // 55 // पुसेधःपुत्र थाचख्यो / साध्यते किमजीवया // जीवंतीयं मया चके / ममैवैषा ततः प्रिया // 55 // तन्नों % 3D PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक कथय यद त्वं / विचक्षण शिरोमणे // चतुषु तेषु मित्रेषु / जाया सा कस्य जायते // 56 // || श्रुत्वा सविस्मयो यदो। बहुकालं विमृष्टवान् // नाशासीत्पृष्टमर्थ तं। तावत्तरणिरुद्ययौ // // 57 // यदेण सुप्रसन्नेन / नणितं भो महामते // त्वयाधुना स्वसत्वेन / रंजितोऽस्मि जि. | तोऽस्मि च // 50 // याचस्व विश्वप्रथितावदात / यचिंतितं ते तदहं प्रदास्ये // समुजदत्तांगरुहस्तदाह / निवर्ततां मारिदवाग्निदाहः // एए // यदेणोक्तं स्वयं सिद्ध-मेतत्त्वत्तोऽपि सत्तम // अन्यत्किंचित्प्रसद्याद्य / समादिश करोमि यत् // 60 // तेनोक्तं नास्ति मे किंचित् / प्रार्थनीयमितः परं // अहो परोपकारैक-कारित्वमिति चिंतयन् // 61 // यतः प्राह महा जाग / निरीहोऽसि तथापि च // समाधानकृते किंचि-न्मा कार्य समादिश // 6 // ज-णितं तेन यद्येवं / तदा सम्यक्त्वपूर्वकं // जिनधर्म प्रपद्यख / मन्यस्व जिनदेवतां // 63 // वंदस्व स्वबधीः शुशान् / सर्वान् गुणगुरून् गुरून् // सर्वजाषितं वाक्यं / श्रद्दधेहि प्रबु सुधीः // 64 // पश्य शाश्वतचैत्याली-विद्धि त्वं स्वयमेव जोः // प्रयुज्यावधिविज्ञानं / सहै / त्यं जलपामि किं न वा // 65 // इत्येवं शृण्वतस्तस्य / यदस्य हृदयांबरे // मिथ्यात्वध्वांत P.P. Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TN Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक विध्वंसी / सम्यक्त्वरविरुद्ययौ // 66 // उवाच साधु साधुत्व-मुध्धृतोऽहं नवार्णवात् // परे ॥षामुपकारायो-त्पत्तिश्चंदनवत्तव // 67 // देवयूष्याण्यष्याणि / प्रदायाजरणानि च // कार्ये स्मार्योऽहमित्युक्त्वा / यक्षराजस्तिरोहितः // 6 // ततो गुणधरः स्मेर-वदनेंदीवरः प्रगे ॥दे. 13 // वष्यैरलंकार-रलंकृतवपुलतः // ६ए // नानानागरिकैर्लोकः / पीयमानोडगंचलैः // नृपधाम जगामायं / ननाम च महीपतिं // 70 // युग्मं // राज्ञापि स्वासनार्धे तं / बहुमानपुरस्सरं // निवेश्य सकलं पृष्टं / स्वरूपं तस्य सन्निधौ // 1 // तेनापि मदमुक्तेन / यथावस्थितमेव हि // निरूपितं स्वरूपं च / सना सर्वापि विस्मिता // 72 // सर्वेषां जीवितव्यस्य / दाता स्व. मिति संस्तवन् / राजा पोरैर्नरैयुक्त-स्तमत्यंतमपूजयत् // 3 // अथान्यदा गुणधरः / श्रे ष्टिश्रेष्टो व्यचिंतयत् // पूर्वपुण्यवशालक्ष्मी-लब्धा चेद्विद्यते मया // 4 // यत्सेवते श्रीविपरीतमजं / तत्तु स्वरूपं विपरीतमस्याः // आरक्ष्यमाणा नियतं प्रयाति / विस्मृज्यमाणा त्ववतिष्टते यत् // 35 // प्रासादबिंबादि जिनेश्वराणां / न कारितं येन धृतं व्रतं नो // न पू. जिताः साधुजना नृजन्म-रमादिकं निष्फलमेव तस्य // 76 // पिशाच्येव श्रिया प्रायो-खि X P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोऽपि बलिलो जनः॥ यस्ता बलति तं अन्य विचक्षण शिरोमाण // 3 // जिनप्रासादस॥ देने / व्यबीजं वपाम्यहं // प्रायानंतगुणा शुण्य-फलोत्पत्तिर्जवेन्मम // // एवं विचिंचरित्र इत्य जैनेजः / प्रासादस्तेन कास्तिः // विमानानि विमानानि / संजातानि विलोक्ययं // 7 // 140 अदियसोपानचटकनांगिना-मंगेषु जांति श्रमवारिविंदवः // वर्धापितानां सुकृतश्रिया मुदा / विजक्तलग्ना व मौक्तिकोत्कराः // 70 // यस्मिन्महानिर्मलदेवमूर्ती / संक्रांतमूर्तिजन इ. त्यतोषीत् // यथा प्रजुमें हृदयेऽयमास्ते / प्रजोस्तथाई हृदये वसामि ॥१॥स्फटिकघटितं | चित्रश्चित्रविचित्रितमुन्नतं / कनकमणिनिर्मध्ये मध्ये निबट्य विनूषितं // जिनपतिजवनं द्वेवेंद्राणां मनांस्यपि रंजयत् / त्रिजुवनजनो बोधे/जं विलोक्य समर्जयत् // 2 // अथो दं: ढल्यो राजा-न्यदा गुणधरं जगौ // कारागारसमं मन्ये / संसारं सांप्रतं सखे // 3 // तृशवदाज्यमुत्सृज्य / प्रपद्ये ब्रतमाईतं // परं राज्यधुराधार-धौरेयो न सुतो मम // 4 // एकोऽपि जायते पुत्रः / कथंचियदि मद्गृहे // तस्मै राज्यं प्रदायाहं / पूरयामि मनोरथं // // // 5 // तत्त्वं दहेषु मुख्योऽसि / कार्यकार्युपकार्यसि // तथा कुरु यथैकः स्या-दचिरान्मम Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक नंदनः // 6 // राजन्नैवं करिष्यामि / प्रपद्येति निजं, गृहं // समागत्य जितेंाग्रे / स्थित्वा / / तं यदमस्मरत् // 7 // प्राप्तः स्मरणमात्रेण / प्राह खामिन् समादिश // उक्तं गुणधरेणापि / भूलुजे, देहि नंदनं // // स्वामिन्नेवं करिष्यामि / परं राज्ञा निरंतरं // अर्चा जिनेशितुः कार्या / येन पुष्कर्म हीयते // नए // इत्युक्त्वा स्वाश्रयं यदो-ऽगबद्गुणधरेण च // राजे निवेदितं सर्व / राजापि कृतवांस्तथा // ए // यदानावतस्तूर्ण / पापकर्मदयेण च // भूप: तेस्तनयो जज्ञे / रूपवान् जातरूपवत् // 1 // चक्रे जन्मोत्सवोराशा। परमाश्चर्यकारणं // ततो जिनधर इति / नाम पुत्रस्य निर्ममे // ए५ // तस्मै बाल्येऽप्यदाद्राज्यं / स्वयं वैराग्यरंगितः // उद्योतनगुरोः पार्श्वे / व्रतं निवृतिकृखलौ // ए३ // तप्यमानस्तपस्तीनं / क्षांतिं कुर्वन्ननुत्तरां // संप्राप्तकेवलज्ञानो / वत्रे मुक्तिश्रिया नृपः // ए४ // गुणधरगुणचंडी नेत्रसंतोषचंयौ / जगति विजयमानौ जूलुजा पूज्यमानौ // विजितमदनमानौ प्राइकैः शस्यमानौ। विनयनयसमेतौ निन्यतुः कालमेतौ // ए५ // कुर्वाणौ जिनमंदिरेषु. विधिवत्पूजां त्रिकालं सदा / श्रीमत्पुण्यलतातरून् गुणगुरून् संसेवमानौ गुरुन् // शुद्धभावकधर्मकर्मनिरतौ सम्यक्त्वरत्ने | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक / रतौ / तौ संसारसुखात् पराङ्मुखमती कालं व्यतिकामतः // ए६ // पर्यंतकाले स्वकलत्रयु-' क्तौ / संगृह्य तौ पंचमहावतानि // पंच स्मरंतो परमेष्टिनां तौ / पंचत्वमासादयतां सुखेन // লখিম // ए // गुणचंलो गुणधरो / गुणश्रीर्गुणमत्यमी // चत्वारो लांतके देव-लोके संजझिरे सुराः // ए // एते लांतकदेवलोकपतिना तुल्या बलेन श्रिया। शश्वबाश्वतचैत्यवंदनपरास्तीर्थेषु यात्राकराः॥दिव्यदेवपरंपरा निरनितः संसेवितांहिष्याः। स्वीयायुः प्रतिपालयंति कलयंत्यानंदवृंदोदयं // २एए // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे तृतीयप्रस्तावे नमिप्रथमजववर्णनो नाम प्रथमः प्रकारः // श्रीरस्तु // . स्वर्णाजिकर्णिकायुक्तो / लवणाब्धिसरःस्थितः // जंबूझीपोऽब्जवनाति / चंचसूर्यमरालनृत् // 1 // क्षेत्रे महाविदेहाख्ये / विजयः पुष्कलावती // पुरं तत्र सदोह-तोरणं मणितो. रणं // 2 // कीर्तिसारो नृपस्तत्र / द्विधा रक्षति यः दिति // राज्ञी कीर्तिमती तस्य / प्रश|| स्या शीलशालिनी // 3 // ईषन्निप्रासुखासक्ता / सा ददर्श चतुर्दश // महास्वप्नानि यामि॥ न्याः / पश्चिमे प्रहरेऽन्यदा // 4 // गजेंद्रवृषसिंहश्री-दामसोमर विध्वजाः // कुंजपद्मसरोह्य-| Jun Gun Aaradhak Trust.. Pel Ac. Gunrathasun S Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नि-विमानमणिसंचयाः // 5 // कश्चिज्जीवो दिवश्युत्वा / गर्ने तस्या अवातरत् // तानि ह ष्ट्वा प्रबुद्धा सा / हृष्टागान्नृपमंदिरे // 6 // स्वप्नस्वरूपमाचख्यौ / विचार्यायमतिश्च सः // पु. चरित्रं || लाजानिधानेना-नंदयामास वदनां // 7 // पुनः प्रनाते संजाते / भूपतिः स्वप्नपाठकान् 153 // आकार्याबदेतेऽपि / शास्त्रदृष्ट्या बन्नाषिरे // // स्वप्नान्येतानि राजेंज / माता पश्यति निश्चितं // अवतारे जिनेाणा-मथवा चक्रवर्तिनां // ए॥ प्रत्यक्षाणीव सर्वाणि / जिनमाता विलोकते // किंचिदस्पष्टरूपाणि / चक्रिमाता तु पश्यति // 10 // राज्ञा च पृष्टया राझ्या / कीर्तिमत्या निवेदितं // अस्पष्टानीव दृष्टानि / स्वप्नान्यद्य निशात्यये // 11 // ततस्तैनिश्चयश्चके / चक्री पुत्रो नविष्यति // श्रुत्वेत्युव्वसितौ तौ च / धाराहतकदंबवत् // 12 // राज्ञी च गर्नसंभृति-नवानथ मनोरथान् // पूरयंत्यवहगर्न / दीपवत्स्वोदरानके // 13 // दिनेषु परिपूर्णेषु / प्रसूतिगृहदीपकं // अजनिष्ट सुतं साथ / द्वितीयमिव दीपकं // 14 ॥महामहोत्सवं कृत्वा / जाते छादशमेऽहनि // तस्याऽमृतयशा एवं / राज्ञा नाम प्रतिष्टितं // // 15 // पाखितः पंचधात्रीनिः / स मेरुगिरिमस्तके // कल्पवृक्ष श्व प्राप / वृा तत्र शनैः | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasuriM.S. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक शनैः // 16 // कलाकलापं जग्राह / शुक्लपक्षशशीव सः // कामिनीजनसंतान-मोहनं यौः || वनं ययौ // 27 // ब्रास्यद्गूंगपरंपराविकयुतां चंचत्फलालीकुचां / श्यामां पेशलपल्लवाधरध. चारित्र धरां नव्यछदालादिता.॥ रम्यां गम्यतमां वनस्पतितति शाखाजुजत्राजितां / जायां क्रीम यितुं नवांधव श्व प्राप्तों वसंतोत्सवः // 17 // निर्धनोऽपि जनस्तत्र / गति कीमितुं वने. चिक्रीमिषुपि प्राज्य- दानेदुनों नृपात्मजः॥ 19 // अन्यदा भूपतिः प्राह / वत्स गढ़ वनेऽधुना // यथे कोम सनीम / श्व तावत्सुतोऽज्यधात् // 20 // एवं कुर्वे परं तात / द्रव्यं नास्त्युत्सवोचितं // तदेवाहूय राजेंद्रः / खजांमांगारिणं जगौ // 1 // पुत्रस्यान्वीक्ष्यते यावद् / अव्यं दातव्यमेव तत् // उमित्युक्त्वा प्रपेदे स / राजा च स्थानमाप्तवान् // 25 // कुमार आहूय पुरस्य मानवान् / दत्वा स्वतुव्याजरणांबराणि च // अनेककोटिकविणव्ययेन चिक्रीम पौरैः पुरुहूतवत्सुरैः // 13 // जहर्ष सकलो लोको-स्तोकश्लोकः स्म खेलति // भूमीतले कुमारस्य / कोकः कोकनदे यथा // 24 // नांझागारी नृपस्याये। द्रव्यत्ययमची. // कथत् // निरर्थ गमितं द्रव्यं / बहनेनेति चिंतयन् // 25 // कुमारं नूपतिः प्राह / वत्स जा- || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GESSES ------- --- प्रहरीका नासि नो कथं // निरर्थ गमयन्नर्थ-मसमं कीर्तिजाजनं // 36 // यशोनिदानदानादि / / ददानः स हि शोचते // चुक्ते दत्ते च यः पृथ्वी-माक्रम्य स्वपराक्रमैः // 27 // इति भू पवचः श्रुत्वा / कुमारः स्फारमत्सरः // हंहो जातोऽस्मि तातस्य / निर्जाग्यो दुःखकारणं // 245 // 27 // तत्कथं दर्शयिष्यामि / स्ववक्त्रं पितुरग्रतः // यामिन्याः प्रथमे यामे / निर्जगामेति चिंतयन् // ए॥ उत्साहगजमारूढः / प्रौढपुण्यबलोऽचलत् // क्रमेणैकस्य तुंगस्य / भूधरस्यांतिकं ययौ // 30 // तत्प्रत्यासन्नदेशेऽस्ति / पुरं जयपुरानिधं // कुमारः प्राविशत्तत्र / प्रेरितः पुण्यकर्मणा // 31 // जयसेनो नृपस्तत्र / सौलाग्यतरुमंजरी // तस्यास्ति रूपसंपन्ना / कन्या कनकमंजरी // 35 // पुरुषषिणी सास्ति / गवादस्थितया तया // अधस्तात्स वजन् ह. ष्टो / दृष्टिसंतुष्टिपुष्टिकृत् // 33 // गलितः पुरुषद्वेष-स्तस्यास्तदर्शनादपि // तृप्तिं न प्राप प. श्यंती / तं मृगांकमिवादरात् // 34 // बाययेवानुवर्तिन्या / सख्या दरलताख्यया // लक्षितः कन्यकारागः / कुमारंप्रत्यनुत्तरः // 35 // कुमारोऽपि पुरं पश्यन् / कौतुकस्फारलोचनैः // लोकैर्विलोक्यमानोऽगा-देकं प्रासादमुन्नतं // 36 // तन्वाक्षप्रदेशेऽस्था-तावदकलतापि सा || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // मत्स्वामिन्या मनो हृत्वा / कुमारः कुत्र यात्यसौ // 37 // एवं विचिंत्य तत्रागा-त्कुमारो यत्र तिष्टति // स लात्वा खटिकां काव्यं / कर्तुमारब्धवान्नवं // 30 // कुमारस्यापतद्धस्तात् / ख· चरित्र व्य लिखिते सति // यावत्प्रसारितस्तेन / करस्तद्ग्रहणेबुना // 35 // तावत्प्रसादनित्ति१४६ स्था। चलिता चित्रपुत्रिका // आदाय च खटीखंमं / नत्वा तस्मै समार्पयत् // 40 // एतद्द कुलता दृष्ट्वा / साश्चर्या निकटं ययौ // वाचयित्वा च तत्काव्यं / सा सत्वरपदा मुदा // 2 // आगता कन्यकापावें / स्वरूपं च निवेदितं // कौतुकाकुलिता तां चा-पृवत्कनकमंजरी // // 42 // सखि यविखितं तत्र / तेन तत्सि नाथ वा // वेनीति कथयित्या सा / तं श्लो. कमपठत्तदा // 3 // अनीहमानोऽपि बला-ददेशझोऽपि मानवः // कर्मणा नीयते तत्र / यत्र तत्फलमश्नुते // 45 // सा विज्ञाततदर्थाथा-वदद्ददलतामिति // सखि मन्ये फलं किंचि-तस्यासन्नं नविष्यति // 45 // विहस्य सा सखी प्राह / किं फलांतरकल्पनैः ॥मुख्यं त्वत्परिणयनं / फलं तस्यावगम्यते // 46 // रूपलावण्यसंपन्ना / सलीला शीलशालिनी // // त्वत्सदृदा हि गृहिणी / विना पुण्यैर्न लज्यते // 4 // श्रुत्वेत्यानंदिता चित्ते / जयसेननृपा- / / PP.AC. Gunratnasuri M.S. ' Jun Gun Aaradhak Trust Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्रं स्मजा // बबंध शकुनाथ / लजाया चानताजवत् // 4 // पुरांतः प्रबलः कोऽपि / कोलाइल उदबलत् // संत्रांतनेत्रया भुप-पुत्र्या सा जणिता सखी // 4 // सखि पश्य किमीहक-मित्युक्ता सा पुरांतरे // गत्वा विज्ञातवृत्तांता-गत्याचख्यौ नृपात्मजां // 50 // स्वामिन्यद्य मदोन्मत्तः। पट्टहस्ती नरेशितुः // आलानस्तंजमुन्मूख्यो-पाजवन्निखिलं पुरं // 1 // त्रासयन् सकलान् लोकान् / हद्दनित्तीश्च पाटयन् // स आगात्वन्मनश्चौरः / कुमारो यत्र तिष्टति // 5 // हस्तिना हस्तवीर्येण / पीड्यमानान् घनान् जनान् ॥वीक्षमाणस्य तस्याभूत् / करुणा हृदयांतरे // 53 // तत्क्षणं किरणं दत्वा-रुह्य सिंधुरमूर्धनि // हत्वा च मुष्टिघातेन / वशीचक्रे स दंतिनं // 54 // तत्रासीनः सशृंगारः / कुमारः सारविक्रमः // ऐरावण श्वारूढः / शुशुन्ने स सुरेंवत् // 55 // लोकः स्वस्थोऽनवत्तस्मिन् / शांते वाते समुऽवत् // कुमारोऽपि परिझात-स्तद्देशागतमागधैः // 56 // जय कीर्तिसारभूपति-कुलजलनिधिपोषणेऽमृतकराजः // अमृतयशा अमृतयशो-धवलीकृतसकलभूवलयः // 7 // इत्यादि मागधैलोंकैः। स्तूयमानः स एष्यति // इहैव त्वरितं तस्मात् / त्वां ज्ञापयितुमागमं // 57 // तावत्कुमारो जितमाररूपः।।। E % P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 समागतस्तत्र गजाधिरूढः // घुसे बज़न्मागधगीतगीत-कोलाहलापूरितदिग्विजागः॥ ५ए। विपत्यतिकटादानि / वरमाला श्वोज्ज्वला // अनुरागवती कन्या-निमेषा तं व्यलोकत // // 60 // सख्या.निवेदिता रायै / पुत्र्यास्तदनुरक्तता // तयापि भूपतेर। स्वरूपं तारूपित // 61 // कुमारमाकारयतिम राजा / बध्ध्वा गजं सोऽपि गजेंगत्या // आगत्य नत्वा नृपति सभायां / दत्तासनोऽस्थाहहुमानपूर्व // 6 // कुमारप्रतिपत्तिं ते / को वा कर्तुं दमो चवेत् // परमस्मत्सुतां पाणि-ग्रहणेनानुग्रहाण जोः // 63 // इत्युदीर्य महावीर्य-मरक्षन्नरनायकः // हिजैरजीगणबग्न-मायातं तदिनत्रयात् // 64 // अयो कनकमंजर्या / सैव ददाबता सखी // कुमारस्यांतिके प्रैषि / प्रदायार्या करांबुजे // 65 // एकांते सा पुनर्गत्वा / कु. माराय समार्पयत् / / तामार्यामार्यबुद्धिः स / वाचयामास तयथा // 66 // ज्ञातः पुरुषस्नेहो / दुःखमसह्यं ततः समनुभूतं // जीवितुकामो जीवः / को जाननेव विषमत्ति // 67 // झातार्थश्चितयामास / जातजातिस्मृतिसौ // पूर्वजन्मनि केनापि / पुरुषेण कदर्थिता // 6 // यदेवं पुरुषोष-गार्जितं वचनं जगौ // अस्या आवर्जनकृते / योग्यं स्यादिदमेव हि ॥६ए॥ .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र 14 पोका विचिंत्येति प्रतिश्लोकं / दत्वा ददलताकरे // प्रेषीत्साप्यार्पयत्तस्यै / वाचयामास सा यथा // // 70 // विचित्रं चरितं पुंसां / विचित्रा कर्मणां गतिः॥ नारीपुरुषतोयाना-मंतरं परमं नुवि // 1 // तनावार्थ परिझाय / कुमारे सा कुमारिका // अनुरक्ताऽनवहाढं / चकोरीव निशाकरे // 72 // प्राते लग्नदिने संध्या-समये पाणिपीमनं // तयोर्महामहःपूर्व / भूमीपतिरचीकरत् // 33 // कल्पकल्पवख्योर्वा / मुद्रिकारत्नयोरिव // दृष्ट्वा हृष्टैस्तयोर्योगः / कैः | कैर्लोर्न वर्णितः // 4 // स तुर्ये वासरे प्रौढ-प्रेमाढ्यां प्रेयसी जगौ // त्वत्प्रेषिताया था. र्याया। जावार्थ कथय प्रिये // 35 // आह सा श्रूयतां स्वामिन् / सावधानेन चेतसा॥ पुर्यस्त्यत्र घनद्रव्य-संचया धनसंचया // 6 // तत्र वेदरुचिर्विप्रो / वेदश्रीस्तस्य गेहिनी // झुंजानौ विषयानेतौ ।दंपती तिष्टतः सुखं // 7 // परोपकारिणी शील-सौरज्यसहितापिसा // परं दैववशाजझे / निष्फला चंदनवत् // 7 // पृष्ट्वा वेदश्रियं वेद-रुचिः संतानहेतवे // पर्यणैषीन्मनोझांगीं / कन्यका विनयश्रियं // पुए // विनयादिगुणै रूप-श्रिया च विनयश्रिया // // यावर्जितो हिजो जज्ञे / तस्या एव वशंवदः // 70 // वेदश्रीः कुरुते गेहे / कर्म कर्मक- || PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोरीव सा // परं वहति विद्वेषं / सपन्यां न मनागपि // 1 // श्राद्या निर्धाव्यते गेहा तदा निकंटकं नवेत् // द्वितीया चिंतयंतीति / गमयामास वासरान् // 2 // सा परित्राचरित्र जिकामेका--मन्यदा मंदिरागतां // घृतमोदकदध्यादि-जिदादानादमोदयत् // 3 // मु दिता साप्युवाचैवं / वत्से स्वछमते त्वया // किंचिदस्मादृशं कार्य / कथनीयं निरर्गलं // // 4 // विनयश्रीस्ततोऽवादी-झगवत्येवमस्ति. चेत् // तदा साक्ष्यं त्वया देयं / कूटाखपि ममुक्तिषु // 5 // निःशूकहृदया सापि / प्रतिपद्यास्पदं ययौ // विनयश्रीस्तु शय्यायां / सुतं वस्वामिनं जगौ // 6 // श्तः पत्युरपायस्यो-पेदणं पातकं महत् // श्तश्च परमो दोषः / परफूषणकीर्तनं // // तन्नाथ किमु कुर्वेऽह-मितो व्याघ्र इतस्तटी॥ तथाप्यकृत्रिमः स्नेहो / मां प्रेरयति जल्पने // 7 // नाथ वेदश्रिया चके / कार्मणं तत्तवोपरि // यस्मिन् विघटिते नूनं / मानवो म्रियते क्षणात् // ए // यदि प्रत्येषि मां न त्वं / पृष्ठ प्रबजितां तः दा // इति श्रुत्वा वेदरुचिः। पप्रडाकार्यतामिति // ए० // जगवत्यनया वेद-श्रिया किं का|| मणं कृतं // सम्यक् त्वं वेत्सि किं वा नो / तयोक्तं कृतमेव हि // ए१ // इति श्रुत्वा च वे - P.P.AC.GunratnasuriM.S. Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुश्रीः / कोपारुणितलोचना // ऊचे हारयसे कस्मा-त्पाखंमिनि नवघ्यं // ए // जुकुटी- 1/ जीषणीय / साप्यूचे रे कुकर्मकृत् // हारयामि कथं लोक-इयं सत्यं वदंत्यपि // ए३ // .. चरित्रं || अलं पापजनालापैः / स्थानं जगवति ब्रज // इत्युक्ता सा ततः स्थाना-दुत्थाय स्वाश्रयं ययौ // ए // कुकर्मकारिणि पापे / प्रत्यक्षा राक्षसी ह्यति // मद्गृहे न प्रवेष्टव्य-मितो जोहपरायणे // ए५ // एवं निर्ज वेदश्रीः / पत्या निर्धाटिता गृहात् // सांप्रतं कुत्र गबामि / कलंकेन कलंकिता // ए६ // मरणं शरणं तस्मा-चिंतयित्वेति चेतसि // पपात तटि नीपूरे / वलाजालसमाकुले // ए // तावत्तत्रागतासन्न-ग्रामनाथेन केनचित् // पतंती त. व सा दृष्टा / करुणापूर्णचेतसा // ए७ // जनान् प्रदिप्य नयंत-राकृष्यानीय तां तटे // प्रगुणीकृत्य सोऽवादी-न किं कृतमीदृशं // एए // तयोक्तमसदोषाधि-रोपोत्थं सद्गुणापहं // फुःखं च सहते नो धिक् / कियन्मानवमानसं // 107 // अनाणि ग्रामनाथेन / किं तदुःखं तवाजवत् // ततो वेदश्रिया सर्व / खवरूपं निरूपितं // 1 // त्वं मेऽसि नगिनी. / त्युक्त्वा / तेन नीता निकेतनं // यथा सुखं स्थिता तन / धर्मध्यानपरायणा // 2 // अन्ये. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्र सनी धुरागतस्तत्र / ज्ञानी ज्ञाननिधिर्मुनिः // पृष्टो वेदश्रिया नत्वा / जवांतरमुवाच सः // 3 // पुरे गजपुरे राजा। विलासरुचिरित्यनूत् // रतिप्रीती स्मरस्येव / तस्यास्तां वबने उन्ने // | // 4 // याद्या गुणमती तत्र / द्वितीया नानुमत्यभूत् // तान्यां च स्वस्वगेहाग्रे / कारिते जिनमंदिरे // 5 // तुल्येन विधिना ताभ्यां / पूजा तत्र विधीयते // यौवनस्था नानुमती / नर्तुर्मानेन गर्विता // 6 // द्वेषान्यवारयत्पूजां / गुणमत्या जिनालये // तद् ज्ञात्वा भूजुजानाणि / मुग्धे पापं करोषि किं // 7 // जिनेसा हीलिताः सर्वे-ऽप्येकस्मिन्नवहीलिते॥ एकस्मिन् पूजिते सर्वे / पूजिताः स्युर्यतः प्रिये // 7 // बहुद्रव्यव्ययेनापि / समत्सरतया कृता // जवेत्पूजा जिनेंद्राणां / निष्फला शरदज्रवत् // ए॥ जानुमत्या ततोऽनाणि / कार्मणेन. व. शीकृतः // गुणमत्यानया यस्मा-देकपदं वदस्यदः // 10 // इति श्रुत्वा गुणमती / पूनात्यंतं स्वमानसे // तत्प्रत्ययं तया वळं / पुष्टं कर्म निकाचितं // 11. // ततो राज्ञा च राशीच्यां / | श्राधर्म विनिर्ममे // मृत्वा जानुमतीजीवः / किल्विषीयेष्वजायत // 1 // आयुःक्ष्यात्ततच्यु || त्वा। वेदश्रीस्त्वमभूरिह // सौधर्मदेवलोकेऽपि / जातो गुणमती सुरः॥१३॥ ततश्युत्वा सपत्नी // JU GUN Aaradhal Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REMADHEERATORS ते। विनय श्रीरजायत / तया प्रतिकृतं तस्मा-नवेऽस्मिंस्तव सांप्रतं // 14 // इति श्रुत्वा / / जालिस्मृत्वा / स्मृत्वा पूर्वजवं तदा // प्रतिपद्याईतं धर्म / वेदश्रीः स्वाश्रयं ययौ // 15 // दयादानादि दत्वा सा। मृत्वोत्पन्नाहमत्र जोः / सपन्योः कलहं दृष्ट्वा / दृष्टपूर्वनवाजवं // 153 // // 16 // पुरुषेषु समस्तेषु / मम वेष दबलत् // चकोर्या श्व तीक्ष्णांशौ / तेनार्या प्रेषिता सया // 17 // श्रुत्वेत्यमृतयशसः ।कुमारस्य विपश्चितः॥ मूर्जनीलितनेत्रस्य ।जाता जातिस्मृत्तिः क्षणात् // 1 // किमेतदिति संत्रांताः / वातक्षेपं चकार साः // कुमारः प्रगुणीभूत-स्तामुवाच प्रिये शृणु // 1 // स एव ग्रामनाथोऽहं / दयाधर्मानुजावतः // श्हेदृशीं श्रियं लेने ।जानेजातिस्मृतेरिति // 5 // उक्तं कनकमंजर्या / स्वामिन्नवितथं ह्यदः ॥गलितः पुरुषोषो / यतस्त्व दर्शनान्मम // 21 // नेत्राणि ज्ञानवंतीव / सर्वेषामपि देहिनां // विकसंति प्रिये दृष्टे / निमीवंत्यप्रिये पुनः // 2 // कृतसंध्याविधातव्यः। क्रीमित्वा प्रियया समं सोऽस्वपत्सजशय्यायां। वारिधाविव केशवः॥३॥अर्धरात्रौ कुमारेण / जाग्रता नित्तिचित्रितः॥हयः सजीववजात।उतरन् नित्तिदेशतः ॥४॥धुन्वन् श्रुतियुगं पुडा-बोटं कुर्वन् विलोकितः॥पश्यामि किमिदं खान P.P. Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक . मित्यभूत्स सविस्मयः // 25 // युग्मं // तावदश्वेन तेनैव / नीयमानं नोंगणे // कुमारोऽप- श्यदात्मानं / कौतुकाकुलिताशयः // 26 // बहु व्योम समुलंध्यो-ततार तुरगो वने // कुचरित्रं मारश्च हयात्तस्मा-तुरगश्च तिरोहितः // 7 // दणांतरे कुमारेण / ददृशे तत्र तापसी // 154 हरंती तामसं तम्या ।.रवेरिव नवबविः // 27 // आगत्य सा कुमारस्य / संनिधावन्यधादिति // वत्स चित्रं न कार्य यत् / सर्व संजवति कितौ // शए // कृत्वानुग्रहमागबा-सन्नेऽस्मिन् देवमंदिरे // सर्वं व्यतिकरं यैन / कथयामि त्वदग्रतः // 30 // तया दर्शितमार्गोऽथ / धर्याश्चर्यप्रमोदजाक् // पदीप्ररत्नदीपाढयं / प्रासादं प्रविवेश सः // 31 // स्वर्णासनोपविष्टा तां / तापसी प्रणनाम सः // खयं चोपाविशत्तत्र / दत्तरनासनस्तया // 32 // तत्र मन्मथमूर्त्यग्रे / संयोजितकरांबुजां // राजहंसी कृतध्यानां / स ददर्श सितबदां // 33 ॥पप्रड तापसी केयं / मानवीव मरालिका // ध्यानं करोति देवाग्रे / तयोक्तं श्रूयतामिदं // 34 // तथाहि-पुरे जयपुरे राजा / जझे संग्रामसागरः // रूपेण सुंदरी राशी / तस्याभूजयसुंदरी // / // 35 // विजयस्लनयस्तस्या-स्खया जाताम्यदा सुता // सूतिरोगान्मृता माता। संजाता व | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं - --- -- प्रत्येक यक्षिणी // 36 // धात्र्याश्च विमालाख्यायाः / पित्रां पुत्री समर्पिता // बाला तस्यां प्रम त्तायां / मार्जार्यापहृतान्यदा // 3 // स दृष्टाशु शुनैकेन / स्वामिनक्तेन तत्क्षणं // तस्याः पृष्टे दधाव श्वा / कृतांत श्व भीषणः // 30 // मुख कन्यां गृहीत्वा तां / पृष्टमत्यजता शु१५५ ना // त्रास्यमाणा जयोव्रांता-ऽरण्ये मार्जारिका ययौ // ३ए // तत्रापि पृष्टलग्नेन / तेना क्रांतेव साजवत् // ततो मुक्त्वा मुखात्कन्यां / नष्टा सा काननांतरे // 40 // नश्यंती तरुगहने / गृहीत्वा कुपिताशयः // कृतापराधां तां स श्वा / स्वामिजक्तो व्यनाशयत् // 4 // नटवत्कृतकार्योऽसौ / रुधिरारुणिताननः // प्रत्यागतो विमलया / दृष्टश्चकितया तया // 4 // कन्यां विलोकयामास / सा सर्वत्र गृहांतरे // हृदयं तामयामास / पश्यंती नष्टरत्नवत् // // 43 // व्याकुला चिंतयामास / नूनं दुष्टशुनामुना // नदिता सा कथमसा-वन्यथा रुधिरारुणः॥४४॥ नदीनारीनरेंडाणां / नागानां च नियोगिनां // नखिनां च न विश्वासः / कर्तव्यः शुलमिलता // 45 // बुटिष्यामि कथं देव / जीवंती तत्पितुः पुरः // उत्तरं किं प्र. / / दास्यामि / तद्ञातुर्विजयस्य च // 46 // तन्मे मरणं शरण-मथवेतः पलायनं // विचिंत्ये --- P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 जाति रुषा श्वान / मुशवेन जघानं ते // 4 // जयनीता पुरानष्टा / सा जगाम महावने // ) एकथा वैश्यया त्यक्तां / बाला तेत्र ददर्श सा // 40 // भूपकन्यानुरूपां तां / रूपलावण्यशाचरित्रं लिनीं // दृष्ट्वा सा मुदितां चिंत्ते / तामगृह्णानिधानवत् // 4 // करयोः संपुटे कृत्वा। तत्र केनाप्यलदिता // सागत्य पालयामास / नृपपुत्रीमिवादरात् // 50 // ततः सा वर्धते तत्र / नलिनीक संवरे // विजयेति कृतं तस्या / अनिधानं नृपादिभिः // 50 // सुताथ जयसुंदयो / मार्जार्या पत्तिता मुखात् // रोदितिस्म सचीत्कारा / शरण्ये शरणोज्जिता // 51 // तत्पुण्यप्रेस्तिा तत्री-गता कुर्वती क्रीमम // अद्रादीचुदती बालां / यक्षिणी जयसुंदरी // // 55 // तां दृष्ट्वा करुणापूर्णा / चिंतयामास कास्त्यसौं // अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा / स्वपुत्री स्नेहलानवत् // 53 // मानवीरूपमाधाय / स्तन्यपानमचीकरत् // शुश्रूषयति तां नित्यमघत्यस्नेहविह्वला // 55 // पालिता जयसुंदर्या / त्यक्त दिव्यांगजोगया // सा सतवार्षिकी ज. / खेलंती मृगवालकैः // 55 // आसन्न श्री पुरस्वामी। श्रीधरो धरोऽन्यदा। आखेटककृते प्राप-दरण्ये तत्र शत्रुवत् / / 56 // निहंतुं हरिणा वाणा-नारुरोप स कोपवान् // INE P.P.AC.Gunsatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पो चापे भूपो यदा ताव -यक्षिणीति व्यचिंतयत् // 57 // हरिणेक्षणया साकं / मत्पुत्र्या / / हरिणा श्ह // क्रीमति स्वेच्या तन्मे / समे पुत्रसमा श्मे // 57 // अकृयो नृपः एतांस्तान् चरित्रं हंति हिंसापरायणः ॥रदामि तन्मृगान्मृत्योर्मंगयातश्च मर्त्यपं // एए // एवं विचिंत्य राजें-परिधौ सर्वतः कृतः // तया वज़मयः कोट्टो-प्रकटश्चर्मचक्षुषां // 6 // // यदंतर्वर्तिना पुंसा / वस्तुजालं बहिर्गतं // अतिरोहितवत्त / दृश्यते दृष्टिगोचरं // 1 // हरिणांश्चवतो हंतुं / भूपश्चिदेप मार्गणं ॥व्याजुघोट तदैवैषो-कृतकृत्यः कुनृत्यवत् // 6 // अपश्यन्नंतरा किंचि-व्यावृत्तं च शरं निजं // पश्यन् स विस्मयातीव-रयं हयमचालयत् // 63 // कोट्टजित्ती सजाधारे / यो मूर्ध्नि इतस्ततः॥ करस्पर्शेन राझा स / विज्ञातः सर्वतः स्थितः॥ // 64 // वज्रपंजरनिक्षिप्त- सिंहवद्द दुःस्थितः स्थितः॥ नृपस्तत्र क्षुधातृमा-पीमितः पंच वासरान् // 65 // अचिंतयञ्च पार्डि-पापपादप एष मे // पुष्पितोऽस्त्यधुना नावि। फलं नरकवेदना // 66 // योजयित्वा करौ राजा। बताण विनयानतः // या काचिदेवता रुष्टा। / / सुप्रसन्नास्तु सा मयि // 6 // श्रुत्वेति तत्दणं तस्य / प्रत्यक्षीभूय यक्षिणी // याचख्यौ / / P.P-AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 157 प्रत्येकी नूप, पापर्धि-व्यसनं न तवोचितं // 6 // रसातलं गलतु पूरुषाणां / तत्पौरुषं यझरणादि / / केषु // अपापराधेषु वनस्थितेषु ।जीवेषुपर्णा शिषु निर्दलेषु॥६ए। वरमंधो वरं पंगु-वरं रोगी चरित्र नरः परं // आत्मतृप्तिकृते जंतून् / निघ्नतो निघृणो जनः // // उक्तं नृपेण देव्येवमेवैतन्नात्र संशयः // अद्यप्रजृति पापर्धे-राजन्म नियमो मम // 1 // तयोक्तं तव सत्त्वेन / तुष्टाहं पुरुषोत्तम // वद चित्तेपितं यत्ते / तन्मया पूरयिष्यते // 3 // राझोक्तं देवि मे ना. न्य-दीप्सितं तव दर्शनात् // परमेतस्य कोहस्य / परिवेषो निवर्ततां // 3 // तयोक्तं तन्निवृत्तं ते / पापस्यैव निवृत्तितः // अन्यदन्वीक्ष्यते यत्ते / तत्तथार्थय पार्थिव // 4 // राझोक्तं त्वत्प्रसादेन / राज्यराष्ट्रसुतादिकं // समस्तं विद्यते देवि / परमेकापि नो सुता // 35 // परोपयोगिनी पुत्रीं / फलालिमिव मे विना // पुत्रपत्राश्रितस्यापि / वृक्षस्येव निरर्थता // 6 // तत्प्रसीद महादेवि / सुतामेकां प्रदेहि मे // श्रुत्वेति यक्षिणी स्वीयां / सुतां तामनयत्पुरः // // निवेश्य भूपतेरंके / प्राह सा साश्रुलोचना // निजांगजाधिका ज्ञेया / कन्येयं मम व. राजा // 7 // अस्या हि मन्मनोल्हापै-मन्मनो रज्यते धनं // परं त्वत्प्रार्थनाजंग-जी-| P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus! Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक तितो प्रदिशाम्यहं // ए // महाप्रसाद इत्युक्त्वा / राज्ञा सा कन्यिकाददे // तिरोऽभ्यः || क्षिणी राजा / जगाम च निजं पुरं // 70 // पुत्रीजन्मोत्सवं कृत्वा / कृता वनलतानिधा // चरित्रं याज्ञा राज्ञा च राशीभ्य-स्तत्पालनकृते ददे॥१॥ नरेंजदेवी निरमत्सरानि-स्तुत्येन वा. सत्यज़लेन सिक्ता // सावर्धत श्रीधरभूपगेहे / सुपर्ववतीव सुपर्वशैले // 2 // अजानता नरेंण / यौवनस्थाथ सा सुता // तबंधुनैव विजय-कुमारेण विवाहिता.॥ 3 // विजूर्ति महतीं दत्वा / विसृष्टो भुजुजाथ सः॥ आजगाम निजं धाम / नार्यावनलतायुतः ॥७॥सं. ग्रामसागरो राजा / जहर्ष सह नागरैः // अनुरूपरूपवंतौ / दंपती तो विलोकयन् // 5 // यत्कृतं नगिनीजात्रो-विधात्रा पाणिपीमनं // मन्ये तेनैव पापेन / स जनादृश्यतां गतः // // 6 // अवांतरेऽवधिज्ञाना-यक्षिणी जयसुंदरी // सुखिता पुःखिसा वा मे / उहितास्ती. त्यलोकत // // परिणीतां सुतां जात्रा / दृष्ट्वा कष्टं चकार सा // चित्ते चाचिंतयद् प्राज्यां / / / कृतो नायापि संगमः // 7 // बोधयाम्यधुना तेन / गत्वाहं स्त्ररिता सती॥ एवं विचिंत्य // संध्यायां / सागाइनलतागृहे ॥.ए // कृत्वा रूपं परपुंसः / स तस्थौ तत्र जर्तृवत् // . ताव P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार याथातः। स्फारभंगारधारकः / / ए // दृष्ट्वा परपुरुषं / रुषारुणितलोचनः // उवाच कोऽसि रे मूर्ख / मुमूर्षो मद्ग्रहांतरे // एरे // कस्त्वं किमर्थमायासि / मद्ग्रहे पहिलोऽसि चरित्र किं // रे जार नृपफुनोऽहं / जोमान् ! जोक्तुमिहागमं // ए // कया स्त्रिया समं जोगान् / जोक्तुमबागतोऽसि किं / नार्या बनलतामेतां / किमंध न हिं पश्यसि // ए३ ॥रे जात्यंध नागिनीं स्वां / बायर्या जरूपन्न खजसि // इति श्रुत्वा कुमारोऽथ / चित्तेऽत्यंतं चमत्कृतः // --एa // विनायो जायते प्रायः / प्रविष्टः परमंदिरे // राजापि च यथा चंयो। दिने दिनकरालये // 5 // अयं सहायकायस्तु / निर्जीकः सन् वदत्यदः // तन्मन्येऽसौ न सामान्यो / दिव्यरूपोऽस्तिकश्चन // 6 // एवं विचिंत्य चित्तांतः / कुमारः प्राह तंप्रति // जोः सत्पुरुष जमिनी / कथमेषा नवेन्मम // // एकैव जमिनी मेऽस्ति / विजया जयशालिनी // एतां तु परिणीयाहं / समागां श्रीपुरात्पुरा // ए // विधाय जयसुंदर्या / रूपं तत्कणमेव हि // सर्व स्वरूपमाख्यायि / य|| क्षिण्या दक्षिणोक्तिभिः // एए // प्रत्यक्षां जननीं दृष्ट्वा / हर्षशोकाकुलाशयौ // पुत्रपुत्र्यौ स PP.AC GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust . Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक मागत्य / विलग्ने कंठकंदले // 20 // ज्ञात्वा व्यतिकरं राजा। तत्रागाद् रुदती सुतां ॥आ. रोप्यांक समाश्वास्य / शस्यास्यामित्यबुधत् // 1 // अन्यथा चिंत्यते कार्य-मन्यथा कुरुते चरित्रं विधिः // दुर्निवारः सुते दैव-व्यापारः किं विधीयते // 2 // इत्यादिवचनैः पित्रा। सलजोन च बंधुना // उक्ता सा विषयान् मुक्त्वा / तापसं व्रतमग्रहीत् // 3 // यक्षिणी कृतकृत्याथ / ततः स्वस्थानमासदत् // प्रपाख्य तापसी दीक्षा / मृत्वा वनलता ततः ॥४॥जदपेदे कमलध्वज-भूजुजो मंदिरे सुतात्वेन // कलहंसीति च तस्या / विनिर्ममे नाम जनकेन // 5 // प्राप्ता क्रमेण वृधि / निदाघकाले समुअवेलेव // उद्यौवना जनन्या / प्रहिता सा भूपतेः पार्थे // 6 // अंके निवेश्य तां राजा / चित्ते चिंतातुरोऽजवत् // तावन्नैमित्तिकः कोऽपि / तत्रागबदतर्कितः // 7 // सत्कृत्य भूजुजा पृष्टो / वद नैमित्तिकोत्तम // अस्याः सु. तायाः को जावि / कुमारः प्रवरो वरः // 7 // निमित्तानमालोक्य / तेनैवमुदितं मुदा // मणितोरणपूःस्वामि-कीर्तिसारनृपात्मजः // ए॥ जाविचक्रपदो जावी / वरोऽमृतयशास्तव / / // पुत्रिकाया महाराजे-त्युक्त्वा स खाश्रयं ययौ // 10 // कक्षहंस्यामृतयशा / वत्रे खामी || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्र सचेतसा // तमेव स्मरति खाते / कलहंसीव मानसं // 11 // कीर्तिसारनृपस्यांते / कुमारा। नयनार्थिना // प्रेषिताः सेवकाः सौवाः / कमलध्वजभुजुजा // 12 // तैर्गत्वा कीर्तिसारस्य / स्वरूपं तन्निवेदितं // शल्ये प्रचालित श्व / सोऽत्यंत दुःखितोऽजवत् // 13 // विललाप महीपालो / गृह्णन् पुत्रगुणान् मुखे // उदश्रुनयनः प्राह / धैर्य धृत्वा क्षणांतरे॥ 14 // उत्पद्य मद्गृहे वीर-नीरधाविव निःसृतः // क्वचित्स्थानांतरे सोम / श्वासौ शोजतेऽधुना // 15 // मद्धृत्यैर्नित्यमुचुक्तै-देशे देशे विलोकितः॥ समुजपतितं रत्न-मिव लेने न कुत्रचित् // 16 // अथ पुण्यानुजावेन / स चेदिह समेष्यति // कमलध्वजभूजर्तु-रुक्तं तर्हि करिष्यते // 17 // इत्युक्त्वा तेन भूपेन / विसृष्टैस्तैः समागतैः // कमलध्वजराजस्य / स्वरूपं तनिवेदितं // 17 // प्रेष्य प्रेष्यनिजैः सोऽपि / सर्वदेशेष्वदर्शयत् // परं कुमारवार्तापि / न केनचिदुदाहृता // 15 // कलहंसी स्वरूपं तत् / श्रुत्वा दुःखादचिंतयत् // धिग्मां यन्मदभाग्येन / कुमारोऽपि न लभ्यते // 20 // उद्यौवनां पिता कन्यां / गृहे न स्थापयिष्यति // प्रातीऽमृतयशा नो त-न्मामन्यस्मै प्रदास्यति // 1 // कायेन मनसा वाचा। वहजो मे स / / P.P.AC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरित्रं प्रो एव हि // तस्मात्प्राणप्रियानावे / प्राणत्यागो ममोचितः // // एवं विचिंत्य संध्यायां / जनैः कैश्चिदलहिता // निर्गत्य नगरात्प्राप / कलहंसी वनांतरे // 23 // विहायामृतयशसं / नेदेहमपरं वरं // स चास्मिन् मे नवे नाभू-दयो भूयानवांतरे // 24 // इत्युक्त्वा वृदशा१६३ खाया-मारुह्य कंठकंदले // पाशं दत्वा निरालंबं / निजं देहं मुमोच सा // 25 // तावज्जटि ति सापश्य-वस्यप्रासादसंस्थितं // यात्मानं विस्मिता जझे / ततस्तरलितेक्षणा॥ 26 ॥तावत्तत्र स्फुटीभूय / यक्षिणी जयसुंदरी // कलहंसीमुवाचैवं / चंचलकुंमलमंगला // 27 // वत्से न विस्मयः कार्यो / मनस्तापोऽपि नो मनाक् // नवांतरस्य माताहं / त्वदीया जयसुं. दरी // 27 // पाशं नित्वा मयैतस्मिन् / प्रासादे त्वं निवेशिता // नवांतरस्य वृत्तांतः। सर्वस्तस्या निवेदितः // 25 // श्रुत्वा नवांतरं जात-जातिस्मृत्या विलोक्य च // स्वयं सा प्राह हे मातः / सत्यमेतत्त्वयोदितं // 3 // एषा प्राह्रियते बाला-सुरविद्याधरादिनिः // कलहंसी ति यक्षिण्या / कलहंस्येव निर्ममे // 31 // जो कुमार महाजाग / साहमेवास्मि यक्षिणी // / / एषा हंसीव सा कन्ये—त्युक्त्वा ला देवताजवत् // 35 // कुमारस्तां पुरो दृष्ट्वा / चिंतयामा- || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र प्रत्येक स.विस्मितः // यत्पिति सुधा देवाः / किमस्या रूपमेव तत् // 33 // पुनः सा यक्षिणी प्रा || ह / कुमार त्वहियोगतः // एषा तिष्टति कष्टेन / पद्मिनीव दिनात्यये // 34 // ततः कृपाप "रा साहं / त्वामानेतुं समागम // पुरे जयपुरे यत्र / प्रासादांतः स्थिते त्वयि // 35 // जवं. 164 || तमपहर्तुं सा-धिष्टिता चित्रपुत्रिका // पतितां खटिका हस्ते / दत्वा तुज्यं ननाम या // // 36 // चिंतितं च मया तत्र / कुमारे सांप्रतं हृते // नूनं कनकमंजर्या / महदुःखं नविष्यति // 37 // विचिंत्येति स्थिता तत्र / व्यतीते पाणिपीमने // सांप्रतं तुरगरूपं / कृ. त्वा वाहमिहानयं // 30 // तनः कुमार करुणां / कृत्वात्यंतानुरागिणीं // परिणीय कुरुष्वै. तां / प्रमोदजरमेदुरां // ३ए // आशापयति यद्देवी / कुमारेणेति जल्पिते // यक्षिण्या कलहंसी सा / स्वनावस्था विनिर्मिता ॥४०॥परिजनसंहिता निर्यक्षिणीप्रेरितालि-स्तदुपकृतियुताजिनिर्मितो देवतानिः // तमजनि विवाहो व्यूढहर्षप्रवाहो। नृपतिसुतकुमार्योः स्मेरित स्वर्गनार्योः // 42 // अतृप्तनयना देव्यः। पश्यंत्यस्तो वधूवरी / / स्वचक्षुरनिमेषित्वं ।सफलं तत्र मेनिरे ॥४शा पूर्वपुण्यप्रनावेण / वशीकृतजगत्त्रय // कुमार प्रतिपत्तिं ते / कां कुर्यान्मादृशो PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 165 प्रत्येक जनः // 43 // तथापि पवितसिझां / गृहाणानुग्रहाण मां // आकाशगामिनी विद्यां / तथा / | च बहरूपिणी // 4 // इत्युक्त्वा जयसुंदर्या / यक्षिण्या नृपसूनवे // ददे विद्याइयं सोऽपि 'वरित्रं चारत्र / जगृहे बहुमानयन् // 45 // यदिणी सपरिवारा / जगाम निजमाश्रयं // कुमारोऽपि स्म रंस्तस्याः / दणं तस्थावधोमुखः // 46 // मातृशोकाकुलां बालां / गलन्नेत्रजलाविला // क दृश्यसे पुनर्मात-वत्सलेति विलापिनीं // 4 // कथंचिद्बोधयामास / कुमारस्तां मृशक्तिभिः // क्रीमंतौ तदहोरात्रं / दंपती तत्र तस्थतुः // 4 // अत्रांतरे दिवाधीश / आगाद् छीपांतराद्जुवः // अंशुकैः पूरयन्नाशा / जाया श्व सत्पतिः // 4 // प्रियां प्राह कुमारोऽथ / क्क ते जिगमिषा प्रिये // थाह सा नाथ मत्पित्रो-दर्शनं देहि दुःखहृत् // 50 // श्राकाशगामिनी विद्यां / स्मृत्वा स प्रियया सह // प्रतस्थे कनकपुरं-प्रत्यप्रतिमन्नाग्यवान् // 51 // गबन्नलोंगणेऽधस्ता-कामिन्याः काननांतरे // एकस्या अशृणोत् श्रुत्या / कुमारः करुणस्वरं // 55 // तात त्राहि सवित्रि मे कुरु कृपां हे बांधवा बंधवः। सारां मे कुरुताथवा किमपरैरेको मदीयो वरः // भूमीमंगलममनं नरपतिश्रीकीर्तिसारात्मभूः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असे कापूरितविष्टपोऽभूतयशाः पायादपायादितः // 53 // विलपंतीमिति श्रुत्वा / बाला तां विस्मिताशयः // उत्ततार ननोदेशा--(कुमारस्तत्र कानने // 54 // गहन् शब्दानुचरित्र सारेण / ददर्शोन्नतमग्रतः // प्रासादं प्राविशत्तत्र / नेत्रप्रीतिकरेऽथ सः // 55 // तस्मिन्नादिजिनेऽस्य / प्रतिमाप्रतिमाकृतिः // उबलनक्तिनारेण / कुमारेण नमस्कृता // 56 ॥रा| जबाज्यनरं सुउर्वहतरं श्रीधर्मजारं तथा / वोढुं प्रौढतमौ दमौ महितले नान्यां समः क श्चन // एतद् ज्ञापनहेतवे कचमिषाकात्रा स्फुरलेखया / स्कंधौ यस्य सुरेखिताविव स वः श्रीमारुदेवः श्रिये // 7 // इति स्तुत्वा जिनं नक्त्या / प्रासादांतर्विलोकयन् // सोऽपश्यत्पं. जरक्षिप्तां / शुकीमेकां विलापिनीं // 57 // एषा शुकी कथं नारी-वैवं जल्पति कुःखिता / / मन्नाम च कथं वेत्ति / विस्मयादिति चिंतयन् // एए // जिनालयैकदेशे तां / कलहंसी नि. वेश्य सः // शुकीसमीपमायासी-दर्शनात्तां प्रमोदयन् // 60 // कुमारं नाषतेस्माशु। सा रुदत्यपि सत्तम // तवाद्य पंजरक्षिता / प्रतिपत्तिं करोमि कां // 6 // येन किंचिन्न कार्य स्या|| दस्मिन्नपि गृहागते // उत्तमा आसनं दद्युः / स्वशीर्षमपि हर्षतः // 6 // त्वयि दृष्टे दिने- / / AC Gunratnasun MS Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक शाने / मामकं मानसांबुजं // यदियत्ति विकाशं त-न्मन्येऽमृतयशा जवान् // 63 // अन्यच्च वाममेतन्मे / चक्षुः स्फुरति सांप्रतं // तेन प्राणप्रियेणाद्य / संगम सूचयत्यदः // 64 // ख यमेवासनं तस्माद् / गृहीत्वात्रोपविश्य च // निवेदय कृपां कृत्वा / खवरूपं मदग्रतः // 65 // 167 कुमारः प्राह सागर-दत्तश्रेष्टिसुतोऽस्म्यहं॥ दैवेनापहृतोऽत्रागां ।धनसागरसंझकः // 66 // न वंती रुदतीं श्रुत्वा / स्मृतस्वस्वजनोऽधुना // करुणारससंपूर्ण-स्त्वत्समीपं समागमं // 6 // का त्वं केन च निक्षिप्ता। पंजरे किं शुकीकृता // को वामृतयशाः स स्या-स्मर्यते यस्त्वयानिशं // 67 // उवाच साश्रुधारा निः / कदुमाजिर्महीतले // मुंचतीव कुमारस्य / पादशौचकृते जलं // 6 // तथाहि-चक्रेश्वरं नाम पुरं समस्ति / तत्र क्षितीशः सुरशेखराख्यः // तस्यास्ति राज्ञी सुरसुंदरीति / तस्या अहं पुष्पवतीति पुत्री // 70 // तातोऽन्यदा निजगृहांगणपूज्यमानां / पप्रल वत्सलतरां कुलदेवतां स्वां // को वा जविष्यति वरो मम पुत्रिकाया। ऊचेऽथ साऽमृतयशा नविता वरोऽस्याः॥ 1 // षट्खमनाथो नविता स चक्री। ततः प्रदत्ता जनकेन तस्मै // स्वचेतसा सा च दृढानुरक्ता / जातास्मि तस्मिन्नलिनीव सूर्ये // 15 // || P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रो उद्यौवनान्यत्र दिने गवाद-स्थिताशु दृष्टा मणिकुंमलेन // विद्याधराणामधिपेन जझें। स 11 तत्दणं मय्यनुरक्तचित्तः / / 73 // जगाम पावे जैनकस्य सोऽथो / मामर्थयामास मृफूक्तिः | चरित्रं युक्त्या // तातो मदीयोऽथ जगाद वीर / योग्यो जवान् किं पुनरत्र वाच्य // 4 // परं पु१६७ रैषा वरिवर्चि दत्ता / श्रीकीर्तिसारदितिपात्मजाय // ततः स कोपारुणितोऽवदन्मां / निवा रयत्वेष हरंतमेतां // 45 // उत्पत्य राजांगणसप्तमक्षणे / लीला श्रयंती स्वसखीजनैः समं में मां माँसवद् गृध्र श्वातिमोहितः। कणाद् गृहीत्वा गगने चचार सः // 6 // प्रचंकोदंमधरो नरेंद्रो / यावत्समुत्तिष्टति तं नितुं // तोंवत्स वातादपि तीव्रवेगो। जगाम पूरं नयनस्य मार्गात् / / 77 // नानाविलापानपि तन्वतीं स / मामानिनायाशु विमोहितात्मा // अस्मिन् महाकानन एव मुक्त्वा / सस्नेहमाहेति पुरः स्थितः सन् // 7 // प्रिये प्रसन्नीजव.भर्तृजावं / मयि प्रपद्यस्व तवास्मि नृत्यः // जुदवाथं सौख्यानि यथेप्सितानि / विद्याधरा णामधिपा जव त्वं // ए // पराङ्मुखीभूय ततो मयाँचे / रे पाप पापापसंराक्षिमार्गात् // / दुष्टोऽस्यदृष्टव्यमुखोऽसि यो मां / हृत्वा बलात्कुर्कुरवत्प्रणष्टः // 7 // अथवा किं बहुना Jun Gu n ak P.P.AC.Gunratnasuri M.S: Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक अपि सुरूपतिरेनां प्रार्थनां यहिधत्ते / वयमपि च यदि स्यात्सानुरागः स्वयंभूः // तदपि न , तु नवेऽस्मिन् प्राणनाथं तमेक-ममृतयशसमीहे नो विहायाहमन्यं // 1 // श्रुत्वेति वा || क्यानि मयोदितानि / दोषाकरेणापि समं तदास्यं // अभूतदोषातलतुव्यरूपं / क्क वा विल. को न जवेदददः // 2 // ततः समुत्थाय वनांतरेषु / ब्रांत्वा गृहीत्वौषधियुग्ममेतत् // निघृष्य शीर्षे तिलकं विधाय / तत्रैकया मां स शुकी चकार // 3 // इदं मंदिरं मंदराद्रिप्रमाणं / स्वविद्याबलाद्देवदेवस्य कृत्वा // स निःक्षिप्य मां निकृपः पंजरेऽस्मिन् // जगाम क्वचित्सांप्रतं || तन्न वेनि // 4 // इति श्रुत्वौषधीयुग्मं / कुमारेण विलोकितं // स्थापितं तल्लुकीपावें / चिंतितं च सविस्मयं // 5 // अहो अस्या महत् किंचि-न्मयि प्रेमास्त्यकृत्रिमं // चकोर्या श्व शीतांशौ / मयूर्या व वारिदे // 6 // नदीनामिव नारीणां / विभंजो न विधीयते // जमात्मिकानां वक्राणां / स्वजावान्नीचकर्मणां // 7 // तस्मादस्या विधातव्यं / बुध्या स्नेहपरीक्षणं // एवं विचार्य सोऽवादी-कुमारः सानुकंपहृत् // // कुरु सुंदरि मा शोक को वा प्राप्नोति चिंतितं // आत्मगेहे विमर्शोऽन्यो / दैवस्याफ्र एव हि // नए // हितोप . .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक देशमेकं मे / शृणुं रोषं च मा कृथाः // नर्तृत्वेन प्रपद्यस्व / विद्याजृन्मणिकुंमलं ॥ए // || मुग्धेऽमृतयशा यस्मा-त्केनाप्यपहृतः श्रुतः // एतन्न ज्ञायते सोऽथ / जीवन्नस्ति मृतोऽथवा चरित्रं // 9 // तेन तां परिणीता नो / किमर्थ कुरुषे ततः॥ दृशं निश्चयं तस्मि-नकस्माधिस्मयप्रदं ए॥ तस्मिंस्त्वदाग्रहं दृष्ट्वा / मणिकुंमलभूजुजा ॥अथामृतयशा जीव-न्नपि रोषाद्धनिष्यते ॥ए३॥ आकाशचारिणामग्रे / भूचराणां कियद्दलं ॥ता_स्याग्रेजुजंगस्य / बलं चलति कीदृशं nए विद्याधरं सकलभूधरराजिमुख्यं / मुक्त्वा सुरेंजसदृशं मणिकुंमलाख्यं // नूगोचरं तमपरं नरमर्थयंती। ही लङासेऽपि न कथं विदुषि ब्रुवे त्वं // 5 // ततः शुकी प्रत्यवादी-न्मा निंद मम वहनं // तन्निंदाकर्णनान्मा मां / कुरुष्व प्रत्यवायिनी // 6 // विद्याधरधराधीशा। भूचरा | अपि भूधराः॥ चक्रिणोऽमृतयशसः / सेविष्यंते पदांबुजं // ए // शक्रोऽपि चक्रिणं तं नो / विनाशयितुमीश्वरः // वराकः खेचरः कोऽयं / कारुवबलकारकः // 7 // तस्य तेजस्विनोऽग्रे चे-त्पतेत्तर्हि स हन्यते // नूमिस्थोऽपि दहेदग्निः / शलजान् खेचरानपि // एy // किं बहुक्तेन वा सोऽस्तु / सुगुणो निर्गुणोऽथवा // अस्मिन् मम जवे जावी / जर्ताऽमृतयशा हि PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक सः॥ 300 // न रोचते च मच्चित्ते / खेचरो गुणवानपि // चंशोऽप्यर्कानुरक्तानां / पद्मिनीनां न हर्षकृत् // 1 // अंजलिर्विहितस्तेऽयं / जज मुंच कथामिमां // खेचराधमनामापि / कर्णचरित्रं शूलं करोति मे // 2 // तन्निश्चयमिति ज्ञात्वा / कुमारेणेति चिंतितं // मयि प्रेमानुबंधोऽस्या 171 / वज्रलेप श्व स्थिरः // 3 // तदात्मानं स्फुटीकृत्य / सुस्थामेतां करोम्यहं // अनर्थे विहिते पश्चा-त्पश्चात्तापो नविष्यति // 4 // जणिता साथ हे जझे / त्वमौषध्या द्वितीयया // विहिते तिलके नूनं / स्वनावस्था नविष्यसि ॥५॥तयोक्तं तर्हि कुवं / ततो निःकास्य पं. जरात् // विधाय तिलकं तेन / नारीरूपा विनिर्मिता // 6 // कुमारस्तां पुरो दृष्ट्वा / चिंतयामास चेतसि // दृशी मानवी तर्हि / देवलोकेऽधिकं किमु // 7 // नणितं च कुमारेण / चे. त्वं वदसि तहं // मेलयामि स्वपित्रोस्त्वां / शक्तिरस्तीदृशी मम // 7 // आह सा जो महाजाग / मम जर्तापहृतो यदि // जविष्यामि तदा पित्रो-स्तत्रस्था ह्यतिदुःखदा // ए॥ जायते सह दैन्येन / वर्धते वरचिंतया // निरपत्या पतित्यक्ता / पुत्री पित्रोः सुदुःखदा // 1 // / / तस्मानर्तुरलाने मे। योग्यं मरणमेव हि // गत्वा जननीपित्रोः किं / पुःखदात्री जवाम्यहं P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun AaradhakTrust Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक // 11 // कुमारेणोक्तमेवं चे-दानयाम्यत्र ते पतिं / सहर्षया पुष्पवत्या / तावदेवं प्ररूपितं // 1 // // 11. // जो सत्पुरुष जानासि / यत्रास्ति मम वजः // किंवयाः कीदृशाकारः ।कुमारः सोचरित्र अस्ति तद्रः // 13 // विहस्योक्तं कुमारेण / यत्राहं तत्र स्रोऽपि हि // न जिन्नो मघ्योजीव --रूपलावण्यलक्षणैः // 14 // इत्याकर्ण्य प्रमोदेन / द्विगुणीभूतविग्रहा // पुष्पितेवाजवत्पुरूप-वती रोमांचसंचौः // 15 // उवाच सा सलोव / प्रणताननपंकजा // खामिन् पूर्वमपि ज्ञातो / मया प्राणप्रियो जवान् // 16 // प्रसय प्राणनाथाद्य / मा खेदय निवेदय // सत्यं खरूपमात्मीयं / संतः सत्यवता यतः // 27 // कुमारेण ततः प्रोक्तं / समग्रं पूर्ववर्णितं // खखरूपं समानीय / कलहंसी च दर्शिता // 17 // कलहंस्या ततोऽजाणि। स्वामिन्नस्या मनोरथान् // पाणिग्रहणमाधाय / पूरयस्व सुरवत् // १ए.॥ मीनध्वजकलहस्योः। समदं तत्र तरवणं // तां गंधर्वविवाहेन / कुमारः परिणीतवान् // 20 // ततः पुष्पवती प्राह / सं. लाव्य खेचरागमं // खामिन् क्लेशकरं स्थान-मिदं पूरं विमुच्यतां // 1 // माकार्षी छिप्रियं / किंचि समेत्यात्र त खेचरः // विदस्योचे कुमारेण / प्रिये मा कातरा जव // 25 // शिक्षा | - Jun Gun Aaradhiak Ti P.P.AC. Gunratriasuri M.S... . Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक // तस्य विधास्यामि / तथाहं न यथा पुनः // करिष्यति स इंदं / पातकं जवपातकं // 3 // || चरित्रं पर जवंत्यो है अपि / कीरीरूपेण तिष्टतां // वनेऽहं च शुकीरूपः / स्थास्याम्यत्रैव पंजरे // // 24 // पश्यामि किं करोत्येष। किं ब्रूते किमु चेष्टते // विद्याधराधमः पश्चा-यथायोग्यं करिज्यते // 25 // इत्युदीर्य कुमारेण / शुकीरूपे प्रिये कृते // औषध्या तिलकं कृत्वा प्रेषिते च वनांतरे // 26 // विद्यया बहुरूपिण्या / शुकीरूपं स्वयं कृतं / तत्रैव पंजरे तस्थौ / तावदागात्स खेचरः // 7 // विद्यासिफिनिमित्तं चा-वतीणों जिनमंदिरे // पंजरासन्नमागत्य / सबजाण शुकीमिति // 27 // प्रतिपद्यख मां मुग्धे / जर्तृत्वेनान्यथा पुनः॥ हाइशीकरिष्यामि / वशीकरणविद्यया // श्ए // तयोक्तं खेचरवेक / नाहमीदे परं वरं // विहायामृतयः शसं / विद्यागर्व करोषि किं // 30 // तत् श्रुत्वा चिंतितं तेन / शब्द एष न हि स्त्रियः॥ दृश्यते यंत्रितं चैत-पंजरं तकिमीदृशं // 31 // श्राः ज्ञातं तां स्त्रियं हृत्वा। कीरीरूपोऽ स्ति कश्चन // महाशगेऽयं धूर्तानां / प्रतिधूर्ता जति यत् // 3 // द्वितीययानयोषध्या / / / / तिलके विहिते सति / एषा सेवास्ति चेत्तर्हि / पुष्पवत्येव जाविनी // 33 // अन्यश्चेत्क- | FP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र श्चिदस्त्येष / तथापि नविता स्फुटः // पश्चाइमं करिष्यामि / तस्य प्राणप्रहाणकं // 34 // || | विमृश्येति कृते तेन / तिलके तागेव सः // तिष्ठन्नाजाषितः कोऽसि / रे रे प्रचन्नतस्कर // चरित।। // 35 // मम प्रियतमा हृत्वा / किमेव मिह तिष्ठसि // गृहाण शस्त्रमन्याय-फलं यदर्शयामि ISH|| ते // 36 // तावदाख्यत् स्फुटीभूय / कुमारः सारमत्सरः // देदीप्यमानो उप्रेक्ष्यः / कल्पां। तस्येव जास्करः // 37 // तातादत्तामनिबंतीं / कन्यां हरसि रे खयं चौरं च कथयस्यन्यं / तत्पश्यान्यायजं फलं // 30 // प्रगुणीकुरु शस्त्राणि / निर्गल जिनमंदिरात् // उन्नावपि जटावेवं / जपतो निर्गतो ततः // ३ए // युझमारब्धवंतौं तौ / कुमारमणिकुंमलो // उबलंतो पदाघात-कंपितदोणिमंगलौ // 40 // नदतोः सिंहनादेन / पौरुषं ददतोस्तयोः॥प्रतिशब्दलयाबैला / अनुवाद मिवादधुः // 4 // खजाखजि महाघोरं / कुंताकुंति शराशरि // तयोरभूतथा युद्धं / यथा दृष्टुं न शक्यते // 42 // उजावपि महाबाहू / विविधायुधवर्षिणौ // युध्यमानाविमौ दृष्टुं / मिमिनुव्योंन्नि देवताः // 43 // दणं भूमौ दणं व्योनि / पंतनोत्पतनादिनिः॥ वासयंती सुरांश्चापि / युयुधाते चिरं नटौ // 44 // वीणेषु सर्वशस्त्रेषु / महामला - 10-12 PRAcconratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक विवोकृतौ // मुष्टामुष्टि महामर्षा-दयुध्येतामुलौ चिरं // 45 // अथोत्पत्य कुमारेण / मु ष्ट्रिघातेन खेचरः // तथा हतो यथा भूमौ / पपात गतचेतनः // 46 // अत्रांतरे कुमारस्य / | शीर्षे हर्षधरैः सुरैः // मुक्ता पुष्पावली व्योनि / चक्रे जयजयारवः // 4 // उक्तं च नविता चक्री / सैषोऽमृतयशा इह // सेवतां सोऽस्य पत्पमं / यो हि जीवितुमिबति // 4 // दणाध्यावृत्तचैतन्यः / खेचरो मणिकुंमलः // देवानां तां गिरं श्रुत्वा / कुमारांही ननाम सः॥ ॥४ए // उवाच चापराधं मे / दमस्वाजानतः कृतं // प्रणामांतरुषः संतो। जति जुवनांतरे // // कुमारेण ततोऽवादि / नापराधस्तवैष यत् // शूराणां परमो हर्षः / संग्रामारंजतो नवेत् // 51 // अद्य यावन्मया दृष्टो / न जटोऽत्र भवादृशः // अथैव नवता दत्तं / मम संग्रामकौतुकं // 55 // खेचस्ततोऽवादी-देहि श्रीमंदिरं पुरं // मयि प्रसादमाघेहि / देहि स्वामिन् मदीप्सितं // 53 // तावचत्र समायाते / कारीरूपे प्रिये उन्ने // दृष्ट्वा च खेचरोऽपल-कुमारं के श्मे इति // 54 // कुमारेणापि वृत्तांतः।सर्वस्तस्य निवेदितः // सोऽप्यूचे साधु साध्वेषा / धिषणा ते विचक्षणं // 55 // यथा निवारितः पापा-दहं त्वं मे च | . P.P.AC.Gurwatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ चरित्रं मेलिवः // विज्ञप्यं विद्यते तच्च / गेहे विज्ञपयिष्यते // 56 // औषध्या तिलकं कृत्वा / खनावस्थे प्रिये कृतेः // ताज्यां च सहितस्तत्र / कुमारो मारवहनौ // 57 // थारुह्य खेचरें। उत्स्य 4 विमानं सप्रियोऽथ सः // चलितः क्रमतः प्राप्तः / श्रीमंदिरपुरं पुरं // 50 // प्रवेशकमह-पूर्व / महता विस्तरेण तं // खेचरेंडः समानीय / वासने समतिष्टपत् // एए // उवाच च कुमारेख / शृणु विज्ञलिका मम // अत्रैव कुर्वता राज्य-मैयेरुबहवो दिनाः // 67 // संति सद्गुणसंपन्ना / बहवोऽपि मम स्त्रियः॥ परं कापि प्रसूता नो / पुत्र राज्यधुराधरं // 6 // पुत्राः प्रायो न जायते / कुले विनवशालिनि // उत्तमे चंदने वृदे। फलं नोत्पद्यते किल / // 6 // ज़वेच्च पुत्रबाहुल्यं / दारिद्याकुलिते कुले // बायासौरज्यमुक्त च / करीरे बहुलं फवं // 3 // मंत्रतंत्रप्रयोगैमें / देवानां चौपयाचितैः॥ समस्तैर्विफलैर्नृतं ।पुलोत्पत्तिकृते कृतैः // 6 // अथान्यदा. समायातो। दमसारो महामुनिः॥ ज्ञानत्रयप्रदीपांशु-दीपितस्वांतमंदिरः // 65 // मया सपरिवारेण / गत्वा नेमे मुनीश्वरः // अनुकंपापरोऽस्मासु / प्रारेने सोऽविदेशनां // 66 // यः प्राप्य दुःप्राप्यमिदं नरत्वं / धर्म न यत्नेन करोति मूढः // क्लेश P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और चार 177 प्रबंधैन स लब्धमब्धौ / चिंतामणिं हारयति प्रमादात् // 67 // इत्यादिदेशनावाक्य--पीयू. परसर्सिचनैः // रागोरगविषावेगं / स मे किंचिदशीशमत् // 6 // विज्ञप्तः स मया साधो / राज्यं त्यक्त्वाईतव्रतं // त्वदंतिकेऽधुनादास्ये-जविष्यन्नंदनो यदि // ६ए // राज्यमेतनिराधारं / मोक्तुं शक्नोमि नो प्रजो // एकोऽपि च न मे पुत्रो। यो राज्यं धरतेऽग्रतः // // 6 // ततः प्रसीद जगवन् / राज्ययोग्यं नरं वद // तस्मै राज्यं यथा दत्वा ।प्रव्रज्यामह माश्रये // 1 // मुनिनोक्तं महाराज / राज्ययोग्योऽत्र नो नरः // यो जेष्यति रणे त्वां तं / राज्ययोगमवैहि वै // 12 // अद्यापि तव नोक्तव्यं / विद्यते कर्म शर्मकृत् // गृह्णीया गृहमु. त्सृज्य / तस्मिंश्च मिलिते सति // 73 // ततो नागरिकैर्लोकः / सहैवाददि सन्मुनेः // पा सम्यक्त्वमूलानि / बादशाणुव्रतान्यहं // 4 // विजहार महीपीठे। दमसारमुनीश्वरः अहं चास्यां गुणांस्तस्य / स्मरन् कुंदेंदुसुंदरान् // 35 // अनेके मिलिताः शूरा। अहंकारपराः परं // अहं केनापि वीरेण / गुंजितो न कदाचन // 76 // अद्य त्वया जितश्चित्तें / रंजितोऽप्यनवं दृढं // तनो कुमार राज्यं मे। समलंकुरु सांप्रतं // 7 // अहं दीदां गृही. || P.P. Ac! Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक ज्यामि / संसारविरताशयः // इत्युक्त्वा खेचरेंजेण। खेचरा मेलिताः समे // // कृत्वामृ तयशःशीर्षे / तिलकं मणिकुंमलः // सर्व विद्याधराध्यदं / निजराज्यं ददौ मुदा // ए ॥वयं चरित्र शाश्वतचैत्यानि / वंदित्वातिसविस्तरं // दमसारमुनींजस्य / पार्श्वे व्रतमुपाददे // 70 // तत्रा१७॥ मृतयशा राज्यं / श्रीमंदिरपुरेऽकरोत् // सर्वखेचरराजें-सेवितांहिपयोरुहः // 7 // अन्यदा पुष्पवत्याथ / विज्ञप्तः कीर्तिसारभूः // स्वामिन् मातरपित्रोमें। महद्छुःख जविष्यति // // 2 // तत्तत्र गमनं कृत्वा / दत्वा च निजदर्शनं // मत्पित्रोमित्रवन्नाथ / प्रबोधय हृ. दंबुजं // 3 // ततोऽमृतयशा विद्या-धरराजिपरिवृतः // बिमानेोतयन् व्योमा-चालीचक्रेश्वरं प्रति // 4 // चलन् गगनमार्गेण / कालादल्पतरादपि // चक्रेश्वरपुरासन्नं / समागात्पुरुहूतवत् // 5 // तावदेको जनो गत्वा / सुरशेखरभुजुजं // अवर्धयन्महाराज / जामाता ते समागतः // 6 // पुष्पवत्या च ते पुत्र्या। सहैव पुरसन्निधौ / / इत्याकर्ष्यामृतेनेव / सिक्तोऽतोषन्महीपतिः // 7 // चचाल संमुखं स्मेर-मुखो जामातुरेषकः // कुमारोऽपि पुरासन्न-मुत्ततार-महीतले // 7 // आसन्नं श्वशुरं दृष्ट्वा / विमानादवतीर्य सः // नमोऽकार्षीत्कु- // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्रत्येक मारस्तं / हृष्यंत सुरशेखरं // स्वतातपादपाथोज / मुंगीवत्पुष्पवत्यपि // प्राप्य प्रमुदिता || | जज्ञे / गलद्धर्षाश्रुलोचना // ए० // प्रवेशकमहं कृत्वा / दत्वा दानान्यनेकशः // प्रवेशितो नरेंजेण / कुमारो नगरांतरे // ए१ // पृष्टया पितृमातृभ्यां / पुष्पवत्या प्ररूपिताः // अवदाताः समे नर्तुः / श्रुत्वा तावपि विस्मितौ // ए // कियत्यपि गते काले / कलहंस्याथ कांतया // व्यापि विडया कांतः। स्वकीयः कांतया गिरा॥३॥ पुष्पवत्या व स्वामिन / पित्रोमें देहि दर्शनं // मेघवलमयोत्तापं / मझियोगदवोनवं // ए४ // ततो मदाग्रहपरो / दत्वा दानं व्यसर्जयत् // नृपः सोऽपि प्रियायुग्म-युतोऽचालीरपुरात्ततः // ए५ // प्रौढं विमानमारूढो / विद्याधरनरावृतः // कमलासनपूःपार्श्वे / स प्राप व्योनि संचरन् // ए६ // वने न्यवी विशत्सैन्यं / कलहंसी च सोऽवदत् // प्रिये मेलयितुं तातं / तवात्रैव समानयेत् // एy // ततः स विद्यया चक्रे / रूपं मत्तस्य दंतिनः // कानने क्रीमितुं चागा-देकाकी पुरपार्श्वगे // एy // कमलध्वजराजें-स्तावत्तत्र समाययौ.॥ मत्तं मतंगजं तं च / दृष्ट्वात्यंतं जहर्ष सः // गए // आरुरोद वशीकर्तुं / यावत्तं कमलध्वजः // तावदाकाशमार्गेण / तार्यपक्षीव सोऽचलत् // // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो // थानीय निजसैन्यांतः / स्वविमाने निवेश्य तं // अपहृत्य हस्तिरूपं / सोऽजूरखा- 11 नाविकाकृतिः // 1 // किमेतदिति संत्रांतो। नरेंजो यावहते // तावदने सुतां सौवां / कचार लहंसीमलोकत // 2 // सापि तातपदांनोज / प्रणनाम मुहर्मुहः // सोऽपि तामंकमारोप्या 170 -प्रादी वृत्तांतमादितः // 3 // तयापि निजतातस्य / पुरस्तात्स निवेदितः // राझोक्तं पु त्रि में चित्रं / हस्ती व्योनि चचौल यत् // 4 // अन्यच्च मामिहानीय / क्वचिद् दृष्टोऽपि नो पुनः // विहस्य कलहंस्याह / वजामातृकृतं ह्यदः // 5 // तद्द्वात्वा निजजामातुः। कला कौशलमद्भुतं // चित्ते चमत्कृतोऽपश्य-त्तन्मुखं सोऽनिमेषक् // 6 // तावत्तत्र समायातं / पश्यदंबरमुन्मुखं // गजगत्यनुसारेणा-गछत्सैन्यं नरेशितुः // 7 // शंकया प्रतिसैन्यस्य / या. वत्सजी नवत्यदः // तावत्तत्र निजं नाथ-मासनासनमैदत // 7 // जामातुः पुत्रिकायाश्चागमं श्रुत्वा नरेशितुः // मुदिताः सैनिकाः सर्वे / जझिरे धन्यमानिनः // ए // राज्ञा महामहैः सारः / कुमारी वेशितः पुरे // लुंजानो विषयांस्तत्र / तस्थौ कतिपयान् दिनान् // 1 // // अन्यदा मिशि सुतोऽसौं। जार्यां कनकमंजरीं // अस्मार्षीन्मिलनोस्कंग / तदेवोत्पद्यतेस्म च || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारवं प्रत्येक // 11 // सत्कृत्यात्यंतदानेन / कमलध्वजभूजुजा // विसृष्टः सपरिवारो-ऽचलजयपुरंप्रति // // 15 // आगट्योममार्गेणा-चिरकालेन तत्पुरं // अकस्माज्जयसेनस्य / सजायां च समाय यौ // 13 // खवियोगांतपाबुष्य-दर्शनोत्थमुदंबुनिः // कुमारः पूरयामास / मेघवन्नृपमानसं 101 | // 15 // ससंत्रमं समुत्तस्थौ / सन्मुखं तस्य नूपतिः // यालिलिंग कुमारें / वासनार्धे न्य वेशयत् // 15 // अप्रादीत्कुशलोदंतं / दंतकांत्यावनासयन् // सजामजाषत स्वीयं / स्वरूपं || खयमप्यसौ // 16 // विसिष्मये नरेंप्रेण / सत्यापि समस्तया // जोजनानंतरं चोचे / सु.।। खासीनं तमादरात् // 17 // कुमार शृणु वृत्तांतं / त्वयि रात्रावतर्किते // गतेऽहं व्याकुलोऽ. भूवं / प्रनाते त्वदनावतः // 17 // मयैव प्रेषितैः प्रेष्यै-नवंतमवलोकितुं // भ्रमन्निः पृथिवीपीठे / दृष्टास्त्वपितृसेवकाः // 15 // एकमेवात्मनां कार्य-मित्युक्त्वा मिलितैश्च तैः // (विलोकितोऽसि देशेष्व-नेकेषु नामितः परं // 7 // ततः खिन्नाः समायाताः / सर्वेऽपि मम सन्निधौ // मया च रक्षिता अत्र ।त्यदीयागमनाशया // 1 // त्वयि सांप्रतमायाते / फलितं || मन्मनोरथैः // इत्युक्त्वा भूजुजा तस्य / पितुर्नृत्याः प्रदर्शिताः // 22 // अथामृतयशा राजा PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / दृष्ट्वा तान् हृष्टमानसः // सोऽपृबत्कुशलोदंतं / मातापित्रोः कृतादरः // 3 // तैरूचे कुश- || लं देव / सर्वेषामपि विद्यते // परं तव वियोगेन / पुरमप्यस्ति दुःखितं // 24 // किं कथ्यते चरित्र कुमारऽ / त्वपित्रोदुःखमस्ति यत् // त्वपितुएंजिकां माता / धत्तेऽथो कंकणास्पदे // 25 // 12 इति श्रुत्वामृतयशा / गलत्स्थूलाश्रुलोचनः // उवाच श्वशुरं राजन् / दुर्विनीताग्रणीरहं // // 26 // धिग्मां येन निजस्तातो / फुःखांजोधौ निपातितः // न सोढं च वचस्तस्य / विक्रीतैर्यस्य गम्यते // 27 // स्तन्यपाना जननी पशूना-मादारलाना च नराधमानां // . श्रागेहकर्मावधि मध्यमाना-माजन्म तीर्थ तु नरोत्तमानां // 27 // तन्मया जननी सौवा-धमे. नासुखिनी कृता // ततः स जयसेनेन / दुःखं कुर्वन्निवारितः // श्ए / उक्तं च नोः कुमारे / नापराधस्तवैष यत् // मत्पुत्रिका दिनाग्येन / समाकृष्टस्त्वमागतः // 30 // उत्कृष्टदानस माने / दत्वा सोऽथ विसृष्टवान् // कुमारः प्राचलत्सार्थे / नीत्वा कनकमंजरीं // 31 // पितु तॄत्यान् समारोप्य / विमानेषु ननोऽध्वनि // चरन्नचिरकालेन / स प्राप पुरसंनिधौ // 3 // // एको विद्याधरो गत्वा / त्वरितः संसदि स्थितं // कीर्तिसारनृपं प्राह / राजन् वर्धाप्यसेऽधु || Jun Gun Aalaalaust Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक ना // 33 // पुत्रोऽमृतयशा विद्या-धरराजेंजराजितः // आगजन् वर्तते तातं / त्वां नेटयितु | मुद्यतः // 34 // इति श्रुत्वा तदा राजा / तथातुष्यद्यथादमः // वक्तुं कोऽपि न मूकांगि जुक्ताम्रमधुरत्ववत् // 35 // तस्मै सुवर्णमाणिक्य-प्रमुखं पारितोषिकं // दानं दत्वा नृपोऽवादी-छत्स त्वं गड संमुखं // 36 // दणं कुमारमायांतं / रदैतत्पुरसंनिधौ // यावद्विधीयते शोजा / शोजना नगरांतरे // 37 // इत्युक्ते सत्वरं गत्वा / स तातादेशमन्यधात् // उत्ततार कुमारश्च / पुरासन्नवनांतरे // 30 // पुत्रस्य सन्मुखोऽचाली-नगरं मणितोरणं // कृत्वा राजा शुजस्तनो-तंजितानंततोरणं // 35 // आयांतं तातमालोक्य / विमानादवतीर्य च // लुग्न् बुग्न् महीपीते। कुमारस्तं नमोऽकरोत् // 40 // राजाप्युत्थाप्य सस्नेह-मालिंग्यैव स्थितश्चिरं // वारंवारं शिरोदेशे / चुचुंब निजमंगजं // 41 // पृष्ट्वा कुशलवृत्तांतं / राजारुह्य मतंगजं // अंगजं निजमुत्संग-मारोप्य प्राविशत्पुरं // 45 // मागधैर्मण्यमानासु / छंदः. षट्पदगीतिषु // वाद्येषु वाद्यमानेषु / पुरांतः प्राप भूपः // 43. // तदाभून्नगरक्षोज / आगछत्तमदाजनः // ढलघृतघटान् मुक्त्वा / कुमारमवलोकितुं // 4 // काचित्खबालकात्या। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 104 कटौ कृत्वा शुनोऽर्जकं // पश्यंती हस्यते लोकैः / कुमारं व्यग्रमानसा // 45 // स्नातुं स्थिता निः कांनिश्चि-नारी निर्देहमजनं // कुगरघातादधिकं / मेने श्रुत्वा तदागमं // 6 // . कंकणान्यहिषु दिप्त्वा / नूपुराणि करेषु च // उष्टेषु चांजनं दत्वा / तं यलोकंत काश्चन // // 47 // इतीक्ष्यमाणः साश्चर्यैः / संत्रांतैः प्रमदाजनैः // प्राप्तौ राजांगणहारे ।मंगलाचारपू. र्वकं // 4 // प्राविशत्तत्र राज्ञा च / वासनार्धे निवेशितः // पृष्टो देशांतरोदंतं / सोऽपि सर्व न्यवेदयत् // भए // दणांतरादथोत्थाय / कुमारो गृहमंतरा, // गत्वा कीर्तिमती राझी / सवित्री सादरोऽनमत् // 5 // तिस्रस्त्रिन्योऽपि लोकेभ्य / उध्धृतैः शुजगाणुनिः // घटिता व तेन स्व-प्रिया मातुः प्रदार्शताः // 51 // प्रणेमुस्ता अपि स्वीयां / श्वश्रू वात्सत्यशालिनी // तयापि चाशिषा पुत्रः / सनार्यों मुदितः कृतः // 55 // पृष्ट्वा कुशलवृत्तांतं / प्रणम्य जननी पुनः // आगत्य स्वपितुः पार्श्वे / नृत्यवत्तत्र तस्थिवान् // 53 // अथो शुजदिने प्राप्ते / विधाय तिलकं स्वयं / / स्वराज्यमभृतयशसे / कीर्तिसारनृपो ददौ // 55 // गुरोविमलचंदस्य पार्श्वे वैराग्यरंगवान् // राजादत्त महादान-मादत्त व्रतमार्हतं // 55 // अथातयशा रा- || P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 जो निजं राज्यपालयत् // खेचर चरैजूंपै-नम्यमानपदांबुजः // 56 // कियत्यपि गते || का। सजायाँ संस्थितं नृपं // विशालायुधशालाया। रक्षितेति व्यजिझपत् // 57 // दे| वाय यावदादित्य / उदेतिस्मोदयाचले // तावदायुधशालायां / चक्रं चाज्ज्वलज्ज्वलं // | // 5 // अद्य मन्ये दिवा नारी / जझे पूर्णमनोरथा // सूर्यचक्रसिव प्राप्त-कुंमलझयमंगना // एए // पूजानाव्यप्रबंधेन / विधायाष्टाह्निकामहं // चचाल चक्रमादाय / कर्तुं दिग्विजयं नृपः // 60 // भूपालचक्रवालेन / दोच्या चक्रबलेन च // सोऽखिलें साधयामास / विजयं पुष्कलावतीं // 61 // क्रमेण विक्रमाक्रांत-षट्खमदितिमंमलः / प्रत्यांगतश्चक्रवर्ती / खपुरं मणितोरणं // 6 // प्रधानानि निधानानि / संस्थुस्तत्संनिधौ नव // तस्य कार्यकराण्यासन् / रत्नान्येव चतुर्दश // 3 // षोमशसहस्रसंख्यै-यदैः संसेव्यतेस्म सः // द्वात्रिंशता सहस्रश्च / नृपैर्मुकुटमंमितैः // 64 // देवांगनाधिकश्रीका। लावण्यरसकुंपिकाः // चतुःषष्टिसहस्राणि / पत्न्यस्तस्याजवंस्तथा // 65 // लदाश्चतुरशीतिश्च / तुरगाः कुंजरा रथाः ॥कोटयः पवित्याद्या-स्तस्याभवन् पदातयः॥६६॥ तावन्माना महापामाः / पत्तनान्युत्तमानि च ॥छा. || P.P.Ac. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक / सप्ततिसहस्राणि / द्वात्रिंशन्नाटकानि च // 6 // इत्यादि चक्रिणो लम्या / संगते स्वपुरा- || गते // चक्रिपट्टानिषेकश्च / तस्मिन्नृपे कृतो नृपैः // 60 // जज्ञे छादश वर्षाणि / सदृगेव महान् महः // चक्री तत्र सुखेनास्थात् / षट्खंमाखमराज्यजुक् // 6 // // अथान्यदा पुष्पर७६ वतीं / विछोयवदनांबुजां // चक्री चिंतातुरां दृष्ट्वा / पृष्टवानिति सांजसं // 70 // करीर. हवदेवि / विद्याया किमु दृश्यसे // व्याधिर्वाधिः शरीरं ते / सांप्रतं बाधते किमु // 1 // तयोक्तं त्वत्प्रसादेन / बाधा काचिन्न मे प्रनो // परमेकोऽपि मे सूनु-नेति खिद्येऽहमन्वहं // // 7 // चक्रिणोक्तं प्रिये नात्र / खेदः कार्यों मनागपि // अहं तथा यतिष्ये ते / नविष्यति यथा सुतः // 73 // सोऽस्मादिश्र पूर्वोक्तां / यक्षिणीं जयसुंदरीं // अतुल्यकल्यवात्सल्य -बलबाहुल्यसुंदरीं // 4 // आगता स्मृतिमात्रेण / सा जजल्प पुरः स्थिता // अनपनाग्यसोजाग्य-सुनगाहं स्मृता कुतः // 5 // चक्रिणोक्तं पुष्पवतीं / देवि पुत्रवती कुरु // ए. | तदर्थे स्मृतास्मि त्वं / सर्ववहीवेप्सितप्रदा // 6 // अवधिज्ञानविज्ञात-जवितव्यतया // तया // अजाणि भूपते नावि / पुष्पवत्याः सुतघ्यं // 7 // स्वप्ने प्रक्ष्यत्यसौ सिंहा-वत्रानिझानमस्त्यदः APP.Ac- GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak Tlust. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / ततश्चक्रिविसृष्टा सा / समायाता स्वमास्पदं // 7 // अत्रांतरे प्रपंचेन / पूर्व यौ प्रतिपादितौ // // गुणचंडो गुणधर / इति संझौ सहोदरौ ॥ऽएा तयोरायुर्निजं जुक्त्वा / सागराणि चतुर्दश // लांतकाख्यदेवलोकाद् / गुणचंप्रस्ततच्युतः // 7 // अवातरत्पुष्पवत्याः / शुक्तिकाया बोदरे॥ मुक्तावत्पुष्पजृत्सिंहं / सापि स्वप्ने व्यलोकत ॥७॥संपूर्णेषु दिनेष्वेषा / पूर्वा दिगिव नास्कर // सा प्रासूत सुतं सूति-गृहदीपनदीपकं // 2 // नाम खप्नानुसारेण / पुष्पसिंह श्तीदृशं // प्रतिष्ठितं कुमारस्य / जझे चात्यंतमुत्सवः // 3 // पुनर्गते मिते काले / जीवो गुणधरस्य च // ततश्युत्वा पुष्पवत्या / गर्न एवावतीर्णवान् // // रत्नमालिकया कंठे-ऽलंकृतं सिंहमदजुतं // अपश्यजननी खप्ने / काले चाजीजनत्सुतं // 5 // महर्धापनं चक्रे / चक्री स्वनगरांतरे // रत्नसिंह इति खप्न-वशात्तस्यानियां व्यधात् // 6 // पुष्पदंतौ पुष्पदंता-विव तेजस्विनावुनौ // तावश्विनीकुमाराभा-ववर्धेतां शुजाकृती // // कलाकलापकौशख्य-मज्यस्याल्पदिनैरपि // उन्मुक्तबालजावौ तौ / जग्मतुर्यौवनं वयः // // तौ पित्रा परया भृत्या।रूपलावण्यशालिनीः // सौनाग्यमालिनीः कन्याः / प्रणयात्परिणायितौ // // बाज . P.P.AC.Guniatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्मतिरप्रीते-स्तावुनावपि बांधवौ // अरमैतामचुंजेतां / सहैवातिष्ठतामपि // ए // अथामृतयशाश्चक्री / सुजन् राज्यमखमितं // अनेकपूर्वलक्षाणि / क्षणवत्सोऽत्यवाहयत् // 1 // गुरोविमलचंद्रस्य / पट्टपूर्वोचले स्थितः // बोधयन् विपानि / कीर्तिसारमुनीश्वरः // ए॥ दिनेश्वर श्वायातः / पुरासन्नवने तदा // वनपालस्तदैवैत्य / वर्धयामास चक्रिणः // ए३ // // युग्मं // दत्वा दानैमसंख्यातं / तस्मै संतोषिताशयः // चक्रवर्ती निजं तातं / राजर्षि वं. दितुं ययौं / ए४ // स निःप्रदक्षिणीकृत्य / नमस्कृत्य मुनीश्वरं // तस्थौ यथोचितस्थाने / शुश्रावेति - देशना || एy // जो जव्या नवनीमरूपविपिने किंपाकपाकोपमे / यो वै वैषयिक सुखे रतमतिर्भूत्वा चिरं तिष्टति // श्रीधेयोनगरं सुपूरमयतः श्रीसंघसंघातत-श्युत्वोन्मार्गगतः स फुःखमनिश लुंक्ते निरालंबनः // ए६ // पूर्व कृतिन् यत्सुकृतं कृतं त्वया। ते. नैव खब्धा श्ह जन्मनि श्रियः // हापि चेदात्महित करिष्यसि / जवांतरे तर्हि सुखी न. विष्यसि / ए७ // नवे ज्वलन्मदिरसोदरेऽस्मिन् / को वावतिष्टेत विशिष्टबुद्धिः॥ नावादनीया | विषयों विषेण / विमिश्रितान्नोपमिता बुधेन // ए // श्रुत्वेति देशनों राज्ञो। मानसं तस्य / / / Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - प्रत्येक // मानसं // सरोवरमिवात्यंतं / व्यानशे संयमश्रिया // एए // प्रांजलिः प्रार्थनां चक्रे / चक्री तं मुनिपंप्रति // तात तावदिह स्थेयं / यावदायाम्यहं पुनः // 500 // जवांधपतितो राज्यचरित्रं मुखांजःखादलोलतां // त्यक्त्वाद्य निःसरिष्यामि / प्रव्रज्यासकारज्जुना // 1 // कालदेपो न कर्तव्य / इत्युक्ते गुरुणा नृपः // गृहं गत्वा निजे राज्ये / पुष्पसिंहमतिष्टपत् // 2 // सर्ववियाधराणां चा-धिपत्यं नृपपुंगवः // पुत्राय रत्नासिंहाय / स्वविद्यानिः समं ददौ // 3 // विधाय बंदिनां मोदं। मोदाकांदापरायणः // अनर्गलं महादानं / दत्वा चक्री व्रतं ललौ॥ // 4 // जोक्तुं च विषयान् मोक्तुं / समर्थस्तादृगुत्तमः // इतरः कातरो लोकः / किंचित्कर्तु. मनीश्वरः // 5 // तस्मिन्नवसरेऽनेकै-जूंपालैरपरैरपि // बहीनिश्चक्रिपत्नीजिः। प्रव्रज्या समुपापदे // 6 // पुष्पसिंहरत्नसिंहौ। सम्यक्त्वं जावपूर्वकं // पितामहादग्रहीतां / द्वादशाणुव्रतैर्युतं // 7 // गाहमानः श्रुतांशोधि / गृहंस्तत्वमणीन् मुनिः // तपांस्युग्राणि कुर्वाणो। व्य. हरदगुरुणा समं // // वैरिकुंजरविक्षोनी / नगरे मणितोरणे // शुंक्ते पुष्पसिंहो राज्यं / || सिंहवद्दलगर्जितः // ए // तस्यैवादेशमासाद्य / सद्यो विद्याधरान्वितः ॥रत्नासिंहो विमानेन। // PP:Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जा प्राप्तः श्रीमंदिरं पुरं // 10 // सर्वविद्याधरैस्तत्र / मन्यमानः स तस्थिवान् // साधयामास || सर्वाश्च / विद्या विद्याधरोचिताः // 11 // तत्प्रजावेण सर्वत्रा-स्खलितो विचरत्यसौ // नित्यं 'परिन शाश्वतचैत्यानि / वंदते नाविताशयः // 15 // अन्यदा रत्नसिंडेना-नंदानंदीश्वरंप्रति ॥.प्र. स्थितेन विमानेन / गलता गगनांगणे // 13 // विजये पुष्कलावत्या-मेकस्मिन्नटवीवने // तापसीतापसजनो। रुदन्नुच्चैर्विलोकितः // 14 // करुणापूर्णचित्तेन / तेन तत्रावतीर्य च // पृच्च्यते तापसश्चैकः / किमेवं ना रोदिति // 15 // मुक्तपुत्रकलत्रोऽपि / सांप्रतं तापसो जनः // तेनोक्तं शृणु वृत्तांत-मस्मिन्नेव तपोवने // 16 // अस्माकं त्राणभूतोऽमृद् / गुणगण्याकरोपमः॥ शुक्रबुद्धिः कुलपति-निनिध्यनिधानवान् // 17 // स एव स्वोटजे सुतो / दष्टो दुष्टाहिना निशि // मंत्रतंत्रप्रयोगाश्च / तापसैर्विहिता हितैः // 17 // परं सर्वेऽपि संजाता। निष्फालाश्चंदनपुवत् // अथो मृत इति ज्ञात्वा / दिप्त्वा जंपानकांतरे // 15 // मिलित्वा तापसैः सर्वै-देहसंस्कारहेतवे // नीयते सोऽधुना दुःखा-तापसैरिति रुद्यते // 20 // संसिक मंत्रतंत्रण / रत्नसिंहेन जल्पितं // मम दर्शय तं येन। कुवें कांचित्प्रतिक्रियां // 21 // इत्या P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .: Jun Gun Aaradhak Trust Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक % 3ES | कार्य सहर्षेण / रत्नसिंहस्य दर्शितः // निश्चेष्टः काष्टवत्तेन / नीयमानः सतापसैः // 5 // जीवतं लक्षणैत्विा / तं जलैर्मत्रसंस्कृतैः // यसिंचत्स तथा सज्जो / यथाजायत सोऽचिरात् // 23 // उत्तस्थौ प्राप्तचैतन्य-स्तदा कुलपतिर्वदन् // किमेतदिति संत्रांतो। विस्मयस्फारलोचनः // 24 // अमंदानंदसंदोह-जलदांकुरितांगकैः // तापसैः सर्वमाख्यायि / स्वरूपं पु. लकछलात् // 25 // अनेन नररत्नेन / जवानुजीवितोऽधुना // जल्पनिरिति तैरये। रत्नसिं. हः प्रदर्शितः // 26 // अथ सुस्निग्धदृष्टिस्तं / निन्ये कुलपतिर्निजं // श्राश्रमं सांजसं चाह। धन्यस्त्वं पुरुषोत्तम // 17 // परेषामुपकाराय / जन्म युष्मादृशां सतां // विधात्रा विहितं तेनो-चितं कर्म तवेदृशं // 27 // संति संतः कियंतोऽपि / तेऽत्र फनसवृक्षवत् // दिशंति फलमामूला-सरसं देहपुष्टिकृत् // श्ए // राज्यं करोषि यत्र त्वं / नगरं तत्किमुत्तमं // प्रशस्यः स प्रदेशः को। यमनुप्रस्थितो जवान् // 34 // के वर्या नृपते. वर्णा / गुंफितं तव नाम यैः॥ पुष्पमालेव लोकेन / ध्रियते कंठकंदले // 31 // ततो जनो रत्नसिंह-स्वरूपं सर्वमन्य|| धात् // ततः कुलपतिरिति / प्राह प्रमुदिताशयः // 35 // सर्व विद्याधराधीश / निःसर्गातुः || ' P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असे पकारिणः // तव प्रत्युपकाराय / प्रयतः को जवत्यलं // 33 // तथापि निज़सामर्थ्यानुसा- | // रात्स करिष्यते ॥'लोकेऽपि श्रूयते येना-तिथिर्गेहानुसारतः // 3 // इत्युदीर्योटजादेकं ।प्रेष्य तापसमाशु सः // कन्यामानाय्य राज्ञोऽग्रे / दर्शयित्वेत्यनाषत // 35 // महाराज तवैवैषा / 15 || योग्या नवति कन्यका // तवाश्रमगुरोरेषा-गतस्याद्योपढौकनं // 36 // सा रत्नसिंहमालोक्य / सानुरागाजवलृशं // रत्नसिंहोऽपि तां दृष्ट्वा / चिंतयामास चेतसि // 3 // स्वर्णसारान् गृहीत्वैषा। विधात्रा घटिता ननु // शेषस्वर्णेन मुक्तेन / पुंजो मेरुरजायत // 30 // विद्याधराधिपः प्राह / कुतः कुलपते तव // एषा कन्या मनोज्ञांगी। त्यक्तनार्या दिसंगतेः // 3 // ततः कुलपतिः प्राह / चरित्रं चित्तचित्रवत् // अस्त्यस्याः सावधानः सन् / महाराज विनावय // 40 // तथाहि विजये पुष्कलावत्या-मत्रास्तीदुपुरी पुरी // नृपः पुरंदरस्तत्र / पुरंदर व श्रिया // 41 // सवोतःपुरमुख्याभू-त्तत्पत्नी गुणसुंदरी // तत्कुक्षिकमलोदुभूता। राजहंसी सुताजवत् // 4 // | उन्मुक्तबाखजावा सा। चतुःषष्टिकलाः कलाः // अन्यस्यंती क्रमालोजो-भावनं यौवनं | "P.P.AC.Gunratnasuri M.S, Jun Gun Aaradhak Trust Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // ययौ // 43 // अन्यदा बंदिनां वक्ता-त्सा शुश्रावोज्ज्वखान् गुणान् // पध्नदेवकुमारस्य / | मारस्येव सुरूपिणः // 44 // अत्यंतमनुरक्ताभू-चस्मिन् हंसीव मानसे / / तत्प्राप्तिहेतवे नित्यं चरित्रं / नगरोद्यानवर्तिनीं // 45 // देवतां पूज्यामास / तं ध्यायन्नेव तिष्टति // तन्नक्तिरंजिताच ख्यौ / प्रत्यक्षीभूय देवता // 46 // युग्मं // वत्से तथा यतिष्येऽहं / यथा पद्मरथात्मजः // जावी पद्मपुरस्वामी / पद्मदेवो धवस्तव // 4 // विश्वस्ता तहचः श्रुत्वा / सा तस्थौ सुख शालिनी // अज्ञाततत्परीणाम-स्तां ददौ जनकोऽन्यदा // 4 // खनृत्यहरिदत्ताय / रूप|| सौचाग्यशालिने // सात्वा कन्यिका जज्ञे / मनस्यत्यंतःखिता // ४ए // चिंतया सा पि शाच्येव / बखिताभूहिसंस्थुला // कृशदेहाजवत्कृत-पके चंडकलेव च // 50 // शुष्यंती तां क्रमाद् ग्रीष्म-समये सरसीमिव // धात्री दृष्ट्वेति पप्रछ / वत्से किं दुःखमस्ति ते // | // 51 // कथंचित्कथयामास / सापि खानिमतं वरं // धात्र्योक्तं पूर्वमेवैत-छत्से नोक्तं कुतस्त्वया // 55 // परमद्याप्युपायं तं / करिष्येऽहं स्वबुद्धितः // पद्मदेवो यथा नर्ता / जवत्या जाविता सुते // 53 // ततः प्रबन्नमाकार्य / निजं विश्वासलाजनं // जनं प्रेषीत् दाणाद्धा . e maining P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक // श्री। पद्मदेवस्य संनिधौ // 54 // सोऽपि पद्मपुरं गत्वा / नत्वैकांते तमब्रवीत् // कुमार प्रेषितो धात्र्या / राजहंस्या श्हास्म्यहं // 55 // विज्ञापितं तया तेऽदो-ऽमुकस्मिन् वा. सरे त्वया // त्वरया सायमेतव्यं / वनांतर्देवतागृहे // 56 // राजाय राजहंसी सा। राAryal जहंसीसरित्तव // आगमं प्रार्थयंत्यस्ति / पद्मोद्धासविधायिनः // 5 // आख्यानश्रवणादेव / पद्मदेवस्य मानसे // उवास राजहंसी सा / राजहंसीव मानसे // 50 // चचाल सपरिवार / प्राते संकेतिते दिने // वने सोऽश्वादिकं मुक्त्वा / मित्रेणैकेन संगतः // 55 // आगतो देवतागेहे / स्वयं चास्थात्तदंतरे // अत्रांतरे राजहंसी / कृता पाणिग्रहोचिता // 6 ॥युग्मं॥ स्नापिता सर्वसामग्या। विलिप्ता सुविलेपनैः // सर्वांगकृतभंगारा / सादालक्ष्मीरिवाबजौ / / // 61 // वादित्रगीतनृत्यायै-र्जायमाने कुतूहले // विवाहाख्ये महे प्राइ-राज्ञा प्रारंनिते सति // 6 // धात्र्या व्यज्ञापि राझोऽये / देवैषा परिणेष्यति // तदा देवीं वनस्थां सा ।प्र|| थम पूजयिष्यति // 63 // राशाज्ञायां प्रदत्तायां / संध्यायां स्वसखीयुतां // रथे निवेश्य तां || कन्यां / सा चचाल वनंप्रति // 64 // एकाकिन्यानया पूजा / कार्यात्रेत्यनिधाय सा // देव- / A C.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १एए / तामंदिरांतस्तं / प्रेक्ष्य प्रारि स्थिता स्वयं // 65 // पद्मदेवराजहंस्यो-स्तत्र प्रथमदर्शने // योऽभूधर्षभरो जाने / तन्मनांस्येव तं विपुः // 66 // गांधर्वेण विवाहेन / तत्क्षणं परिणीय चरित्र तां // तषमर्पयामास / स्वमित्राय नृपात्मजः // 67 // कुमारः प्रियया युक्त-स्तस्थौ देवकु लांतरे // मित्रं नववधूवेषं / विधायेतश्च निर्गतं // 6 // विज्ञाप्य संज्ञया धान्याः। वरूपं सर्वमप्यसौ // रथमारुह्य राजेंड-जवने शीघ्रमाययौ // ६ए // लग्ने च तत्क्षणाबग्ने / हरिदतेन तेन सा // विवाहिता महामृत्या / पुरंदरनरेंदुना // 70 // मंगलाचारचारेषु / व्यतीते षु समेष्वपि // हरिदत्तस्तया साकं / संप्राप्तो वासमंदिरे // 1 // अनेकहास्यलास्यादि-वचनैस्तेन जाषिता // यावत्प्रत्युत्तरं किंचि-त्सा ददौ न नतानना // 7 // हरिदत्तेन तावत्सा / स्पृष्टा वक्षःस्थले ततः // स ज्ञातः पुरुषाकारः / किमेतदिति विस्मितः // 73 // को. ऽसि त्वमित्यपृउच्च / प्राह सा त्वत्प्रियास्म्यहं // तेनोक्तं पुरुषस्पर्शः / किमेवं तर्हि ते तनौ // 4 // तयोक्तं त्वत्करस्पर्श-प्रनावोऽयमनीदृशः // यतो पुत्रस्य चिंतार्त-देहस्य मम वै || पितुः // 35 // कुलदेवतयाख्यायि / राजहंसी सुता तव // हरिदत्तकरस्पर्शा-भविष्यत्युत्त- // P AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक मः सुतः // 6 // युग्मं // दृश्यते सुरसस्पेशी–दयो यौति सुवर्णतां // तत एवं पिता तु | भ्यं / सेवकीयापि मामदात् // 7 // इत्याकार्य वचोऽनल्प-विकल्पाकुलिताशयः॥हरिदत्तो. | जिवत्तार्व-त्सां समुत्थाय निययौ // 7 // वेगेन वनमायासी-त्पद्मदेवस्य चामिलत् // सArya | हास्यं दत्तताले च / स्वरूपं सर्वमन्यधात् // ए // कलत्रमित्रकंहितः / संहितः सेवकैः स्व कैः // हयादिषु समारुह्य / कुमारः प्राचलत्ततः // // अथो स हरिदत्तोऽपि / श्वश्रूश्वशुरयोः पुरः // गत्वोवाच जवत्पुत्री / पुत्ररूपांधुनानवत् / / 71 // सविस्मयावतुस्तौ / जामातः किमु जल्पर्सि // असंबई किमेकस्मिन् / जवे सुता सुतो जवेत् // 2 // ततस्तेन वि. खदेणं / प्रोक्तं नववधूदितं // तान्यामवाचि रे मुग्ध। वैचितः केनचिनवान् // 7 // सुरो वा खैरो वा तो / कन्यामपजहार हा // ततो व्यलोकयाजा / सर्वत्र नगरांतरे // 3 // पर वातापि कन्यायो / यावखेने न कुत्रचित् // ततः सुस्थं मनः कृत्वा / राजा राज्यमपा लेयत् // // हरिदत्तोऽपि संतम-चित्तस्तस्या वियोगतः // प्रपैदे तापसी दीका / तपास्यु॥ प्राणि सोऽर्तपत् // 5 // अचिरेणापि कालेन / मृत्वा स व्यतरोऽजवत् // श्तश्च पद्मदेवोऽ / 4 . Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक ।पि। गबन प्राप महाटवीं // 6 // वर्षती शरधारानि-रकस्मात्तावदुत्थिता / धाटी धाराधरेणाजा / ज्वलदस्त्रतमिहरा // 7 // कुमारसेवकैः साकं / चिरं युद्धमजायतः // बहुलैः शबरैः केचित् / पंचत्वं प्रापिता भटाः // // केविनयविनीतांगा। दश दिक्षु परए लायिताः // एकाक्येव कुमारोऽस्थात् / प्रियारक्षणतत्परः // ए // युध्यमानेन. सरंजाकरटी निर्धाटिताखिला // बलिष्टेन कुमारेण / मेघमालेव वायुना // ए // नृत्यानामूकत्यानि / कृत्वा स प्राचलत्ततः // एकया प्रियया युक्तः। स्वकीयनगरंप्रति // ए१ ॥गबन क्रमेण संप्राप्तः / सोऽस्मिन्नेव तपोवने // राजहंसी पथि श्रांता। जगाद प्राणवसनं // ए॥ स्वामिन्नस्मिन् वने रम्ये / रम्यते कियतो दिनान् // लतानां मंगपा अत्र / संति सहसन्निनः॥ ए३ // नर्तक्य श्व दृश्यंते। चमचमरहुंकृतेः // कुर्वत्यो नित्यसंगीत-मिह वाताहता लताः // ए४ // फलजारनतीभूता-श्रूतादितरवोऽप्यमी // अर्थयंत्यतिथिं नूनं / रक्षितुं त्वां गृहागतं // ए६ // ग्रीष्मोऽपि सांप्रतं नीष्मः। काल एष समागतः // अस्मिन्न गम्यते धन्यैः / पथिकैः पथि कैश्चन // ए // एवमस्त्विति जल्पित्वा / कुमारस्तत्र तस्थिवा B.P.AD, Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक परित्रं न् // स्वपन् क्रीमन् लताखंग-मंगपेषु गृहेष्विव // ए // फलाहारतृप्तकायः / कुमारः स निरामयः // झुंजानो विषयांस्तत्र / तस्थौ खप्रियया सह // एए // दृष्ट्वा तौ दंपती स्मृत्वा / / तन्निर्मितविलंबनं // उबसबैरवारेण / चिंतितं तेन चेतसि // 6 // स एष येन दुष्टेन / विरहो मे शुजस्त्रियः // पातितोऽस्यास्तदस्यापि / तमेवेह करोम्यहं // 1 // यतः कृते प्रतिकृतं कुर्या-त्सर्वथा न दमा वरं // पादैनिहन्यते हीन-रपि सर्वसहाः दमाः // 2 // ततः फलान्युपादातुं / पद्मदेवो ययौ वने // तावदेवः प्रियापार्श्वे / व्यधात्परनराकृति // 3 // कणात्फलान्युपादाय / प्रत्यायातो व्यलोकयत् // कुमारः परपुंसा तां / क्रीमंती देवमायया // // 4 // तत्कालोत्पन्नमन्युः स / मूलादुन्मूख्य पादपं // अनेनाहन्मि हंतैतौ / चिंतयन्नेवमा. ददे // 5 // चिंतितं च पुनश्चित्ते-ऽनर्थमेतं करोमि किं // महेलारक्तचित्तस्या-वहेला कस्य नो नवेत् // 6 // पितृमातृसुमित्रादे-वियोगो यन्ममाजनि // तत्र सर्वत्र पापिष्टा / दुष्टैषैव नि बंधनं // 7 // पूर्व स्वमातृपित्रोर्या / वचनं कुरुतेस्म सा // करिष्यति कथं मे नो / विमृष्टं न मयेत्यपि // 7 // किंच-स्त्रियो रमंते मनसान्यपुंसा / वाचापरेण क्रिययापरेण / / सूर्यप्रिया || P.PAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ण्णा किं न लिनी न हंसैः / संगं च नँगैः कुरुतेंतरंगं // ए // अनेन कृतसंकेता / विश्रामस्य मि पादिह // एषा रदत्यदो स्त्रीणां / कपट किंचिदुत्कटं // 10 // तदेतां बहुपापां किं / हत्वा चरित्र पापी जवाम्यहं // त्यक्तनार्यों विचिंत्येति / चलितस्तत्प्रदेशतः // 15 // गतस्तस्य मार्गात श्चारणश्रमणोऽमिलत् // प्रबुद्धस्तचोनिः स / व्रतमार्हतमाश्रयत् // 13 // सममाणिक्यलोष्टोऽथो। विशिष्टतपसोज्ज्वलः // खगधारासमं सम्यक् / संयमं सोऽप्यपालयत् // 14 // अथ सा राजहंसी ख-मपश्यंती प्रियं चिरात् // साशंका सर्वदेशेषु / व्यलोकत वनांतरे // // 15 // तं क्वाप्यनीक्षमाणा सा / जयोव्रांताऽपतलुवि // निश्चेष्टा काष्टवत्कष्टा-छाताहतलतेव सा // 16 // दणादासाद्य चैतन्यं / विललापेति खिता // प्राणनाथ कथं त्यक्ता / निराधारात्र कानने // 17 // पितृमात्रादिकं मुक्त्वा / नवानेवाश्रितो मया // नविष्यामि कथं नाथ / त्यक्ताथ जवताप्यहं // 17 // निर्दोषामशरण्यां मा-मरण्ये त्यजतस्तव // नौ. चिती यत्सदोषापि / त्याज्या कृत्वा परीक्षणं // 15 // सनाथं नाथ जवता य-दासीन्मे त्रिदिवोऽधिकं // तदैवैतछनं जरे-ऽधुना प्रेतवनाधिकं // 20 // अहं गर्भवती बाला / वियुः / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक का प्राणवनात् // रे दैव विहितारण्ये / कारुण्यं तन्न ते हृदि // 1 // इत्यादि सुचिरं || कादं 1 विलपंती विलोकिता // एकया मम तापस्या / पृष्टा कष्टनिबंधनं // 25 // श्रवदश्रुपयोधारा / सरसीभूतभूतला // सा गजदादरं सर्वं / वरूपं तत्पुरो जगौ // 23 // तापस्या सा वयस्येव / नीतास्मिन्नाश्रमांतरे // पुरो मम समग्रोऽपि / तवृत्तांतो निवेदितः // 24 // मया सा जणिता वत्से / मा रोदीव सुस्थिता // स्वमातृरिव पश्यैतां-स्तापसां स्तिष्ट चाश्रमे // 25 // इत्युक्ता वत्सलैक्यैि -मनाग्मनसि सुस्थिता // तस्थावत्राश्रमे गर्न। वहंती पितृगेहवत् // 36 // संप्राप्तें समयेऽसूत / सा सुतामद्जुताकृति // सूतिरोगोरगग्रस्ता। मृत्यवस्थामवाप सा // 7 // श्तश्च विहरन् भूमौ / पद्मदेवमुनीश्वरः // अवधिज्ञानमासाद्य / स्वखरूपं व्यलोकयत् // 27 // राजहंसी सती ज्ञात्वा / तच्च व्यंतरचेष्टितं // हा मया सा सुशीलापि। कलंकेन कलंकिता // श्ए // असदोषाधिरोपेण / यदुःखं लजतेऽपरः // अध्यारोपकलोकस्य / ततोऽनंतगुणं नवेत् // 30 // तदद्यापि सुशीलां तां / जाग्गत्वा क्षमयाम्यहं // चारणर्षि। युत इति / विचार्यात्र स आययौ // 31 // अंत्यावस्थागतां तां सादर्शनेन प्रमोदयन् // कु PP-Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gus Aaradhak Trust Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक विकल्पं निज प्रोच्य / क्षमयामास सादरः // 35 // परलोकपथ पांथ-पाथेयेन सहोदरं // परमेष्टिनमस्कारं / तस्यै मुनिवरो ददौ // 33 // प्रपद्य जावसारं सा। शुलध्यानपरायणा // पंचत्वं प्राप्य सौधर्म-देवलोके सुरोऽनवत् // 34 // अवधिज्ञानविज्ञात-निजपूर्वजवः सुरः / आगत्य दीप्यमानांगो / ननाम मुनिपुंगवं // 35 // पुरोऽस्माकं समस्तानां / स्ववृत्तांतपुरस्सरं // परमेष्टिनमस्कार-फलमाख्यातवान् सुरः // 36 // विधाय राजहंस्याश्च / रूपं पुत्री. मपलियत् // स्नेहो यस्मादपत्येषु / सर्वस्नेद शिरोमणिः // 3 // विजहार महीपीठे। पद्मदेवमुनीश्वरः // जवाब्धौ पततां प्राण-नृतां त्राणकृते कृती // 30 // तदादि तापसैः सर्वैविपूर्व निरंतरं // परमेष्टिनमस्कारो / ध्यायते गुण्यते सदा // 35 // उन्मुक्तबालजावां तां बालां मह्यं प्रदाय सः // सुरः खस्थानकं प्राप / पुत्रीवावर्धतोटजे // 40 // नो रत्नसिंह रा. जेंड / धन्या कन्या तबातिथेः // किंचित्प्रत्युपकाराय / मयेयमुपढौकिता // 41 // तत्पाणिग्रहणेनाद्य / जन्मास्याः सफलीकुरु // सौंदर्यादिगुणाः स्त्रीणां / निष्फलाः सत्पति विना // // 45 // यदादिशथ यूयं त-प्रमाणमिति जल्पता // रत्नसिंहनरेंडेणां-गीकृता वनसुंदरी / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 3 // विवाहसमयं पुत्र्या / ज्ञात्वा तङननीसुरः // अचीकरचयोरेत्य / पाणिग्रहणमुत्स वैः // 4 // राजेंज रक्षणीयेयं / देहबायेव पार्श्वगा // इत्युक्त्वा स सुरः प्राप्तो / निश्चितो चरित्रं निजमाश्रयं // 45 // कुलपतिश्च सत्कृत्य / खेचरें व्यसर्जयत् // सोऽपि प्राचलदारोप्य / .205 विमाने वनसुंदरीं // 46 // गत्वा शाश्वतचैत्येषु / श्रीमन्नंदीश्वरादिषु // नत्वा स्तुत्वा पूज: यित्वा। जिनान् पुण्यं नृपोजयत् // 4 // व्याघुट्यात्मीयनगरं / प्रत्यागन्निरैत // विजये पुष्कलावत्या-मेकस्मिन्नगरे नृपः // 4 // मिलितानेकभूपालं / बकौच्चैर्मचममलं // स्वर्णस्तंजादिशोनाढयं / स्वयंवरणमंझपं // 45 // युग्मं // कौतुकं दृष्टुकामेन / वने परिकर नि. जं // निवेश्यैका किना राज्ञा / तत्र प्रावेशि मंगपे // 50 // विशिष्टासूपविष्टासु / वसुधापालपंक्तिषु // ज्येष्टं श्रेष्टं गुणैः पुष्प-सिंहं दृष्ट्वा स हृष्टवान् // 51 // एकं पुरुषमपब-किमेतत्परमं पुरं // को वा नृपोऽत्र का कन्या / या नवित्री स्वयंवरा // 55 // तेनोक्तं गुणनामभ्यां / लक्ष्मीपुरमिदं पुरं // लक्ष्मीशेखरराजस्य / कन्या कुसुममालिका // 53 // तावदेव समाया|| तातत्र घोतितदिक्तटा // कन्या कुसुममालाख्या / सख्या दर्शितमार्गगा // 54 ॥वक्त्रेण / / PRP.Ac: Gunrathasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 203 / शशिनं जित्वा / तारास्तदयिताः समाः // पुष्पमालामिषाध्वा / यावहत्करपंजरे // 55 // || पृष्टमुक्कान् श्यामयंती। दामयंती ततस्ततिं // द्योतयंती पुरःस्थांश्च / शुशुन्ने दीपिकेव चरित्रं सा // 56 // सख्युक्तान् राजराजीनां / गुणान्नामानि एवती // पुष्पसिंहनरेंजाये। समा गात्सा शुजाकृतिः॥५७ // तं प्रेय प्रेमपूर्णा सा / यावत्तिष्टति तत्पुरः // श्येनश्चिबीमिवा. दायो-ड्डीय वबाज खेचरः // 50 // महाखगानिधस्ताव-त्कोलाहल उदबलत् // पश्यत्स्वेव नरेंप्रेषु / खेचरो पूरतामगात् // एए // लक्ष्मीशेखरराजेन / प्रोक्तं सर्वान् नृपान्प्रति // ह्रियमाणामिमां पुत्रीं / प्रत्यानयति योऽधुना // 60 // मया तस्मै प्रदातव्या / कन्येयमिति निश्चयः // खखशक्त्यनुसारेण / तद्यतध्वमहो नृपाः // 61 // इत्याकर्ण्य समे मौन-माधायास्थुरधोमुखाः // प्रांशुप्राप्ये फले को वा / वामनो यत्नमाचरेत् // 6 // अग्रे मम बृह वातु-हतेयं हीरियं मम // तस्मादत्र निजत्रातुः / साहाय्यं किंचिदादघे // 63 // एवं विचिंत्य निर्माय / विमानं रत्नसिंहराट् // कृत्वा रूपपरावर्त / पुष्पासंहपुरोऽन्यधात् // 6 // खामिन्नस्मिन् विमाने त्व-मारोह दणमात्रतः // आनीयते यथा कन्या। खेचराधमपा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं 200 प्रत्येक र्श्वतः // 65 // सविस्मयेषु भूपेषु / क एष इति चिंतयन् // तत्रारूढः प्रौढतेजाः / पुष्पासिंहो || // धनुर्षहन् // 66 // वेगेन रत्नसिंहेन / स नीतः खेचरांतिकं // तेन मर्मणि बाणेन। वज्रणेव हतो हृदि // 6 // स तत्याज दणात्प्राणान् / कन्या च करपंजरात् // पतंती रत्नसिंहेन / धृता पाणी प्रसार्य सा // 60 // आरोपिता समानीय। विमाने पुष्पसिंहराट् ॥प्रत्यागात्तत्पितुगैहै / राजावाप परां मुदं // ६ए // लक्ष्मीशेखरराजेंडः / कृत्वा वर्धापनं मुदा // अकार्षी|| बोजने लग्ने / विवाहं विहितोत्सवं // 70 // पुष्पसिंहनरेंधाय / दत्वा दानमनर्गलं // अमूमुचत्सुतापाणिं / सत्कारं चाकरोद् घनं // 1 // सर्वे सत्कृत्य सत्कृत्य / विस्तृष्टातेनं भूलुजः // ययुर्निजं निजं स्थानं / राजानो बहुमानिताः // 32 // पुष्पसिंहोऽन्यदाएछ-द्रत्नसिंहं कृतादरः // को जवान् कल्पवृक्षानः / परोपकृतिकर्मठः // 73 // तेनोक्तं निजमेवैत-त्कार्य कोत्रोपकारिता // मां नो जानासि किं बंधो / रत्नसिंहं निजानुजं // 5 // इति जल्पन् कृतखाना-विकरूपः सहोदरं // आलिंग्य वनसुंदर्या / लाजवृत्तांतमन्यधात् // 35 // तावुलो चातरौ तत्र / कियतोऽपि दिनान् स्थितौ // वखप्रियायुती प्राप्तौ / स्वस्वपत्तनयोश्चिरात् // || PP.Re. Gunratnasuri Mrs. Jun.Gurr Aaradhak. Trust Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 6 // पंचप्रकारविषया-मृतरसनिमग्नयोः // अभवन् भूरयः पुत्रा-स्तयोः कुलविजूषकाः॥ // // // व्यतिक्रांते घने काले / रत्नसिंहनरेश्वरः // आरुह्य पुष्पसिंहं स्वं / विमानं स्वर्गि- चरित्र रि ययौ // 7 // तत्र शाश्वतचैत्यानि / वदित्वा जक्तिनाजिनौ // जिनानां पुरतो नृत्य-गी. 205 // तगानादि चक्रतुः॥ ए // आत्मनोः कृतकृत्यत्वं / मन्यमानावुनावपि // गतौ श्रीमंदिरपुरे // सुखिनो तत्र तिष्टतुः // 7 // अन्यदा लब्धचारण-लब्धिरब्धिगुणश्रियां // स एव पद्मदेवर्षि-राययौ तत्र पापहृत् // // श्रुत्वा तदागमं गत्वा / नत्वा रोमांचकंचुकौ // तहाणीरसमापातुं / स्थितौ बझांजली उन्नौ // 2 // तद्यथा-कल्पांतार्क श्वोत्तापी / विरसश्चार्कपुपवत् // अर्कतूल श्वासारः / संसारः कस्य शर्मणे // 3 // जवारण्ये जनान्मोहो। धूर्तवधूर्तयत्यसौ // ईषहिषयसौख्यानि / प्रदाग्रे स फुःखदः // 4 // कणदृष्टविनष्टानि / सु. खानि सकलान्यपि // इंजाल श्वालोके / संसारे संति सर्वथा // जनो मोहमयीं पीत्वा / मदिरां गतचेतनः // एषोऽहं वसु चैतन्मे / जानात्येतहिमोहितः // 6 // राज्यं बैरिजनैरगंजिततरं गर्जद्गजै राजितं / कांताः कांतगुणोज्ज्वला ज्वलनवत्तेजस्विनः सूनवः // - - - - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरित्रं रंगमंगतरंगनंगसुनगा कीर्तिनरिनर्ति य-तत्सर्वं सुकृतं कृतं सुकृतिने दत्ते सुपर्वषुवत्॥ श्त्यादि देशनां श्रुत्वा / प्रबुझौ तावुनावपि // ऊचतुर्नगवन् किं कि-मावान्यां सुकृतं कृतं // // जवांतरे यदेतस्मिन् / नवे राज्यमखंमितं // आवाच्यां जुज्यतेस्मैत-ततो मुनिरजाषत // नए // गुणचंद्रो गुणधर / इतिसंझौ सहोदरौं // पूर्वनवे युवामास्तां / नक्तौ जगवदंहिषु // ए० // अभूद्या गुणचंजस्य / गुणश्रीसंझिका प्रिया // जज्ञे कुसुममाला सा ।हितीया गुणवत्यपि // 1 // पुत्री मे रत्नसिंहस्य / पत्नीयं वनसुंदरी // श्रुत्वेति जातिस्मरणं / च. तुर्णामप्यजायत // ए // वैराग्यरंजितात्मानौ / प्रवज्यां लातुमुद्यतौ // तो व्यापयतां पझ-देवमेवं मुनीश्वरं // ए३ // जगवन् विहरन्नास्ते / कुत्रामृतयशा मुनिः॥ स्ववाणीशंखशब्देन / मोहनियां व्यपोहयन् // एच // मुनिनोक्तं जवत्तातः / स संयमपयोमुचा // जप शाम्य कर्मदाहं / निर्वाणं प्राप संप्रति // एए // प्रदीपः केवलं यत्र / शय्या सिफिशिलोज्ज्व. ला॥ तत्र मुक्तिस्त्रिया साकं / क्रीमन्नस्ति जकत्पिता // एव // तान्यामवाचि हे देव ।स्थेयं || तावदिह त्वया // यावां यावदिहायावः / कृत्वा राज्यस्थिति निजां // ए७ // निजतातपदं P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / - - प्रत्येक / शून्य-मावान्यामाश्रयिष्यते // गुरुणांगीकृते वाक्ये / स्वं स्वं राज्यं गताबुनौ // ए॥ राज्ये निजं निजं पुत्रं / संस्थाप्य परमोत्सवैः // तौ गत्वा पद्मदेवांते-ऽगृह्णीतां सप्रियो व्रतं चरित्र // // वैयावृत्त्यं गुणगुरुगुरोराचरंतश्चरंतः / पृथ्वीपीठे विगतममतामोहमायाविकाराः॥ल. 207 ब्धं साधूचितगुणमणीन् गाहमानाः श्रुताब्धिं / चत्वारोऽपि व्रतमपमलं पालयामासुरेते // // sou // चतुर्जिरधिकाशीति-पूर्वलदान् स्थिता गृहे / व्रते षोमशसर्वायुः / पूर्वकोटिमपाखयन् // 1 // संलेखनाशोषितपूर्वपापा / अंते कृतोद्यत्परमेष्टिजापाः // जाताः सुरास्तेऽच्युतदेवलोके / महर्डिका असमाः समेऽपि ॥२॥इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे नमितृतीयनववर्णनो नाम तृतीयः प्रकारः समाप्तः // श्रीरस्तु // // अथ चतुर्थः प्रकारः प्रारच्यते // अस्त्यत्र धातकीखमं / कुंमलालमिलास्त्रियः // ज्योतिष्करत्नखचितं। जगतीपाट्यलंकृतं // // तत्रोत्तरजरतार्धे / नगरं रत्नमंदिरं // इंदिरेंदीवरं त्यक्त्वा / मंदिरं यत्र निर्ममे // 2 // शूर|| सेनो नृपस्तत्र / शूरः सुरोऽरितामसे // तस्याजूच्चंतकांताख्या। कांता कांतगुणोज्ज्वला // 3 // / - - - P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृषलेजकुंजासिंहान् / स्वप्ने सापश्यदन्यदा // काले चाजीजनत्सूनुं / तेजःपुंजविराजितं // m || || तस्य प्रतिष्ठितं नाम / रामसेन श्तीदृशं // दितीशेनोत्सवं कृत्वा / स च वृद्धिं शनैरगात् चरित्रं || // // कलाकलापमन्यस्य,-निरस्यन् हीनसंगति // स कमात्कामिनीकामो-दीपनं यौवनं / / ययौ // 6 // तस्यैव भूमिपालस्य / रूपसौभाग्यसंपदा // यहितीया द्वितीयाभू-सूरकांतानिधा प्रिया // 7 // वृषनेलमृगासति-हया निशशिजास्करान् // सूचकान् वासुदेवस्योत्पत्तेः स्वप्ने ददर्श सा॥७॥ प्रारूपय स्त्रियस्याये / विचार्यैवं. बताण सः॥ प्रिये तवं सुतो नूनं / बासुदेवो नविष्यति // ए.॥ हर्षोत्कर्षवती गर्ने / सा बजार ततो हृदः॥ दोहदान् पूरयंती स्वान् / प्रसूता सुतमुत्तमं // 10 // पुत्रजन्मोत्सवं कृत्वा / दत्वा दानमनुत्तरं // हरिषेण इति. नाम / राजा सूनोरतिष्टपत् // 11 // पश्चान्माद्रियतेऽस्मान्नो। रूपवत्स्त्रीविमोहितः // इति बाल्येऽपि सर्वास्त-मालिलिंगु कलाः किल // 12 // हरिषेणरामसेनौ। प्रीतिमंतौ प. रस्परं // मीलनोन्मीलने नेत्र--युग्मवत्कृरुतःस्म तौ // 13 // इंझोपेंजाविकायातौ। पृथ्वीं तौ यौवनाश्रितौ // दृष्ट्वाश्विनीकुमाराजौ / के के कारि विस्मयः // 14 // अथो समुद्रदत्ता- / / -- P.P.AC.Gunratnasuri M.s. . Jun Gun Aaradhak Trist Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20. माख्यो / रूपवान् दशवार्षिकः // तत्र प्राप्तो नृपात्रो / युतः सुमतिमंत्रिणा // 15 // मत्पुत्रयो रय मित्र-मनुरूपः सुरूपवान् // नावीति शूरसेनेन / दत्वा मानं स रक्षितः // 16 // नृचरित्र पपुत्रं हरिषेणं / प्रणम्योपाविवेश सः॥ तेन पृष्टं ततो राज्ये / देशेऽस्ति कुशलं तव // 17 // प्रत्यमाणीत्ततः सोऽपि / देदेव कुशलं तव // प्रप्रसादेन सर्वत्र / देदेहादौ विविद्यते // 17 // तत् श्रुत्वा हरिषेणेन / चिंतितं विधिना कथं // नररत्नमिदं हाहा / वाग्जमत्वेन दूषितं / ॥रणा दाता नीरदवहिवेकरहितः संतापकः प्राणिनां / तेजखी रविवद्विलति जमता रम्याकृतिश्चंऽवत् // चंचच्चंदनवत्परोपकरणोदारो डिजिह्वावृतः। प्रायः शस्तसमस्तवस्तुविषये दोपं विधत्ते विधिः // 20 // ततः सुमतिमंत्र्यूचे / परानिप्रायवेदकः // कुमारास्य महत्यस्ति / कथैकांतं विधेहि तत् // 1 // तेन चूसंज्ञया लोके / पूरमुत्सारिते सति // स्वकुमारस्य वृ. त्तांतं / मंत्री वक्तुं प्रचक्रमे // // तथाहि अस्ति लक्ष्मीपुरं नाम / पुरं परममुत्तमं // लक्ष्मीदेवो नृपस्तत्र / पवित्रो देवतेंवत् // || // 3 // तस्याभूपसंपन्ना। देवी जुवनसुंदरी // समं तया सदा क्रीमन् / स दिनान्यत्यवा P.P.AC. Gunratnasu M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्य चंद्रमती प्रिया // 25 // तस्या विनीततनयोऽजनि देवदिन्नो / यद्दाननिर्जित श्वातितरां सकष्टः // संमूर्छितोऽब्धिलहरीजलसिच्यमानो--ऽप्यासादयेत्सुरमणिर्न हि चेतनत्वं / // 26 // सोऽन्यदा धनदत्तस्य / तनयां विनयांचितां // परिणिन्ये मनोज्ञांगीं। देवीवदेवसुंदरीं // 27 // तौ वनं यौवनं प्राप्तौ। गत्वा केलीमनुत्तरां // कुर्वाणावुनयोः पुंसो-चांस्य. शृणुतामिति // // उक्तमेकेन धन्योऽयं / देवदिन्नो धनं निजं // मुंजानश्च ददानश्च / फ.! लं लात्यस्थिरश्रियः // 25 // यतः-वीरेण नीरेण नयेन मत्या / दानेन मानेन धनेन ग त्या // विनाति गोकूपमहीपमंत्रि-धनेश्वरक्षत्रियपूरुषाश्च // 30 // वृशेन परिणीता स्त्रीः / लक्ष्मीः कृपणसंचिता // फलावलीव वृक्षाणां / परैरेव हि जुज्यते // 31 // तावदुक्तं द्वितीयेन / धिगमुं जननीसमां // जनकोपार्जितां लक्ष्मी / यो जुक्ते गतहीरिह // 35 // यतः-मातृतुल्या पितुर्लक्ष्मी-बर्बाल्ये वासस्तया समं // शोजते यौवनेऽप्येवं / कुर्वन् कैः कैन नियते // || // 33 // तद्वाक्यं देवदिन्नस्य / सप्रियस्यापि मानसः // अजिनवाणवबीर्षे / स च तूर्णमधू- || PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक यत् // 3 // ततस्तातांतिकं गत्वा / स प्राह पितरादिश // मां विदेशाय येनाह-मर्जयामि || खयं श्रियं // 35 // तातेनोकमहो वत्स / तवेला केन रुध्यते // परं क्वैतबरीरं ते / कदलीगर्नकोमलं // 36 // पाषाणकर्कशांगांगि-गम्या मार्गाः क्व ते सुत // विघ्नक्लेशजयानामुं / तवादेशं दिशाम्यहं // 3 // अनाणि देवदिन्ननः / श्रियः स्युनोंद्यम विना // कोमलं च वपुर्जाति / स्त्रीणां पुंसां पुनर्न हि // 30 // विनशंका न कर्तव्या। विदेशं ब्रजतो मम॥ आकाशे चरतो जानोः / स्खलना किं क्वचिनवेत् // 3 // // इत्यत्यंताग्रहं ज्ञात्वा। पुत्रस्य जनको ददौ // विदेशगमनादेशं / तस्मायादेशवर्तिने // 40 // ततो विदेशयात्रायै। सोऽपृ. बद्देवसुंदरीं // बजाण साथ दे नाथ / युक्तमेतनवादृशां // 41 // उत्पत्तिस्थानके हीनाः / कीयंते ध्वविदितौ // आक्रमत्य खिला दोर्णी / पादै नुवघुत्तमाः // 42 // श्रुत्वेति दे. वदिन्नस्य / कुविकल्पो हृदंतरा // उत्पादि नवत्येषा / न नूनं शीलशालिनी // 43 // या जहर्षानुमेने च / मद्देशांतरवार्तया // पत्युः प्रवासमाकर्ण्य / सत्यः स्युः साश्रुलोचनाः // 44 // सतीनां संकुचत्यास्यं / विदेश व्रजति प्रिये // पद्मिनीनामिव छीपां-तरं गबति जास्वति // / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 4 // कुविकल्यं धरनेवं / अव्योपार्जनहेतवे // प्रस्थानमकरोदेव-दिन्नो नगरसंनिधौ / / / // 46 // ताक्त्सुस्फारशृंगाराः / तत्रागादेवसुंदरी-॥ विनयेन पति नत्वा / सा बझांजलिरय || चरित्रं | धात् // 4 // स्वामिन् देहि खहस्तेन / तांबूलं मह्यमादरात् // तांबूलप्रमुखं जोदये। पुनः 212 // प्रत्यागते त्वयि // 4 // नानांगसगमुख्यं च / विधातव्यं-तदैव मे // त्वद्धस्तेनैव मणी|| बंधमोदो जविष्यतिः // 4 // षष्टांते पारणं कार्य / तच्चामाम्लैर्निरंतरं // षएमासांते च मर्त व्यं / तदा चेन्न त्वमागतः // 50 // श्रुत्वेति चिंतितं तेन / प्रत्याययति मामियं // संति स्त्री णां चरिवाणि / मंजीराणि समुभवत् // 59 / तथापि अनदाक्षिण्या-त्तस्यै तांबूलमायत् | सापिं धर्मरता गत्वा / गेहे शीलमपालयत् // 53 // कुविकल्पं धरन्नेव / देवदिन्नोऽचल| ततः // गछन् क्रमेण संप्राप्त-स्तीरे नीरनिस्धेरयं // 53 // अनेकवस्तुधिर्तृत्वा / समारुह्य च स खयं॥ जलधौ सपरीवासे / यानपात्रमपूरयत् // 54 // अनुकूलेन वातेन / प्रेरितो गुरुणेव सः॥ दक्षः शिष्यश्रुतस्येवां-जोधेः मध्यमगाइतः // 55 // श्तः शीलवती हर्य-चंडसालातले स्थिता // धर्मध्यानरताहान्य-वाहयदेवसुंदरी | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F // 56 // सान्यदैकेन केनापि / खैचरेण विलोकिता // देवताधिकरूपायां / तस्यां सोऽतीवमोहितः // 57 // अवतीर्य ननोदेशा-दर्थयामास तामिति // योगिनीव किमेकाग्र-चि त्ता ध्यायसि सुंदरि // 27 // ध्यानस्य हि फलं धर्मों / जोगा धर्मस्य चोत्तमाः // तान् जु२१३ देव मयका साकं / पूरयस्व मनीषितं // // अहं पवनवेगाख्यो। विद्याधरनराधिपः // त्वरूपदर्शनादित-चित्त आगां त्वदंतिकं // 60 // इत्यादिचाटुवाक्येषु / तेनोक्तेषु बहुष्वपि // प्रत्युत्तरं ददौ नो सा। नापश्यत्तस्य संमुखं // 61 // रुष्टो बलाद् ग्रहीतुं ता-मुत्तस्थौ दुटधीर्यदा / तावदैवत शीलेन / मलशालावृतां स तां // 6 // अदमस्तां समादातुं / सि. ककात्पतितोतुवत् // विलक्षः प्राह रोषेण / खेचरो देवसुंदरीं // 63 // श्राः पापेऽहं हनिज्यामि / गत्वेतस्तव वडनं // मदवज्ञाफलं दुःखं / तत आजन्म जोदयसे // 64 // ततस्ततः समुत्पत्या-गत्य नीरधिमंतरा // सोऽकार्षीद दुर्दिनं देव-दिन्नप्रवहणोपरि // 65 // लग्नो रुधिरधाराजि -वृष्टिं कर्तुं स तत्दणं // विद्याबलेन वायुं च / प्रचंझ स मुमोच वै // 66 // || उदछलस्तरंगौघा / उत्तुंगाः शैलश्रृंगवत् // लोका व्याकुलता नेजुर्यानपात्रांतरस्थिताः // ..P.P.AC.Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक // 6 // देवदिन्नोऽस्मरत्पंच-परमेष्टिनमस्कृति // तावहियाधरेणैव-मुच्चैःशब्देन ज़ल्पितं // | // 6 // अहं विद्याधराधीश-स्त्वप्रियादोषरोषितः // एष हन्मि देवदिन्न / त्वां वराकं नि रागसं ॥६ए // इत्युक्त्वा तत्र निर्मुक्ता / तेन वज्रमयी शिला // यानपात्रं च तननं / श. 214 तखंगमजायत // 70 // केचिन्मन्ना जनाः केचि-खनास्तीरे च नीरधेः // देव दिन्नो दैवयो गा-देकं फलकमाप्तवान् // 79 // तदाधारात्तरन्नधिं / बीपमेकमवाप सः॥ पंचमे वासरे जीवन् / कारनीराकुलीकृतः // 2 // समीरणेन शीतेन / स स्पृष्टः प्राप्तचेतनः // फलैराहारमाधाय / सोऽवतस्थे तरोस्तले // 3 // चिंतयामास चित्ते च / विधत्ते हि हतो विधिः // सुखपुःखपरावर्त / सर्वेषामपि देहिनां // // जार्याधुश्चरितै रुष्ट-खेचरेणोक्तमीदृशं॥ तन्मन्येऽनेन सा बुब्धा / नविष्यति दुराशया // 35 // अधुनैतं पुनर्मुक्त्वा-परं नरमरीरमत् // तेनैवैष महारोषा-दनर्थमकरोदमुं // 76 // एतया चिंतया किं वा / मया सा साध्यते. ऽधुना // स्वसाध्यं साधयाम्येष / स्मृत्वा पंचनमस्कृति // 7 // एवं विचिंत्य सोऽस्मार्षीस्कृती पंचनमस्कृति // सुस्थिताख्यस्ततो यदा-स्तस्याग्रे प्रकटोऽनवत् // 7 // उवाच च | P.PAC.GunratnasariM.S. .... Jun Gun Aaradhak Trust Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - महालाग / तुष्टोऽहं तव सत्त्वतः॥ य एवं पतितोऽय्याप-त्समुझे स्थिरमानसः // 5 // अ- || धीराणां च धीराणां / भेद आपदि वेद्यते // स्थूलाश्मनां च तूलानां / प्रचंडे पवने यथा // “चरित्र // ॥जो देव दिन्न तस्मात्त्वं / वरं कंचिरं वृणु // तेनोक्तं नास्ति मे किंचि --प्रार्थनीयं सुरोत्तम // 1 // जिनधर्मो मयावापि / दर्शनं च तवोत्तमें // अप्राप्त विद्यते किंचि-त्वपांते यदर्थ्यते // 2 // श्राख्यत्सुस्थितयदोऽथ / सत्त्ववंतो नवादृशाः // उत्तमाः प्रार्थनां कतु / विदंति न कदाचन // 3 // यतः- दौर्गत्येन समीरिता हृदयतः कंवं समालंबते / कंगकृष्टशतैः कथं कथमपि प्राप्नोति जिह्वांतरं // लजाकीलककीलितेव सुदृढं तस्मान्न निर्यात्यहो / वाणी प्राणपरिक्षयेऽपि महतां देहीति नास्तीति च // // दामिम्याः फलमेतद् / गृहाणानुगृहाण जोः // यास्यत्येत्प्रजावेण / योजनानि शतं जवान् // 5 // तत्र वेविद्यते यदो / मामकीनो मनोरमः // त्वन्मनाश्चंतितं सर्व / स दास्यति न संशयः // 6 // ततस्तस्मै फलं दत्वा / स्वस्थानं सुस्थितोऽगमत् // संप्राप्तो देवदिन्नोऽपि / तत्कणं यक्षमंदिरे // // 7 // तछादेशे प्रविशन्नेकामालोकतेस्म सः॥ युवतीमर्धजरती का / नवंतीति च सो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रा वदत् // 7 // दत्वैकमासनं तत्र / देवदिन्नं निवेश्य च // शृणु वृत्तांतमित्युक्त्वा / सा तब क्तुं प्रचक्रमे // ए // यथा अस्त्यत्र धातकीखंडे / जरतक्षेत्रमंतरा // वैताठ्यपर्वतस्तत्र / नगरं जनवडनं // ए॥ तत्र सूरप्रभो राजा / युवराजः शशिप्रजः // अजुजातामुनी राज्य-मन्योन्यं स्नेहशालिनी // 1 // सूरकांताजवत्कांता / सूरप्रजनरेशितुः // तस्याः कन्या मनोज्ञांग्य-श्चतस्रो जज्ञिरे क्रमात् // ए // आद्या वेगवती तासु / द्वितीया दीप्तिमत्यनुत् // तृतीया रंगवत्यासी-चरमा च रमावती // ए३ // ताज्यो बाल्येऽपि योग्याज्यः / सजाग्याच्यस्ततः पिता // प्रज्ञप्त्याया महाविद्याः। प्रायवत्सलाशयः // ए४ // अन्यस्मिन् वासरे तो छौ / जातरौ काननांतरे // क्रीमंती व्यंतरेणैके-नालोक्यैवं विचिंतितं // एए // एवंविधो न बंधूनां / स्नेहः कर चन दृश्यते // खपत्नीप्रणयापास्ता-शेषप्रेम्णां नृणामिह // ए६ // अकृत्रिममिव प्रेम / ह. श्यते तावदेतयोः // तथापि संध्यासमये / करिष्ये तत्परीक्षणं // // तयोः संप्राप्तयोः || खख-वासमंदिरमंतरा // निश्यदृश्यः सुरः प्राप / शशिप्रनगृहांगणे // // उच्चैरूचे नि RRIAGIGunratnasuri Mas. Jun Gun Aaradhak Trust Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चितः / किं जोः खपिषि सांप्रतं // सूरप्रजस्तव जाता / मृतो धिक्त्वां सुनिष्ठरं // ए॥ | इत्याकर्ण्य महापुःख-समीरणसमीरितः // दणाशिप्रजप्राणा / उड्डीय तृणवद्ययुः // 10 // मृत्वोत्पन्नः स एतस्मिन् / स्थाने यदो मनोरमः॥ व्यंतरोऽपि तथा दृष्ट्वा / विखिन्नो निःसृतस्ततः // 1 // शशिप्रजप्रियाः सर्वा / रोदनं चक्रुरुच्चकैः // श्रुत्वाकंदान् समायात-स्तत्र सूरप्रनो नृपः॥२॥ञातरं मृतमालोक्या-लिंग्य तत्कंठकंदलं // मां विहाय निराधारं / जातः कुत्र गतो नवान् // 3 // स एवं विलपन्नेव / दीर्णवदःस्थलः क्षणात् // सर्वत्र वातरं दृष्टुमिवैकोऽप्याप पंचतां // 4 // प्रयुज्यावधिविज्ञान-मथो यक्षो मनोरमः ॥आगत्य नगरस्यांत-रमात्यादीनदोऽवदत् // 5 // शशिप्रनोऽई मृत्वातो। जातो यदो मनोरमः // सूरप्रजोऽपि नगरेऽस्मिन्नेवाभृष्ट्यंतरोत्तमः // 6 // तदात्मनामनाथत्वं / न मंतव्यं मनागपि ॥पालनीयमिदं राज्यं / युष्माजिायमार्गगैः // 7 // कियत्यपि गते काले। राज्यनारधुरंधर // नरं कंचिदिहानीय / दास्ये युष्मन्यमुत्तमं // 7 // श्त्या श्वास्य नरान् सर्वान् / चतस्रः क.. |यिकाश्च ताः॥ समानीय स आयासी-दस्मिन्नेव निजास्पदे // ए॥ पातालमंदिरे तन / / IL. P.P.AC. Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धृता स्तिष्टंति ता ह // अहं तासां पुनर्धात्री। चंद्रलेखेतिसंझिका // 10 // चंद्रलेखेव ताः सर्वा / वार्धिवेला श्वोत्खणाः // अत्र तिष्टामि पुष्णंती। वात्सल्यामृतवर्षिणी // 11 // चरित्र अथ ताः कन्यिकाः सर्वा / जझिरे यौवनोन्मुखाः॥ तद्योग्याय वरायैष / यदो दातुं समी२१७ // हते // 10 // परं बरंपरीक्षायै / स नृणां सत्वमादितुं // चक्रे कुंमध्यं न / जलस्य ज्वलन स्य च // 11 // जलकुंडे कृतस्नानो / वह्निकुंडेऽत्र यो विशेत् // तस्मै संतुष्टचित्तः सन् / कन्या यदो ददाति वा // 15 // वैताढ्याचलमौलिस्थे / नगरे जनवने // तं सत्वशालिनं नूनं / स्वामिनं कुरुते सुतं // 13 // कुतः कुतोऽपि संस्थाना-दनेकेऽप्यैयरुनराः॥ पुरस्तेषां मयाख्यायि / वृतांतः सकलोऽप्ययं // 14 // परं साहसहीनत्वा-त्कश्चिदेवं करोति न // प.. श्यन्नपि मणि पाणि / को वा विपति पन्नगे // 15 // तनोः पुरुष सत्त्वं चे-त्तव किंचन वर्तते यदि वांबसि ताश्चात्र / तथा कुरु यथोदितं // 17 // इत्याकर्ण्य कटित्येव / देवदिन्नस्तयो. दितं // स्नानं विधाय नीरेण / वह्निकुंमांतरेऽपतत् // 17 // तावन्मनोरमो यक-स्तत्सत्त्वाव | र्जितः क्षणात् // तत्रापर्ततमेवामु-मुध्धृत्याग्रे स्फुटोऽजवत् // 15 // ऊचे च तव सत्त्वेन / Ac.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Test Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ বলি तुष्टोऽहं वृणु नो वरं // देवदिन्नोऽवददेव / तवांते तिष्टतादयं // 50 // पुनः स्नानं जले कृत्वा / ऊपो निष्कंपमानसः॥ सोऽदादग्निमये कुंडे / किं दुःसाध्यं महीयसां // 21 // पुनर्यदस्तमुध्धृत्य / सत्यवागित्यनाषत // पुनर्वृणु वरं खैर-मग्रणीर्गुणशालिसु // 25 ॥स प्राह तावदेषोऽपि / जांमागारेऽवतिष्टतां // ततः स विहितस्नान-स्तूर्ण वदन्यंतरेऽपतत् // 33 // तत उ. धृत्य तं यदो / वरं वरतरं ददौ / तमपि स्थापयामास / यदस्यैव स सन्निधौ // 24 ॥उत्पतंतं तथा कर्तुं / पुनस्तमवदत्सुरः // जो देव दिन्न ते सत्व-ममर्यादं पयोधिवत् // 25 // परं परिमितैवास्ति / मम शक्तिर्महाशय // अथ प्रसादमाधाय / साहसं संवृणु स्वकं // . // 26 // वरत्रयं गृहाणं त्वं / ततो मामतृणं कुरु // देवदिन्नोऽवदद्यद / सादात्वं वीक्षितो यदि // // तन्मेऽपरप्रार्थनीयं / किं वा वेविद्यते वद // तेनोक्तं मा विलंवस्व ।प्रार्थयस्व स्व. मीप्सितं // 27 // देवदिन्नोऽवदत्तर्हि / वरेणैकेन देहि मे // कन्या अनन्यसामान्य-मान्या देव स्त्रियामपि ॥ए॥हितीयेन त्वयेतव्यं / ममांते स्मृतिमात्रतः // तृतीयेन च मे देहि / विद्यां गगनगामिनीं // 30 // तत्क्षणं यदराजोऽदा-त्तदार्थितमपि त्रयं // विवाहोत्सवसाम . . P.P.AciGunratdasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रो औं / समयां शक्तितोऽकरोत् // 31 // देवदेवी जिरारब्धे / गीतनृत्यादिकोत्सवे // गुह्यकः सः || है. कन्याजि-स्तानिस्तमुदवाहयत् // 35 // क्रीमन्नथ स पत्नीनि-रप्सरोनिः सुरेंज्वत्॥ चरित्रं सुखं तस्थौ दिनान् कांश्चि-तत्र पुण्यलतालये // 33 // अन्यदा प्रचुरप्रेम-कलिता वनिता जगुः // स्वामिस्तवापरा कापि / वह्वभा विद्यते न वा // 34 // अनाणि देवदिन्नेन / काप्यन्या मास्ति मे प्रिया // संसिझसर्वविद्यास्ता। इत्यूचुश्चतुराशयाः // 35 // स्वामिनकृत्रिमप्रेम-सुंदरी देवसुंदरीं // तवापलपतस्ताव-नौचिती नातिवर्तते // 36 // यतो विदेशमाश्रित्य / प्रस्थानं त्वयि कुर्वति // योऽनिग्रहो गृहीतोऽनू-भवतः पुरतस्तया // 37 // श्राचाम्लैः पारणं षष्ट-तपोंते तेन साकरोत् // षएमासांतेऽधुना वह्नि-प्रवेशायोद्यतास्ति च // // 30 // तन्नाथ नाथ ते युक्तो / विलंबः दणमप्ययं // गत्वा प्राण प्रियाप्राणान् / रदै ददशिरोमणे // 35 // प्रस्थानमनुमेने य-त्तव सा हर्षशालिनी // जानीहि केवलं तत्र / ज ननिंदा निबंधनं // 40 // प्रज्ञप्तीदेवता सर्व-मेवमस्मन्यमन्यधात् // तन्नाथ सत्वरं गत्वा / त्वं || तो मृत्योर्निवारय // 41 // इति ताज्यः समाकर्य। देवदिन्नः स खिन्नहृत् // अभूत्पूर्वप्रिया-|| / SPEAD..Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 संगा--कुंठोत्कंगासमाकुलः॥ 42 // संस्मृत्य यददत्तां तां / विद्यामाकाशचारिणीं // यदमा- // पृच्छ्य पत्नीनिः / सहैवोदपतन्ननः // 43 // आजगाम विमानस्थो / लक्ष्मीपुरपुरोपरि ॥त: दानादीदंतरिदं / समग्रं धूमधूमरं // 45 // किमेवमिति संत्रांतो। यावत्सम्यक् स पश्यति // तावञ्चितासमीपस्थां / स्नानजिन्नकचांचितां // 45 // समौलिकंपं लोकेन / वीक्ष्यमाणां कृपावुना // तत्साहसेक्षणोत्पन्ना-मिताश्चर्ययुतेन च // 46 // वत्से त्वमुत्सुका माभूरागमिष्यति ते प्रियः॥बुजुक्षितानुरोधेन / पच्यते किमुदुंबरः // 4 // मृतायास्तव नविता / कथं वद्वजसंगमः // चिताप्रवेशं कः कुर्या-दविवेकिजनोचितं // // एवमादिप्रकारेण / मिलितैः स्वजनैर्घनैः // संप्रसादं सरोषं च ।वार्यमाणां मुहुर्मुहुः // 4 ॥प्रस्थानस्थितपत्यग्रे / या मया माययाश्रिता // प्रतिज्ञा विहिता तां हि / हिताः सत्यां करोम्यहं // 5 // प्राणा यांतु श्रियो यांतु / यांतु सर्वसुखानि च // एकैव शाश्वती वाणी। सर्वदैवावतिष्टता // 51 // बोधयंती समस्तांस्ता-नुत्तरै रित्युनत्तरैः // उत्पतंती महोत्साहा-त्सोऽपश्यद्देवसुंदरीं // 55 // अष्टनिः कुलकं // हा मया शीलशालिन्यां / कुविकल्पो विनिर्ममे // अस्यां / / .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोका सत्वप्रशस्यायां / धिग्मां मुग्धशिरोमाण // 53 // देवदिनो विचिंत्येति / विमानादवतीर्य च // वह्निज्वालावलीढाशां / पतंती साक् चितांप्रति // 54 // समेत्य सत्वरं तत्र। धृत्वा हस्तवरित्रं | येन तां // किमर्थ रक्षसीत्येवं / वदंती पूरमानयत् // 55 ॥त्रिनिर्विशेषकं // कोऽयमस्ती. 44 / | ति यावत्सा / संमुखं तस्य पश्यति // तावत्प्रीतिकरं प्राण-वनं तमुदैवत // 56 // ह. षोत्कर्षोऽजवद्योऽस्या-स्तं वक्तुं नेश्वरः परः॥ तृषितस्यामृतं पीत-मत्यंतं तृप्तिहेतवे // 5 // अकस्मादागतं वीक्ष्य / देवदिन्नं जना जगुः // अहो सत्त्वमहो सत्व-फलं सत्वरमुज्ज्वलं // // 27 // सत्वानां सत्त्वसंबंधा-त्फलत्याशु मनोगतं // अंकुलकतैलयोगा-बीजमानतरोरिव ॥एए // अवातरन्मरुन्मार्गा-हिमानं तत्र दीप्तिमत् // कुतूहलाकुलस्वांता / मिमिवु गरा नराः॥६० // विमानातूर्णमुत्तीर्णाः। पूर्णागाचं गिमातृतैः // तैस्तै नैर्वीयमाणा-श्चतस्त्रस्तस्य वबलाः // 61 // पंचनिःसह पत्नीनिः / शोचतेम शुजाकृतिः॥ शोजितः पुण्यरूपा निः // साधुः समितिभिर्यथा // 6 // वधू निवारणायातं / तातं संतोषितांतरं // स प्रिया- || || सहितः सौवं / नमोऽकार्षीत्सनक्तिकः // 63 // पितृपृष्टनिजोदंतः / कथितस्वकथोऽथ सः // PE, Ac. Gunratnasuri M,S. Jun Gun Aaradhak Trust - Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चरित्रवाना सोत्सवं प्राविशलोक-लोक्यमानः पुरांतरे // 64 // बहुल्यो वासरेन्योऽसौ / श्रेयःश्रीस्त्री || युतः सुतः // समायात इति तातो / निमंत्र्याजोजयजनान् // 65 // अव्यालंकारवस्त्रादिदानादानंदिता जनाः // अन्यनंदन् यशश्चंज-यशसश्चंद्रनिर्मलं // 66 // मंत्रिमुख्यपरिवारं / लक्ष्मीदेवनरेश्वरं // गृहे आमंत्रयामास / स वासवसमश्रियं // 67 // सवेगा वेगवत्याया। विद्याधर्यो धरेशितुः // सारसुस्फारशृंगार-धारिण्यः पर्यवेषयन् // 67 // लावण्यरस कुंप्याना। भूपाजासः समीक्ष्य ताः // देवीलक्ष्मी रिवाध्यक्ष्य / लक्ष्मीदेवोऽन्वरज्यत // ६ए // नाचुंक्त केवलं बाला / निर्निमेषादिरैकत // विद्धोऽपि कामबाणेन / स तिष्टत्यक्षतांगकः // 70 // किंचिद्गुक्त्वादिप्तचेताः / स्थित्वा दाक्षिण्यतः कणं // उत्थाय सपरिवारो। राजमंदिरमासदत् // 7 // अनुरक्तमनास्तासु / व्यमृशत्स विशांपतिः // देव दिन्नप्रियानिमें / संगमो नविता कथं // // तासामास्यस्य शस्यस्य / स्पर्शः स्यान्मन्मुखे कदा // तदोष्टविहुमैमूत-मुक्तानां संगमोऽपि च // 33 // नखरत्नालंकृतालि-स्तद्जुजाजिस्तनुर्मम // वे. // ष्टिता जास्यति कदा / मुधिकाजिरिवांगुली // 4 // तासां चंगतमोत्तुंग-स्तनकुंनोपरि-|| P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रहरीका स्थिताः // पद्ध्वा श्व रक्ता मे / शोजिष्यंते कदा कराः // 35 // एता यदि प्रिया मे स्यु- || रितरेण सुखेन किं // अथ नो चेदिमा मे स्यु-रितरेण सुखेन किं // 6 // तत्प्रेष्याशु निज: . चरित्रं प्रेष्या-नहमानाययामि ताः // परं पराकमधरे / परेषां दोजकारिणि // 7 // दिव्यरूपे | देवदिन्ने / तासां भर्तरि जीवति // न कश्चिदपि ता बाला / चलादादातुमीश्वरः // 7 // अतुबप्रतिनः को वा। मणिमुबेतुमिवति // पन्नगे स्फारफूत्कारे / क्रूराकारेऽथ जाग्रति ॥ए॥ जयंकरे शूकरे वा / तदंष्ट्रां हरिणेश्वरे // सटाबटां स्फुटामेव / व्याले वा दशनावली // // // तत्तं व्यापाद्य सद्योऽहं / पूरये खमनीषितं // परं प्रकटमेवामुं / निहंतुं कोऽपि नेश्वरः // 1 // रचयित्वा प्रपंचं त--पंचत्वं प्रापयाम्यमुं // एवं विचिंतयन् राजा। तस्थौ दुःस्थितमानसः // 2 // लब्धोपायः समुत्थाय / देवदिनादिसंगतः // निर्गत्य नगरात्प्रापक्रमानीरधिसन्निधौ // 3 // क्रीमंस्तत्र तटेऽकस्मा-न्मुक्ताहारं मनोहरं // मुक्तवान् कारनीरांत-मार्यया विचखाद च // 4 // हा हारो मे मनोहारी / पतितोंबुधिमंतरा // न प्रा|| णान् धर्तुमी शोऽह-माहारमिव तं विना // 5 // हृदयाल्पतितो हारः।प्रहार व चालगत् // || EP.AC.Gunratyasuri M.S. . Jun.Gun Aaradhak Trust Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनागते पुनस्तस्मिनाहारनियमो मम // 6 // तमो नृत्या अमात्याश्च / श्रेष्टिनो जव तोतरा // अस्ति कश्चिहिपश्चिद्यो / हारमाहस्तेबुधेः॥ // वदंतमिति नूपालं / श्रुत्वा स. चरित्र वेऽपि.मानवाः // अंधो निधाय वक्त्राणि / तस्थुश्चिंतातुरा इव // // परकायॆकनिरतो। विरतो दललोजतः // एवं साहसमालंब्य / देवदिन्नस्तदावदत् // नए // महाराज न कर्तध्यो / मनस्तापो मनागपि // प्रविश्यावश्यमेवाब्धौ / समानेष्यामि वस्तु ते // ए // अनौषधमयं व्याधि-गछन्नस्तीति चिंतयन् // तक्तमेवमाकर्ण्य / सप्रकर्ष जहर्ष सः // ए१ // ऊचे च देवदिन्न त्वं / गुणी सत्पुरुषाग्रणीः // इदं साधय साध्यं मे / किमसाध्यं महात्मनां // ए // तावत्कंपितमूर्धानो / जजल्पुः सकला जनाः // अयं सत्पुरुषत्वेन / खामिकार्य प्रपद्यते // ए३ // परं देवायमादेशो / दातुं नैव तवोचितः // हितोऽगाधे पयोनिधौ / प्रवेशं कोऽनुमन्यते // ए४ // युग्मं // श्रुत्वेति लोकवाक्यानि / मौनमाधाय भूधवः / प्रतिपन्नमयं नूनं / पालयिष्यति सत्तम // एy // लोककोलाहलं हाला-हलवत्कटुकं स्फुटं // आकर्णयामि किमहं / गहामि स्वीयमाश्रयं // ए६ // ध्यात्वेति सपरीवारः / पुराय प्राचलन्नृपः // एका- || 'P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्येव देव दिन्न-स्तत्रादिनमनाः स्थितः // ए // जीवितव्यं च जव्यं च / कार्य स्यात्वामि नो यथा // हारनिःकासनोपायां-श्चिंतयामास रिशः // ए // दणांतरे यदराज / स म'चरित्रं नोरममस्मरत् // वाचा वकः स वै यद-स्तत्वणं तत्पुरोऽजवत् // एए // देवदिन्नो जगादेति / समानयः पयोनिधेः॥ मुक्ताफलमयं हारं / कुरु भूपं निराकुलं // 200 // ततो यतः दणात्दारां-बुधेरुत्दिप्य शक्तितः // हंसवकारमानीय / तस्य हस्तांबुजे ददौ // 1 // नवता प्र. तिपत्तव्यं / न कार्य नगरेशितुः // त्वत्स्त्रीषु मोहितो यत्स / त्वां निदंतुं समीहते // 5 // त्युदीर्य ययौ यदो / हर्षरोषसमाकुलः // आजगाम निजं धाम / श्चेष्टिमूरिमुव्हन् // 3 // प्रजाते भूपतेरते / समागत्य तमार्पयत् // जीवंतं तं समायांतं / दृष्ट्वा राजा चमत्कृतः॥४॥ हा दैव किमयं वैरी / पुनर्जीवनिहागतः // हनिष्यामि कथं हंत / हताशः शक्तिशालिनं // // 5 // इति चिंतातुरः श्यामी-भूतस्तस्थिवांश्चिरं // पापः कृतोपकारोऽप्य-पकारं कर्तुमिछति // 6 // कालांतरेऽवदइंजी। पतितोऽगाधनीरधौ // त्वयायं त्वरयानीतः / कथं हारो म| नोहः // 7 // सर्वत्रास्खलिता एव / त्वदीया देव सेवकाः // श्रेष्टिसूरित्युदीर्याथ / निजमा P.P.AC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पदमासदत् // // तस्य व्यापादनोपाया-न्नृपोऽनेकान् विजावयन् // लब्धबुद्धिः समाहूय / / / / देवदिन्नं जगाविति // ए // अस्माकं धीरवीरेषुः / ननूत्तमतमो जवान् // प्रत्यलः सर्वकार्याचरिणि / कतु कीर्त्या त्वमुज्ज्वलः // 10 // साध्यं विहितं साध्यं / हारमाहरता त्वया // त२२७ था धीराधुना कार्य-मस्माकमपरं कुरु // 11 // स स्मरन्नपि यदोक्तं / दाक्षिण्यांनोधिरन्य धात् // समादिश विशामीशा-देश्याय स्वप्रयोजनं // 12 // लक्ष्मी देवनपोऽवादी-ददीनवचन त्वया // विजेतग्यो ममाराति-महानलमहीपतिः // 13 // तस्यास्ति राजधानीतो / योजनानां शतत्रये // माकंदी नाम नगरी / बलिनानेन पाल्यते // 14 // गृहाण मे समग्रास्त्वं चतुरंगचमूरमूः // शनैरध्वनि गंतव्यं / समेतव्यं विजित्य तं // 15 // तत्स्मरन्नपि यदोक्तं / / देवदिन्नः प्रपन्नषान् // विधातुं प्रार्थनानंगं / विदंत्यपि न सत्तमाः // 16 // प्रणम्य पितरौ दृष्ट्वा / प्रबोध्य च महाग्रहात् // प्राचालीदचलाधीश-दत्तातुलबलस्ततः // 17 // यावद् छि त्रान् पवित्रात्मा / प्रयाणानकरोत्पुरात् // हर्षोत्कर्षधरो राजा / तावदेवं व्यचिंतयत् // 17 // || सिकं साध्यं मदीयं य-निर्गतो नगरादयं // नूनं तत्र गतस्तेन / बलिनैष हनिष्यते // 1 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -220 प्रत्येक अथात्यंतबलिष्टत्वा-तं विजित्य समेष्यति // नविष्यति तथाप्यस्य / चिरकालविलंबनं // // 20 // तत्प्रेयसीना निकटे / तत्प्रेष्य निजतिकां // दानादिना वशीकृत्य / प्रीत्या ता रमा चरित्रं याम्यहं // 11 // इति नूमिपतिर्ध्यात्वा / पूती मायामिवांगिनीं // प्रैषीत्साप्यंतिके तासां। गरीकांतेस्म जाषते // 22 ॥हे सुंदर्यः स्वसौंदर्य-विनिर्जितपुरंदरः // लक्ष्मीदेवड़मेशो वो। मन्मुखेनेत्यबीलणत् // 3 // ईहे कलयितुं लीलां / मराल व लालसः // गांगेऽब्धिवत्तरंगेषु / युष्मदंगेषु जोगलाक् // 25 सारालंकारमाणिक्य-पट्टकूलादिवस्तु यत् // युष्माकं युज्यते सर्व / नजयात् पूरयिष्यते // 25 // एवमाकर्य कौँ ताः / पिधायान्यधुरुजतं // आः पा पेपसरेतस्त्व-मुपदेष्ट्री घनैनसा // 6 // प्रजानां जायते राजा। न्यायान्यायविवेककृत् // खंतं स्वयमन्यायं / धिगमुं निस्वपं नृपं // 7 // सकामगर्दलीय / भूपश्चेदिति जल्पति // नदैतदर्थमायांती / किं त्वमपि न लजसे // // एतदर्थे कथं वाणी / कृपाणीव निरागसि // सारणीवोच्चदेशे च / व्यूढा मूढमते तव // श्ए // इति निर्ल्सता पूती / तत उ. त्थाय निर्ययौ // आगत्य भूपतेः पावें / स्वरूप निखिलं जगौ // 30 ॥भूपो विकल्पकल्पांत- || P.P.AC. GunratnasuriM.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नावातोशांतमनोबुधिः // अधीरतां रतस्तासु / जेजे वृत्तमवेत्य तत् // 31 // जने नियंजने / / स्थाने / वने चांतःपुरे पुरे // रतिः माप्रतिपालेन | नापि कापि मनागपि // 3 // अनुचरित्रं, त्पन्नापरोपायः प्रजिघाय स्मरातुरः॥ सोऽनुशिष्य विशेषेण / पूती तामेव तद्गृहे // 33 // 225|| अस्मिन्नवसरे यदः / प्रत्यहीभूय तत्पुरः // नृपेण प्रहिता पूती / सागचंत्यस्ति सांप्रतं // // 3 // मान्यं तस्या वचः पश्चा-त्करिष्येऽहं यथोचितं // इत्युक्त्वा जाग्यवत्तस्थौ / स हितात्मा तिरोहितः // 35 // युग्मं // पूती मंदपदा गत्वा / तत्र मंदपदावदत् // हे मुग्धा पुग्धवन्मुग्धं / स्निग्धं दिग्धमिवामृतैः // 36 // मुधा मेने न मानेन / नवतीनिर्वचो मम // कथयाम्यथ किंचिच्चेद् / हृदयं तत्रं दीयते // 3 // ईषधिहस्य शस्यास्या-स्ता जचुश्चतुराशयाः // नूनं त्वं प्रेषिता राझा / निर्विकल्पं प्रजल्प तत् // 30 // इत्यलापीकलापीनशशिवत्सुंदरोऽपि सः // नवतीविरहातप्तः / श्यामिकामादधेऽधुना ॥३ए // तादृक्षः कोणिजुन्मुख्यो / दह्यमानः स्मरामिना // खांगसंगजलौघेनो-चितः शमयितुं हितः // 40 ॥जजपुस्ता यदस्मानिः / पूर्व त्वमिति सिता // भूपस्नेहपरीक्षाये। समस्तमपि विधि तत् P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रो चरित्रं // 41 // अन्यथा का न वांत / तादृशं नूपतिं पति // रहस्थेऽपि गृहाधीशे / किं पुनर्पूरवर्तिने // 42 // परं त्रपागुणैर्वद्धा / वयं किल कुलस्त्रियः // कथमागंतुमावासे। क्षमापस्य दमामहे // 43 // तया मुदितयावादि / त्रपावत्सु मता रूपा // एकांते तर्हि घस्रांत-ऽत्रै. वायातु महीपतिः // 44 // एवम स्त्वित्यनुज्ञाता / सा हर्षोत्कर्षशालिनी // भूपाय त्वरितं गत्वा / वृत्तांतं तं न्यवेदयत् // 45 // तदाकर्णामृतेनेव / सिक्तो मृत श्वोत्थितः॥ लब्धत्रैलोक्यसाम्राज्य / श्व राजा जहर्ष सः // 46 // वासरं गमयामास / कथंचिगणयन् दणान् // संध्यायां कृतश्रृंगारो / जनेनैकेन संगतः // 47 // गतः प्रबन्नमुबिन्न-न्यायश्वन्ना ननरंबली // देवदिन्नप्रियावास-मंदिरछारि सुंदरे // 4 // तावद्लुजंगमीभूय / यदराजो मनोरमः // तं दुष्टं दष्टवानंहौ / पतितो मूर्छितस्ततः // ४ए // मान्यो मान्यों जनो रा. को-ऽन्यायं वेत्त्विति चिंतयन् // जनो नुवनसुंदर्याः। पट्टराझ्या न्यरूपयत् // 50 // तयाप्यप्रकट प्रेष्यान् / प्रेष्यानीय नरेश्वरः // शुश्रूषयितुमारब्धो ऽनेकानामंत्र्य मांत्रिकान् / // 51 // मत्रैस्तत्रैश्च यंत्रैश्च / तैरतीवचिकित्सितः // अनवद्यैः सवियैश्च / स वैद्यैर्विविधौ-।। PP.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षधैः // 55 // परं केनाप्युपायेन / नाभूभृपो निरामयः // चेतनारहितो जज्ञे / काष्टवच्चेष्ट- / / योषितः॥ 53 // तत्र मंत्री सुमत्याख्यो / मुख्यो मतिमतां जगौ // देव दिन्नो दिव्यशक्ति चरित्रं यद्यायाति कथंचन // 24 // तदा जीवति राजायं / नान्यथा व्याप्तविष्टपं // ध्वांतं शांतं || जवेत्किं वा / यावन्नोदेति जानुमान् // 55 // इत्युक्त्वा देवदिन्नांते / सोऽप्रैषीन्निजसेवकान् // अध्वन्यनेकराजानो / येनाजीयंत सत्वरं // 56 // तैर्गत्वा कथितं देव / लक्ष्मीदेवनरेश्वरः // दष्टो दुष्टाहिना नाना-विधोपायैर्मुधाजनि // 57 // मंत्रिणामंत्रणकृते / तवाग्रे प्रेषिता व| यं // आगढ सह सैन्येन / स्वपुरंप्रति संप्रति // // इत्याकोपकारैक-कारकः सैनि कान्निजान् // दत्तव्यावर्तनाज्ञः स / नभस्युत्पतितः स्वयं // 5 // गबन् गगनगामिन्या / विद्यया गगनांगणे // आगादागारमात्मीयं / सोऽचिराचारुलोचनः // 60 // स्वामिनं वीक्ष्य चंगांग्यः। प्रोचुरालिंग्य तत्प्रियाः // स्वामिन्नत्र त्वमायातो। जीवनाय नरेशितुः // 6 // परं तस्य न दातव्यं / जीवितव्यं दुरात्मनः // प्राज्ञो निजितसिंहस्य / चक्षुषी को विबोधयेत् || // 65 // पूर्वप्रवृत्तवृत्तांत-स्ततस्तानिस्तदग्रतः॥ समग्रोऽपि न्यरूप्याप / परं कोपं नृपेन || PP.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक। सः॥ 63 // कौशोऽनुक्रोशबुद्धीनां / स गत्वा राजमंदिरं // निश्चेष्टं मातलक्षितं / क्षमापा- || लमलोकत / / 64 // समुबलत्कृपावारि-क्षालितेषऽषानलः // लोकान्निष्काख तत्कर्णा--- ज्यक्त्यैवमन्यधात् // 65 // मयि प्रसादमाधाय / यक्षराज कृपापर // अमुं मुंच ततो यही 235 / भूपास्येनेत्यभाषत // 66 // अमुमेनःकर नूनं / गुरोस्ते वचनादहं // त्यजन्नम्यधुना श्रा कः। शुधीः कुगुरुं यथा // 67 // श्त्युक्त्वा यदनिर्मुक्तो / मुक्तनि श्वोत्थितः // नूपतिस्तेन चाहूताः / प्रनृतास्तत्र पूरुषाः // 6 // अहो जाग्यमहो विद्या / धृतिरहो महीयसी // देवदिन्नं जना एवं / हृष्टास्ते सुष्टु तुष्टुवुः // ६ए // राजा जीवितमात्मानं / वैरिणं च पुरः स्थितं // देवदिन्नं समालोक्य / हर्षशोकाकुलोऽनवत् // 70 // पुनाश्चिंतयितुंलग्नो / मनो मदनवारिधौ // जीवितं सफलं तर्हि / मिलंति यदि ता मम // 71 // तदुत्थायाधुनैवाहं / तासामावासमाश्रये // नैवं यतो देवदिन्नो। पुर्धर्षोऽयमुपाययो // // अस्मिन् सत्यस्य वै- | श्मांतः / प्रवेष्टुं कः दमो नवेत् // जाग्रत्यपि मृगारातौ / तद्गुहायां हि को विशेत् // 3 // // अथ केनाप्युपायेन / हन्म्येतमिति र्चितयन् // धराधनी जनौऽप्यन्यः / स्वं खमास्पदमाश्र HAPPEAC..Gunratrasur Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || यत् // 7 // अथान्यदावनीपालो / वस्त्रेणावेष्ट्य मस्तकं // स मायामंदिरं तस्थौ ।वासमंदि- // रमंतरा. // 75 // मंदीभूतं नृपं श्रुत्वा-नाषणायाययुनराः // अन्यदा देवदिन्नोऽपि / तत्रा. गत्येत्यनाषत // 76 // मुक्तामयं शरीरं ते। हारवद्विद्यते विनो // समाधिसहितंचास्ति / 233 समाधिरहितं मनः // 7 // तेनावादि यदाद्यासं / दष्टो पुष्टतराहिना // तदादि पित्तयोगे न / तबिरोर्तिरियर्ति मे // // अमुं व्याधि निराकर्तु / वैद्या नुन्ना बजाषिरे। औषधैर्विविधैरेष / व्याधिश्वेत्तुं न शक्यते // ए // परं कथंचिदायाति / व्याघ्रीदुग्धं यदा तदा // मृगो मृगारिणेवायं / तेन पीतेन नश्यति // 70 // अस्मताज्ये त्वमेवासि / धीरवीरधुरंधरः॥ हारवन्मामपि व्याधि-वारिधी मनमुघर // 1 // स राजवचनर्निन्न-मानसस्तत्प्रपन्नवान् // एत्य स्वप्रेयसीपावें / स्वरूपं च तदुक्तवान् // 2 // व्यापि ज्ञातवृत्तानि-स्तानिः प्राणप्रियप्रनो // अस्मास्वासक्तचित्तोऽसौ / जवंतं हंतुमिछति // 3 // तदयं निर्दयो नित्यं / दत्ते ते दुष्टशासनं // गत्वा कथय नाथाथ / यदेतन्न हि सिध्यति // 4 // अचलापि चलत्येषा / / चलत्यपि सुराचलः // महतां प्रतिपन्नानि / न चलंति कदाचन // 5 // इत्युदीय महाचीयो।।। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ হিম 234 // व्याघीमानेतुमुद्यतः॥ यावच्चलत्यसौं ताव-प्रत्यदो यक्षरामभृत् // 6 // अनाणीच म- || हानाग / तिष्ट त्वं जवनांतरे // त्वडूपेणैव सर्वाणि / कार्याणि करवाणि ते // 7 // इत्युक्त्वा स्थापयित्वा च / तमंतमंदिरं स्वयं // प्रीत्या तपमादृत्य / निरगानगराबहिः // 7 // अरण्यचारिणी स्वैरं / प्रसूतनवबालकां // गत्वा वने पुतं व्याघीं। यवश्वागीमिवाधरत् // ॥ए // क्रूराकारां धृतां कर्णे / बालकानुगतां स तां // आनिन्ये नगरस्यांत-पियन् नागरान्नरान् // ए // आश्चर्याघ्दनन्यस्त-हस्तमुन्मीलितेक्षणं // इदतेस्म स लोकेन / मुक्तमार्गेण पूरतः // ए१ // देवोऽयं देवदिन्नः किं / यदेवं विधवीर्यवान् // शृण्वन् समस्तपौराणां / वचश्चयमयं चलन् // ए५ // अचलेशालयं प्राप्य / स क्षमापालमालपत् // दुग्ध्वा दुग्धं पि. || बैतस्या / जव भूप निरामयः // ए३ // पुग्ध्वा देहि महानाग / राक्षेति प्रतिपादिते // जा. || जनेन तथा चक्रे / विस्मिते स सन्नाजने // ए४ // उत्कृष्टं तहलं दृष्ट्वा / जीतस्तत्पीतवान्नु पः // उक्तवांश्च महासत्त्व / गत्वैनां मुंच कानने // ए५ // धृत्वेत्याकर्ण्य कर्णे ता-मरण्यांन्यां || विमुच्य च // देवदिन्नगृहेऽन्येत्य / वार्ता सर्वामचीकथत् // ए६ // राजापि विफलीभूत-- Guaratraso Jun Gun Aaradhak Trul Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं 235 मुपायमवगम्य तं // चित्ते चिंतातुरो जज्ञे / देव दिन्ने पुराशय // ए // अन्यदा स समाहूय / सदसीति तमब्रवीत् // देवदिन्न त्वया कार्य / सर्व सिद्ध्यति हेलया // ए॥ अधुना ध. मराजस्य / पूतत्वे सत्वसागर // गड तस्य पुरस्ताच्च / वाच्यमेतत्त्वया रयात् // एए // अहं लक्ष्मीपुरेशेन / लक्ष्मीदेवनरेंदुना // यमराज तवोपांते / रुष्टेन प्रेषितोऽस्म्यहो // 300 // देशे ग्रामे पुरे करमा-दकस्मात्पातितो जवान् // सर्वदैवहरस्यस्म-नररत्नान्यनेकशः // १॥एतावंति दिनानि त्वं / पल्लीपवदुपेदितः // अयप्रति चेदेवं-विधं मुग्ध विधास्यसि // 2 // कीनाश स्व विनाशाय / विकि मामागतं तदा // पुरीं संयमिनी जम्नां / जग्नाश्च निजयोषितः . // 3 // इत्युक्त्वा मम संदेशान् / वलमानं स वक्ति यत् // अवधार्य समस्तं त-दिहैतव्यं त्वया रयात् // 4 // न त्वं यद्यपि पूतत्वे / प्रेषितुं सत्तमोचितः // परं नैतत्परः कर्तु। सहते नोत्सदेत च // 5 // नेति वक्तुमजानानो। देवदिन्नस्तमब्रवीत् // केनाध्वना नराधीश / गम्यते यमसद्मनि // 6 // बहुशः संति पाशांनः-प्रवेशप्रमुखाः परे // जाज्वल्यमानज्वलनः / पंथासन्नतरः परं // 7 // एवं वदति भूपाले / देवदिन्नेन जल्पितं // प्रस्थास्यामि गृहं गत्वा।। // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पर तव दौत्याय सत्वरं // // राजकार्यं तदादृत्य / समेत्य स्वनिकेतनं // आचख्यौ यदराजा- || य, / स्वरूपं सर्वमप्यसौ // ए // श्तो राजा पुरीपार्श्वे / गर्तामेकामखानयत् // ज्ववणि खचरित्रं दिरांगारैः। समस्तां तामपूरयत् // 10 // श्तश्च गुह्यको देव-दिन्नरूपं विधाय सः // निर्ययो मंदिरात्तस्मात्स्फूर्तिमन्मूर्तिधारकः // 11 // हा हा महारत्नमिदं नरेषु / निहन्यते हीनतरेण राझा.॥ अस्त्यस्य राज्ये सचिवोऽपि कश्चि-दन्यायतोऽमुं विनिवारयेद्यः // 12 // ससित्कारं महाकार-मदीनास्यं नृपाधमै // प्रभूतैरपि निंदनिरीक्ष्यमाणोऽथ नागरैः // 13 // जलहालितसर्वांगो। निर्गत्य नगरादसौं // गर्तापार्श्वस्थितमापं / चलन्नस्मीत्यनाषत // 14 // हा हा.मा मा न नेत्यादि / तब जल्पत्सु देहिषु // ज्वालालिविकरालायां / गर्तायां सोऽपतद् पुतं. // 15 // लोकाः कंपितमूर्धानः / कष्टान्मीलितलोचनाः // ततो निवर्तितुं लग्ना। जह बैंको नृपाधमः // 16 // कणमन्यंतरं स्थित्वा / निर्ययो सोऽद्भुतं दिशन् // अदग्धवपुरुत्तीर्य / ज्वलनं जललीलया // 17 // आगत्य भूपतिं नत्वा / श्यामीभूताननश्रियं // पश्यत्सु || सर्वलोकेषु / स्मेरास्येषु जजल्प सः // 17 // गतोऽहं यमराजस्य / राजधान्या त्वेदाज्ञया / / "EP.AC. Gunraimasuri ME Jun Gun Aaradhak Trust Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का संदेशा जवतः सर्वे। तत्पुरः प्रतिपादिताः // रए // वबमानमिदं तैन। जवंतं प्रतिभाणित // कृतीत इति में नाम / कृतस्यांतं करोमि यत् // 20 // सुकृतं पुकृतं वापि / यथा येन कृतं चरित्रं भवेत् // तस्मै तादृक् फलं यबन् / कथमन्यायकार्यहं // 1 // परं पालयितुं न्यायं / नियु२३७ क्तोऽस्ति मया जवान् // अन्यायं स्वयमितं / त्वां सहिष्ये न शक्तिमान् // 3 // सिंधुर्वधुरभूघ्याघ्री / नाजिधन्नाग्निरग्रहीत् // यमोऽपि पक्षपात्वेष / तन्नूनमजरामरः // 24 // इति चिंतातुरो जूत-अस्तवतून्यमानसः // पीतासव श्व प्रापै / राजा राजांगणं ततः // 25 // यदोऽपि देवदिन्नाय / स्वरूपं तन्निरूप्य सः // अवतस्थे गृहंस्यांत-हितचित्तस्तिरोहितः॥ // 26 // राजापि विफलीनूतान् / विज्ञायोपायपादपान् // उपायमस्मरन्नन्यं / जझे कामज्वरातुरः॥ 17 // द्विष्वहःखतीतेषु / गत्वा चंद्रमतीसुतः // अपलदेव जवतो / वपुरस्ति निरामये // 27 // निरामयत्वं कुत्रात्रो-हरे दाघज्वरे सति // तनोतं तर्हि वैद्योक्ता-न्योषधानि विधीयतां // // राझोक्तं विहितान्येव / नाभूत्कोऽपि गुणः परे // शेषनाग शिसेरत्नं / यद्यायाति तदा नवेत् // 30 // शक्तियुक्तश्च सर्वत्रा-स्खलितप्रेससे जवान् // अनुकंपापरः / PP.AC.Guniatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या कार्य--मैतन्निर्मातुमर्हसि // 31 // थानेष्याम्यचिरादेव / देवेति पतिपद्य सः॥ देवदिन्नो || | गृहं गत्वा / यक्षायाखिलमालपत् // 35 // निरापायैरुपायैस्तै-न रोगो विनिवर्तते // सान्निचरित्र || पातिकरोगः किं / प्रशाम्येन्मधुरौषधैः // 33 // अधुना तं हनिष्यामि / सस्मितं यद इत्यव३७ क् // न नेति कृपया चंद्र-यशःपुत्रे वदत्यपि // 34 // स तस्य रूपमाधाय / धराधिपतिसनिधी // एकां दिव्यरूपां नारी ।कृत्वा धृत्वा करेऽगमत् // 35 // दीप्यमानं रत्नमेकं / नूमिपाय समार्पयत् // उवाच च महाराज / नागलोकेऽजवं गतः // 36 // त्वदीयसेवकत्वेन / मया निर्नयचेतसा // शेषराज पदा हत्वा / रत्नमेतदुपाददे // 37 // श्त्युत्कृष्टं बलं दृष्ट्वा / मयि पातालकन्यकाः॥ जझिरे सानुरागास्ता। मयैवं जणिताः पुनः // 30 // अस्ति लक्ष्मी पुरखामी / लक्ष्मीदेवनरेश्वरः // गुणानामालयो लक्ष्मी-विनिर्जितपुरंदरः ॥३ए॥ तस्यास्मि नृत्यलेशोऽहं / ततस्त्वय्यनुरागतः // मया सममिमां दासीं / प्रेषयामासुराश्रुताः // 4 // एतया सह है नाथ / समेतव्यमिह त्वया // इति विज्ञापितं तेऽस्ति / तानिः सर्वानिरादरात् // | // 41 // इति श्रुत्वा देवदिन्न-प्रियासु रतिमत्यजत् // यासामेतादृशी दासी / ता नविष्यंति || HIPPEAC,Gunratnasurilo.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ए किंविधाः // 45 // अस्या दास्या अपि पुरो। दासीवनांति ताः स्त्रियः // जव्येन्योऽपि हि जव्यानि / संति वस्तूनि विष्टपे // 13 // तत्तासां नागकन्याना-मंगसंगं करोम्यहं ॥ध्यात्वेति भूपतिः प्राह / तन्मार्ग में प्रदर्शय // 44 // दिव्यस्त्रीदर्यमानाध्वा / स समुत्तालमानसः॥ एकं पातालविवरं / प्रविवेशावशेंजियः // 45 // तस्यादं सुमतिमंत्री / मयेति नणितो नृपः // प्रस्थानं न तव स्थाने / स्थानेऽस्मिन् नीषणे प्रनो // 46 // यतः-धातुवादे तथा द्यूतेंजनसिकौ रसायने // विवरादौ प्रवेशे च / देवे रुष्टे मतिनवेत् // 4 // अन्यच्च त्वमपुत्रोऽसि / राजन् राज्यं त्यजस्यदः // निराधारं कथंकारं / प्रवेशोऽत्रोचितो न ते // 4 // इत्यादिना. नुशिष्टोऽपि / मोहधूर्तवशीकृतः॥ सोऽगमद्विवरस्यांतः / कृतांतेन कटादितः // 4 // अथासी. त्तस्य शस्यास्या। देवी जुवनसुंदरी // तया सह मया चक्रे / संकेतो यजतो नृपः // 50 // पातालमंदिरादेष / को वेत्यायाति नाथवा // यदि ते जायते पुत्री / प्रकाश्यः पुत्र एव हि // 51 // केवलज्ञानिनं साधु / ततः पृष्ट्वा कमप्यहं // करिष्यामि समं साध्यं / परिणाममनोरम // 55 // तत्रैकदा शुन्जध्यान-वह्निदग्धमलेंधनः // तपोधनः प्रापदेकः। केवलज्ञाननास्करः / -P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का 3 // स मुनिधर्मदेवाख्यो / देवैः कृतमहामहः // देवदिनादिजिलोंकः / समागत्य स्म वैद्यते // .. | शामजनेन तदैकेन / समेत्यैतनिरूप्यते // जिज्ञासुनृपतेवृत्त / तदंते गतवान // 55 // चरित्रं प्रारेने सं सुधादेश्यों / देशना दर्शनांशुनिः॥शुद्धसिद्धिशिलावर्ण-वर्णिकामिव दर्शयन् // 6 // जो जो जव्या जवजलं निधौ प्राप्य दुःप्राप्यमेतं / सारछीपोपमनरजवं न प्रमादो विधेयः // यादातव्यं सुकृतसखिलं चारुचारित्ररत्नं / ग्राह्यं येनाग्रत इह सुखं जायते सर्वदैव // 17 // यो निश्चलमतिः कुर्या-ऊर्म शमैविधायकं / / तस्य विनी प्रयासं स्युः / संपदः सकला अपि // // अवशहषीकतुरंग-रवश्य जंतुरुन्तैः // नीयते नरकारण्ये / लक्ष्मीदेवेनृपो यथा // ॥एए // दानादिधर्मरक्तानां / विरक्तानों च पाप्मनः // परोपकाररक्तानां / श्रियः स्युर्देवदिनवत् // 60 // अत्रांतरे समुत्थाय / नत्वा चंडमतीसुतः॥ अप्रादी कि प्रनो पुण्यं / मया पूर्वनवे कृतें // 61 // बजाणं केवली साधुः / शृणु वृत्तांतमादितः // अस्त्यत्र धनिलोकेन / पूर्णा धनपुरी पुरी // 6 // तंत्र कॉमध्वजौ राजा / तस्य सन्माननाजनं // जनमान्यो धनैः || श्रेष्टी / धनसारानिधोऽनवत् // 63 // अगण्यपुण्यलावण्य-पीयूषरससारणीः // परिणिन्यै च / / Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1e चरित्रं तस्रः स्त्रीः / सोऽथ रंजानुकारिणी // 6 // वसंतसुंदरी प्रेम-सुंदरी रतिसुंदरी // गुणसुंदर्यथो तासां / नामानि क्रमशोऽजवन् // 65 // द्वितीयमिव चेतास्ति / तृतीयमिव लोचनं // गुणसारानिधस्तस्य ।श्रेष्टिश्रेष्टः सुहृत्तमः // 66 // बभूव धनसारस्य / जांमागारी धनाकरः // सह तेनारुरोदायं। यानपात्रं समिनकः // 6 // छीपांतरगतः देमे-णातलाभः स्वजाग्यतः॥प्रापेकविशतिगुणं / गुणानां निलयोपमः।६०॥ तत्रैव गुणसारोऽपि / परिणिन्ये शुजाकृति // गुणश्रीःसंशिकां कन्यां / सादादिव गुणश्रियं ॥६ए। प्रशस्तवस्तुनितॄत्वा / यानं मित्रान्वितोऽचलत् // धनसारोऽनुकूलेन / वायुना कर्मणेरितः // // समुशांतर्वजन् कामा-तुरचित्तो धनाकरः ॥गु. पश्रिया समं हास्य-वाक्यानि परिजल्पति // 11 // सा सती लजाया नम्रा-नना किंचिन्न नापते // अन्यदा स तथा कुर्व-स्तत्प्रियेण विलोकितः // 2 // तेनाथ धनसारस्य / स्वरूपं तन्निरूपितं // तेनाकार्य निजो जांमा-गारीति विनिवारितः // 73 // नमोचितं न पुंसां स्या-त्परस्त्रीणामपीक्षणं // आलापने तु किं वाच्यं / वचनीयमतीव यत् // 4 // तत्त्वया नै व वक्तव्यं / किंचित्साकं गुणश्रिया // दाक्षिण्याबजाया नीत्या / तचः प्रत्यपद्यत // 5 // PP.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरित्रं प्रत्येक परं रागातुरत्वेन / तथैव कुरुतेस्म सः॥ आलोकि धनसारेण / रुष्टचित्तेन चिंतितं // 6 // धिगमुं निवपं नृत्यं / पुरात्मानं पुराशयं // अनेन खलु मे जावी / मित्रलेदोऽचिरादपि // // 7 // हेयोऽयमहितो नाग-दष्टांगुष्ठसमो मया // इति ध्यात्वा स निक्षिप्त / उत्क्षिप्य दाश्व वारिधौ // 7 // स पूर्वजग्नपोतस्य / पुर्वपुण्यतरोः फलं // फलकं प्राप्तवानेकं / विवेकमिव संसृतौ // sए // तदाधाराचिरादाप / तीरं नीरनिधेरयं // समीरणेन शीतेनो-तस्थौ संप्राप्तचेतनः // 70 // ज्ञानाकरकुलपतेः / प्रबुब्धो वचनोच्चयैः // धनाकरो विरक्तात्मा। तापसंवतमाददे // 2 // चिरमझानकष्टानि | विविधानि विधाय सः // मृत्वा विद्याधराधीशो। वायुवेगानिधोऽजनि // 2 // श्तो गुणश्रिया ज्ञात्वा / पातितं तं पयोनिधौ // विषादोऽकारि चित्तेऽयं / वराको मत्कृते हतः // 3 // शतधन्या ये न जायते / परेषां घातहेतवे // प्रजवंत्युपकाराय / सर्वेषामपि देहिनां // 4 // अनादीगुणसारस्तां / विषादापन्नमानसां // सोऽचिंतयदियं नूनं / न प्रिया शीलशालिनी // 5 // अन्यथा कथमेतस्मिन् / पासितेऽब्धौ धनाकरे // एषा विषादमापन्ना / तं ध्यायंतीव तिष्ठति // 6 // कुशीलया परासत-चिः || .P.PAC.Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं तया किं ममैतया // ध्यात्वेति प्रणयिनी स / न जल्पयति नेकते // 7 // तया प्रयुक्तं प्र- || णया-हिनयं न प्रतीति // क्रमात्प्रवहणं प्राप। तीरं देमेण वारिधेः // // गृहीत्वा खखवस्तूनि / ययुः सर्वे पुरांतरा // धनसारः समित्रोऽपि / प्राप्तो निजनिकेतनं // नए // खपत्युरपमानेन / गुणश्रीनमानसा // चिंतयामास हा स्वामी / कुपितः किमकारणं // ए० // कारिता मंत्रतंत्राद्याः / सौनाग्योत्पत्तये तया // परं तैन गुणो जझे-साध्यव्याधाविवौषधैः // 1 // पृछतिस्मैकदा साथ / साध्वीः सौजाग्यकारणं // ता ऊचुर्नाधिकारो नो / न सां. सारिके विधौ // ए // परं सुखार्थिनी चेत्त्वं / तदा धर्म समाचर // सर्वकार्याणि सिध्ध्यंति / येनाचीर्णेन हेलया // ए३॥ रोहिणीकल्पवृदादि-विशेषेण प्रवर्तते // दो ग्यध्वांतवि. ध्वंसि-तपनातपवत्तपः // ए४ // साध्वीनां ताः सुधाकुख्या-तुल्याः पीत्वा सरस्वतीः // सध्या यथोदिष्टं / तप्यतेस्म तपस्तया // एए ॥श्तश्च धनसारस्या। मंदिरे सुंदराकृतिः॥ प्रपन्नजिनकल्पश्री-रागाधर्मधनो मुनिः // ए६ // उत्थाय धनसारेण / प्रतिपत्तिपुरस्सरं // // ववंदे स ययाचे च / चातुर्मासिकमाश्रयं // ए७ // स्वगृहैकप्रदेशे त-त्तस्मै तेन ददे मुदा || . PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust HA. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // कायोत्सर्गः स च ध्यानं / कुर्वस्तत्रावतिष्ठते // ए७ // अन्यदा धनसारोऽगा-स्वजनाम: || . . त्रितः क्वचित् // निश्यपश्यन् प्रियास्तस्य / तं मुनि मदनातुराः // एए // जजल्पुः स्निग्धवा- 1 क्यानि / चंगखांगान्यदर्शयन् // आलिंगनं ददुर्गाढं / कायोत्सर्गजुषो मुनेः॥ 40 ॥चित्र. 544 लिखितवत्काष्ट-घटितानः स संयमी // तिष्टतिस्म विचेष्टः सन् / जितकामा हि साधवः॥ // 1 // प्रजाते तेन जातेऽथ / समस्तास्ताः प्रबोधिताः // जगृहर्निश्चलं शीलं / गृहमेधिजनोचितं // 5 // धनसारो गृहायातो। मुनिसेवनतत्परः // परममाहतं धर्म-मर्जयामास सप्रियः // 3 // धनसारस्ततो भृत्वा / देवदिन्न जवान मृत् // तत्प्रिया वेगवत्याथा / विद्याधर्योऽनबन्नमूः // 4 // गुणसारप्रिया मृत्वा / गुणश्रीरिह जन्मनि // देवसुंदर्यभूदेषा / त्वदीयापूर्ववबना // 5 // पूर्वरागाहायुवेग। एतस्यामन्वरज्यत // पूर्ववैरानवंतं च / किप्तवान् जलधे| जले // 6 // पूर्वपुण्यानुजावेना-चिराजाज्यं लनिष्यसे // अवसाने समाश्रित्य / प्रज्यां शिवशर्म च // 7 // इति केबलिनः श्रुत्वा वचनं रजतोज्ज्वलं // सप्रियोऽपि देवदिनो। हा|| दशाणुव्रतान्पलात् // 7 // नत्वा मुनि निजं स्थानं / प्राप पापपराङ्मुखः // यदेणोत्क्षिप्य / .P.P.AC.GunratnasuriM.S.. .' Jun Gun Aaradhak trust Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीतश्च / स पुरं जनवबनं // 5 // तत्र संस्थाप्य तं राज्ये / गुह्यकोऽगान्निजास्पदं // सलील / पालयामास / देवदिन्नः सुखेन तत् // 10 // अथो मया मुनिः पृष्टो / जगवन् किमजायत॥ चरित्रं विवरांतः-प्रविष्टस्य / लक्ष्मीदेवनरेशितुः // 19 // ततो मुनिवरोऽजाणी-हिवरांतर्गते नृपे // . 245 यदो मनोरमो दिव्य-स्त्रीरूपं परिहृत्य तत् // 15 // नानाराक्षसजूतानां / रूपाण्याविश्वकार सः॥ बवितो भूपतिभृत्वा / प्रथमं नरकं ययौ // 13 // मयापछि पुनः साधु-नंगवन् ज. नयिष्यति // किं पुत्रं पुत्रिकां वा सा। देवी जुवनसुंदरी // 14 // तेनोक्तं पुत्रिकां सा च / करिष्यति कियच्चिरं // राज्यं ततो हरिषेणः / कुमारः परिणेष्यति // 15 // स राज्यं पालयन्नेत-जित्वाखिलमहीपतीन् // जरतत्रिखंगनाथो / वासुदेवो नविष्यति // 16 // इति श्रुत्वा मुनि स्तुत्वा / स्वगृहं प्राप्तवानहं // काले चाजीजनत्पुत्रीं / देवी जुवनसुंदरी // 17 // लोके प्रकाशितः पुत्रो / महदुत्सवपूर्वकं // समुदत्त इदं / तस्या नाम प्रतिष्ठितं // 17 // प्रछन्नं वर्धिता बाला / पौरुषं वेषमाश्रिता // राज्यं च पालयामास / सिंहासनस्थिता सुखं // | ॥रए // हरिषेणकुमारेछ / शृएिवयं सा कुमारिका // अहं च सुमतिमंत्री / नवदंते स- | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रत्येक मागतौ // 20 // अस्या दृष्ट्वा शुनाकारं / नवंतं चंदमाःसमं // क्षुब्धो मनोबुद्धिस्तस्मा-ज || हिपता स्खलितादरं // 21 // तत्कुमारवरैतस्या-स्त्वं पणिग्रहणं कुरु // लक्ष्मीपुरपुरे पश्चा-श. चरित्र त्वा राज्यमलंकुरु // 25 // हरिषेणकुमारोऽवक् / सचिवेश पितुः पुरः // गत्वैवं वद वृत्तांतं 246 / पश्चायोग्यं करिष्यते // 23 // ततः सुमतिमंत्रीशः / सूरसेननृपांतिके // गत्वा निरूपया मास / खरूपं पूर्ववार्णितं // 24 // हृष्टेनाकारि भूपेन / विवाहोत्सवपूर्वकं // समयापि च सामग्री / कालादल्पतरादपि // 25 // स्थानात्स्थानात्समायातै-जनजातैरपूरि तत् // पुरं तथा यथा स्थालाः / पेतुनोंडालिता जुवि // 26 // समुद्रदत्तया साकं / प्रदत्तजनकौतुकः // हरिषेणकुमारस्य / जज्ञे पाणिग्रहोत्सवः // 27 // पक्ष्यतटस्पर्शी / सरसः कमलालयः // महारंगतरंगौघ-स्तरंगिण्योघवहनौ // 27 // अथो सुमतिमंत्रीशः / सूरसेननरेश्वरं // व्यजिज्ञपदितिःप्रीति-प्रोबसदनांबुजः // ५ए // लक्ष्मीपुरे पुरे प्रेष्य / हरिषेणं निजांगजं // एणा की मिव तन्नाथ / सनाथं कुरु सांप्रतं // 30 // भूमीपालोऽथ हर्षेण / हरिषेणं समंत्रिणं // / रामसेनान्वितं प्रैषी-देणादया सहितं ततः // 31 // प्राप लक्ष्मीपुरोपांते / कुमारः सारवस्तु P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र चरित्र 24 नृत् // प्राविशत्सोत्सवं लोकै-लोक्यमानः सकौतुकं // 35 // नृपासने निवेश्याथ / मंलिसा- || मंतमंमलैः // हरिषेणकुमारस्य / चक्रे राज्यानिषेचनं // 33 // समं स रामसेनेन / प्रजापालनलालतः // सुखं करोति साम्राज्यं / न्यायांबुजदिवाकरः // 34 // अन्यदा देवदिन्नः स / विद्याधरनरेश्वरैः // तस्मिन् पुरे समायासी–सेवायै पितृपादयोः // 35 // श्रुत्वा व्यतिकरं सर्व / हरिषेणनरेशितुः // नररत्नैर्जुतांयां स / सजायां समुपाययौ // 36 // हरिषेणेन हर्षेण / वासनार्धे निवेश्य सः // अपछि कुशलोदंतं / दंतपंक्तिप्रकाशिना // 37 // तदादरात्प्रसन्नेन / देवदिन्नेन साग्रहं.॥ प्रज्ञप्त्याद्या महाविद्या / ददिरेऽस्मै प्रमोदतः // 30 // तेनापि ददिरे सर्वा / रामसेनाय बंधवे // विधिना साधेनायासा-मुपविष्टावुनावपि // ३ए // तदधिष्टायिका देव्यः / प्रत्यदीभूय तत्क्षणं // सिद्ध्यंतिम हि महतां / विलंबो न समीदते // // 40 // नाविने वासुदेवाय / हरिषेणाय ता ददुः // दिव्यानि नीलवासांसि / सप्त रत्नान्यमूनि च // 41 // संग्रामिको रथः शार्ङ्ग / धनुः कौमुदकी गदा // श्रीवत्सो नंदकः खगस्तूणीरव्यमदयं // 45 // रामाय नीलवासांसि / तथा रत्नचतुष्टयं // दिव्यं हलं चमुशलं।। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो छ धनुस्तूणीरमक्षयं // 3 // रत्नानि नररत्नाच्यां / प्रदायैतानि देवताः॥ स्मारणीयाः पुनः काः || ॥यें / इत्युक्त्वा स्वास्पदान्यगुः // 44 // * ... . . / अथान्यदा नृपास्थाने / पूतः श्रीगृहपत्तनात् // समाजगाम पझेन / प्रेषितः प्रतिक्रिः पा.॥ 45 // स प्राह साहसाधारो / जरतार्धधराधवैः // संसेव्यपादपझेन / पझेन प्रेषितोऽस्म्य // 6 // तेनादिष्टं तवास्त्येतद् / नृत्यानां वस्तु यदुनवेत् // तत्स्वामिसत्कमेवेह / यते तदत्तजीविनः // 7 // अस्मत्सेवकसत्कस्य / राज्यस्य स्वामिनो वयं // कन्या समुपदत्ता सा / युज्यतेश्याकमेव च // 4 // तदस्माजिरदत्तं स्व-राज्यं नारी मिमां च नः // शुंजा. नो न कथं जावी। निग्राह्यश्चौरजारवत् ॥४ारे मुग्ध दुग्धवदन / त्वं न जानासि कंचन / / व्यवहारं महीपीठे / बाल्ये किं नाम विद्यते // 5 // // विद्यते यदि नो मेधा / तव तातस्य चेतसि // तदा मान्यो न मंत्री किं / मतिमांस्तमशिद्धयत् // 51 // सूरसेनो धिया हीनो / येनेह प्रेषितो जवान् // संक्लेशबहुले स्थाने / को दकः स्वं शिशुं क्षिपेत् // 55 // सुमतिः कुमतिश्चायं / यस्त्वामाहूतवानिह / सुधीः कः करिणो प्रासं / रासजाय प्रयबति // // P.P: Ac. Gunratnasuri M.S. . . Jun.GuriAaradhak Trust . Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व // 53 // राज्य सुमतिनानेन / दत्तं चानुमत्तं पुतं // सूरसेनेन स्नेहेन / त्वया चांगीकृतं मुद्दा // 14 // तन्मे त्रयोऽपि निग्राह्याः। परं दातमिदं हि वः॥ वारमेकं विमुच्यते-ऽत्यंतमप्यपराधिनः // 25 // अतःपरं परं राज्यं / परित्यज्य बजेरितः ॥कन्या समुदत्ता चाकतव्या तदुपायन-॥ 56 // अन्यथा निग्रहीष्यामि / जवंतमपराधिनं // समं समेस्य भुपालैर्जरतार्धनिवासिनिः // 57 // तातस्त्राता न मंत्री च / शवंतमप्युपस्थिते // सिंहे कर्षति वालं स्वं / शृगालैः किमु जायते // 7 // सर्वैः समीहते स्थाने। स्थातुमुच्चैस्तरे न हि // परमुच्चैर्गतो नीचः / सह्यते नेह काकवत् // एए॥ त बाला किंधा बालो। माभूगः पु. सदितः // जीवनिः प्राप्यते सर्व। पुना राज्यांगनादिकं // 6 // इति पञ्झनृपादेशं / तोनिदिश्य तस्थिवान् // हरिषेणस्तदावादी-जुकुटीनीषणेक्षणः // १॥पूत ते न विचारक्षः / खामी कामी हि केवलं // परिणीता परेणैतां / कथं कामयतेऽन्यथा // 6 // अदत्तं स्वा। मिना राज्यं / वांबन्नन्यायकृत्खदु // चौरो जारः कथं चाहं / योगदत्तं यमाप्तवान् // 3 // | अनयो राज्यांगनयो-यदि वांलां विधास्यति // सोऽतःपरंतदा तस्य / दास्ये शिक्षा यथो- || PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चितां // 64 // रामसेनोऽप्यथाचष्ट / पटिष्टवचनोच्चयैः // मन्ये भूत तवेशस्य / सन्मंत्री ना- || स्ति कश्चन // 65 // यस्य बुद्धिर्भवेत्स्वेन / ददः को वा विचक्षणः // स प्रसुप्तस्य सिंहस्य / कर्णाप्रेमं करोति किं // 66 // केयं कुबुद्धिस्त्वनतु-दियं मम मेदिनी // राज्यानि वीरजोज्यानि / कस्य सत्कानि संत्यहो // 6 // अदत्तं यदि पझेन / हरिषेणनरेश्वरः // राज्य गृह्णन् नवेच्चौरो / जारश्चैनां शुजांगनां // 67 // तदा श्रीहरिषेणेना-दत्तं राज्यं च योषितः // मुंजानो न कथं जावी / चौरो जारश्च पद्मराट् // ६ए // दूतः प्रभूतमाटोप-माधायेत्यज्यधात्पुनः // युवाज्या बालबुझिन्यां / कश्चिन्न ज्ञायते नयः॥ 70 // श्रियः समापि पमोऽपि / न स राज्ञः कुतश्चन // संकोचं याति मित्रस्य / प्रत्युतोहासकारकः // 1 // यस्य गायंति संग्राम-नूमौ प्रेतांगना यशः // पतितारि शिरोमाला-तालास्फालनलालसाः // // 3 // यस्य हुंकारमात्रेण / सिंहस्येव जयातुराः // शृगाला श्व भूपाला / न चरंति महीतो // 73 // यस्याप्रतिहतं चक्रं / कृतांतवदनाकृति // ब्रांत्वा बिनत्ति शीर्षाणि / वैरिणां नाललीलया // 4 // यक्षा यस्य वसंति साजुज़योरष्ट्रौ सहस्रास्तथा / यस्याने जरतार्धभू- // PRAc Genratnasuri M.S. .. Jun Gun Aaradhak Trust Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र प्रत्येक मिपतयस्तिष्टंति सेवापराः // दोनं यांति विलोक्य यं सुरगणाः का मानवानां कथा। हा || हीनैः समशीर्षिकासममहो तेनापि निर्मीयते // 15 // का स्पर्धा लवतोस्तेना-हिना दई. रयोरिव // सर्पयोरिव तादयेणा-ग्निना शलजयोरिव // 16 // युवयोमरणायेयं / स्पर्धा पद्म२५१ | नरेंजुना // पदोगमः कीटिकानां / नूनं मृत्यव एव हि // // तिष्टतात्स स्वयं राजा। त्वं तत्सैन्यांतरागतः // बिंवृष्टिरिवाजोधौ / ज्ञास्यसे न ससैनिकः // // सेवका अपि मोदयंति / त्वां तेनोपाता जुतं // वृदं दावानलालीढं / खगा श्व चिराश्रिताः॥ ए // त्यज्यतां त्यज्यतां राज्यं / दीयतां दीयतां च सा // पश्चात्तापहतैः पश्चा-दपि स्मायेति वाग्मम // 70 // इति श्रुत्वा रामसेनः / क्रोधोद्भतारुणेक्षणः॥ समुन्वसितसर्वांगो / रणांगणमिवाश्रितः॥१॥ पादेनास्फोव्य भूपीठं / प्रकंपितधराधरं.॥ पाणिनास्फाख्य दोर्दमं / प्रतिगर्जितविष्टपं // 2 // इत्यूचे रे तवेशस्य / दत्तः पादोऽस्ति मूर्धनि // यावान्यां दोसहायान्यां / तथा तत्पक्षपातिनां // 73. // किं तस्य पौरुषं ब्रूषे / सामान्यजननीतिकृत् // एते ते न परं वृक्षा / वात्यया प्रपतंति ये // 4 // श्तो गढ यथेचं त्वं / प्रनो रोषं पुषाण च || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun-Aaradhak Trust Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // समायातु स संनह्य / सत्वरं सह सेनया // 5 // सिंधुराज्यामिवावाच्या-मालोड्य. | पृतनासरः // घमं पद्ममिवादाया-मृदु मर्दिष्यते क्षणात् // 6 // अतःपरं न वक्तव्य-मसंचरित्रं बडमिह त्वया // त्वरया गड त्वस्येः / स्वं स्वामिनमिहागमे // // इति निर्जर्सतो . श्५५ तः। सैवकैर्गलहस्तितः // ततो निःसृत्य कालास्यः / कालवत् श्रीगृहं ययौ // // द्विगुणीकृत्य वृत्तांतं / तं नृपाग्रे न्यवेदयत् ॥सोऽपि कोपितचेतस्कः / तूर्या जंजामवादयत् ॥ए॥ तत्क्षणं तन्निनादेन / सजीभृय महानुजाः॥षोमशसहस्रसंख्या। मिमिवुः पद्मसद्मनि // // ए॥ मंत्रिद्धाननाच्छ्या -वगणय्य कुवासरं // सुभटानप्यसत्कृत्य / प्राचालीस नरेश्व| रः॥ // निमित्तेषु जातेषु / वार्यमाणोऽपि मंत्रिनिः // कालपाशैरिवाकृष्टो / नास्थान्नुन्नः कुकर्म निः॥ ए // क्षुब्धाब्धिरिव दुःप्रेक्ष्यो / वाहिनीनामवस्थितिः // प्रससार नराधीशो / धुवानः पृथिवीतलं // ए३ // सहस्रपत्रसंपन्ने / कमलालंकृते तते॥ पद्मपद्महृदे चि. त्रं / वाहिन्यो न्यपतन्निह // ए४ // रजोनि—म्रिता श्राशा / विदधानोऽखिलाश्चलन् // क. पातानलकल्पोऽसा / कस्यातकाय नालवत् // एसोऽविजिन्नप्रयाणेना-ययौ तद्देशस Jun Gun Aaradhak PRAG Gunratnasuri M.S. . Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ বি .153 निधौ // हरिषेणनृपोऽप्युच्चै-श्चरैवृत्तं निवेदितः // ए६ // सोऽप्युड्वसितसाग / आपृच्ज्याखिलमंत्रिणः // सत्कृत्य सुनटान् शुद्ध-वेलायामचलत्पुरात् ॥ए॥ शोजनैः शकुनै-रिव सूचितमंगलः // चतुरंगबलैर्युतो / हरिषेणनृपो ययौं / एज् ॥आययौ महतस्तस्य। सैन्यस्य सविधेः क्षणात् // पद्मालंकृतमध्यस्य / पिताब्धिरिव वारिधेः ॥एएतत्रामिलद्देवदिनो-संख्यविद्याधरैः समं // जनकः सूरसेनोऽपि / तत्रागात्सह सेनया // 50 // अन्येऽपि केऽपि भूपालाः / श्रुत्वा शानिमुखांबुजात् // तस्य शस्यतरोदकं / संपर्क चक्रिरे हरेः // 1 // युद्धाय बुकिं स विधाय धीरः / श्रीपद्मनामा प्रतिवासुदेवः // चक्रे सहस्रारविनाजि चक्रव्यूह स्वसैन्ये कृतवैरिदैन्ये // 2 // उद्दामधामा हरिषेणनामा। निजध्वजिन्यां गुरुमानुकारं // व्यहं व्यधारिनरेंद्रनाग-विध्वंसकं चित्रविचित्रपत्रं // 3 // उन्ने अपि महासैन्ये। क्षु. ब्धौ पूर्वापरांबुध। // इत्युत्कटनटोसोले-लोले आसन्नमीयतुः॥ 4 // वाद्येषुवाद्यमानेषु / नृत्यत्सु सुलटेषु च // मिथो बले अनास्येतां / विशालोत्तालतालवत् // 5 // बप्प बप्पेति जपंतो / जटाः सुजटसंहतेः ॥ऊचिरे बिरुदश्रेणी-रधिकोत्साहकारिणाः॥ 6 // रथेशो रथि PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्रं 354 ना सादी / सादिना च निषादिना // निषादी पत्तिना पत्ति-रास्फललगर्जितः // 7 // उ. त्पतिस्म शस्त्राणि / इयोसस्फलतोर्मियः / युगांतपवनोमांत-वारिध्योरिव वीचयः // // करवालकलत्कार-ज्वालामालाकरालितं // रणाग्निं प्रीणयंतिस्म / नटाः प्राणैस्तृणैरिव // ए॥ तूर्यनादेविवादैश्च / सिंहनादैः कृतैनटैः // प्रहारध्वनिनिर्विश्वे / शब्दाद्वैतमिवाजनि // 17 // नृत्यंतिस्म कबंधौघाः / पतंतिम च सिंधुराः // उत्पतिस्म तुरगा / जिन्नशीर्षपदोदराः // 11 // शरधाराधोरणीनि-वर्षतोऽस्त्रांशुविद्युतः // मेघा व नटास्तत्र / चकू रुधिरकदमं // 12 // शरांधकारे संजाते / रजोरुके दिवाकरे // तारायिते स्फुलिंगौघै-र्दिवा रात्रिरिवाजवत् // 13 // सर्वतः शूरमेघेषु / वर्षत्सु शरवारिनिः॥ शस्त्रनिन्नेजनूलृदन्यो-ऽवहन् कीलालनिम्नगाः // 14 // तत्र जिन्नातपत्राणि / पुमरीकोपमा दधुः // पद्मिनीपत्रक्त्कर्णाः / कृत्ताः करटिनां बभूः // 15 // बिन्नकुंचकरा नाल-लीलां दधुरथांगवत् // रथांगानि तरंतिस्म / मऊंतिम गजा अपि // 16 // धीवरा व धीराः स्म / तरंति तरणातुराः // तटामा श्व जटा / याकृष्यतेस्म वेगतः // 17 // एवं चिरतरं युद्धं / सेन्ययोरुजयोरपि // तुज्यमेब S P .P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही प्रेक्षकाणां / देवानामपि नीतिकृत् // 17 // बहुत्वात्पद्मसेनायाः / शूरा अपि हरेर्जटाः॥अ-|| जज्यंत घनाः श्वानः / सिंहं नाकुलयंति किं // 1 // प्रवाहा श्व गंगाया / कृतमार्गाः स्वयं चरित्रं बलात् // त्रयोऽपि निःसरंतिस्म / पातयंतोऽरिपादपान् // 20 // दिदु दिपंतोऽस्त्रजाल-ज्वा२५५ ला वैश्वानरा श्व // त्रयस्ते प्राविशन् वैरि-सैन्यकाननमंतरा // 21 // एकोऽप्येतादृशः सवं / सैन्यं लोमयितुं दमः // मंदराजिरिवाजोधिं / किं पुनस्तादृशास्त्रयः // 22 // सूरसेनो महाशूरः / शरैरापूरयन् दिशः // शुशुने नाउपदीयः / पयोद व वारिनिः // 23 // सूरसेनशराः कूराः / सरलाः पन्नगा श्व // प्राणवायुं पिबंतिस्म / वैरिणां क्रूरदृष्टयः // 24 // त्रस्यंतिम तृणानीव / तनयात्पद्मसैनिकाः // अनेकाशुगपदोत्थ-वाताघातादिवेरिताः // 25 // महासेनो नृपः पद्म-पादपद्ममधुवतः // वीरव्रतं समुत्तस्थौ / सूरसेनस्य संमुखं // 26 // सपदैर्बाणसंघातै-खलजातिप्रकाशिनौ // उनावास्फलतां वीरौ / जिगीषू वादिनाविव // // 27 // श्तश्च रामसेनोऽपि / हलेनाकृष्य पूरतः // कणवन्मुशलेनाशु / खमयामास वैरिपः॥ 27 // यत्रापतत्तन्मुशलं / कुशलं तत्र विहिषां // बभूव तत्दणं स्वर्ग-स्त्रीपरिष्वंगसं "P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक गमात् // श्ए // एकोऽपि कोपितात्मा स / / चूर्णीकृत्य सहस्रशः // पद्मसैन्ये ददौ दैन्य-म- || सदप्यात्मसंनिधौ // 30 // नंतं मुशलदंडेना-पतंतं तं गजेंवत् // रुरोध क्रोधादंतीव ।पअपुत्रो जयथः // 31 // विविधैरायुधैर्युकं / विदधानौ धराधरं ॥धूनंती सिंहनादेन / सिं. हाविव विरेजतुः // 35 // इतश्च देव दिन्नोऽपि / व्यवहारमिवादधे // व्यवहारी प्रहाराणां / दानात्प्राणानुपाहरन् // 33 // दो लेन विशालेन / शस्त्राच्यासबलेन च // विद्याबलेन सकलं / चक्रेऽरिकुलमाकुलं // 34 // विद्याप्रजाक्तः प्राधु-श्चकार महतीं शिलां // यां दृष्ट्वा वै. रिणो मूर्ध-संस्थितां नीतिमासदन् // 35 // रे रे नश्यंतु नश्यतु / पतत्येषा शिरःस्विति // पूरगैरुच्यमानेऽपि / मुच्यमानेऽपि चाध्वनि // 36 // नटेराकृष्य विशिखै-ईन्यमानापि सा शिखा॥ निखिलांचूर्णयामास / पश्यतो नश्यतोऽप्यरीन् // 37 // युग्मं // विद्याधरो वायुवेगः / क्रुको युद्धाय बद्धधीः // पद्मपदो दुढौकेऽथ / देव दिन्नाय चेत्यवक् // 30 // यदि विद्याबलं तेऽस्ति / तदागल मया समं // युध्यस्व रे वराकान् किं / काकानिव निहंस्यमून् // ३ए // ए. | ह्येहि गेहिनी खीया-महो त्वमपि रोदय // देवदिन्नो वदन्नेवं / करवालमुद विपत् // 40 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायुवेगः खखन / तदाहत्य विनिर्ममे // स्फुलिंगानूर्ध्वगान् दीपान् / स्वर्गे गंतुमना व // 4 // एवमेते महाशूराः / सूरसेनादयस्त्रयः // शस्त्रैश्विरमयुध्यंत / महासेनादिजिस्त्रि चरित्रं जिः // 42 // अजेय्यमपरास्त्रौघै-चिराविज्ञाय वैरिणं // अस्मार्षीत्सूरसेनः स्वां / देवता धिष्टितां गदां // 43 // ज्रमयित्वा तया शत्रु-मुत्पतंतं तंमुझतं // निहत्य सहसा चक्रे / हि खं चंमविक्रमः // 4 // योधयित्वा चिरं रामो। रणकौतूहलादिव // न्यपातयबिरो नित्वा / / मुशखेन जयद्रथं // 45 // देवदिन्नोऽपि वर्षित्वा / दिव्यास्त्रांबुतिरब्दवत् // बिन्नेद विद्युतं मुक्त्वा / वायुवेगं गिरीऽवत् // 46 ॥अथो निष्कंटकं पद्म-सैन्यं ते पद्मखमवत् // अखं; खमयामासु-रनायासं गजा श्व // 4 // ध्वस्यमानं त्रस्यमान-मेव पश्यदिशो दश // दृष्वा सैन्यं निजं योध्धु-मुत्तस्थौ पद्मभूपतिः // 4 // एकेनापि प्रहारेण / पातयन् स सहस्रशः // अरीन् पुरः स्थितान् मार्ग / विदधे वेगपूर्गमं // 4 // रामसेनं रिपून नंत-मकस्मादेत्य दैत्यवत् // जघान शक्तिशस्त्रेण / यथाशक्ति स पद्मराट् // 2 // // पपात मूर्छितो | रामौ / मुखेन रुधिरं वमन् // हाकार उत्पपातोच्चै-हरिषेणबलेऽखिले // 51 // जीवंतं तं P.P.AC. Gunratnasur M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक पुनत्विा / दंतुं शक्तिमुददिपत् // धाकृष्य चानयद् पूरं / देवदिन्नस्तदैत्य तं // 55 // चिप पद्मभूपस्य / सूरसेनः- शरोस्करान् // युयुत्सुराजगामाग्रे / धनुरादीनखमयत् // 63 // चरित्रं रामसेनो हतोऽनेन / जरता निहतेन किं // हन्यते हरिषेणोऽथा-पराधी सैन्यनायकः / 27 // 54 // विगणय्येति तं पद्मः। प्रबलः प्राचलत्ततः // सकलं व्याकुलं कुर्व-न्नुग्रास्त्रैर्वैरिणो बलं // 55 // तस्मिन् विपदवृदोघान् / पातयत्युग्रवातवत् // पूरेण रेणुवत्तूर्ण-मुड्डीनं हरिसैनिकैः // 56 // क्व रे स हरिषेणाख्य / इति जल्पतमुहतं // हरिः प्रतिहार प्राप। व. कुटीनीषणाननः // 57 // यद्यदस्त्रं मुमोचायं / तत्तत्पद्मस्तदाछिदत् // पद्मश्चिदेप, यद्यच्च / हरिस्तत्तदखंम्यत् // 50 // युध्यमानावुनौ वीरौ / पश्यंत्यो व्योन्नि देवताः // नैव तस्थुन जग्मुश्च / जीतिकौतुहलाकुलाः // एए॥ चिरात्खमितसस्त्रिः / पद्मो रोषारुणेक्षणः // बाततान तमःस्तोमं / स्मृत्वा प्रस्खापनास्त्रकं // 60 // गज़स्था गजकुंनेषू-एशीर्षेष्विव मस्तकं दुत्वा सुषुपुरवस्था / अश्वस्था अपि निजिताः॥ 61 // ध्वजदंमानवष्टन्य / रथिनो मिलि. | तेक्षणाः // खजान् धनूंषि चालंब्य / निद्रां चक्रुश्च पत्तयः // 6 // एवं विसंस्थुलं सैन्यं / / RAT PP..O.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं जो निजं दृष्ट्वा हरिः दणात् // सिझविद्याधरीः स्मृत्वा / सूर्यास्त्र प्रकटं व्यधात् // 63 // तस्मि. न् स्फुरति तत्सैन्य-प्रमीला तमसा समं // अनश्यत्तत्पुनश्चित्रं / पद्मः संकोचमाप यत् // 6 // क्रूराकारं सफूत्कारं। पन्नगास्त्रमथामुचत् // गरुमास्त्रेण सद्योऽपि / हरिः सर्पाननाशयत् श्याए // 65 // करालप्रज्ज्वलज्ज्वाला-वह्निशस्त्रं ततोऽतिपत् // हर्या विकृतमेघेन / जातः शांतः स पावकः // 66 // इत्यादि दिव्यमस्त्रं य-त्पाश्चिदेप तंप्रति // हेलयैवाछिनद् पूर-मतुबमहिमो हरिः // 67 // श्तश्च शक्तिघाताः / देवदिन्नो विशख्यया // सजं रामवपुश्चके / पूरं नीत्वा रणांगणात् // 67 // अथ पद्मो विलक्षात्मा। चिरं ध्यात्वा च चेतसि // अवार्यमपरैरस्त्रै- रस्मार्षीच्चक्रमशुनृत् // ६ए / चक्रं सहस्रयदाढयं / द्रागागात्पाणिपल्लवे // स्मरे ष्टदेवतामेवं / जब्पन् पद्मो मुमोच तत् // 70 // कृतांतवक्त्रवत्क्रूरं / ज्वालामालाकरालितं // पतहियुदिवाप्रेक्ष्य-कल्पांतानलदारुणं // 1 // सूरसेनरामसेन-देव दिन्नादिनिटेः // आहन्यमानमप्युप्रै-रस्त्रैरस्खलितागमं // 55 // खेचरैरपि वै मुक्त-मार्ग जयनरातुरैः॥ | घटितं छादशादित्यै-रिवात्यंतं सुनासुरं // 73 // चक्रं प्रदक्षिणीकृत्य / हरिषेणमुरस्तले // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक पतितामयामास / स च किंचन मूतिः // 4 // चतुनिः कलापकं // दणाट्यावृत्तवैत-11 . न्य रिषेणनरेशितुः // तच्चक्रवाकवच्चक्रं / पाणिपंकजमाश्रयत् // 75 // निःपत्रपद्मवत्पद्मं / निरस्त्रं, विगत श्रियं // विलोक्य जातकारुण्यो। हरिषेणनृपोऽवदत् // 6 // परस्त्रीपरराज्यादि / वास्त्वमपराध्यपि // अधुना मुच्यसे याहि / मुंव जोगान् यथोचितान् // 7 // लोहखममिदं प्राप्य / कि रे गर्व विधास्यसि // मुष्टिघातेन हन्मि त्वां / सचक्रं पद्म इत्यवकु.॥ 7 // हरिषेणो हसन्नाह / तव शिक्षा प्रदीयते // सजीजव नराधीश / भोक्तुमन्यायजं फलं // ए॥ इत्युक्त्वा सोऽमुचच्चकं / ज्वालामालाकरालितं / / पद्मं प्रदक्षिणीकृत्य / जघान नाललीलया // 7 // पपांत पृथिवीपीते / पद्मपार्थिवमस्तकं // हरेरुपरि मुक्ता च / पुष्पवृष्टिः सुरोत्तमैः // 7 // चकुंर्जयजयारावं / प्रहृष्टा हरिसैनिकाः // जयताहासुदेवोऽय-मित्याकाशे गिरोऽजवन् // // एत्याां मे प्रपद्यध्वं / रे रे तिष्टत तिष्टत // अन्यथैकैक शः कृत्वा / हनिष्याम्यखिलानपि // 3 // इत्युक्त्वा वासुदेवेन / नश्यंतो हतनायकाः // षोमशसहस्रभूपाः / प्रणेमुस्तत्पदांबुज // सहायीकृत्य तानेव / हरिषेणनरेश्वरः॥षनिर्मासैः PAPRACaunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्य परित्रम्य / जरतार्धमसाधयत् // 5 // तातेन सूरसेनेन / स्वपुरे रत्नमंदिरे // अर्धचक्री / / || समानीतः / कृत्वा प्रावेशिकोत्सवं // 6 // सर्व विद्याधराधीश-धराधीशसमन्वितः॥ वासुचरित्र देवपदं सोऽदा-दनिषेकविवेकवित् // // षोमशसहस्रभूपाः / सहान्यैः समुपायनैः // उन्ने उने शुने कन्ये / प्रमोदाझरये दः // 7 // समाते विधिना राज्या-निषेकाख्यमहोत्सवे // भूपान् सन्मान्य सन्मान्य / विससर्जाखिलानपि // नए // जयथानुजो देव-रथः पद्मनृपात्मजः // योऽस्ति तस्मै ददौ राज्यं / श्रीश्रीदपुरस्य सः // ए // दृष्ट्वा स्वपुत्रसाम्राज्यं / सूरसेननरेश्वरः // मन्यमानः कृतकृत्य-मात्मानं नितोऽनवत् // ए१ // प्राप्य सद्गुरुसंयोगं / प्रव्रज्याराज्यमाद्दे // को वा स्वावसरं सर्व / न जानाति विशुद्धधीः ॥ए॥ समुपदत्तया पट्ट-राझ्या सममनेकशः // झुंजानो जोगनंगी स। हरिरस्थायथासुखं // // ए३ // अन्यदा सा महादेवी / खप्ने स्ववदने विशत् // अधाशीदीरपाथोधि-युगं कहोलसंकुलं / / ए // प्रबुद्धा सा पुरः पत्युः / स्वप्नमेतन्यवेदयत् / / सोऽप्याख्यत्तत्फलं पुत्रयुगलं ते भविष्यति // एए // इति वाक्यात्प्रहेष्टाया-स्तस्याः कुर्दिसरोवरे // पुष्पसिंहरत्न- || PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक सिंह-जीवौ हंसवदीयतुः // ए६ // अथो समुपदत्ता सा / प्रासूत सुतयामलं // पुत्रजन्मो त्सवं हर्षा-छासुदेवो ह्यचीकरत् // ए७ // दत्ते खप्नानुसारेण / पुत्रयोरनिघे इति // बायः चरित्रं सागरदेवोऽनू-दन्यः सागरदत्तकः // ए // लालितौ पंचधात्रीनि-द्धिमासादितौ क्रमा२६ || त् // विदधानी कलान्यासं / जग्मतुरूवनं वयः // ए // अन्यदा रामसेनेन / पुत्राच्यां च समं सन्नां // अलंकृत्य स्थितोऽजादी-ज्ज्योतिः स हरिरंबरे // 6 // // किमेतदिति लोकेन / चिंत्यते. यावदंतरा // तावहिमानमायासी-देकं तत्र सलांतरे // 1 // ततो एको विनिगत्य / विद्याधरवरो हरिं // ननाम तदनुज्ञात-स्तत्पुरस्ताऽपाविशत् // 5 // ऊचे चतुरमत्याख्यो / देवदिन्नेन देव ते // अंतेऽस्मि प्रेषितो मंत्री / विज्ञप्तं चेति वर्तते // 3 // अस्ति जानुमती कन्या / मनोज्ञांगी ममोत्तमा // जयंतीमपि रूपेण / जयंती मृगलोचना // 4 // अनेकागतगंधर्व-मुखात् श्रुतगुणोत्करं // पुत्रं सागरदत्तं ते। वरत्वेनावृणोद् हृदि // 5 // विद्याधरकुमारेज्यो। दीयमानापि सा न हि // अमन्यतैकमेवैनं। ध्यायत्यर्कमिवाब्जिनी // 6 // विज्ञाय तदभिप्राय / मयायं प्रहितः प्रतो // त्वदंते वर्तते मंत्री / पुत्रीवांबितपूर्तये // 7 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्रं 563 पुत्रः सागरदत्ताख्यः / प्रेष्योऽनेन सहाधुना // यथास्य स्वसुतायाश्च / विवाहं रचयाम्यहं // 6 // हरिषेण इति श्रुत्वा / हर्षेणाख्यत्सखे मम // देवदिनो महामान्यो / विद्यादानाज पांगणे // ए // यत्तस्यानुमतं कार्य / तत्रानिमतमेव हि // अथवैवं विधे साधु-विधेये निरुपद्धि कः // 10 // इत्युक्त्वा पुत्रमाकार्य / पुरस्तादित्यशिक्ष्यत् // वत्स गब त्वया कार्य / दे. वदिन्नसमीहितं // 11 // यदादिशति तातस्त-प्रमाणमिति जल्पता // श्रितं सागरदत्तेन / विमानं सह मंत्रिणा // 15 // उत्पत्य प्रचलत्याशु / विमाने संस्थितो वजन // विचित्रनगरग्रामा-रामादीनि स ऐक्षत // 13 // स्वर्णप्राकारनृजत्न-कपिशीर्षविभूषितं ॥सर्वस्वर्णमयावासं / वर्णवछमहीतलं // 14 // अनेकरत्नरोचिष्णु-रोचिःपिंगीकृतांबरं // एकं नगरमावी-दधस्तात्स मनोहरं // 15 // युग्मं // विस्मितो मंत्रिणं प्राह / किमेतन्नगरं वरं // सो. ऽप्याख्यन्मया पूर्व / श्रुतं नैतहिलोकितं // 16 // कुमारः प्राह तन्नंत्रि-न्न किमत्रावतीर्यते // दृश्यते कौतुकततिः / स्वरूपं चास्य पृच्छ्यते // 17 // सोऽथ मुक्त्वा विमानं त-त्पुरोपांतवनांतरे // यागात्सम कुमारेणा-कस्माद्भपसनांतरं // 1 // देवाविव समायांतो। तत्र तौ वी Jun Gun Aaradhak Trust . PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या भूपतिः // प्रियध्वजानिधो मान / बहुमानमदान्मुदा // 15 ॥को युवां कुत आयाता- || विति पृष्ठे नरेछना // श्राख्यञ्चतुरमत्याख्यो / मंत्री वृत्तं पुरोदित // 5 // // वासुदेव सुतं झा. चरित्रवान मान्यं निखिलभूजुजां // हृष्टः पृष्टः कुमारण। किमेतच्चित्रकृत्पुरं // 1 // केन. चैत. कृतमिति / तत्स्वरूपप्ररूपणे // सुमत्यमात्य यादिष्टो। राझा सोऽप्येवमूचिवान् // 15 // व पातकीखंडे / जरते जोगवद्धृता // अस्ति जोगवतीनानी / पुरी.सुरपुरीसमी॥ // 3 // तत्संनिधौ महाग्रामः / शालिग्राम इति श्रुतः // ग्रामेशः सिंहपालोऽत्र / सारसारोऽस्ति सिंहवत् // 24 // रूपेण निर्जितानंग-- वयना ववजानवत् // पूर्णचंद्रमुखी तस्य / सुंदरी प्रियसुंदरी // 25 // तस्याभूदंगजो राज-पालो दानविशोजितः // एको दोषोऽजवत्तस्य / दुरोदररसाजिधः // 26 // अथान्यदा पिता तस्य / काले पंचत्वमाप्तवान् // ततोऽनेन निजं निन्ये / सर्वतो निधनं धनं // 7 // अवादीछाननी वत्स / लक्ष्मीस्त्यजति दूरतः // द्यूतासक्तं नरं शृंगो / निर्गथं कुसुमं यथा // 2 // संपकं हंसवत्स्थान-मन्यासक्तां प्रियां पतिः // स्थानचष्टं यथा भूमि-पालके सेवकोत्करः // 2 // युग्मं // गृहकार्य नरं तस्मा-दु P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 265 हांगज संप्रति // दुरोदररसं पूरी-कृत्य अव्यमुपाय // 30 // ततः स प्राह दे मात - तोद्योगी धनाय में // तयावादि कथं वांतं / कुरुते दिवसोदयं // 31 // एवमुक्तोऽपि मा त्राय / व्यरमन्न उरोदरात् // व्यसनं नोपदेशेन / प्रायों मुंचति मानवः // 32 // एकदासी -समादिष्टो / मात्रा लात्वा कुगरकं // ययो वनांतरं लातुं / दारूणीधनहेतवे // 33 // स वि. लोक्य महावृदं / यदेणाधिष्टितं ततः // तच्छेदं कर्तुमारेने। काष्टं लातुमनाघनं // ३४॥प्रत्यक्षीभूय यदः सोऽवदत्साहसिकोत्तम // श्रास्थानं मम मानांक्षी-वरं यछामि ते वरं // 35 // जगाद स मायद / यदैतं प्रार्थये वरं // तदा यरथी यद। मित्युक्त्वा तिरोदधे // 36 // कुमारः स ततोऽन्यस्मा-दगात्काष्टान्युपाददे // मात्रे चामूनि दत्वासौं / भूयो द्यूतालयं ययौ // 3 // एकदा निजवासांसि / हारयामास तत्र सः ॥आजगाम गतदोमो। मंदिरं हसितो जनैः // 30 // पर्यावृतप्रियावस्त्र-खंझ तदनु वीक्ष्य तं // लोकः प्रियध्वजें. नाना कथयामास हासतः // 35 // स्पर्धयेव श्रिया पूर्व-नानाप्येष // विवर्जितः अय ग्रामाछिनिंगत्य / जेजे जोगवर्ती पुरीं // 30 // तत्रापि चेंडयेलुंक्तीन निरंशनोंऽनिशें / / / P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak' trust Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक तिष्टति व्यसनासक्त / एवं कतिपयवासरान् // 41 // अन्यदा हारिते द्रव्ये / प्रचुरे द्यूतका- || रिनिः // उजितः स निर्गत्य / पुरात्ताप वनांतरं // 45 // इंसश्रेणीमहामुक्ता-वृतं वृत्त | तयान्वितं // पृथिवीनायिकाकर्ण-भूषणायेव कुंमलं // 43 // शेषराजेन पाताला-जनोपकतिहेतवे // पीयूषकुंभमानीत-मिवाजोगविजूषितं // 4 // चंचलोत्फुलकबोल-हस्तैस्तापोपशांतये // आकारयदिव श्रांतान् / स सरः सारमैहत // 45 // त्रिनिर्विशेषकं ॥सरसेतुगते तुंग-प्रासादे दुःस्थितः स्थितः // गवतं व्यवहाराय / सार्थवाहं ददर्श सः // 6 // प. / तती वृषनस्कंधा-मोणी तत्र सरोवरे // तदा प्रियध्वजोऽद्रादी-जानातिस्म तु नापरः // 7 // वृषनो वृषचक्रेण / जवेनाथ मिमेल सः // सजया स्त्री वरेणेव / जनन्या बालको यथा // || // 7 // वीक्ष्यानारमनम्बाई / सार्थवाहः खसेवकान् ॥गोणीविलोकनायाशु ।प्रादिशत्सर्व तो नृशं // 4 // बेमुस्ते सकलामाशां / स्थानत्रष्टाः खगां इव // मोपविष्टमै क्षिष्ट / सा॥ धेशोऽथ प्रियध्वजं // 50 // ऊचे सत्त्वनिधे साधो / गोणी व पतिता मम // इति जानासि 5 कि.वा नो / यदि वेत्सि तदा वद // 55 // जलानिष्कास्य तां गोणीं / विनज्य प्रचुरं धनं || . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // दास्यामि द्यूतकारेन्यो / भविष्यामि सुखी ततः // 55 // अथवा विगिमां बुद्धि / परज"|| व्यानिलाषिणीं // यादृशी मम पीमास्ति / निर्धव्यस्यास्य सा न किं // 53 // चिंतयन्निति चरित्रं स प्राह / सत्यमेव प्रियध्वजः // परोपकारं मन्यते / संतो जीवान्महत्तमं // 54 // त्रिभि|| विशेषकं // जनैस्तऽदितस्थाना-त्ता गोर्णी निरकासयत् // तया प्रमुमुदें श्रेष्टी / सार्थसर्व स्वयुक्तया // 55 // गोण्यर्ध दिशति द्रव्यं / सार्थनाथे ललौ न सः // संतः प्रत्युपकारार्थमुपकारकराः किमु // 56 // किमप्यनाददानस्य / तस्य निर्लोजतागुणात् // रंजितः सार्थवाहः स। आचचदे कृतांजलिः // 7 // सशोज लोननिर्मुक्त / जाग्यसौजाग्यनाजन // अन्यथापि प्रसादं मे / कुरु नितिहेतवे // 57 // इदं रत्नमयं दीप्रं / दीपवदेवताय // फलकं च हिरण्यस्य / गृहाणानुगृहाण मां // 5 // // अथ तस्यानुरोधस्य / ज्ञाता निगमनं तदा // ए. तयं पुरो मुक्तं / गृह्णातिस्म प्रियध्वजः // 6 // // एतद् द्यूतालयं प्राप्तो / हारयिष्यामि चेतदा // जायेत निःफलं काको-डायनायेव सन्मणीं // 61 // रत्नमेतन्नृरत्नाय'। योग्यमेवं विचिंत्य सः // ऊचे व प्रस्थितोऽसि त्वं / को राजा तत्र किं गुणः // 6 // गुणश्रेष्टोऽवदत् / / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्टी / श्रीमददिणमंमले // कुंमलाज मिलानारी-मंगनं कुंमिन पुरं // 63 // तत्रास्ति मा. निनीमान्यः। सुरूपो विषमायुधः // मकरध्वजवत्साक्षा-मकरध्वजपंतिः॥ 6 // अरयः सरयं सारे / यन्नामोचरणे रणे // दमके पतिते काका / श्व जग्मुर्दिशो दश // 65 // प्रियध्वजोऽवदत्तर्हि / गृहाणैतत्त्वमेव हि // मकरध्वजराजाय / देयं मदनिलापतः // 66 // दास्यामीति प्रपद्यास्य / वाक्यं लात्वा च तद् इयं // स्वसिझये घचालाथ / स प्रणम्य प्रि. यध्वजं // 6 // क्रमेण कुशली श्रेष्टी / कुमिन नगरं गतः // आत्मोपढौकनं चक्रे। राज्ञो रत्नादिसंचयं // 67 // प्रियध्वजानिधानेन / तद्व्यं ढौंकितं पुरः॥ विलोक्य विस्मयापन्नो। नृप एवं व्यजावयत् // ६ए:॥ स्वार्थसिध्यमत्यर्थ-मर्थ यति सर्वदा // न च दातापरः कोअपि / ताहरपथमागतः // 70 // उदारचरितो नूनं / स कोऽप्यस्ति प्रियध्वजः ॥गुणराजी रजोमुक्तो / विश्वप्रासादसुध्वजः॥ 1 ॥ध्यात्वेति नृप वाघष्ट / श्रेष्टिनं सार्थनायक nsतः क यास्यति जवान् / सोऽवग्जोगवतीं पुरीं // 7 // मिलित्वा तर्हि गंतव्यं / त्वत्करे प्रेषयिष्यते // तस्मै किंचित्प्रतिदानं / स्वं साध्यं साधयाधुना // 3 // इत्युक्तः कोणिपालेन / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. _ Jun Gun Aaradhak Tast Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / साथैशः क्रयविक्रये // कुर्वाणः प्रचुर वित्तं / दिनैरस्पैः समाजयत् // 4 // अथास्य चलतः | सार्थे सार्थेऽस्य / प्राहिणोन्नृपः // प्रियध्वजार्थमुन्मत्ते-गजपंचशती सितां // 5 // तामादाय समायासीत् / श्रेष्टी जोगवतीं पुरीं // प्रियध्वजं मिलित्वा स।प्रोचे प्रांजलमानसः॥ 76 // रे धीर भूजुजे रत्नं / फलकं च तदर्पितं // हृष्टः प्राहिणोतुंन्यं / गजपंचशतीमिमां // 7 // तदागत्य गृहाणैता-मित्युक्ते स व्यचिंतयत् // अहो कश्चिदुदारात्मा / स राजामकरध्वजः // 70 // पूर्वमपे प्रदत्तेऽपि / महांतोऽनपदायिनः // कीरं देरंति गावो हि। तृणदान तोषिताः // // राज्यचिह्नमिदं हस्ति-दं तावडुपागतं // एषां शु िकरिष्यामि / कथं 'बाहुसहायकः // 70 // अस्ति कश्चिदुपायो यो / नृत्यांश्च नगरी दिकं // संपादयति मे राज्यं / ततः कुर्वे यथासुखं // 2 // एवं चिंतां चिरं कृत्वा / स्मृतोपायोऽयमूचिवान् // श्रेष्टिंस्तावाजा रदया / गत्वा यावदिहैम्यहं ॥५॥श्रेष्टिना प्रतिपन्नायां / वाचि तस्यां चचाल सः // स्कंधे कृत्वा तीक्ष्णधारं / कुगरं सारसाहसः // 3 // गत्वा तस्यैव वृक्षस्य / संनिधौ धै|| यवान् जगौ // तं वरं यत्र यदेश / प्रपन्नो यस्त्वया पुरा // // अन्यथा प्रतिभूरेष / कु. PP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असगरो नवदास्पदं // वृदं बेत्स्यति यतोऽथ / प्रत्यक्षः सन्नदोऽवदत् // 5 // वरं वृणीष्व धी रात्म-स्ततोऽवादी प्रियध्वजः // रचयैकं पुरं स्वर्ण-मयं रत्नविभूषितं // 6 ॥अनेकप्रविण चरित्रं श्रेणीः / दिप्त्वा तत्र पुरांतरे // अनृणीभूय भूयोऽत्र / यथेष्टं तिष्ट पादपे // 7 // यदोऽपि 270 तादृशं तत्र / तत्क्षणं सकलं व्यधात् // मुधा नवंति नो वांडा / महत्योऽपि महात्मनां // 7 // प्रियध्वजोऽप्युपादाय / द्रव्यं किंचित्पुरात्ततः // प्राप्तो जोगवतीपुर्या ।वर्यवेषविभूषितः // 9 // तत्र व्यबलेनैष / चक्रे नव्यान् धनान् जनान् ॥स्वजनांश्च शालिग्रामा-दाकारयदसौ सुधीः ए॥ हस्तिनस्तानुपादाय / सह स स्वजनैजनैः // पुरे यदकृते प्राप / विमाने श्व देवराद |ए॥ सोऽदाहिनज्य सर्वेच्य / आवासान् सविणं च तत् // सर्वैर्महामहःपूर्व / राज्येऽस्था-। पि प्रियध्वजः // ए // पुरं यदपुरं ह्येत-त्सोऽयं राजा प्रियध्वजः // वजनाश्च जनाश्चैते / त एते मत्तसिंधुराः // ए३ // इति प्रियध्वजामात्य --वाक्यमाकर्ण्य विस्मितः // कुमारः प्राह राज्ञोऽस्य / नूनं पुण्योदयो महान् // ए४ // वृक्षोदयो विना बीज। न स्यान्ना विना दिनं // प्रकाशो न विना तेजः / सुखं नो सुकृतं विना // ए५ // राजा प्राह कुमारेछ / सत्यमेतत्परं / P.P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं की यदि // केवली कश्चिदायाति / पृछामि वनवं तदा // ए६ // इति कुर्वाणयोर्वार्ता / तयोः / श्रीधर्मसागरः॥ ननसोऽवातरत्तत्र / चारणर्षिश्च केवली ॥ए / राझोत्थाय जटित्येष / स्थापितः स्वासने मुनिः॥ वंदितो बहुलक्त्या च / यो जितांजलिना स्तुतः // ए // अवृदा कुसुमोत्पत्ति-रनन मेघवर्षणं // अचंऽश्चंभिकोबासो-कस्माद्यस्त्वं निरीक्षितः॥ एए // अचैतदजयत्स्वर्णा-चलं स्वर्णमयं पुरं // कल्पमाधिका यत्र / श्रीमत्पादा उपाययुः॥ 70 // स्तुत्यंते मुनिना चक्रे / देशना जवनाशनी // तदंते भुजुजोत्थाय / पृष्टं स्पष्टतरादरं // 1 // संदेहध्वांतविध्वंस-दिवाकर मुनीश्वर // प्रसद्य वद किं नाम / मया पूर्वनवे कृतं // 2 // पूर्व पापमहं जातो। येन दुःखजरातुरः // किं कृतं सुकृतं पश्चा-येनैवं सुखमाप्तवान् // 3 // // युग्मं // ततः केवलिनावादि / राजन् पूर्वनवे नवान् // जिनदत्त इति श्रेष्टी / गोष्टिकोsभूङ्गिनालये // 4 // जिनेअजविणं तेन / निःशूकत्वेन नदितं // तेन तेन पापेन / प्रापे नरकगह्वरं // 5 // चिरं चांत्वा जवांजोधौ / निःस्वस्यैकस्य मंदिरे // जातः पुत्रो जनेः काले माता ययौ यमालयं // 6 // क्रमान्मृतः पिता तस्य / ब्रमन्नपि निराश्रयः / कृलेप लगते / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिक्षा / से निजोदरपूर्तये // 7 // सखर्परकरो बाख्या-दपि निकोपजीविकः // अनेकान् / जोगिनो लोका-नालोक्यैवं व्याँतयत् // 7 // एते बजते सन्मान-मिष्टं शिष्टं , जोजन / गलहस्तं पुनरह-महो कमै विचित्रता // ए // एकदा तस्य जाग्येन / मिलितो ज्ञानसागरः // केवली तं प्रणम्याय-मपृचद् सुखकारण // 20 // मुनिना कथितास्तस्यां-दितः पूर्वज वा समें // उक्तं च ते जिन व्य-जहणा, पुःखमोदृशं // 11 // इति वाक्यं मुनेः श्रुत्वा / जातजातिस्मृतिः क्षणात् // आत्मकर्म निनिंदायं / पश्यन् पूर्वनवान् निजान् // 15 // ऊंचे च लगवन् पापा-न्मुच्येऽई कथमीहशात् ॥.मुनिनोक्तं निज द्रव्यं / व्ययी कुर्या जिनालये // / // 13 // ततस्तेन समुत्थाया-निग्रहों जगहे मया // यदर्जयिष्यते द्रव्य / तन्मोदये जिनमंदिरे // 14 // एकं विहाय कौपीनं / वारमेकं च नोजनं // साहाय्यं च विधास्यामि / प्रा. सादेषु शरीरतः॥ 15 // इत्यनिग्रहपूर्व स। सम्यक्त्वं समुपादंदे // श्रद्धावान् श्राधर्म च. / / मुनि नत्वावजत्ततः // 16 // अनिग्रहग्रहोत्पन्न-पुण्यास्किंचन किंचन // अर्जयन् द्रव्यमा. / त्मीय-मनिग्रहमपालयत् // 17 // स मृत्वा त्वमजू राजन् / जिनप्रव्यादनादितो // पाप PP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 208 शेषादभूवुःखी / सुखी च सुकृतात्ततः॥ 17 // इति पूर्वजवान् श्रुत्वा / केवलज्ञानिनो मु. खात् // जातजातिः जवान् साक्षा-द्राजावादीप्रियध्वजः // 15 // अथो चतुरमत्याख्यचरित्रं मंत्रिपालि केवली // जगवन् देवदिन्नस्य / यास्ति जानुमती सुता // 20 // तस्याः सागर दत्ताख्ये / कुमारेऽस्मिन् कुतो महान् // अनुरागस्ततोऽवादी-त्केवलज्ञाननास्करः॥१॥ गुणचंशोऽनवत् श्रेष्टी / गुणश्रीस्तस्य गेदिनी // नाता गुणधरस्तस्य / तनार्या गुणमालिका // // 25 // चत्वारोऽपि सुरा जाता / देवलोके ततश्च्युताः // तेष्वेकः पुष्पसिंहोऽनू-द्रत्नसिंहो द्वितीयकः // 23 // जायें जाते तयोर्जीवौ / गुणश्रीगुणमालयोः // आद्या कुसुममालाख्या / हितीया वनसुंदरी // 14 // मित्रत्वेनाजवन् सर्वे / पुनर्देवालये सुराः // पुष्पसिंहरत्नसिंहजीवो काले ततश्श्युतौ // 15 // श्रायः सागरदेवोऽजूदन्यः सागरदत्तकः // जीवः कुसुममालायाः। कन्या चंमतीत्यत् // 26 // जीवस्तु वनसुंदर्या / , बाला सा जानुमत्यनुत् // अतः पंचनवस्नेहा-छमारे सानुरागिणी // 17 // इति सागरदत्तोऽपि / कुमारः स्वनवा. न्मुनेः // आकर्ण्य जातिस्मरणा-प्रत्यद तानखोकत // 20 // अथोत्थाय समस्तैस्तैः। प्रबु- // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक समुपाददेः // श्राझधर्मः शर्मदायी / सम्यक्सम्यक्त्वपूर्वकं // 25 // इति कृत्वा धर्मला- || नं.। धर्मलाजं प्रदाय च // उत्पपात मुनिव्योंन्नि / सतृष्णं पश्यतां नृणां // 30 // सागरदत्त चार कुमारोऽपि / प्रियध्वजनृपाग्रहात् // तत्र स्थित्वा कियत्कालं / चचाल सह मंत्रिणा // 31 // बज़न् विमानमारुह्य / दणात् श्रीवहनं पुरं // प्राप राजा देवदिन्नो / मुमुदे तस्य दर्शनात // 35 // दानसंतोषितास्तोक-लोकमुत्सवपूर्वकं // साकं सागरदत्वेन / स्वपुत्रीं पर्यणाययत् // // 33 // दंडेनेव पताकाया / गंगाया श्व वार्डिना // सुपर्वशैलमूलायाः कल्पकल्पणेव च // 34 // मुद्राया श्व रत्नेन / विष्णुनेव च स श्रियः // जानुमत्यास्तेन योगः / लोकैः कैः कैर्न वर्णितः // 35 // युग्मं ॥अथ राजा कुमाराने / वक्तुमारब्धवानिति // कुर्वतोऽत्र सुखंराज्यं / धनः कालो ममागमत् // 36 // हरेः प्रसादानिश्चित-चित्तोऽहं सदने स्थितः // अश्रौषमन्यदा दाह-करी पित्रोः परोक्षतां // 37 // तदैवोत्पन्नवैराग्य-चेतसा चिंतितं म. या // धिक् संसारमसारं धिग् / मोई धिग्ममतामिमां // 37 // पुत्रं राज्ये निधायाशु / प्रनज्यामाददाम्यहं // जन्ममृत्युवियोगादि-दुःखांतो जायते यतः // 35 // मय्येवं चिंतयत्ये.. "P.P.Ac. Gangathasun M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 275 व / सुतः पंचत्वमाप्तवान् // कर्मणां प्रतिकूलत्वे / सर्वत्र हतिरेव हि // 40 // शाखानिर्विततीनविष्यति दलैस्तेजांसि तिग्माते-रंतर्धास्यति पास्यतीह मधुपश्रेणी रसं कौसुमं // अध्वन्यान् सुखिनीकरिष्यति फलैर्यस्येत्थमाशाजवद् / पूरादेव हहा स मार्गविटपी दग्धो दवार्चिष्मता // 41 // मम विज्ञातसंसार-स्वरूपस्यासुखं तदा // नाकरोत्पुत्रमरणं / दीदाविघ्नपुःखं यथा // 42 // अथोर्ध्वदेहिकं तस्य / कृत्वान्यं राज्यधूर्धरं // सुतं विना नवोद्विमो-उजवं चिंतातुराशयः // 43 // अन्यदा केवलझानी। मिलितो धर्मसागरः // राज्यस्यास्ति हि को योग्य / इति पृष्टो जगाद सः // 4 // पुत्रीलानुमतीजा। हरिषेणनृपात्मजः // नाम्ना सागरदत्तोऽस्य / योग्यो राज्यस्य वर्तते॥ 45 // अथो कुमार साम्राज्य-मिदमा दाय सांप्रतं // कुर्याः प्रवज्याग्रहणे / साहाय्यं प्राज्यविक्रम // 46 // नवतस्ताततुल्यस्या-देशो नो खंड्यते मया // श्त्युत्तरे कुमारेण / दत्ते स प्रीतिमाप्तवान् // 4 // विद्याधरान् समाहूय समस्तान् देवदिन्नराट् // तीर्थोदकानि चानाय्य / स्वासने विनिवेश्य तं // 40 ॥अनिषेकं विनिर्माय / तिलकं च शिरस्तले // देवदिन्नो ददौ राज्यं / विद्याश्च निखिला निजाः // 4 // D - PP.AC. Gunratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक विझायावसरं ज्ञानी / समागाद्भर्मसागरः // स्वयं संसारनिर्विलो / देवदिन्नो व्रतं बलौ // 50 // अल्पेन कालेन स रागरोष-विवर्जितो.ध्वस्तसमस्तदोषः // श्रीकेवलज्ञानमवाप्य धाम / निःचरित्र श्रेयसं नाम मुनिर्जगाम // 51 // राजा सागरदत्तोऽथ / सर्वविद्याधरार्चितः // श्रीवबजपुरे राज्यं / कुरुतेस्म यथासुखं // 55 // श्तः प्रियध्वजाख्यस्व / राज्ञश्चंप्रमती सुता // मागधासागरदेव-मनीषीद्गुणसागरं // 53. // सानुरागाथ सा जज्ञे / तस्मिन् नानाविवाब्जिनी // तमनिप्रायमझासी-दिगिर्जननी शनैः // 54 // तया निवेदितः राज्ञः / स एवं पर्यनाव॥ यत् // जीवः कुसुममालायाः / कन्या चंमती तथा // 55 // पूर्वानुरागबझाया-स्तदस्या विदधाम्यहं // विवाहोत्सवमाकार्य / तं कुमारं मनोहरं // 56 // ध्यात्वेति प्राहिणोद् नृत्या न / हरिषेणनृपांतिके // तैर्गत्वा प्रणतिं कृत्वा / योजितांजलयोऽज्यधुः // 57 // स्वामिन् यदपुरस्वामि-प्रियध्वजनरेशितुः // अस्ति चंजमती पुत्री / पवित्रीकृतभूतला // 5 // म. हाराज कुमारं ते। सागरदेवसंझकं // श्रुत्वा सा सानुरागाभू-ज्यते हि सॅमः समे // // ५ए // अथ प्रसव सद्यः स्वं / कुमारं प्रेष्य सांप्रतं // नृपस्य नृपपुत्र्याश्र / प्रयख मनो P P.AC. Gunratnasun M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // रथान् // 6 // श्रुत्वेति वासुदेवोऽवक् / कोऽयं राजा प्रियध्वजः // नाद्य यावन्मया दृष्टो।। प्रत्येक नागाच श्रुतिगोचरं // 61 // ततस्तैरुदितं सर्वं / तच्चरित्रं पुरोदितं // निशम्य विस्मयं भेजे चरित्रं / हर्ष च हरिषेणराट् // 6 // पुत्रं सागरदेवाख्य-मायदाकार्य कार्यवित् // वत्स गठ समाग / परिणीयोत्सवेन तां // 3 // इत्यादिष्टो नरेंजेण / कुमारःसारजाग्यजाक् // चतुरंगचमूयुको-चालीयदपुरंप्रति // 64 // क्रमेण स प्रयाणानि / कुर्वाणोऽतीत्य निवृतः॥प्राण्याकीर्ण महारण्यं / प्राप्य सैन्यमवासयत् // 65 // अथैकस्य तरोस्तार-तरशाखावलंबितं // स्वर्णपंजरमलाक्षी-स काकाधिष्टितांतरं // 66 // अहो किमेतदाश्चर्य / कुमार इति चिंतयन् ॥तस्यान्यणे समेत्योचे / वायसं पंजरस्थितं // 6 // किं कीरवत्किंचन पाठकस्त्वं / किं के किवत्किंचन नृत्यकारी किंसुस्वरः कोकिलवच्च काक / हैमं कुतः पंजरमाश्रितोऽसि // 6 // काक उवाच-काकेन साकं // समशीर्षिका का / केक्यादिकानां बलिमनि योऽहं ॥प्रदाय जागं निजबांधवेन्यो। हैमं ततः पंजरमाश्रितोऽस्मि ॥६ए // कस्त्वं केन कृतश्चैव-विधरूपः प्ररूपय // अस्मिन्निर्मानुषेऽरण्ये / दिप्तः किं केन पंजरे // 70 // काकः प्राह कुमारेंज। बुजुक्षाकुलितोदरः॥ अहं वक्तुं न / P.P.AC-Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक शक्नोमि / तन्मे पूर्व दिशाशनं // 1 // कुमारस्तत्दणं नृत्यै-रानाय्य वरनोजनं // अदापयः यदा ताव-हायसः पुनरज्यधात् // 7 // कुमार त्वं स्वहस्तेन / यदि दास्यसि नोजनं ॥तदा दास्येऽन्यथा नैव / दाक्षिण्यात्स तथाकरोत् // 33 // कुमारे निजहस्तेन / तस्मै दिशति जोजनं // काको विद्याधरो जज्ञे / दिव्यरूपमनोहरः // 4 // पंजरं तत्क्षणं चाभू-हिमानं विस्मयप्रदं // कुमारश्चावदहिया-धर विस्फारितेक्षणः // 5 // विमानमीदृशं केन / किमर्थ पजरं कृतं // काकाकारो नवांश्चेति / ततो विद्याधरोऽब्रवीत् // 6 // कुमार शृणु वृत्तांतं / सावधानेन चेतसा // वैताढ्यशैलालंकार-मस्ति श्रीवलनं पुरं // 7 // तत्रेशो देवदिन्नोऽनूतत्पट्टे सांप्रतं नृपः // चाता सागरदत्तस्ते / प्रतिपालयति प्रजाः // 7 // तद्नृत्यस्तीत्रवे. गोऽहं / विद्याधरनरेश्वरं // सुखावस्थानसाम्राज्य-साजज्ञापनहेतवे // ए // एतहिमानमारोप्य / स्वामिना प्रेषितोऽनवं // हरिषेणनृपोपांते / स्वांते संतोषमावहन् // 70 // स्वामिमानसमुत्पन्ना-मानमानो विमाननाक् // संचरन् गगने वेगा-समागामिद तत्क्षणं // 1 // अत्र ध्यानवनांतःस्थ-मनसिंहो महामुनिः // बासीद्वनजान्वाख्यो। देवसंसेवितक्रमः // / P.P.AC. GunratriasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श // 7 // अहमुद्धंध्य तं साधु / तबीर्षोपरि संचरन् // यावद् व्रजामि तावन्मे / विमानमपतदनुवि // 3 // विलक्षः पतितो व्योम्नो। बिमाल श्व सिक्ककात् // यावत्पश्यामि तावत्त॥ मद्रादं मुनिपुंगवं // 4 // अरे पापिष्ट गर्विष्ट / मुन्यवज्ञाविधायक // विद्याघ्रष्टो नवान् नूया-काकाकारश्च सांप्रतं // 5 // इदं च पंजराकारं / विमानं जवतादिति // शशाप रोषतः साध-परिचर्यापरः सुरः॥ 6 // युग्मं // तत्क्षणं तत्तथा जज्ञे। ततः काकाकृतीकृतः॥ पंजरे निर्जरेणाहं / बलादादाय चिदिपे // 7 // दीनास्यं विलंपंतंमां / दृष्ट्वोत्पन्नकृपः सुरः ॥शापस्यावधिमाचष्ट / विशिष्टमुनिसेवकः // 7 // उत्तमः पुरुषः कोऽपि / निजहस्तेन जो. जनं // यदा ते दास्यति तदा / शापमोक्षो जविष्यति // नए // इत्युक्त्वा स्मिन् महारण्ये / मदधिष्टितपंजरं // निबध्य शाखिशाखायां / सुरः स्वस्थानकं ययौ ॥ए॥ यस्मिन्निर्मानुषेऽरण्ये / क एष्यति नरोत्तमः // इति चिंतातुरः काल-मतिवाहितवानहं // ए१ // मत्पुण्यैरधु नाकृष्टः / कुमार त्वमिहागतः // त्वया जोजनदानेन / खन्नावस्थो विनिर्मितः // ए // इति || वृत्तांतमाकर्ण्य / विद्याधरवरोदितं // कुमारो विस्मयं प्रापा-चिंतयच्चेति चेतसि // ए३ // अ. P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो 20 हो स मुनिरन्यून-महिमो देवसेवितः // अहो शक्तिधरः साधु-साधुजक्तिपरः सुरः ॥ए॥ अही दुःखकरोदकः / पूज्यपूजाव्यतिक्रमः // अहो अस्य शुनं कर्म।ममात्रागतिकारणं.॥ विनाव्येति कुमारेंड-स्तं विद्याधरमन्यधात् // तीव्रवेग तीनवेगाद् / ब्रज त्वं मा विलंबन // ए६ // बंधोः साम्राज्यसंप्राप्ति / पितुरग्रे निवेदय // इत्यादिष्टः कुमारेण / नत्वा तं सोऽच. सततः // एतस्मिन् विमानमारुह्य / पुरं श्रीरत्नमंदिरं // प्रस्थिते स कुमारेंजो-ऽचालीयदापुरंपति // ए // प्रियध्वजनरेंप्रेण / प्रवेशोत्सवपूर्वकं // नगरांतः समानीतो / विनीतात्मा कुमारराट् // एक // जवांतरस्वरूपं य-धर्मसागरसाधुना // जंक्तमासीत्समस्तं त-कुमारामें नृपो जगौ // 0 // सोऽपि श्रुत्वा जवान् सौवान् / जातजातिस्मृतिः स्वयं // अपश्यच्चंद्रमत्यां चा-बनात्स्नेहमकृत्रिमं // 1 // नृपो लग्ने शुग्ने लग्ने। कुमारेण सुतां निजां // अयोजयत्स्वर्णकारो / रत्नेनेव सुमुडिकां // 2 // स जोगनंगी सुलगः। स्थित्वा तत्र कियचिरं // अमानमानदानेन / सततं पोषितांतरः॥३॥कथंचिच्च शुजमापा-हिमोच्यात्मानमाग्रहात् // कुमारः प्रियया युक्तः / प्रचल्य स्वपुरं ययौ // 4 // युग्मं // तत्र चंद्रमतीं दृष्ट्वा / Mass PP, Ac. Gunratnasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र देव // चंद्रिका मित्र मोदिनीं // समुददत्ता सोझासा / वेलाको स्विाजवत् // 5 // संक्षा पुरस्य सा- // ॥म्राज्यं / हरिषेणनृपोऽन्यदा // दत्वा सागरदेवाय / प्राहिणोत्तत्र पत्तने // 6 // तत्र सागर देवोऽथ / सुखं राज्यं चिरं व्यधात् // तथा सागरदतोऽपि / श्रीवर्वजपुरे स्थितः // 7 // उन्नयोर्बुजतोोगान् / भूयानपि निमेषवत् // कालो जगामः परम-सौख्यसेतैतिनों जिनोः // 7 // जातुः सागरदेवस्य / मिखनायान्यदोत्सुकः॥ आगात्सीगरदत्त से। क्षणाद्विद्याधरेश्वरः // | // ए॥ तो जिन्नौ देहमात्रेण / प्रीतिमंतौ परस्परं // अतिष्ठितां सलक्ष्मी के लक्ष्मीपुरप्पुरे चिरं // 10 // श्तश्च नृपतिर्यद-पुरे राज्यं प्रियध्वजः॥चिरै प्रपोख्य प्रावॉजी-धर्मसागरसनिधौ // 11 // उत्पन्नकेवलज्ञानो / विकीन् जुर्वि बोधयन् // संक्ष्मीपुरवनस्यांतः / स मुनिः समवासरत् // 15 // विज्ञप्ती वनपाखेंना वनीपालौ समेत्य तौ // अवैदेतां महालक्त्या / | मुनिश्चक्के च देशनां // 13 // जो जव्या जवरूपकूपपतिता मोहधिकारावृता / निश्चिंता वि. षयादिसौख्यसलिलास्वादेन जाताः कुतः // एतं पश्यय किं न मूत्युजुजर्ग व्यात्तानने पार्श्वगं.। तस्माधरणाम जिनमतं रज्जु श्रयनु चुत // 14 // इत्यादिदेशनाप्रति / समुत्थाय / * Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र नरेश्वरौ // हरिषेणनृपस्यायु-निजं चायुरपृचतां // 15 // ततो मुनिवरः प्राह / हरिषेण / / पश्चिरं // जुक्त्वेमां पृथिवीं प्राप / पृथिवीं नरकांतिमां // 16 // दिनत्रयमानमायु युवयोरवशिष्यते // कालो हि सकलग्रासी / निश्चितं किमिदं जगत् // 17 // इत्याकर्ण्य शोकजीति-व्याकुलौ तौ बनूवतुः॥ तातमृत्योरभृलोको / स्वमृत्योश्च जयं महत् // 27 // वेपमा. नशरीरौ तौ / सागरदेवदत्तकौ // ऊचतुर्जगवन् जावी / निस्तारः कथमावयोः // 15 // पु. नर्मुनिवरः प्राह / साध्यते साध्यमुत्तमौ // क्षणमात्रेण युवयो-रायुश्चास्ति दिनत्रयं // 20 // तत्सत्वरं व्रतं जैनं / गृहीतं निर्वृतिप्रदं // जयशोको न कर्तव्यो / तान्यां किं नाम सिध्यति // 1 // इति श्रुत्वा समुत्थाय / पुरं गत्वा निजं निजं // समारोपयतां राज्ये / स्वं स्वं नं. दनमादिमं // 5 // विधाय बंदिनां मोद-मुद्योत्य जिनशासनं // एत्य भूत्या महत्या तो / मुनेराददतुव्रतं // 3 // तत्कणं गुरुपादांते। गृहीत्वानशनं मुनी // महारण्ये गतौ कायो सर्ग विदधनुश्च तौ // 24 // तयोः शुक्लध्यानानलकलमनोवृत्तिविलस-बकव्या नैकव्यान्न // जयमकरोलीतनिकरः // न लापः सीतापं शमरसरसाप्लाविवपुषो-न वर्षोत्कर्षों वा वरतरवि- / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेकाश्रयवतोः // 25 // ध्यानकतानचित्तत्वा-त्किंचिद् दुःखमजानतोः // तयोदिनत्रयाते || sकस्मान्मूय॑पतत्तमित् // 26 // यथा यथादहदेहं / विद्युचह्निस्तयोर्बहिः // ध्यानामिः / कर्मकाष्टानि / दांति च तथांतरा // 27 // क्षणानिर्दग्धसागौ। मृत्वा ताविंद्रसन्निनौ // 203 | महाशुक्रदेवलोके / देवी जातौ महर्डिकौ // // पतिभ्यां सममेवात्त-प्रवज्ये ते प्रिये उन्ने // चंद्रमतीचानुमत्यौ / मृत्वा पूर्णायुषौ-सुखं // श्ए // तयोर्वयस्यनावेन / महाशुक्रे सुराल. ये // तस्मिन्नेव विमाने ते / देवौ जातौ महर्डिकौ // 30 // युग्मं // श्तश्च रामसेनाये / ह॥रिषेणनरेश्वरः // अकस्माबूलरोगेण / मृतोऽयेति जगुर्जनाः // 31 // वजेणेवाहतस्तेन / वा. क्येन पृथिवीतले // पपात मूर्छितो रामः कथंचिच्चाप चेतना // 3 // तदंते प्राप्य पतितं / निश्चेष्टं काष्टवद्धवि // तं दृष्ट्वा कुट्टयन् वदों / विललापेति दुःखितः // 33 // हा ब्रातः किमिदं जातं / कावस्थेयं तवेशी // त्वां विना न कणं राम-स्तिष्टतीत्यवगसि // 3 // तन्मां विहाय हा बंधो / कुत्र त्वं सांप्रतं गतः // हा विधे यद्ययं नीतः। किं नो नयसि मामपि // 35 // सदैव जोजनस्नान-स्थानास्थानादिकं मया // कुरुषे सर्वदेकाकी / सांप्रतं किः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . . Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म मिदं व्यधाः // 36 // एवं विलपतस्तस्य / विकलीभूतचेतसः // इति चेतसि वाती मृतो | घन्मे न बांधर्वः // 37 // हेलया येन संग्रामे / हातः पद्मः ससैनिकः // स कथं शूलमात्रण चरित्रं / विनश्यति महाबलः // 30 // पर शूले समुत्पन्ने / यत्सारा न मया कृती // ततोऽयं बाधवी शन || सटोनिमया सह वक्त्यपि यी 3 // अथैनं मानयिष्यामि / प्रातरं स्वं यथा तथा ॥ध्या॥ वेति कंउमालिंग्य / जप जैदपैकदैत्यवक् // // उत्तिष्टोत्तिष्ट हे ब्रीतः / प्रातःसमय एकः // सजालंकरणीयः / भूयो नाषय भूपतीमा 45 // प्रसीद प्रणतोऽस्म्यषी-उपरी, तं दमन मे // मतानामपस, त्वं / क्षमसे वैरिणामपि // 45 // श्रोसिलिंग मुहुः कं / प्रपनास पदों मुडः // जल्प जपेति जल्पन स / रामोऽतीयाय तो निशे // 4 // प्रातः || प्रक्षाल्य तस्यायं / निधायाजरणानि च // उत्थाय्यारोपयामों / हरेर्दै सनतिरे॥॥ येस्त प्रयासमाचष्ट / तं परासुं विनिर्ममे // निहत्य मुंशवनाशुमसेनों रुषातुरः // 45 // समानांगरागाजरण-स्थापनोत्थापनादिकं // रामः स्वयं शवस्यादि / चक्र स्नेहविमोहितः // 3 // रामजीत्या समस्तैस्तै-पैः संसेवितं सदा / दरिदैई समानीय / स सनायों न्य Jun Gun Aaradhak Tu P.P:Ac. Gunratnasuri M.S. Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येकी वीविशत् // 4 // षण्मास्यतेऽन्यदा तत्र / गायनाः समुपाययुः // आसने हरिमारोप्य / स तैर्गीतात्यगापयत् // 3 // अत्रांतरेऽवधिज्ञाना-पितृव्या खिलवेष्टितं // हरिषेणात्मजा माचौ / देवावेतदपश्यतां // भए // पितृव्यप्रतिबोधाय / तो देवी देवलोकतः // विप्ररूपध२०५ रौ क्षिप्रं / समेतो. तत्सलांतरे // 50 // जायमाने गीतमाने / निश्चले निखिले जने // उच्चैस्ताचूचतुर्विी / स्यनंगकर वाचः // 51 // आवामतींधियज्ञान-शालिनी समुपागत्तौ ॥४ष्ट्वा किंचिदिहारिष्टं / महाराज त्वदंतिके // 55 // रामोऽवददरिष्टं किं / वित्तीय अविता पु. नः // एकं तावत्पुराप्यस्ति / बांधवो यन्न जल्पति // 53 // तावूचतुर्न ते नाता / त्वयैव सह जम्पति // यथेचं :सममावान्यां मानावार्ताः करोत्यसौं। 55 // समोऽवग्घटते नैत -दाबाठ्यादपि लालितः // जीवित्तान्यधिकः साकं / न जम्पन्नस्ति यो मया // 55 // कथं सोऽझाष्टसर्वाच्यां / युवान्यां सह जल्पतिः॥मावूचतुझास्यतेऽदः / सांप्रतं प्रत्यये सति // 56 // इत्युक्त्वा हरिदेहं त-मधिष्टाय हिजाकुसौरव्यवत्ता विविध वार्ताः / सप्रीति हरिणा सह // 5 // तद् दृष्ट्वा चिंतयखामो। विग्धिरमोहमनर्तुकं // एकपको वृथा स्नेही ।मम देहे || // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं वहत्यसौ // 57 // एवं रामे धरत्यंत-रूचतुस्तौ सुरहिजो // अरिष्टं नावि शृणु जो। ततः / / चिंता कुरुष्व च // 55 // उच्यतामिति रामेण / प्रोक्त तावूचतुर्पुनः // आशूत्तरस्या दिशो. ऽस्या / अनमत्र समेष्यति // 60 // मुशलाधिकधारानि-रत्र वर्षिष्यति क्षितौ // तत्ततः सकलो देशो। जलराशी भविष्यति // 61 // तावदेवोत्तराशाया। एकमत्रं समुद्ययौ // थारुरोहाचिराट्योम / लोक्यमानं सजाजनैः // 6 // तद् वृष्टिं कर्तुमारेने / समागत्य पुरो सतः परं // प्लावितं नीरपूरेण / ततो वृक्षग्रहादिकं // 64 // पतंतीविपणिश्रेणी-ज्रस्यतस्त्र. स्यतस्तथा // महातीर्गजराजीश्च / तुरगान् मरणातुरान् // 65 // कलकलकरान् लोकान् / बालानाकंदकारिणः // नीरपूराहतानेवं / रामोऽद्राक्षीत्सदःस्थितः // 66 // युग्मं // उपरिष्टान्महावृष्ट्या / वर्धमानांजसा क्रमात् // कासारांतरवत्तूर्ण / व्यानशे तत्सनांतरं // 6 // हरिदेवं तमारोप्य / स्कंधे रामः ससंघ्रमः // रुरोहं निजावास-स्यैकविंशं दणादणं // | // 6 // अंतःपुरं पुरं सर्वं / बुमद् दुःखजरातुरं // रामः कृपापरः काम-मनास्तत्र व्यलो. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं 1 कयत् // 65 // हा हा परिजनः सर्वो। मयि पश्यति सत्यपि // बुमत्येष ततो धिग्मा-मकि- / / प्रत्येक चित्करमीश्वरं // 70 // एवं विजावयत्येव / रामे तत्रापि तज्जलं // वागाकल्पांतपायोधेः। सादृश्यं दर्शयत्ततः // 1 // आकंठमागते नीरे / जलरूपेऽखिले स्थले // स किं कर्तव्य| तामूढो / रामोऽपश्यद् हिजघ्यं // // अवदत्स युवां नूनं / गुणिनौ ज्ञानशालिनौ // अतःपरं परं ब्रूतं / अतं किं किं नविष्यति // 3 // अन्यधत्तां ततो विप्रा-वेकं प्रवहणं कपात् // अत्रैष्यति महाराजः। श्रयणीयं त्वया हि तत् // 5 // तावदेव समायातं / तत्र बोहित्यमुत्तमं // एक कुतोऽपि चिप / तत्र रामो इरेस्तनुः॥ 5 // स्वयं समाललंबे स। यावत्तावन्न तंजलं // न नावं किंतु तत्सर्वं / यथावस्थमलोकत // 76 // हरि सिंहासनासीनं / स्वं च सर्वान् जनानयं // सर्व यथास्थितं. चान्य-त्पश्यन् रानः स विस्मितः // 7 // किमेतदिति तौ विप्रौ / पृष्टौ रामेण सादरं // जजल्पतुरिंद्रजाल-मिदं प्रकटितं नृप // 7 // दणदृष्टविनष्टोऽसौ / प्रपंचो रचितो यथा // तथा सर्वोऽपि संसारो / निःसार इति निश्चितं // // जलं सर्वस्थलप्लावि / तत्क्षणं व्यगलयथा // तथा कथं न ते जाता। विन- / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक श्यत्येष पद्मजित् // 70 // संसारे शाश्वतः कोऽपि / धर्मचक्री न चयपि // प्रतिविष्णुंश्च || विष्णुश्च / बली नाप्यपरो बली // // रामसेन तवेयं का। ब्रांतिर्यन्मम बांधवः // निचरित्रं येतायं हि पूर्णायु-मरिष्यति जवानपि // 2 // ततो मोहममुं मुक्त्वा / कृत्वा चास्योचदेहिकं // जपादाय परिव्रज्यां। स्वसाध्यं साधयाधुना // 73 // सागराद्देवदत्ताख्यो। यो हरेर्नेदनावुभौ // अजूतां तो सुरौ भूत्वा। त्वत्प्रबोधार्थमागतौ // // हिजरूपधरावावा-मित्युक्त्वा ताजावपि // देवी जातौ दिव्यरूपी / चलकुंगलमंमितौ // 5 // तथा श्रुत्वा तथा दृष्ट्वा / रामोऽथ प्रतिबुहृत् // चकाराकृत्रिमस्नेहो / हरिदेहोर्ध्वदेहिकं // 6 // हरिघेणसुतं राज्ये / निधायकं विधानवित् // अकस्मादागतज्ञानि-मुन्यंते व्रतमगृहीत् // 7 // कृतकृत्यावथो देवो / देवलोके गतौ पुनः // अतिष्टतां महासौख्यं / झुंजानी तावुनावपिः। // // चत्वारोऽप्यथ ते देवा / एकदा समुपाययुः // नेमे समावस्त्यंतरपृष्छन् नाविनं जवं ॥ए // स्वामी नेमीश्वरः प्राह / सुधासन्निजया गिरा // मिथिलायां महापुर्या / जयसेन1 नृपात्मजा on जीवः सागरदेवस्य / जावी पद्मरथो नृपः // एष चंद्रमती जीव-स्तस्य रा- // A.QuprathasyriM.S. . Jun Gun Aaradhak TN Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M की जविष्यति // 1 // सुदर्शनपुरेशस्य / युगंबाहुनरे शितुः // एष जानुमतीजीवो। जावि / || चंद्रयशा सुतः // ए // जीवः सागरदत्तस्य / युगबाहोमहीपतेः॥ तस्यैव तनयो जाबी ।न मिनामा द्वितीयकः // ए३ // श्रुत्वेति ते हर्षनरेण पूर्णाः / श्रीनेमिनाथं प्रणिपत्यं जक्त्या // ए नंदीश्वरायेषु विधाय यात्रां / स्वस्थानमासाद्य सुखेन तस्थुः // एव // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे तृतीयप्रस्तावे नमिपंचमषष्टनववर्णनो नाम तृतीयः प्रकारः समाप्तः॥ श्रीरस्तु // - अथ चतुर्थः प्रकास प्रारम्यते॥ पृथिवीकामिनीकाम-वेदनाकारधारिणि // जंबूहीपेऽस्ति जरत-क्षेत्रं जालस्थला॥ कृति // 1 // तत्रास्ति तिलकधीका / पृथुला मिथिलापुरी // यस्यामशिथिला लोकाः / शमकृद्धर्मकर्मणि // 2 // यत श्रीमल्लिनाथस्य। श्रीनमेश्च जिनेशितुः // जन्मदिक्षादिका जाता / महास्तीर्थमियं ततः॥३॥ तत्रासीदहितत्रासी / राशीभूतगणालयः // शत्रुध्वांतदिवानाथो / जयसेनो नरेश्वरः // 4 // तत्र शस्यतरछाया / पवबर्यलंकृता // वलंती वनमालेव / वनमाळेति राइयभूत् // 5 // अन्यदा सुखसुता सा। स्वोऽनाकुलमानसा // निश्येक | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक रथमाक्षी-पद्मपत्रविजूषितं॥६॥ अस्मिन्नवसरे च्युत्वा / सतमादेवलोकतः // जीवः सा | गरदेवस्य / तस्याः कुदाववातरत् // 7 // अमृत समये साधु-यशःसौख्यसुधाप्रदं // वनमाला शुजं सूनुं / चंबिंबमिवोज्ज्वलं // 7 // स्वप्नानुसारतः पद्म-रथ इत्यभिधामदात् // // जयसेननृपस्तस्य / परमोत्सवपूर्वकं // ए॥ अथ पद्मरथो मेरौ / कल्पघुम श्व क्रमात् // वृद्धिमासादयंस्तत्रा-खिला अन्यस्तवान् कलाः॥ 10 // स प्राप्तयौवनः पित्रा / सोत्सवं परिणायितः // श्रीबंधुराजराजस्य / उहिला पुष्पमालया // 11 // पुत्रं तमुझरस्कंध / राज्ये संन्यस्य शस्यधीः // जयसेनो नराधीशो / गुरूपांते ललौ व्रतं // 11 // अथो पद्मरथो राजा / स समं पुष्पमालया / बुजुजे प्राज्यसाम्राज्य-मनिवार्यकशासनः // 13 // श्तश्चासन्नरबौघ-योतितांतरहर्निशं // दिनस्य राजधानीव / सुदर्शनपुरं पुरं // 14 // श्रमानदानसंपू. रि-तार्थिसार्थमनोरथः // मनोरथो नृपस्तत्रं / न्यायाध्वगमनोरथः // 15 // समुज्ज्वलय. शोगंगा-जलकालितविष्टपः // युगबाहुर्युवराजा। राज्ञों मान्यः सहोदरः // 16 // अन्य। दाल्पपरिवारो / युगवाहुनृपानुजः / जीणोंयाने ययों कीनां / कुर्वन् पूरतरं गतः // 7 // SPIRNAG: Gunratriasuti Jun Gun Aaradhak Trust Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / चरित्रं तत्रैक प्रस्फुरज्ज्वाखं / ज्वालनं कुममैकत // तस्योपरि च वृक्षस्य / शाखायां बझसिकर्क // // 27 // तत्रारोहावरोहादि / कुर्वतं नरमेककं // अपृछत्किमिदं न / क्रियते सोऽप्यवक्ततः // 1 // कुमार साधयन्नस्मि / विद्यां गगनगामिनीं // विधिरत्रोपदिष्टोऽस्ति। यदत्रारुह्य सिक्कके राएर // 20 // जपित्वैकाग्रचित्तेन / मंत्रस्याष्टोत्तरं शतं // बिंद्याच्च तनिकैकैवं / यः कुर्यादिम विधि // 1 // जिन्नासु तनिकास्वेवं / चतसृष्वपि साहसी // साधकः सिद्धविद्यः स-न्नुत्पतेजगनांगणं // 15 // श्रारोहाम्यहमेतस्मिन् / विद्यासाधनहेतवे // अवरोहामि चातकान्मृतेः कातरमानसः // 3 // कस्त्वं केन च विद्येयं / दत्ता तुज्यं महाफला // इति पृष्टः कु. मारेण / सोऽनिधातुं प्रचक्रमे // 24 // त्रास्ति हरिदत्ताख्यो / व्यहारी महाधनी // तत्पुत्रो जिनदत्तोऽहं / जिनधर्मरतांतरः // 35 // बालत्वेऽपि मृता माता / निःपुण्यस्यान्य दा मम // परिणीता ततः पित्रा / सुंदरीत्यपरांगना // 26 // न सानजोजनादीनि / सा || में कारयते स्वयं // कारयंती जयात्पत्यु-निनेहा मे न मोददा // 2 // मामाकोशति रोषे. / सा निःकारणवैरिणी // मातुः पराजवात्प्रांत-यौवनो निरगां पुरात् // 27 // गत्वो. S PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का यानांतरे चिंता-तुरोऽहं कातरांतरः // महांतमेकमंद्रादी / विद्यासिहं कृपापरं // श्ए // तेना- || हि च वात्सल्य-पिलखबचैतसा // वत्स विछायवत्कस्त्वं / कुतः क प्रस्थितोऽसि का || ||3 // दयानुरिति तस्याये / खरूपं सर्वमात्मनः // श्रवदं सोऽपि संजात-करुणो मामए दीवदत् / / वत्सागड मया साकं / पूरयिष्यामि ते मतं / मयापि साहसं धृत्वा / प्र पन्न तस्य तचः // 32 // संचरन् पादचारेणं / गतो यात्कियचिरं // तेन साधं स तावन्मा"मादायोत्पतितो नलः // 33 // पक्षीवं संचरन व्योनि / कौतुकानि विलोकयन् // जोजनावसरे प्रात / इदमुद्यानमासदत् // 34 // तस्य संसिझविद्यस्य / तत्र हुंकारमात्रतः में प्रापुर्बभूव प्रासादों / मनोमृगपदार्थनृत् / / 35 // सम तेन प्रविश्यांतः। प्रासादं विहितादरं // मनोरममहेलानां / हस्तास्नानादि लब्धवान् // 36 // सिद्धोऽपि विहितस्नानो / दे. वष्यविभूषितः / / पूजौपंचारनृत्पाणि- जैननाथमपूजयत् // 3 // सहैव तेन जक्त्याहमपि देवार्चनं व्यधा // सुधान्यधिकमाधुर्य-वयंजोज्यान्युपाययुः // 30 // यथे जोजनं ते / बाँ। कृतवतावुनावपि // सुरांगनावीज्यमान-चौमरावमसंविव // 3 // // वर्णमय्यां सुश- || PP-AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / व्यायां / नीत्वा निमासुखं दणं // सिको हुँकारमात्रैण | प्रासादं ते व्यसर्जयत् // 40 // मामादाय खमुत्पत्य / स चचार घनी महीं॥सायं हुंकारमात्रेण / जूयः प्रासादमानयत् // 41 // चरित्रं उजौ प्रविश्य तस्यांतः / शय्यामाश्रित्य शोजनां // जुंजानौ विषयान् देवां-गनानिः सुंद संगीजिः // 42 // अपि वाहितवंतौ तां / निशां सर्वा निमेषवत् // विससर्ज पुनः प्रातः / प्रासादं सिद्धपुरुषः // 43 // एवं प्रतिदिनं कुर्वन् / मया पृष्टः स सादरं // महापुरुष कोऽसि त्वं / कुतः सिकिस्तवेदशी // 44 // सोऽपि संजातसौहार्दो / वक्तुमारब्धवानिति // साधमिकोऽसि यत्तस्मा-त्सर्वं ते कथ्यते पुरः // 45 // श्रीपार्श्वनाथतीर्थेश-तीर्थे केशीगणाधिपः // विहरन् पृथिवीपीठे / वसंतपुरमाययौ // 46 // तत्र मे जनको धन्य-श्रेष्टी व्रतमु. पाददे // बालको जनकस्नेहा-दहमप्यात्तवान् व्रतं // 4 // पठन् गुणन् गुरूपांते / संप्राप्त यौवनं वयः // तत्र चारितरत्नं मे / जहार रततस्करः // 4 // चारित्रमुचनोपायां-श्चितयंस्तातमूचिवान् // चारित्रं चरितुं तात / न शक्नोमि करोमि किं. // 4 // अन्यचत्त तत| स्तातो। यथाशक्ति तपः कुरु // मुंदवैकवारं विस्त्रिर्वा / कष्टं किमपि मा कृथाः // 50 ॥म Jun Gun Aaradhak Trust * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S , Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Saal यान्यदा पुनः प्रोक्तं / पुष्करं गोचराटनं // तेनोक्तं जक्तपानादि / तवानिष्येऽहमेव हि // // 51 // शीतं मे लगतीत्युक्ते / स खप्रावरणान्यदात् // पुष्यंति तात मेऽस्थीनी-त्युक्ते संस्तारकान्यदात् // 55 // लोचं कारयितुं नाहं / शक्त इत्युक्तवत्यपि // पिता कतरिकाहश्एच स्तश्चक्रे मन्मुंभमुंमनं // 53 // अथो कथंचिदाश्रित्य / निर्लजात्वं पितुः पुरः॥ प्रोक्तं शक्नोमि न स्थातु-मेकयांगनया विना // 54 // अयोग्य इति तातो मां / तर्जयित्वातिरोष| तः॥ रजोहरणघातेनो-पाश्रयान्निरकाशयत् // 55 // अव्यक्तवेषनृत्यक्त-साधुवेषो ब्रमन्नई // आकाशगामिनीचिंता-मणिविद्ये असाधयं // 56 // ते विये सुगुरूपांते / सिद्धांतं पठता श्रुते // सारभूते मया तत्र / साधनासुविधिः श्रुतः // 7 // तेनैव विधिनाराके / सिके ते जत्तमे मम // तयोर्यथेप्सितं कामान् / लन्नेऽहं चंक्रमीमि च // 50 // मया त्यक्तेऽपि चारित्रे। ॥सम्यक्त्वं नैव मुच्यते // अपि सिध्यंत्यचारित्रा / न पुनः दर्शनोनिताः // एए // इति - श्चरितं जद्र / नवतः पुरतो मया // आत्मीयं प्रकटीचक्रे / बांधवान्यधिकोऽसि यत् // 6 // इति सिसोदितं श्रुत्वा / मयोक्तं जिनशासनं ॥धन्यं यस्यैकदेशक-स्त्वमीहसिकसि Jun Gun Aaradhak at P.P.AC. SunratnasuriM.S. Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक छिनाक् // 61 // अथो पुनरपि दौण्यां / पश्यंतौ कुतुकावली // एकनावामपश्यावः / पुरो द्याने जिनालयं // 6 // तत्र प्रविश्य दृष्टा श्री-पाश्वेशमूर्तिरुत्तमा // श्रीमहासनदेव्याश्च। प्रतिमान्या तदंतिके // 63 // तस्याः पुरो विष्टरस्था / कुर्कउँका विवे किनी // योगिनीवाच. लदृष्टि-दृष्टिगोचरमागमत् // 64 // चंदनालिप्तसर्वांगीं / वीजयंतिम तां स्त्रियः // तास्वेका| पछि सिझेन / जडे किमिदमद्भुतं // 65 // सा प्राह कथ्यते दुःखं / तस्याये दुःखितोऽस्ति यः॥ उक्ते फुःखे नवेद्यो वा / दुःखमुहर्तुमीश्वरः // 66 // त्वं चाकारेण सारेण / लयसे सर्वकार्यकृत् / अतस्तवाग्रतो / वृत्तमेतन्निरूप्यते // 67 // अत्रारिष्टपुराख्याने / नगरे / ऽतिगरीयसि // सुशासनो नरेशोऽस्ति / पाकशासनशासनः // 6 // तद्राझी चंद्रलेखेति। चंद्रलेखेवं निर्मला // पुत्री मदनरेखास्याः। प्राप्तरेखा सतीषु या ॥६ए // लीलान्यस्तकला रूप-शालिनी गुणमालिनी // गुरूपांतश्रुतजैन-धर्ममर्मपरायणा // 70 // युग्मं // दं श्रीपार्श्वनाथस्य / भूमिनायेन मंदिरं // कारितं शासनदेव्याः / प्रतिमेयं च जक्तितः // 7 // || जोक्ष्ये जिनार्चनं कृत्वा प्रत्यहं नक्तिनागहं॥जग्राहानियहमिति / गुरूपांते नृपात्मजा // 7 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प शावास्यादिति कुर्वती / सान्यदा प्राप्तयौवना / / पूजयित्वा जिनं जक्त्या-र्चयबासनदेवतां // 73 // तदअतः कृतध्याना। सावधाना नृपांगजा // ऊचे कुतश्चिदागत्य / परिव्राजिकया कया // // रे-बाले बालबुझे किं / पाषाणः पूज्यते त्वया // आराध्यसि न किं त्वं 'म / सर्वसिद्धिविधायिनी // 5 // अंथो मदनरेखाख्यद् / उःखदौर्गत्यपुते // पूर्व कुर्वा| मनः सौख्यं / सर्वः खात्महितो जनः // 76 // देवस्त्रैलोक्यनाथोऽसौ / पार्श्वनाथोऽर्चनो|| चितः // शासनोत्सर्पणक: / सैषा शासनदेवता // 7 // अनयोः सेवनान्नूनं / लज्यते सर्वमीप्सितं // साक्षादारिद्यमुसायाः / किं साध्यं तव सेवनात् // 7 // इत्यादियुक्तियुक्तो| क्त्याः। कुमार्या सा निराकृता / निर्वासिता ततः स्थाना-त्पराभूय संखीजनैः // एकथी अंतिकरोम्यस्या / राजपुत्र्या वराक्यहं // परिवाजिकयाचिंति / चिरमित्यतिरोषतः // // स्मृतोपायाऽचिरादासी-मेकां सा खवशां व्यधात् // जलांतरोषधीचूर्ण / तस्या हस्ताददापयत् // 7 // तस्य प्रनावतो जथे / कुमारी कुर्कुरी दणात् // ते परिबांजिकादास्यौ। राझा निर्वासिते पुरात् // 2 // राज्ञाज्ञातानिरस्मानिः / सहितासौ नृपात्मजा // श्रीमलास- / / PAC Gumratnasuri MS Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्रं नदेव्यंही / सेवमानात्र तिष्ठति // 3 // तदिदं सकलं वृत्तं / गदितं जवतों यतः // अथो / सत्पुरुषैतस्या / उपकारं त्वमाचर // 4 // इत्याकर्ण्य समुत्पन्न-करुणो सिकपूरुषः // अस्मार्षीत्तत्क्षणं चिंता-मणिविद्यामवद्यजित् // 5 // तदधिष्टायिका देवी / दुग्धभृनाजना. न्विता // तदपाययदेतस्याः / खन्नावस्थाथ साजनि // 6 // राजांगजां स्वरूपस्थां / तो हष्ट्वा हृष्टमानसाः // तुष्टुवुः पार्श्ववर्तिन्यो / दास्यः सर्वाः स्मिताननाः // 7 // अथ शासनदेवी सा / प्रत्यक्षीनूयं भूयसीं // स्तुति चक्रे सिद्धपुंस-स्ततस्तां प्रणनाम सः // // ऊचे कृतांजलिदेवि / प्रसादोऽयं तवैव मे // परं परममाश्चर्य-मेतन्मानसमंतरा // नए // यदस्यास्तव पादाब्ज-सेविकाया अपीहशी // कथमापदियं चके। परिव्राजकयानया ॥ए॥ अथ शासनदेव्यूचे / जज्ञेयं नवितव्यता // देवैर्देवाधिदेवैर्वा / निराकर्तुं न शक्यते // 1 // अनयार्जितमासीय-कर्म तत्फलमित्यनूत् // गलिते सांप्रतं पापे / मयानीतो जवानिह. // ए२ // प्रणम्य सिफाचष्टा-नया पूर्वनवे कृतं // किं नामैतादृशं कर्म / प्रसद्यैतत्प्रकाशय // ए३॥ देव्यथो वक्तुमारेने / श्रीमंगलपुरेपुरे // जयमंगलराजाभू-प्रभूततमविक्र Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र नमः // ए४ // वेश्या रतिविलासाख्या / तत्र सर्वकलास्पदं // आसीनिःसीमरूपत्वाछाम-1 नेत्राशिरोमणिः // एवं // श्तो गजपुरे राजा / नरविक्रम इत्यभूत् // त्रिविक्रमः सुतस्तस्य / जझे परमविक्रमः / ए६ // सोऽन्यदा शरणायात-मरदच्चौरमातुरं // अपराधात्ततस्तातः। कुमारं निरकाशयत् // ए // क्रमात् त्रिविक्रमो जाम्यन् / श्रीमंगलपुरे ययों // वेश्यां रतिविलास ता-मपश्यत्तत्र सोऽन्यदा // ए७ // हृतचित्तः प्रविश्यांत-स्तया जातानुरागया // झुंजानो विषयान्नाना-विधांस्तस्थौ यथासुखं // एए // अन्यदा कुहिनी प्राह / प्रसुते नृपनंदने // वत्से विसर्जयैनं द्राक् / सुरूपमपि निर्धनं // 100 // वेश्यानां सदने मान्यो / धनवानेव मानवः // कुशलो नो कुलीनो भो / न कलावान रूपवान् // 1 // अथो रतिविलासाह / मातमें गुणिनामुना // हृतं चित्तं च तेनाहं / रमिष्ये नापरेण हि // 5 // अनिग्रहो मयाना हि / यत्पतिमेंऽयमेव हि // अथान्ये धनवंतोऽपि / पुमांसः सोदरोपमाः // 3 // सको. पयाकया प्रोचें / मुग्धे किमिदमभ्यधाः // नात्मगेहेऽयमाचारो / वेश्या हि नगरांगना // 3 // / मायया कथ्यतेऽप्येत-दवलोक्य निर्धनं जनं / किमनेन दरिजेणारंजितेनापि साध्यते // 5 // P.P.AC.Survatmasuri MS.. . Jun Sun Aaradhak Trus Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तयोक्तमर्जिता लक्ष्मी-बहीं तव गृहे मया // अथायमेव पुरुष / आजन्म शरणं मम // 6 // 'एवं तयोः समं वाक्यं / सुतोऽलीकप्रमीलया // श्रुत्वा व्यचिंतय चित्ते / कुमारः सारसाहचरित्रं सः // 7 // नूनं रतिविलासाया। मयि प्रेम निरुत्तरं // धनेषु पुनरकाया। युक्तमेतद् योश्एए रपि // // कथंचित्पूरयाम्यस्या / धनदानेन वांडितं // ध्यात्वेति निशि तहानगराद. पि निर्ययो / ए॥ ब्रमन् भूमौ महारण्ये ---ऽन्यदैकत्राशृणोदयं // ध्यायन् धनार्जनोपायं / चतुर्णा कलहं नृणां // 10 // तेषामन्यर्णमन्येत्य / सोऽपृहत्केन हेतुना // जवंतः कलहायंते / ततस्तैरिति जटिपतं // 11 // चत्वारोऽपि वयं चौरा / वसामोऽत्रैव कानने // एकोऽत्र नर थायासी-द्विद्यासाधनदेतवे // 15 // षद्भिर्मासैघनायासैः / सिझा विद्यास्य नूस्पृशः॥ प्रत्यक्षीभूय देव्यस्मै / वस्तुत्रयमिदं ददौ // 13 // तत्रैकं पादुकायुग्मं / कंथा लकुट इत्युत्ने // तेषां प्रनावमित्यूचे / देवता स्वमुखेन सा // 14 // पादुकाभ्यां गतिव्योंन्नि / लकुटेनारिनिजयः // दीनाराणां सहस्रं च / दत्ते कंथा दिने दिने // 15 // अनिधायेत्यदृश्याभू-देवी संसाधकोऽथ सः // अवशिष्टं विधि सर्व / कर्तुमारब्धवान् पुनः // 17 // तस्मिन् व्याक्षिप्तचे- / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का तस्के -ऽस्मानिरागत्य लाघवात् // तजगत्त्रयसारानं / वस्तुत्रयमुपाददे // 17 // गृह्यतेऽदो विजज्येति / नान्यो विजजतां सतां // अंगो मिलति चत्वारो / वयं वस्तुत्रयं ह्यदः // 15 // चरित्र श्राकाराबदयसे दक्ष-स्त्वं जो पुरुषसत्तमः // आदाय स्वयमस्मभ्यं / विनज्य दिश सांप्र३०० | तं // 20 // कुमारायानिधायेति / चौरा वस्तुत्रयं ददुः // पाउके पादयोः क्षिप्ते / लकुटश्चा ददे करे // 1 // कंथा परिदधे चके / हुंकारो नृपसूनुना // जग्मे च तेषु पश्यत्सु / सवि. षादेषु पुष्करं // 22 // यागातिविलासाया / वेश्मोपरितनवणे // क्षणास्त्रिविक्रमः साथ / दृष्ट्वा तं हृष्टहजगौ // 23 // स्वामिन् गगनचारित्वं / संजातं जवतः कुतः॥ कुमारश्चौरवृत्तां. तं / समस्तं तं न्यवेदयत् // 23 // तत्राययौ दणादका / तमपृढच्च विस्मिता // न त्वं कथमायातो / न दृष्टः प्रविशन् मया // 24 // तेनोक्तं त्वादृशामक्के / धनिबदृशां ननु // || . अस्मादृशा दृशोर्मार्ग / कथमायांति निर्धनाः // 25 // तयाथ माययावाचि / समायमवलोक्य तं // गुणावर्जितभूपृष्ट / ममेष्टोऽसि खमेव हि // 26 // परं सत्यमिदं ब्रूहि / कथमागतवान् नवान् // ततो रंजितचित्तेन / तेन सत्यं निवेदितं // 7 // अथान्यदा कुहिनी सा They APP.AC.Guritatnasun M.S. Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वोचकपटपंमिता // प्रासादः सिंहलद्वीपे / कामदेवस्य विद्यते // 27 // कामितान्यमिता न्येष / जतांगिन्यः प्रयवति // यात्रा तत्र मयामानि / त्वदागमकृते कृतिन् // 2 // तचरित्रं नद्र पापुकारूढो / मां गृहीत्वा कणादपि // तत्र यात्रां विधाय त्वं / समागळेः खमंदिरं | // 30 // कुमारः सरलः शांत-स्तां समादाय पाणिना // उत्पत्य पापुकारूढः / काममंदिरमासदत // 31 // विमुक्तपादुको छारे / कुमारो जवनांतरे // पश्यश्चित्रं प्रविश्यांत-ननाम मकरध्वज // 35 // पादुके पादयोः क्षिप्त्वा / कुहिनी तावदेव सा // उत्पत्य व्योममार्गेपण / कणावपुरमाययौ // 33 // हृष्टा सा मंदिरं प्राप्ता / पृष्टा रतिविलासया कुमारो दृ. श्यते किं नो / मन्मनोबुधिचंजमाः // 34 // मन्ये तत्पादुके हृत्वा। जगईंचनतत्परे // अरे समागतासि वं / वंचयित्वा मम प्रियं // 35 // तयोक्तं पुत्रि मे अव्यं / प्रचुर तेन लक्षितं // पादुकाहितयादानात् / किमेवं हृदि पीड्यसे ॥३६॥सकोपयान्यदावादि। तया यातु क्षयं धनं // निःकृष्टा कुक्कुरीतोऽपि / उष्टे त्वमसि लोनिनि // 3 // पिशुनस्य शुनश्चापि / दृश्यते। महदतरं // पोषकेन नषत्येको / परस्तु सकलेष्वपि // 30 // एवमुक्तेऽक्या प्रापि। चित्ते | PP.AC. Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो दुःखं महत्तमं // ततो निकाचितं कर्म / बझं रतिविलासया ॥३ए // अथो रतिविलासी सा। कुमारविरहातुरा // तस्थौ उःस्था मौनवती / नानजोजनबर्जिता // 40 // त्रिविक्रम चरित्र कुमारोऽथ / नत्वा स्तुत्वा मनोजवं // जवनझारमायातो / नापश्यन्निजपादुके // 1 // शंज३७५ लीमविक्षोक्याथोचिंतयचितोऽस्मि हा // मया हि मुषिताश्चौरा / अनयाई पुनश्वलात् // 42 // अथो कथंचिजत्वेत-स्तस्याः कुर्वे प्रतिक्रियां // जातेन तेन किं यो नो / अपकारकरोऽरिषु // 43 // अत्रांतरे कुमारेण / ददृशेऽवतरन् दिवः // एको विद्याधरः पुष्प-बाणपूजनहेतवे // 4 // स समेत्यानमन्मारं / कुमारं चान्यधादिति // विलक्षवदनः कस्मा-बयसे त्वं नरोत्तम // 45 // शंजलीचेष्टितं सर्व / तेनानाणि तदग्रतः॥ ततो विद्याधरोऽवादी-सर्वस्तेऽर्थः करिष्यते // 46 // परं दिनत्रयं जज / त्वमत्रैवातिवाहय // पुरःप्रयोजनं कृत्वा। यथागडाम्यहं पुनः॥४॥इहैव अवता स्थेयं / न गंतव्यं वनांतरे // शिक्षयित्वेति दत्वा च।नोजनं त्रिदिनोचित / 47 // गते विद्याधरे स्थित्वा / तत्रैव दिवसघ्यं // कुमारोऽचिंतयत्कस्मा-निषिर्क गमनं दने // भए // किं तत्रास्तीति पश्यामि / ततो निर्गत्य मंदिरात् // नमन् वनेऽयमादी- / / Base Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं प्रत्येक पुष्पनारगुरुं तरुं // 50 // स तस्यादाय पुष्पाणि / जघौ चालूत्खरः कृणात् // वनं खरस्व. नं कुर्वन् / बज्राम गतचेतनः // 51 // विद्याधरः स आयासी–दपश्यंस्तत्र तं नरं // गतो वनं व्यलोकिष्ट / खरं खरतरस्वरं // 52 // ज्ञातो व्यतिकरोऽनेन / विद्याधरवरस्ततः // अचिं. 303 तयन्निषिोऽर्थे-ऽधिकं लोकः प्रवर्तते // 53 // अथादायाऽपरागस्य / परागीणि सुमानि सः // अपरांगं पराकार्षी-त्तस्याघ्राप्य कृपापरः // 54 // विद्याधरोपदेशेन / स्वनावस्थः कुमारराट् // जन्जयोवृक्षयोः पुष्पा-ण्याददे तानि सादरः // 55 // विद्याधरस्तमादाय / समुत्पत्यैत्य च क्षणात् // मुमोचोच्चैस्तरे तस्या / विशोपरितनदणे // 56 // निःकारणोपकारिन् नो / जूरियं भूषिता त्वया // स्तुत्वेत्यादिप्रकारेण / कुमारस्तं व्यसर्जयत् // 57 // उपोषितत्रयक्षामा। श्यामा कामातुरांतरा // दृष्ट्वा रतिविलासा सा। हृष्टा प्राणप्रियागमं // 5 // अमृतेनेव संसिक्ता। सा समुत्थाय संत्रमात् // तं निवेश्य स्वशय्याया-मपृष्ठत्कुशलागमं ॥पए // कुमारागमनोदंतं / दासी गत्वा न्यवेदयत् // कुहिनी हा कथं पापी। ममारिरयमाययौ // 60 // करोमि कपट किंचित् / पादुकाहृतिलोपकृत् // ध्यात्वेति सा शिरोबाहु PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं पादायंगेषु सर्वतः // 61 // बध्ध्वा पट्टान् स्खलत्पादा / समागत्येत्यनापत ॥स्वागतं मम जा- // मातुः / कथमागा विपादुकः // 6 // तदा त्वयि गते मध्यं / पाउकारक्षणाधिनी // स्थिताई जवनझारे / रत्नं यत्नाकि रक्ष्यते // 63 // तावदेकः समायोत-स्तत्र विद्याधरः परः // हत्वा मां लकुटाघातैः / पादुके ते जहार सः // 6 // बाहुदंझममुंचतीं / स्फारपूत्कारकारि णी // मामुपादाय विद्या-दुत्पपात नजस्तलं // 65 // सोऽत्रागत्य बलोन्मत्तो / मम बाहुम मोचयत् ॥.गतः क्वचित्त नूपीछे / पतिताहं निराश्रया // 66 // पतत्या मम जग्नानि / पा दाद्यंगानि सर्वतः // कथंचिद्गृहमायाता / दुःखंत्यद्याप्यमून्यहो // 67 // कुमारः प्राह विझाय / सर्व कपटचेष्टितं // अद्याप्यंग न जग्नं य-दंतास्ते नापतन्नमी // 6 ॥अकयोक्तमलं जद्र / वचनेनामुना तव // त्वां विना कुःखितां किं मे / दुहितारं न पश्यसि // 6 // // अ. नया त्वहियोगेना-हारो हारोऽप्यमुच्यत // वद स्वागमवृत्तांतं / तदस्याः सुखदेतवे // // Sn || ततः कुमार आचष्ट / दिवत्रयसमार्चतः॥ एकध्यानात्समारामः / प्रसन्नोऽन्मयि स्मरः // 31 // स्वशीर्षतः समुत्तार्य / प्रत्यक्षीय भूयसा // श्माः सुमनसो दत्ताः / कामं - Ad Gunatrasun un Gun Aaradna Trust: ॐ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र कामितदाः दणात् // 7 // अई सुमनसामासां / प्रनावाजगनाध्वना // सुखेनैव समाया- / / तो-ऽर्थ्यते यत्तद्ददंत्यमूः // 73 // विधाय मनसा वांगं / पुष्पाण्येतानि जिघ्रति // यः स चर // सर्व समाप्नोति / तत्क्षणं नात्र संशयः // 4 // निवेदितं तवाग्रेऽदो / रहस्यं परमं मया // 305 | अवश्यम अवश्यमपरस्याग्रे / नैव कथ्यं कथंचन // 55 // कुहिनी प्राह वृद्वत्वं / देहदीतिहरं दर // आघाप्य निजपुष्पाणि / तारुण्यं मे समानय // 76 // एवम स्त्विति जदिपत्वा / गंदनत्वकराणि सः॥ आघ्राप्य कुसुमान्याशु / कुट्टिनी गर्दनी व्यधात् // 7 // निवड्य रज्जुना बाढ-मारुह्यासह्य विक्रमः // तामयन् दृढदंडेन / कुमारो निर्ययौ र हात् // 7 // दृष्ट्वा ततादृशं वेश्या-वर्गस्तत्राखिलोऽमिलत् // ऊंचे रतिविलासाग्रे / गत्वा राझे निवेदय // 7 // यथासौ मोचयत्यकां / पीड्यमानां नरादितः // ऊचे सा सहतामेषा / स्वपुःकर्मसमं फलं // // ततो विलासिनीवर्गः / समग्रो नूपमन्यधात् // स्वामिन्नस्माकमकैका / पुंसकेन ख. रीकृता // 1 // अस्त्यसौ दमघातेन / कुट्टयन् कुटिनी खरीं // कृपां कृत्वा नृपैतस्मा-हिमोचय वराकिनी // 72 // राज्ञादिष्टाः पुमांसोऽथ / गत्वावोचस्त्रिविक्रम // अरे विमंबयस्येवं / P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 306 किमेवं नृपसंमतां // 3 // मुक्त्वैतां भूपतेरंतं / समागबान्यथा पुनः॥ बध्ध्वा बलेन ने // व्यामो / भूपादेशोऽस्त्ययं हि नः // // स आह साहसाधारो। मयेयं तस्करी खरी // कृता विघ्बयाम्येनां / स्वापराधविधायिनी // 5 // श्मा नाहं विमोदयामि / पदमस्याः करोति यः॥ स समायातु तस्यापि / शिक्षा दातुं नमोऽस्म्यहं // 6 // इत्युक्ते कुपितस्वाताः / कृतांता व नीषणाः // दुढाकिरे प्रहर्तु त-मुदस्खा राजपूरुषाः // 7 // सोऽपि चंडेन दंडेन / खंम्यामास खंमशः // एकेनापि प्रहारेण / पातयन् शतशो नटान् // 7 // अथ ध्वस्ताः परे सर्वे / त्रस्ता गत्वा न्यवेदयन् // नृपाय सोऽपि सेनान्य-माज्ञापयति तंप्रति // ए // . सगत्वैकांतवीरेण ।कुमारेण समं चिरं // विधाय विविधं युकं / दणनग्नः पलायितः॥ ए॥ तद् ज्ञात्वा भूपतिस्तत्र / समागादिस्मिताशयः // तावत्कुमारभस्तावी-उपलक्ष्येति मागधः // ए१ // नरविक्रमराजेंड-कुलांतोनिधिचंद्रमाः // त्रिविक्रमकुमारेंद्र / जय त्वं जगतीतले // ए // इति श्रुत्वा नृपोऽवादी-न्मातुलो निस्तुलप्रनः // नरविक्रमभूपो मे। बांधवोऽयं त्रिविक्रमः // ए३ // इत्युक्त्वागत्य भूषाल / आलिंगकंगकंदलं // तवातिथिविधिर्चात-र- , -P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak ist Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ damasomonilsab वोऽयं मया कृतः // ए४ // अपराधं कमस्वैनं / न दोषो यदजानतः॥ वदैतया वरा किन्या। कोऽपराधः कृतस्तव // ए // इत्युक्ते नूजुजा प्राह / कुमारः स्फारसाहसः // अनयादन. या देव / पाके मे हृते इति // ए६ // स्वनावस्था मिमां नउँ / त्वं विधेहि विधेयवित् // यथा यथोचितां शिक्षा / करोम्यानाय्य पदुके // 7 // एवं जपति नूपाले। स्वनावस्थाथ सा कृता // कुमारेण समाघाप्य / पुष्पाण्यपरशाखिनः // ए // राज्ञा जनेच्य ादिष्टमरे निर्वासयंत्विमां // गृहसर्वखमादाय / बित्वा कर्णौ च नाशिके // एए // ततः सा कंपमानांगी। समानीय स्वमंदिरात् // पाउके ते कुमाराग्रे-ऽमुंचत्पादौ ननाम च // 20 // स्वपादुके समादाय / सोऽप्युत्पन्नकृपो नृपात् // अमोचयत्कुहिनी तां / संतो हि दुःस्थवत्सलाः॥१॥ आमंत्रितः श्रीजयमंगलेन / राज्ञा स शृएवन् जयमंगलानि // आरुह्य तुंगं परमं तुरंगं / रंगन्नरेंञालयमाजगाम ॥२॥राज्ञा विहितसन्मानः / समं रतिविलासया // कुर्वन् रतिविलासान् स / तस्थौ तत्र सुखान्वितः // 3 // गत्वैकांते फटत्कृत्य / स्वां कंधांप्र. तिवासरं // दीनाराणां सहस्रं स / लब्ध्वा दानं ददौ सदा // 4 // भूपो रतिविलासां ता P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो चरित्रं 307 मन्यदालोक्य मोहितः // कुमारं तादृशं शूरं / जाननादत्तवान् पुनः // 5 // नृपस्तामन्यः / / दाकार्य / सानुरागमना जगौ // शुन्नेऽतिसुत्लगस्वामि-त्वेन मामुररीकुरु // 6 // यावत् त्रिविकमो द्रव्यं / दत्ते ते प्रतिवासरं / ततः शतगुणं नित्यं / नूनं दास्याम्यहं धनं // 7 // प्रचुरद्रव्यदातैव / प्रायशः प्राणिनां प्रियः // विशेषेण पुनः स्त्रीणां / वेश्यानां तु विशेषतः // 7 // एनं नरं परित्यज्य / मां प्रपद्य स्वनायकं // वेश्याया अप्यवश्यं ते / वश्यं राज्यमिदं ततः॥ 7 // न बलाजायते स्नेह / एतदर्थ वदाम्यदः // राझो हि निजदेशस्थं / विवशं किमु वर्तते // 17 // अथो रतिविलासोचे / सुखार्थ धनसंचयः // सुखं यदेगुणिनः संगा-न्न हि तझनसंचयात् // 11 // धनेन प्रिय इत्येत-दलीकं वचनं ननु // किं धनं चक्रवाक्य तु / चक्रवाको ददात्यहो // 12 // पतिव्रतास्मि संजाता / वेश्याकुलगताप्यहं // दरिजकुलसंजूतैः / श्रीमद्भिः किं न भूयते // 13 // कलाबल विशालेऽस्मिन् / गुणग्राममनोहरे // सति पत्यौ ममावश्यं / वश्यमेवाखिलं जगत् // 14 // आदातुं का समर्थः स्या-दस्मिन् जाग्रति मां बलात् // शेषराज शिरोरत्नं / गृहीतुं न शक्यते // 15 // इति प्रत्युत्तरैः सारै-'पं कृत्वा / TalathasunM Jun Gun Aaradhak Trust Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं ३०ए निरुत्तरं // मोहिते मूर्जिते तस्मि-निजं धाम जगाम सा // 16 // कुमाराग्रे समग्रं तं / वृत्तां / / तमनिधाय सा // श्राख्यन्न स्वजनैः साकं / विरोधो यशसे प्रजो // 17 // मुक्त्वा क्लेशकर स्थान-मिदमन्यत्र गम्यते // कुमारः सत्यमित्युक्त्वा-ऽवांबजंतुं पितुः पुरं // 17 // पादुके पादयोः दिप्त्वा / कंथां स्वां परिधाय च // दक्षिणे लकुटं तां च / प्रियां वामे करेऽकरोत् // 15 // कुमारः कृतहुंकार / उत्पपात नजोंगणे // व्रजन् पितुः पुरं मार्गे / पंचदिव्यान्यलोकत // 20 // किमेतदिति साश्चयों-ऽवर्त यं नुवि मानवं // एकं पान सोऽप्याख्य-दत्रापुत्रो मृतो नृपः // 1 // पंचदिव्यं चमत्येत-दनिषेकपरं नरं // तयोर्तियतोरेवं / कुमारांते तदाययौ // 25 // अनिषेकं करी चक्रे / तस्य बत्रेण विस्तृतं // चामराज्यां वीज्यतेस्म / हयो हेषारवं व्यथात् // 3 // दिव्यवादि स्वयं तत्र / दिव्यया जयढक्या // सामंतैर्मत्रिनिः सर्वैः / स कुमारो नमस्कृतः // // वाद्येषु वाद्यमानेषु / गीयमानासु गीतिषु // जवत्सूत्सवबंदेषु / प्रोबलत्सु मुदांगिषु // 25 // दीयमानेषु दानेषु / समं रतिविलासया // आरुह्य सिंधुरस्कंधं / कुमारः पुरमाविशत् // 26 // युग्मं // श्रीगोग PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चरित्र पुरसाम्राज्यं / दः पूर्वनृपासने // निवेश्य शस्यजाग्याय / तस्मै सामंतमंत्रिणः // 27 // कन्याः पूर्वनृपस्याष्टा-वेतस्य परिणायिताः // जुक्ते नोगान् समं तानि-र्नुजन् जोगपुरेशतां // 27 // सोऽन्यदाथ गवाक्षस्थः / क्रियमाणाममारिणा // श्रीमवदेवसूरीणां / संघपूजामलोकत // ए // लक्ष्मी नेवासे विलसद्गुणाढये / संश्रूयमाणध्वनिषट्पदोघे // धन्यस्य कस्यापि गृहांबुजाते। श्रीसंघहंसः प्रददाति पादं // 30 // चिंतयच्च चित्ते स / श्रीसंघो यस्य मंदिरं // अलंचक्रे स पुण्यात्मा / नावनां जावयन्नृपः // 31 // तत् श्रुत्वा हृष्टयावाचि / तावद्रतिविलासया // युक्तियुक्तमिदं खामिन् / नवता प्रतिपादितं // 32 // मानं दानं सु. पात्रेषु / गीतगानं निरंतरं // बंदिनां जयशब्दश्च / जायते धन्यसद्मनि // 33 // दानानुमोदनादेवं / शान्यां पुण्यमुपार्जितं // प्रवृत्तं च खयं संघ-पूजादिसुकृतेष्वलं // 34 // त्रिविकमनराधीशो। गुरूपांतश्रुतश्रुतः // धर्मकर्मोद्यनं. कुत्र-श्चिरं राज्यमपालयत् // 35 // इतश्चांतःपुरीमुख्य-परिवारवृतोऽपि सः // जयमंगलभूपालो / विना रति विलासया // 36 // / राज्यराष्ट्रादिकं सर्व / मन्यमानो निरर्थकं // राज्ये नंदनमारोप्य / तापसवतमाददे // 37 // // MP.P.AC Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak-Trust Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र कृताझानतपा मृत्वा / सुदर्शनपुरेशितुः // महाबाहुमहीशास्तुः / स सुतोऽभून्मनोरथः // // 30 // त्रिविक्रमनरेंद्रोऽपि / मृत्वा तस्यैव बांधवः // लघुरप्यलघुर्जज्ञे। युगबाहुगुणोत्करैः // 35 // मृत्वा रतिविलासा सा / सुशासननृपांगजा // एषा मदनरेखाभू-चंद्ररेखोदरोन्न|| का॥४०॥ शंजल्यप्याप्य पंचत्वं / सा परिवाजिकाजनि // पादुकाहरणोत्पन्न-रुषा रति. // विलासया // 4 // उष्टे त्वं कुर्कुरीतोऽपि / निकृष्टासीत्यत्नाणि यत् // नवेऽस्मिन् कर्मणा तेनं। कुर्कुर्येषा कृता तया // 42 // मिष्टमेव हि वक्तव्यं / नानिष्टं च वचः क्वचित् // दीयते को-किलानिः किं / काकैः किं हियतेऽथवा // 43 // एवं मदनरेखायाः। प्रापुष्कृत्य जवांतरं // तिरोबभूव सा देवी / जिनशासनर क्षिका // 4 // श्रुत्वा मदनरेखापि / तदा पूर्वनवं निजं // संजातजातिस्मरणा / सर्व साक्षादलोकत // 45 // मिलिष्यति कथं मेऽथ / स पूर्वनववबजः // इति चिंतातुरा जज्ञे / सा नरेश्वरनंदिनी // 46 // विद्यासिझोऽवदत्ताव-भजे किं चिंतयातुरा // धन्या त्वमेव यस्याः सा-ऽध्यक्षा शासनदेव्यभूत् // 4 // नवांतरवरं न // / मेलयिष्याम्यहं तव // चिंता न कापि कर्तव्या / लगिन्यास्त्वं ममाधिका // 4 // पुत्री-| PP.A6. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 312 व्यसनापगम-वचनांबुदवर्षणात् // सुशासननृपो जझे / हर्ष बुनृतमानसः // 4 // तत्रागातावदेवास्य / पुरो वृत्तांतमादितः // दास्यो निवेदयामासुः / स च संतोषमाप्तवान् // 5 // सिझेनोक्तं महाराज / सुदर्शनपुरे पुरे // जिनदत्तो वसत्येष / तत्स्वरूपं च वेत्त्यसौ // 51 // ततो नरेंद्रपृष्टेन / मयावादि महीपते // आसीत्सुदर्शनपुरे / महावाहुर्महानृपः // 55 // तस्मिन् दिवं गते जझे-ऽधुना राजा मनोरथः // युवराजा लघुचाता / युगबाहुर्महागुणः॥ // 53 // राशावादि महाजाग। युगबाहुकुमारकः // अत्रानेयः खया पुत्र्या / विवाहं का. रये यथा // 54 // उमिति प्रतिपद्यो:-नायकस्य वचो मया // समं सिझेन चोत्पत्य / स्था. नकेऽत्र समागमं // 55 // आकाशगामिनी विद्या / चिंतामण्य निधामपि // मह्यं प्रदाय सिद्धः स / तत्साधन विधि जगौ // 56 // विद्यायां साध्यमानायां / जाव्यं सत्ववता त्वया // सिझे साध्ये चंद्रलेखा-पुत्र्याः साध्यं प्रयोजनं // 57 // अहं गबामि निर्मातुं / यात्रा नंदी. श्वरादिषु // एवं प्रदाय मे शिकां / सिहराजस्तत्तो ययौ // 50 // मया साधयितुं विद्या / प्रारब्धा व्योमगामिनी // अनेन विधिना दृष्टं / ततः सत्वं त्वयापि मे // 5 / / युगबाहुः / / PAC.Gunratnasun.M.S Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुमारोऽथ / जिनदत्तोदितं वचः // श्रुत्वा सर्व जातजाति-स्मृतिः वनवमैक्षत // 60 // ऊंचे मदनरेखायां / जातरागो नरोत्तमः // जिनदत्त समस्तोऽयं / मदर्थ त्वपक्रमः // 6 // चरित्रं तन्मै विद्यामिमां देहि / साधयित्वा ददे यथा // ततश्च जिनदत्तेन / तस्मै विद्या समर्पिता // 65 // वह्निकुंमोपरिस्थस्य / शिक्ककस्यांतरे स्थितः॥ युगबाहुः कुमारेंद्रः / सत्ववानित्यचिंत. यत् // 63 // तथैव विहिते व्योमो-त्पपातोत्तमसाहसः॥ कुमारस्तत्वणं तस्य / प्रत्यक्षा देव्यजायत // 64 // नणिता तेन सिध्यख / देव्यस्य गुणशालिनः॥श्रेष्टिनो जिनदत्तस्य / तदर्थ साधित्तासि यत् // 65 // तयोक्तं वत्स सिकाहं / युवयोरुनयोरपि // महाप्रसाद इ. त्युक्ता / छान्यां सा स्वाश्रयं ययौ // 66 // महासादसिनं प्राप्य / सहायं तं कुमारकं // जिनदत्तस्तदा चिंता-मणि विद्यामसाधयत् // 6 // उक्तं च जिनदत्तेन / कुमार गगनाध्वना // श्रीअरिष्टपुरखेंगे। रंगद्गेऽथ गम्यते // 67 // वांडा मदनरेखायाः। सुशासनन पस्य च // पूर्यते मे प्रतिज्ञा च / त्वदानयनलहणा॥ ६ए // एवमस्त्विति जल्पित्वा / त|| तो विद्याबलादुलौ // कुमारो जिनदत्तश्चो-त्पतितौ व्योमममले // 70 // एत्यारिष्टपुरोपाते || PP.AC. GunratnasusiM.S. JustGun Aradhak Trust Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जिनदत्तो विनिर्ममे // श्रीचिंतामणिविद्याया। बलात्प्रासादमुत्तमं // 1 // कुमारं तत्र संस्थाप्य / स्वयं गत्वा पुरांतरं // सुशासननरेशस्य / सनायां सादरोऽविशत् // 7 // आसने च निवेश्यैनं / भूपोऽवक् पुरुषोत्तम // जवतोर्गतयोः पुत्री / निजमंदिरमासदत् // 3 // जलेनेव विना मत्स्यी / पुजेन चमरी च गौः॥ युगबाहुकुमारेण / विना सा व्याकुलाजनि // // शिशिरश्चांदनः सेकः / पवनश्च ससीकरः॥ पुष्पशय्यादयस्तस्याः / प्रत्युतोत्तापकारिणः // 5 // जवता प्रतिपन्नस्य / सिझेन च सशक्तिना // कुमारानयनस्यात्र / चिंता कापि कृता न वा // 76 // अथवा ह्यनेहसास्पेन / कथं सिष्यति तादृशं // बुजुक्षितानुरोधेन / पच्यते किमुदुंबरं // 7 // विहस्य जिनदत्तेना-नाणि देव मया कृतं // तव का. यं समानीतः / कुमारोऽस्याः पुरोतिके // // ससंज्रम ससंमोदं / मेदिनीशः स तत्क्षणं // तं सोत्सवं पुरस्यांत-रनिगम्य समानयत् // 7 // विवाहितः कुमारश्च / समं मदनरेखया // विसृष्टो भुजुजाचालीत् / कुमारः सपरिबदः // 7 // // सुदर्शनपुरखंगं / प्रविश्योत्सवपूर्वक // तस्थौ जोगान् स चुंजानः / साकं मदनरेखया // 1 // अन्यदा सुखसुप्ता सा / चं स्वप्ने P.P.AC.Ganratnasuri.MS.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A - sminaraincom - व्यलोकयत् // चंडाजस्तै सुतो जावी / नापि फलमृचिवान् // 2 // च्युत्वा जानुमतीजीवः / सप्तमाद्देवलोकतः॥ तस्या अवातरत्कुक्षौ / सुशुक्ताविव मौक्तिकं // 3 // सासूत समये सूनुं / चंद्रवच्चारुदर्शनं // दर्शनोखासकृन्मृति / स्पर्शनप्रीतिदप्रलं // 7 // स्वप्नाकारानुसारे. ण। पित्रा तस्य प्रतिष्ठितं // महांतमुत्सवं कृत्वा / नाम चंद्रयशा इति // 5 // स्नेहवत्सजनस्वांते / शुक्त पदे शशांकवत् // शनैरासादयन् वृद्धिं / क्रमात्प्राप स यौवनं // 6 // अन्यदा शुजरूपाप्त-रेखां लेखांगनाधिकां // संचरंती गृहे सादा-वक्ष्मी मिव मनोरमा // // दृष्ट्वा मदनरेखां तां / मदनातुरमानसः // मनोरथनृपोऽकार्षी-तत्संगममनोरथान // // युग्मं // तस्यां पूर्वजवाभ्यासा-दनुरागस्तथाजवत् // गम्यागम्य विनेदं हि ।न विवेद यथा नृपः॥ नए // अपार्थ मे सुखं राज्यं / जीवितं च तया विना // धन्योऽसौ बांधवो योऽस्या / मुखांबुजमधुवतः // ए // अपराः प्रवरा नार्यः / प्रचुराः संति यद्यपि // अगम्यासी तथाप्येतां / विना नान्यत्र मे रतिः // 1 // अस्ति कश्चिदुपायः स / संगो ये. नानया जवेत् // अज्ञातं प्रथमं कुर्वे / प्रेम दानादिनाऽनया // ए // आलापनात्समालोका P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं दानाच्च गुणकीर्तनात् // सोपानानुक्रमात्प्रेमा-रोहति स्वांतमंदिरं // ए३ // एवं वित्रि / त्य चित्तांत-मनोरथनराधिपः // अंते मदनरेखायाः। प्राहिणोनिजभूतिकां // 4 // तया करितांबूल–वसनाचरणादिकं // तस्यै तदर्थ्यते नित्यं / शस्तं नोग्यं गिवस्तु यत् // // एए // ज्येष्टो ददाति व यतन्ननूचितमित्यसौ // समस्तमपि गृह्णाति / सत्यो हि सरलाशयाः // ए६ // युगबाहुकुमारेंडे-ऽन्यदोद्यानमुपागते // एकांते नूपतिर्गत्वा / तत्प्रियामित्यनाषत // एyn यदि प्रपद्यसे न / पुरुषत्वेन मां तदा // कुर्वे सर्वस्य राज्यस्य / खामिनी जीवितस्य च // ए // ऊचे मदनरेखापि / मयानंगी कृतेऽपि हि // स्त्रीत्वषंढत्वमुक्तस्य / पुरुषत्वं विधिय॑धात् // एए // युगबाहोस्तव चातुर्युवराजो गृहिण्यहं / स्वामिन्येवास्मि राज्यस्य / तहतु कः कमो नवेत् // 35 // जवतो जीवितव्यस्य / स्वामिनीत्वेन मे सृतं // अन्यायादत्त वित्तस्य / जीवितान्मरणं वरं // 1 // किंचान्यायं महाराज / स्वयं कर्तु स. मीहसे // को निवारयिता जावी / कुर्वतोऽन्यान् जनांस्ततः // // जीवघातान्मृषावादात् / परस्वहरणात्तथा // परस्त्रीकांदणाबोजा-जीवा गचंति दुर्गतिं // 3 // महतोऽप्यचिरान्मृ. CRIPAd..Gurpratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक - -.- त्युः / परस्त्रीपरचेतसः // त्रिलोकीकंटकाख्यस्य / रावणस्येव जायते // 4 // किं चैवं प्रल- / पन् भूप / बंधोरपि न लजसे // दुर्गतिप्रतिरूपा-त्पापाद्यदि बिन्नेषि न // 5 // श्रुत्वेति चरित्र मौनमाधाय / राजाचालीखमंदिरं // गन्नर्चितयन्नूनं / साध्यं सेत्स्यति मे शनैः // 6 // श३१७/ नैर्जगम्यते मार्गे। शनैरेव फलंत्यगाः // शनैः सिध्यति साध्यानि / जुज्यतेऽपि शनैः शनैः // 7 // शनैर्नानाविधोपायैः। पूर्यतेऽयं मनोरथः // अस्याः पत्यो परं जीव-त्येतत्कतु न शक्यते // 7 // यतः-आस्वादितहिरदशोणितशोणिशोलां। संध्यारुणामिव वनस्थऋगा. धिपस्य // जॅनाविदारितमुखस्य मुखात्स्फुरंतीं / को हर्तुमिति नरः परिभूय दंष्ट्रां // ए॥ तन्मारयाम्युपायेन / कुमारं सारविक्रमं / पश्चादेना गृहीष्यामि / बलेन च बलेन च // ॥१०॥जणितश्च तया स्वाजि-प्रायो यत्त्वं न लजसे // बंधोरपि हते तस्मिन्ननं मा मादरिष्यति // 11 // इति क्षितिपतिः पापो / विचार्यानार्यमानसः // कुमारमारणोपायं / प. श्यन्नेवावतिष्टते // 15 // अथ सागरदत्तस्य / जीवश्युत्वा सुरालयात् // श्रीमन्मदनरेखाया / उदरांतरवातरत् // 13 // तस्मिन्नेव दणे सुता / सा स्वप्नेऽपश्यदंबरात् // संपूर्ण पूर्णिमा.. || .. -. + P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक चंडं। प्रविशंतं मुखांतरे // 14 // तदनंतरमात्मानं / हास्यं कुर्वतमुच्चकैः // युगबाहुकुमारं च / गायतं विरसस्वरं // 15 // विलोक्येति प्रबुद्धा सा / चतुरग्रे न्यवेदयत् ॥सोऽपि बुद्ध्या विचार्याह / स्वप्नस्य फलमीदृशं // 16 // जडे तव यशोव्यूह-धवलीकृतभृतलः // संपूर्ण पूर्णिमाचंद्र--सन्निनो नविता सुतः // 17 // अट्टहासकरणात् / किंचिदुःखं तवोत्कटं // प्राणांतिकोपसर्गो मे / गानात्संजाव्यते प्रिये // 17 // यतः-हसने रोदनं ब्रूया-जायने वधबंधने // स्वप्नशास्त्रे यतः प्रोक्त–मेतत्सर्वार्थवेदिनिः // 15 // गुरुदेवनमस्कार-प्र. णिधानादिनिस्ततः // प्रतिहन्यान्महामंत्रै-विषमप्युपहन्यते // 20 // प्रतिपद्य वचः पत्यु| रुत्थाय स्वाश्रयं गता // युक्ता हर्षविषादान्यां / सुखं गर्जमुवाह सा // 21 // अथ गर्नानुः जावेन / दोहदो हृद्यजायत // नानातीर्थेषु तीर्थेश-वंदने दर्शनेऽर्चने // 25 // प्रियाये तमजिप्रायं / प्राह सा सोऽपि तत्क्षणं // आहूत जिनदत्तस्तां / गृहीत्वोत्पतितो नजः // 3 // गत्वा शत्रुजये पूर्व-मादिदेवं ननाम सा // पूजां मदनरेखायाः / कारयामास पाणिना // 14 // दृष्ट्वा हृत्सागरोखास-चंद्रिका प्रतिमा प्रजोः // अर्चा विरच्य जपत्यासौ / चकारेति स्तवं ! Sahaspithanasunaks .. ... ........: Jan Girl Aaradic Trust Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * चरित्रं 31 नवं // 25 // तथाहि-श्रीमान श्रीआदिनाथः श्रियमिह दिशतु श्रेयसीं भूयसी वो। बि. // ब्राणः सौरत्नेयं हृदयमतशिवः शंकरः शंकराजः // सेव्यो भृतैर्विभूत्या परिकलिततनुवर्णनी यो ह्यदीन-विचवर्णं सुवर्ण तुहिनशिखरिणो जाति यः कामजेता // 16 // रंगत्पुण्यलता मनोजुवि तनूद्यन्मंगपे रोपिता / शुक्लध्यानजलेन वर्धिततमा श्रेयःफलावाप्तये // कर्णद्वारविनिर्गता कचमिषात्वस्मिन्न मांतीव सा / यस्य स्कंधयुगे विराजति स वः श्रीमारुदेवः श्रिये // 27 // श्रीयादीश्वर तावकीनविशदप्रासाददंनादयं / धर्मः प्रस्फुरदंचलध्वजजुजेनाकार यन्नंगिनः // एवं जल्पति घंटिकारवमिषालजयोर्वीधरः / श्रीमत्सिहिपुरीगमाय सरलो मा. गोऽयमायात्विह // 20 // सिझिक्षेत्रमिति क्षितौ वितिधरः ख्यातोऽस्ति शत्रुजयो। नित्यं संप्रतिपतिस्तुतवतावेतर्हि किं वर्ण्यते // स्वर्ण खोपरि वर्ण्यवर्णमणिनग्धं सितासंगतं / जव्यं रूपमलंकृतं पुनरहो निःसीमशोनं भवेत् // 15 // धन्ये मे नयने करः शिवकरः पु. एयार्जनेराजनि / प्रज्ञा धन्यतमा ममाद्य समनूदिशा रसज्ञा च यत् // श्रीशत्रुजयशैलराज | मुकुटप्रासादचूमामणे / त्वं देवेश विलोकितोऽसि विनतोऽस्यन्यर्चितोऽसि स्तुतः // 30 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक इति स्तुत्वा युगादीशं / कुमारः प्रणिपत्य च // उत्पत्य सप्रियोऽचाली-जिनदत्तान्वितस्ततः // 31 // गत्वा विद्याबलेंनाशु / स श्रीरैवतपर्वत / तत्र नेमिजिनं नत्वा-त्यर्च्य च स्तुचरित्रं तवानिति // 35 // तथाहि-श्रीनेमिनाथं जिनपं स्तवीम्यदं / सोजाग्य जाग्यपतिनाप्रना. वहं // राजीमतीरंजनराज्यरंजितं / जितेंजियं विष्टपराज्यरंजितं // 33 // विश्वैकवीरं समरांगणध्धुर--मनंगमाघात्य समाधिनासिना // नूनं रतिः प्रीतिरिति त्वया विनो। स्त्रसेवकेन्यः प्रददे तदंगात् // 3 // त्वयांगजो नाथ हतस्तथापि / यशोऽत्र ते चित्रमिदं महत्तमं // निघ्नन् जनोत्तापकर निजांगज-मपि प्रजुः कैनै हि वर्ण्यतेऽथवा // 35 // राजीमती सा दयितोग्रसेनजा--किशोऽपि मे स्नेह श्तो गलिष्यति // एवं विचार्येव विचरणाग्रणीनवान्न चिक्षेप जिनेश तत्र तं // 36 // एवमादिप्रकारेण ।नुत्वा नेमिजिनेश्वरं ॥उत्पत्याष्टापदं प्रातो / नतस्तत्र जिनानपि // 37 // अष्टापदाचलनरेंद्रकिरीटतुल्या / अष्टापदोपमबलाः सुविशालनेत्राः // अष्टापदोपरि परिस्थितिकृजिनेंता / अष्टापदो मम हरंतु कुकर्मरूपाः // // 30 // संमेतशिखरिस्वर्ण-गिरिनंदीश्वरादिषु // यात्रा संसूत्र्य सर्वत्र / देहे पावित्र्यमु. HTTER T E MAAAAC Gunka Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छन् // 35 // मित्रेण जिनदत्तेन / नार्या मदनरेखया // समं कुमार श्रायासी रससंमोदः || खमंदिरं // 40 // युग्मं // इति प्रियप्रसादेन / संपूर्णोत्तमदोहदा // गर्नेऽनकं वहंती सा / निन्ये सुखमनेहसं // 41 // व्यतीसेष्वष्टमासेषु / वसंत? समागते॥ युगबाहुः प्रियायुक्तो। 321 // रम्यमुद्यानमासदत् // 42 // तत्रान्यान्यमनोझवन्यसुमनःश्रेणीः स रहून् घनाः। कुर्वाणो मुकुट स्फुटं विरचयन् केलीगृहं सस्पृहं // क्रीमन् वसजया समं समरसैरात्मानमाहादयन् / सर्व वासरमत्यवाहयदसौ सौख्यान्निमेषोपमं // 43 // अस्तं गते दिवाधीशे। विस्तृते चं तमश्चये // अथाल्पपरिवारस्य / गमनं नोचितं मम // 4 // तदत्रैव वसाम्यद्य / विचिंत्ये ति कुमारकः // कृत्वा केलिगृहे केलि / सुष्वाप सुखनिद्रया // 45 // अथो मनोरथो राजा / बलं नित्यं विलोकयन् // स्थितमपपरीवारं / कुमारं ज्ञातवानिशि // 46 // श्रयं हवसरः सारः / कुमारों यदि हन्यते // तमस्तोमनृता रात्रि-रपि मेऽत्र सहायिनी // 4 // तदिदं साधयाम्यय / सद्यो गत्वा वनातरं // पश्चान्मदनरेखां तां / जोदये निःशंकमानसः // // | एवं विचित्य ऽष्टात्मा / कृपाणे पाणिना वहन् // निःकृपो नृप आयासी–देकाकी तत्र P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 32 कानने // 45 // केलिगृहांतिकायातं / नूपतिं रक्षका जगुः // अरे कोऽयं समायाति / ततो- || ऽवादीहराधवः // 5 // विज्ञायाल्पपरीवारं / युगबाहुमिहोषितं // आमंत्रयितुमायातो / मनोरथनृपोऽस्म्यहं // 51 // बांधवोऽयं कुमारस्ये-त्यरुको रदकैनरैः // अंतः केलीगृहं राजा। प्रविवेश मनोरथः // 55 // कुमारः सहसोत्थाय / विलोक्य निजमग्रजं // नत्वा पप्रब किं जात-रत्रागमनकारणं // 53 // रात्रावत्र हि शत्रूणां / कदाचित्प्रनवेबलं // त्वामाकारयितुं गेहे। बांघवाहं समागमं // 55 // उत्तिष्टोत्तिष्ट तस्मात्त्वं / गम्यते नगरांतरे // प्रपद्येति वचो नातुः। सनेपथ्यं स्वमाददे // 55 // आदानव्याकुलस्वांतो। मोहांधीभूतचकुषा // कंधरायां हतो राज्ञा / स कृपाणेन निःकृपं // 56 // धिगहो मोहमाहात्म्यं / यत्तुबसुखवांबया // सुस्निग्धबांधवो मुग्धो / नीयते निधनं मुधा // 57 // विद्युतवाहतो वृक्षः। कुमारो न्यपतनुवि // कृता हाकारपूत्कारा-स्तावन्मदनरेखया // 57 // निकटस्था नटास्तावप्राप्ता उत्पाटितासयः // कुर्वन् खेदमिक मापो / मायावीति तदावदत् // एए // करवालः करालोऽयं / कुमारोपरि मे करात् // अकस्मात्पतितो हाहा / सांप्रतं किं करोम्यहं // 60 // Jun Gun Aaradhak Troll P.P.AC.Gunratnasun M.S. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ चरित्रं 33 कपट नाटयन्नेवं / मनोरथनृपस्ततः // किंचिझिातवृत्तांते-रपानीयत रदकैः॥ 61 // एकेन / पुरुषेणाशु.। गत्वा चंद्रयशःपुरः // युगबाहोः वरूपं त-प्रोक्तं सोऽपि संशोकहृत् // 6 // वरवैद्यान् समादाय / तदुद्यानं समाययो॥ वैद्यैश्च जीवनोपाया। बहवोऽपि विनिर्मिताः // 63 // परं प्रहारहारेण / रुधिरं निर्ययौ तथा // यथा तस्याजवत्काय-स्तत्क्षणं पूणिकोपमः॥६॥ यासन्नमरणावस्थं / नर्तारं वीक्ष्य ददया // कर्णाज्यर्ण समन्येत्ये-त्यूचे मदनरेखया // 65 // सम एवात्र संसारे / मृत्युः कातरधीरयोः ॥धीरीभृयैव मर्तव्यं / भूयो न म्रियते यथा // 66 // अर्हतः शरणं संतु / सिझाश्च शरणं मम // साधवः शरणं शुद्धा।धर्मोऽस्तु शरणं मम // 6 // चतुर्णा शरणं श्रित्वा / सर्व निंदख पुष्कृतं // अनुमोदय खपुण्यानि। दमयस्वाखिलागिनः // 60 // स्वामिन् दमां प्रपद्यस्व / मा रोपं कुत्रचित्कृथाः // पूर्वकर्मवशायातं / दुःखमेतत्सइस्व च // ६ए // सुकृतं दुष्कृतं यत्स्यात् / कृतं तस्यानुसारतः // सुखदुःखानि जायते। हेतुमात्रं नरः पुनः // 70 // सम्यक्त्वं प्रतिपद्यख / व्रतान्यंगीकुरुष्व च // जावयन नावनों || चित्ते / स्मर पंचनमस्कृति // 79 // समं पंचनमस्कारैः / प्राणा यस्य व्रजति सः॥ कदाचित P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्र पोनपिवर्ग चैत् / स्वर्ग गति निश्चित // // मित्रपुर्वकलत्रादि / शरण न शरीरिणां // ए-11 कस्माता जगन्माता / धर्मः श्रीजिनजाषितः // 3 // एवं मदनरेखीतं / सर्व एवेन् कृता जलिः // समस्तास्तमन:पीमः / सुधवैतयां गिरा // // युगबाहुः शुजध्यान-दत्तबा३२४॥ हवलंबनं // धारुरोह से निर्मोहः / स्वर्गप्रीसौंदमुन्नत // 5 // अथ चैत्यशाः कुमारकः / पितरं वीक्ष्य परासुमाशु सः // उपलजतेम विमूर्छनं कणाहहुदुःखाशनितीमितोऽपतत् / / // 6 // कृतनृत्यजनोपजीवनः / स समासादितचेतनस्ततः // सुचिरं कृतरोद॑नो धनं / वि. ललापेति पितुर्वियोगतः // 7 // पितरीहशशक्तिमान् जवान् / कथमासादितवानितः क्षति // किमु वा मृगनायकों बली / न शृगालेन निहन्यते बलात् // 70 // तव जीवितमुत्तम पितः / सुकृतेकायमृतिस्तथाजवत् // उपकारजरेण रंजितः / सकलोऽयं नवता जगजानः॥ // // जगदेतदभूत्वया विना / सकलं शून्यमहो ममाधुना // अथ वत्सलवाक्यसंचयं / त्वमिवान्यो मयि को वदिष्यति // 70 // कुरुषे गुणिनं जनं कुतः / कुरुषे चेकिमु इंसि रे / विधे // तटिनीतटवाबुकाकृता-लयविध्वं सिशिशूपमोऽसि तत् // 2 // एवमादिप्रकारेण / in Aaradhak ust Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलपत्यंगजे शुचा // शोकाकुलापि मदन-रेखा दक्षत्यांचंतयत् // 7 // नूनं पापेन भुपै- / / न / मदर्थ बांधवो हतः // अथैनं चंद्रयशस-मपि पापी हसिष्यति // 3 // ततः सर्वख.. चरित्रं| भूतं मे / शीलं मलिनयिष्यति // तन्ममास्मिन्नवस्थानं / स्थानेऽनर्थंककारणं // 4 // तदि. तः कुत्रचिजत्वा / स्वशीलं पालयाम्यहं // प्रियं प्राणार्थपुत्रेन्यः / सतीनां शीलमेव हि // // 5 // एवं विचिंत्य शोकांते / पुत्रे परिजने च सा // मंदं मंदमविज्ञात-निर्गमा निर्ययो ततः // 6 // खजावान्मंथरगति-गर्जनारा हिशेषतः // सा तथापि शीलनंग-नयाठीघेतरं ययौ // // अथो मनोरथो मार्गे / खयं पापेन शंकितः // जयजीतो वजन् वेगादृष्टौ पुष्टाहिना क्वचित् // 7 // मूर्छितः पतितः पृथ्व्या-मेकाकी करुणं रटन् ॥साकंदं पीमया मृत्वा / चतुर्थ नरकं ययौ // ए // शृगालैस्तस्य देहोऽपि / रात्रौ तत्रेय नदितः // उत्कृष्टपुण्यपापानां / फलं तत्दणमेव हि // ए० // प्रजातावसरे सई-मिलित्वा राजपूरुषैः | // विधिना देहसंस्कारो / युगबाहोर्विनिर्ममे // ए१ // दृष्ट्वा मनोरथस्यापि / देहखमानि का|| निचित् // तं परासुं विदांचक्रुः / सर्वे सामंतमंत्रिणः // ए३ // पुत्रो मदनरेखाया। राज्य- / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जारधुरंधरः // तैश्चंबानयशाश्चंद्र-यशा राज्ये निवेशितः // ए३ // श्तश्च मदनरेखा / बजंती तीवेगतः // मानुगम्य स पापीयान् / संगृह्णास्विति जीतितः // ए४ // विलोक्यास्या महासत्या / गमनं फुकरं पथि // तमसीति विचार्येवो-दियाय दिननायकः // ए५ // चलं. ती पादचारेण / स्खलंतीव पदे पदे // वात्येव न कचित्तस्थौ / शीलनंगनयेन साए६॥ करैरुष्णकरस्योष्णै-रूध्वं चाधो नखंपचैः // वेलुकानिचयैरंतः-पुटपाकमिवाप सा // ए७ // अपि मित्राण्य मित्राः स्यु-रापद्येतदृतं वचः॥ मित्रेणापि बजती सा / पथि संतापिता नृशं॥ // // सातपेनापि संतप्ता / व्याप्ता च तृषया दुधा // एकं तमागमद्राक्षी-दाम्रवृक्षानुवेष्टितं // एए॥ प्रदाय वदनं तत्र / जलं पीत्वा च शीतलं // फलैश्च विहिताहारा / तस्थावेकतरोस्तले // 40 // ततः सा साकारप्रत्या-ख्यानं चेतस्यचिंतयत् // विझेया विचित्रा च / जीवानां कर्मणां गतिः // 1 // जवांतराणि चत्वारि / प्रोचे शासनदेवता // जयमगलजीवोऽयं / तत्रावादि मनोरथः // 2 // जवांतरेऽपि मय्यासी-देष संगी मया पुनः // विझाय तदजिप्रायं / पुरः पत्युर्निवेदितं // 3 // अमार्यः शत्रुरिति तं / त्यक्त्वा सोऽप्याश्र PPAC Gunrat Jun Gun Aaradhak Trust Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ती यांतरं // मामादाय ययौ तस्मा-त्साधुबाई तदा व्यधां // 7 // जवांतरानुरागेण। मय्यरज्यत नृपतिः // आविश्चकार च रहो / मनोऽभिप्रायमात्मनः // 5 // बंध्वोर्माम विरोधोऽनू-दि. चरित्र ति निर्जाग्यया मया // कुबुष्ट्या न च तस्योक्तं / स्वरूपं स्वपतेः पुरः // 6 // आकाशगामि नीविद्या-शक्तिमांस्तादृशः पुमान् // स्वरूपे विदिते तेन / नैव पापेन, हन्यते // 7 // यद्येव मकथयिष्यं / विरोधं मा कृथाः प्रनो // नवांतर श्व क्वेश-करं स्थान मिदं त्यज // 7 // अकरिष्यत्स शुझात्मा / स्त्रिया अपि वचो मम // उक्ते हितेऽत्र नो धीमा-न वक्तारमपेक्षते // ए॥ अहमेवानवं मूढा / परं निर्जाग्यशेखरा // अथवा लंध्यते केन / दुर्लध्या नवितव्यता // 10 // धिग्मे रूपमिदं स्वामि-मारणानर्थकारणं : // धन्यास्ते येन जायते। कर्मबंधनिबंधनं // 19 // ध्यायंती चिरमित्यादि / शोकव्याकुलमानसां // अशकन्निव तां दृष्टुं / / / रविरस्तं ययौ तदा // 12 // निसां मदनरेखाप्य / दणं श्रोता घनाध्वना // सिंहव्याघ्रादिवृत्कारैर्जजागारं जयातुरा // 13 // पूर्वा दिगिव मार्तमं / रत्नं रोहणभूरिव // सुखेन || सुषुवे सूनुं / सार्धरात्रौ शुनप्रनं // 14 // निस्सीमोत्तमविमोपमकरं नेत्रांबुजोखासक। || . P.P.AC. Gunratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का सर्वाशाप्रसरत्प्रजापरिगतं सन्नंदनं नंदन // तत्स्वांतांतरवर्तिदुःखतमसो विध्वंसनायोत्सुकं / रात्रावप्युदितं दिनेशमिव सा दृष्ट्वा प्रहृष्टाजनि // 15 // आगत्य वनदेवी निः। सूतिकर्म चरित्रं विनिर्ममे // देवाः कर्मकरा नूनं / नवेयुः पुण्यकारिणां // 16 // अंतरंगे बहिःस्थे च / नष्टे 30 // तमसि किं मया ॥ईतीव नंदनालोक-मुदोऽस्या अगमत्तमी // 17 // तया सूतं सुतं दृष्ट्वा / प्रजाद्योतितदिक्तटं // स्पर्धयेव हरित्पूर्वा / सुषुवे तीदणदीधिति // 27 // प्रातः सरोवरं गत्वा ।प्रदाय वसनानि सा // यावझावति देहं स्वं / धावतिस्म तदामहान् // 15 // एको जखगजेंसो प्राक् / निर्गत्योच्चमशुमया // तां पद्मिनीमिवोत्पाट्यो-बालयामास लीलया // // 20 // प्रियं दृष्टुमियोध्वं सा / बजती गगनांगणे // दृष्टा विद्याभृतैकेन / समागत्यांतरा धृता // 1 // समानीय विमानांतः / स्थापिता- साप्यचिंतयत् / / विग्विधे त्वां यहिधेयं / मुखमेवोत्तरोत्तरं // 22 // मृते पत्यौ सुतं दृष्ट्वा / हृष्टाजूवं किमप्यहं // देवैतदपि सोढे न / | त्वया निःकारणारिणा // 23 // दीनानना विचिंत्येति / विद्याधरमुवाच सा॥ बलाढालगजो-!! क्षिप्ता / विधृता जवतांतरे // 24 // सुकुमालः स बालो मा / शृगालादिनिरद्यते // जातः / Jun Gun Aaradhak rust Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | मानो विना मात्रा / कथं जीवति बालकः // 25 // तन्मा मुंच सुतोपाते - तराहं यत्रया प्रत्येक मात्र (धुता // तन्मय जीवितं दत्तं / पुत्रनिदां प्रदेाथ // 26 // पश्यन्ननन्यसामान्य-रूपा तां च स मोहितः // ऊचे सर्व करिष्यामि / चेत्पतिं मां प्रपद्यसे // 17 // पुत्रोऽहं मणिचूमस्य। SU सर्व विद्याधराधिपः // मणिप्रजानिधो गह-नस्मि नंदीश्वरेऽधुना // 20 // तत्रोपॉत्तंव्रतस्तात -स्तपस्यति निरंतरं // तस्याद्य वरिवस्यायै / नमस्यायै च याम्यहं ॥शए / श्रेणियाधिनाथं मां / रत्नाकरपुरेश्वरं // प्रतिपयस्व जर्तारं / जव त्वं खेचरेश्वरी // ३०॥सतीमतलिका सैवं / शीलनंगकरं वचः॥ श्रवसा पुःश्रवं श्रुत्वा / चिंतयामास चेतसि // 31 // मनोरथादहं नष्टा / पतितास्य पुनः करे // पलाय्य व्याघ्रतः सिंह-मुखे निपतनं ह्यदः // 3 // विङ्मे रूपमिदं स्थाने / स्थानेऽनबैंककारणं // परमावर्त्य साम्नेन / पुत्रसारां करोम्यहं // // 33 // इति ध्यात्वावदनद्र / जातमात्रो मया सुतः // मुक्तोऽस्ति कानने रौजे / तस्यांधारो मन कश्चन // 34 // चित्ते तकिरहार्साया / मम नायाति किंचन // मेलयादौं सुतं पश्चा करिष्यामि त्वदीहितं // 35 // हर्षोझासितचित्तः स / विद्यानुदप्ग्रजापत // प्राप्तीदेवताख्या-|| P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक न्मे / त्वत्पुत्रोदंतमादितः // 36 // मिथिलानगरीशेन / राज्ञा पद्मरथेन सः // त्वत्पुत्रो दुर्दमा- || | श्वेन / हृतेनादार्श कानने // 37 // अत्यंतोत्पन्नसौहार्द-स्तं समादाय बालकं ॥आसिलिंचरित्रं ग मुहुर्वक्त्रे / चुचुंब मुमुदेऽपि च // 30 // अन्वागतेन सैन्येन / समं स्वपुरमाप्य सः॥ प्रियायै पुष्पमालायै / ददौ साप्याप संमदं // 35 // प्राप्ते ताभ्यामपुत्राच्यां / तादृग्गुणगणे. गजे // यो हर्षों व्यापि तं वित्त-स्तच्चिते ज्ञानिनोऽथवा // 40 // मेरौ कल्पवयुक्ल-पके वार्धिरिवोल्वणः // वर्धमानोऽस्ति पुत्रस्ते / तचिंतां मा कृथा वृथा // 41 // निश्चितीभूय जऽथ / प्रतिपद्यस्व मां पतिं // ततो नंदीश्वरायेषु / तीर्थयात्राविधानतः // 45 // धर्ममर्थ च कामं च / बजमाना निरंतरं // मनुष्यजन्मसाफल्यं / त्वं विधेहि विचरणे // 43 // श्रुत्वैति मदनरेखा / चिंतयामास हा मया // कि कार्यमथवा कुर्वे-ऽधुना कालविलंबनं // // 4 // ध्यात्वेति सावदन / श्रीमन्नंदीश्वरादिषु // यावां कारय मेऽवश्यं / करिष्येऽजीप्सितं ततः // 45 // पुत्रं मदनरेखायां / विज्ञायासक्तमानसं // प्रारेले देशनां साधुः / का- // मवृक्षकुलारिकां // 46 // यस्य चित्ते सुखाकांक्षा / तात्विको स न सेवते // आसक्त्या वि- / ADIGuniatnasuri M.S. Jun Gun Aradhak Trust PAY Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं 331 षयान् यस्मा---दायतौ तेऽतिदुःखदाः // 4 // कामतृष्णामपाकर्तु / यःस्त्रीसंगेन कांदति // // तृषां शशमिषुस्तप्त-त्रपुपानात्स मूढधीः // 4 // अंगनासंगमस्त्याज्यो। विशुद्धात्मनिरंगिनिः॥ विशेषेण परस्त्रीणां / संगरंगं करोति कः // ४ए // नरकादिगतिधारं / वधबंधनिबंधनं // परांगनापरिष्वंगं / वर्जयेय॑चेतनः // 50 // विशेषेण सतीनां यः / शीलनंग चि. कोर्षति // विनश्यत्येव सोऽवश्यं / दशानन श्वाचिरात् // 51 // श्मां कामयसे कामा-तुरो वत्स मणिप्रज॥ परं नायमभिप्राय / आयतौ ते सुखायते ॥५॥शक्तः शक्रोऽपि नोकतु / सतीनां शीलखमनं // अधोधो याति वांडोत्थ-पापनारेण केवलं // 53 // व्रज पूरं नरकांतात् / सतामगम्याऽध्रुवं पथो ह्यस्मात् // व्यावर्तय कुशलेल्छु-र्यदि वत्स मनोरथं सौवं // 54 // इति साधुवचःसाघु-सुधामापिबतः संतः॥ रागोरगविषावेगो। व्यरमत्तस्य तदणं // 56 // जन्मीलितविवेकाक्षः / प्रकटीभूतचेतनः // उत्थाय मदनरेखां / नत्वा क्षमयतिस्म सः // 5 // यदयुक्तं मयोक्तं ते / तत्दमख क्षमापरे // अद्यप्रति मेऽसि त्वं / जननीलगिनीसमा // 57 // अथो पप्रत सा साधु / जगवन्मम नंदनौ // उत्तमौ वाधमौ जी- || PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ची। ततो मुनिरजापत // 5 // // गुणचंझो गुणधर / इत्यास्तां हो सहोदरौ॥ गुणश्रीगुणमा- . / खाख्ये / जाते जायें तयोः शुने // 60 // नवे द्वितीये चत्वारोऽप्यासन देवास्त्रिविष्टपे / तृतीयेऽथ पुष्पासिंह-रत्नसिंहो महौजसौ // 61 // तत्प्रिये कुसुममाला / तथा च वनसुं. दरी॥ चत्वारोऽपि चतुर्थेऽथ / देवलोकेऽनवन् सुराः // 6 // सागरदेवसागर-दत्ताख्यौ पंचमे चचे // चंमतीनानुमत्यौ / जाते तहसने उन्ले // 63 // षष्टे जवेऽजवन् सर्वे / सुपवणिः 'सुरालये // तेषु सागरदेवस्य / जीवः पद्मरथोऽजनि // 64 // जज्ञे चंद्रमतीजीवः / पुरूपमाखेति तस्त्रिया // तथा जानुमतीजीवः / सुतश्चंज्यशास्तव // 65 // जीवः सागरदत्तस्य / द्वितीयस्तनयस्तव // तं विलोक्य वने पद्म-रथो हर्ष परं ययौ // 66 // पूर्वषनवरा| मैण / स आदाय ययौ गृहं // वर्धते पाठ्यमानोऽसौ / सांप्रतं पुष्पमालया // 6 // अस्मिनेव जवे जीवाश्चत्वारोऽमी स्वकर्मणां // यं कृत्वा गमिष्यति / मोदमदंयसौख्यदं // // 6 // जकत्वैवं विरते साधौ / विमानं तत्र पुष्करात् // सदीप्त्यवततारैक-मेकस्तस्मात्सु. ॥रोक्तमः // 6 // निर्गत्य मदनरेखां / प्रदत्तत्रिप्रदक्षिणः // प्रणनाम महाजक्त्या। मणिचूंग Ac..Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EVI मुनि ततः // 70 // तद् दृष्ट्वा विस्मितस्वांत-स्तमवीचन्मणिप्रजः // विबुधा अपि मुहाति।। कदाचिदिति निश्चितं // 1 // विबुधेषूत्तमेनापि / यत्वयासौ नमस्कृता // आदौ मदनरेंचरित्रं || खात्री मात्रमुचंध्य सन्मुनि // 7 // असौ सत्युत्तमेत्यस्मा-न्न पुनर्मुनिपुंगवात् // सूर्या धिकप्रकाशा स्या-निर्मलापि न चैछिका // 33 // देवोऽवददिदं जऽ / सत्यं पर मियं मम // धर्माचार्योऽजवत्तस्मा-न्माननीया मुनेरपि // A // तथाहिं शृणु वृत्तांत / सुदर्शनपुरेश्वरौ // मनोरथयुगवाहु-नामानौ द्वौ सहोदरौ // 5 // हेतोः कुतोऽप्यनिर्वाच्यात् / खजनानुजमग्रजः // जैघान घनदुर्ध्यानः / स पपात च भूतले // 76 // युगबाहुमहापीमाजातरोषः पतन्नपि // नरकांधेऽनया सत्या / सहचोरज्जुनोध्धृतः // 7 // अस्या वचनपीयूष -यूषमाखादयन् रसात् // स मृतः पंचमे कटपे-जिवदिंअसमः सुरः // // विद्याधर से | एवाहं / देवः सेयं महासती / विद्याधरे ध्यायतीति / देवोऽवादीन्महासतीं // // ज / यसोचते तुज्यं / कार्य तन्मे समांदिश // तयोक्तं मम पर्याप्त-मन्येनातो यदा जिनः // - // तथापि मम दर्षाय / वद किंचित्प्रयोजनं // देवेनेत्युदितेऽवादी-न्महासतीमतः || - - - .: :444 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर बिका // // एवं चेन्नय मां न / मिथिला नगरी यथा // तत्र पुत्रमुखं दृष्ट्वा / प्रव्रज्या || माश्रयाम्यहं // 2 // एवमस्त्विति जस्पित्वा / नत्वा मुनिवरं च तां // स्वविमाने समारोप्य / स सुरः प्राचलत्ततः // 3 // दणात् श्रीमिथिलापुर्या / महिनाथ जिनेशितुः // मंदिरे मंदराच्चै-स्तरेऽवातरदंवरात् // 4 // जन्मनिष्क्रमणझान-स्थानं मलेनमेस्तथा // इति सा परमप्राप्त-प्रमोदाऽपूजयजिनान् // 6 // अत्रांतरे समायासी-देववंदनहेतवे // तत्र संवेगमालाख्या। साध्वीयुक्ता महत्तरा // 7 // सा महत्तरया जक्त्या / नता मदनरेखया // समं तया समायाता / गणिनी स्वमुपाश्रयं // // सतीमततिका साथ / क्रमान्नत्वा महासतीः // सर्वा महत्तरापार्श्वे / समेत्योपाविशत्ततः // ए॥ धर्मोपदेशयोग्यां तां। ज्ञात्वा संवैगशालिनी // संवेगमाला पारेने / देशनां पापनाशनीं // ए० // जीवोऽनादिरयं ब्रमत्यविरतं संसारवारांनिधौ / नानातामनपीमनाद्यनुजवदुःकर्मवातेरितः // तावद्यावदिदं कृपापरहृदा निर्यामकेणाहतं / तीर्थेशेन न संश्रयेत्प्रवहणं श्रीजैनधर्मानिधं // 1 // अगाधदुः। खावली पंकपूर्णे / निःसारसंसारसरस्यशेषे // अत्यल्पमात्रोपरिमात्रदृशं / नेति दहा विष rekPPAREGupratnasurM.S. . Jun Gun Aaradhak Trust Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक | यांबु पातुं // ए५ // मोहो नैव विधातव्यो / नव्यैः संसारकारणं // संबंधान् विदधे सर्वान् / / जीवः सर्वांगिनिः सह // ए३ // तदत्र कुत्र पुत्रादि--प्रतिबंधो विधीयते // इत्यायुपदेशाचरित्रं त्सा / बुध्यतेस्म विशेषतः // ए४ // कर्म निर्जराहेतुं / प्रवज्यां लातुमुद्यतां // निर्जरोऽवद३३५ दागछ / पुत्रास्यं दर्शयामि ते // 5 // तयोक्तमथ मे पूर्ण / पुत्रालोकेन सांप्रतं // स्वसाध्यं साधयिष्यामि / प्रवज्याश्रयणादहं // ए६ // त्वमत्रानयनाजातो / महोपकृतिकृन्मम // अथ स्वस्थानकं याहि / कुर्याः सम्यक्त्वमुज्ज्वलं // 7 // तयैवमुदितो देवो / मुदितश्रीमहत्तरां नत्वा मदनरेखां च / देवलोकं निजं ययौ // ए // प्रकाशितस्ववृत्तांता / नितांतानंदितांतरा॥ दीक्षां महत्तरापार्श्वे / ललौ सा लोलतोनिता // एए // गृहंती द्विविधां शिदा / चा. रित्राचारतत्परा // विजहार महीपीठे / श्रीमहत्तरया सह // 500 // श्तश्च मिथिलेशस्य / राज्ञः पद्मरथस्य सः॥ मंदिरे पालितः पंच-धात्रीनिर्वर्धते शिशुः // 1 // तदागमादपदमा ये। दुर्गमा ये च भूजुजः // ते सर्वे स्वयमागत्य / नेमुः पद्मरथं नृपं // 2 // ततोऽतिसंतोषितमार्गणवजं / सुविस्मयस्मेरितविष्टपप्रजं // कृत्वोत्सवं तस्य शिशोर्नरेश्वरो। नामानिराम || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक ममिरित्यदान्मुदा // 3 // कंपडवन्मेरुगिरी सुरत्नं / खनाविवासादित फिरुचैः // अत्यल्प कालात्सकलाः कलाः सं / गृह्णन्नमियॊवनमासलाद // 4 // दिवाकुवंशोन्नवकन्यकाना-मष्टो त्तरं चारुतरं सहस्रं / समं कुमारेण महर्गन्नि-विवाहितं पद्मरथेन राज्ञा // 5 // अथा३३६ न्यदा पद्मरथ-नृप्रतातो महामुनिः / / जयसेनस्तत्र पुत्र-प्रवोधाय समागमत् // 6 // नं तुं तातं समायातो। रोजापि सपरिछदः // मुनीश्वरः सुधादेश्यां / देशनां तत्पुरोऽकरोत् // // 7 // संसारकूपे विषयादिसौख्य-माखादयंतो मधुबिंदुतुल्यं // तिति निश्चितहृदो ज. मा ये / तेऽनंतपुःखान्यचिरावते // 7 // विगाह्य राज्यांबुनिधिं सुखाझै-श्वर्यादिरत्नान्य चिराद् गृहीत्वा // ये संयम पोतमिवाश्रयंते / तरंति ते लोलधियो त्रुमति // ए // इत्यादिसाधुवचनैः / प्रतिबुद्धमना नमि // राज्येऽनिषिच्य जग्राह / तातांते संयम नृपः // 10 // पुष्पमालापि शिश्राय / संयम भुजुजा समं // विजहतुर्महीपृष्टे / ध्वस्तमोंहावुजावपि // // 11 // घातिकर्म क्षयं कृत्वा / प्राप्य केवलमुज्ज्वलं // प्रतिबोध्यानेकलोका-नीयतुदंपती / शिवं // 12 // न्यायेन पालयन् राज्यं / प्रतापाक्रांतभूतलः // बुजुजे विषयान्नाना-विधाः | P.P.AC.Gunratrvasun M.S. Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 337 || नमिनरेश्वरः // 13 // अन्यदा दीरमिमीर-पिंपांमुरदीधितिः // चतुर्दती गिरींद्रोच्च चंचपदणलक्षितः // 4 // विशालहस्तिशालाया। अलंकारः शुजाकृतिः // श्रीमन्नमिनचरित्रं रेंद्रस्य / मदोन्मत्तो गजोऽजनि // 15 // युग्मं // आलानस्तंनमुन्मूख्यं / मुलतः प्राचल | पुरात् // नटैरस्खलितगति-वेगवांस्तीव्रवातवत् // 16 // वजन् जवेनं हस्तींद्रों। दागती. त्य स निवृति // विदेहाख्यं ययौ चंद्र-यशसो देशमुटबणं // 17 // चिरागतमदः किंचिसुदर्शनपुरांतिके.॥ चरन् दृष्टो नरैरेत्य / तैरुक्तं भूजुजः पुरः // 17 // राज्ञापि चं यशसां। तत्तणं हृष्टचेतसा // एत्य स्वयं वशीकृत्य / हस्ती नीतः स्वमंदिरे // 25 // तदालये वि. !! लोक्यैनं / कुंजरानुचराश्चराः // आगत्य नमिराजस्य / पुर एवं व्यजिज्ञपन् // 20 // राजस्तव श्वेतदंती / चतुर्दत श्तो गतः॥ श्रीचंद्रयशसो राझो-ऽलंकरोत्यधुनालयं ॥१॥त. त्कालं. नमिभूपालः.। स्ववाचा काचिकार्पणं // कृत्वा प्रेषीन्निज' पूतं / श्रीचंद्रयशसोंतिके // 25 // स गत्वा तत्र भुपाल-सजायां निर्जयोऽवदत् // राजंस्तवेदमादिष्टं। स्पष्टं नमिन|| रजा // 23 // यदितो निर्गतो हस्ती / मदीयस्तव मंदिरे // तिष्टन् श्रुतः स च प्रेष्य - P.P.Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust ..... .. . ............ .................... Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोस्त्वया न्यायानुवर्तिना // 24 // अथ चंजयशाः प्राह / किमेतद् पूत जल्पसि॥ रत्नभूतानि / || वस्तूनि / कस्य सत्कानि संति किं // 25 // यत्र पश्यंति कल्याणं / गुणिनं च धराधवं ॥त. बारित्र, त्रैवायांति रत्नानि / याश्चया नो बलान्न च // 26 // यथा तपनराजस्य / मंदिरे मित्रकुंजरः | // स्वयनेव समायात-स्तथायं मगृहेऽधुना // 27 ॥राज्यवृद्धिकरं हस्ति-रत्नं स्वयमु.. पस्थितं // कथं पश्चात्प्रदास्यामि / पूर्ण पुण्यमिवोज्ज्वलं // // न्यायोऽत्र हीयते नैव / ममैनं रदतः सतः // स्वयं तद्देशमायातो / यदसौ ध्रियते मया // श्ए // अथवा किमु यु. कोक्त्या / किं वा न्यायनिरूपणैः // युज्यते बलमेवैकं / तत्साध्यं ह्यखिलं जगत् // 30 // दूत ते वर्तते राझो / नाम किंचन चेलं // स तायातु सन्नह्य / गृह्णातु च निजं गज // 31 // ततो पूतोऽवदद् नूप / जमरूपो नवान्ननु // नमिराज्ञो न जानासि। बलमैंद्रमिवाधिकं // 35 // कंबलं परिधायाद्रि-कंदरासु दरातुराः // शेरते वैरिभूपाला / यस्य श. स्यतरौजसः // 33 // तृणमात्रं बलात्तस्य / रक्षितुं कः क्षमः क्षितौ // न्यायार्थ ज्ञापितोऽ|| सीदं / याञ्चेयं न पुनस्त्वयि // 34 // शृणु चंद्रयशो राजन् / हितमेतन्मयोच्यते // यस्याका-|| Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mailuro N // राच हुंकारा-सुन्यत्येव सुरासुराः // 35 // राझा कटादितं तेन / शस्तं वस्तु प्रर्दयते // खकीयमपि किं वाच्यं / तस्यैव वस्तुनोऽर्पणे // 36 // परकीयं परं वस्तु / दृष्ट्वा नूप न मु. चरित्र || ह्यते // गृह्यते नैव यो मूढ-स्तथा कुर्यात्स मुह्यति // 37 // एकस्य कुंजरस्यार्थे / स्वराज्य३३४ || मिदमद्भुतं / किं हारयस्यहंकारा-कुबुद्धिन विधीयते // 30 // वदंतं तमित्यादि-प्र कारेण गुणोल्बणं // नृपश्चंद्रयशाः प्राह / किंचित्कुपितमानसः // ३ए // पशुमात्रं गजं धर्तु / यो न शक्तः ससैन्यकः // तस्य विज्ञातवीर्यस्य / श्लाघां किं कुरुषे मुधा // 40 // याहि शिक्षा श्माः सर्वा / देहि वखामिनः पुरः // एवं तिरस्कृतो पूतः। स रोषानिरगात्ततः॥ ॥४१॥स, एत्य द्विगुणीकृत्य / कृत्य विन्नृपतेः पुरः // न्यरूपयत्स्वप्रयाण-ढक्कामयमदापयत् // 42 // रंगेण चतुरंगेण / बलेनाथ परीवृतः॥ प्राचलन्मिथिलानाथः / शत्रून्माथकरः पुरात् // 43 // दोजयन्नखिलदोणी-धरान् दोणी च कंपयन् // उमांतसागरश्रीक-श्चबन्नमिनृपो बनौ // 4 // तमायांतं समाकर्ण्य / सन्नह्य सबलो द्विधा // चंयोज्ज्वलयशाचं. -यशा अन्येतुमुद्यतः॥ 45 // ससैन्यो दैन्य निर्मुक्तो / निर्गबन्नगरान्नृपः॥ थाकर्षयत्स्व DIA " . - - - P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्णाज्या-मितिः कस्यापि जाषितं // 46 // किमेवंध्यासि साटोपं / प्रयासोऽयं "निरर्थकः / / सुखं तिष्टाश्रयं श्रित्वा / लत्यं लावि तथा च ते // 4 // श्रुत्वैवं राझि सशकै / विचारपचरित्र रमानसे. // अज्यदुर्मत्रिणः स्वामि-न-गंतव्यमितस्त्वया // 4 // व्यावृत्त्य स्वालयं गत्वा / मेलयित्वाखिलं बलं ॥र्गरोधस्य सामग्रीं / समयां कारय प्रनो // 4 // विझोऽनुमन्य मान्यानां / मंत्रिणामिति सन्मतिं // स्थित्वा पुरांतरेऽकार्षी-तुणधान्यादिसंग्रहं ॥॥प्रयोजकानां वस्तूनां / कृत्वा संचयमाद्यं // सुखं चंद्रयशास्तस्थौ / पुरे पिहितगोपुरे // 51 // अविजिन्नप्रयाणेना-गबन्नमिनराधिपः // सुदर्शनपुरेऽजादीद् / दुर्गरोधं विरोधतः // 55 // जबल स्त्रकबोले-ऊँग सैन्यैः समंततः // वेष्टयित्वा नमिस्तस्थौ / छीपमब्धिरिवांबुनिः॥ // 53 // प्राकारसंस्थितानेक-सुलटैः सह दुस्सहं // प्रत्यहं. ढोकते युद्ध। विधातुं नमिरु द्धतः // 54 // अयं व्यतिकरः सर्वः / श्रुतो मदनरेखया // साचिंतयत्कृपावारि-पूर्णमानस. मानसा // 55 // हाहा सहोदरावेतौ / बसंधौ परस्परं // अज्ञानाछिदधानी स्तः / कथं युधमिहाधुना // 56 // मत्त उत्पत्तिमासाद्य / ब्रमतां मा चिरादसौ // अज्ञानात्संगरं कृत्वा / | P.P.A. Gurratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TES Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक .|| संसारे हणनंगुरे // 57 // तद्दोधयामि गत्वाह-मित्यजिप्रायमात्मनः // महत्तरापुरः सर्वं / / यतिन्या विश्चकार सा // // सापि दृष्ट्वा महलानं / तत्र ज्ञानोपयोगतः // अदादाज्ञां चरित्रं महासत्यै / जनन्यै नृपयो:योः // एए // एकां साध्वीं सहादाय / प्राप्ताझा प्राचलत्ततः // 341 क्रमान्मदनरेखा सा / नमिसैन्यांतरागमत् // 60 // दृष्ट्वा संसंचमोत्थान-पूर्व दत्तशुजासनः || ॥नमिर्चक्त्या नमस्कृत्य / साध्वीपुर उपाविशत् // 61 // प्रसादोऽयं मयि महा-नथ कार्य समादिश // जक्त्या राजेति विज्ञते / साध्वी वक्तुं प्रचक्रमे // 6 // धर्माजाज्यं सुखं धर्मा --कर्मादेव श्रियो बलं // यत्किंचित्सुंदरं लोके / तधर्मस्याखिलं फलं // 63 // आराधितोमर्थितकरो / विराकोऽत्यंतफुःखदः // आराध्योऽयं विराध्यो नो। सुखामीव विचक्षणैः // 6 // स चं धो दयामूलः / सर्वहः प्रतिपादितः // स उजिन्नस्तञ्जेदे / बिन्ने मूलश्व सुमः॥ // 65 // तद्धर्मरक्षणोपायं / कृपां कृत्वा नरेश्वर // मुंचेमं जंतुसंघात-निर्घातकरणं रणं // // 66 // किं चायं ते बृहद् ब्रांती / नृपश्चंऽयशा नवेत् // तेनैवं युझसरंजं / कुर्वतो दूषणं || महत् // 67 // सविस्मयमना एत-दाकर्ण्य नृपतिर्जगौं / साध्वी चंप्रयशा एष / बृहद् जाता / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो कथं मम // 60 // ततस्तया समग्रोऽसौ। वृत्तांतो नृपतेः पुरः / निरूपितः सहर्षोऽसौ / तां | | ववंदे मुहुर्मुहुः // ६ए // ऊचे च मातरेतद्य-पुण्यमूर्येव मूर्तया // नवत्या जगवत्योक्तं / त. चरित्र सर्व सत्यमेव हि // 70 // परं क्षत्रियधर्मोऽयं / यत्प्रारब्धं शुजाशुलं // सर्व निर्वाहयेद्धीरः 34 / कातरस्त्वंतरा त्यजेत् // 1 // विधाय संधां प्रारब्धं / बंधुना युद्धमुहतं // कथं कथय मुंचामि / त्वमेवेदं विचारय // 12 // संग्रामे नो श्मे गण्याः। पिता जाता सुतः सुहृत् // क्षत्रियाणामयं धर्मः / सर्वशास्त्रनिरूपितः // 3 // किंच-तेजोजरैकरूपाणां / स्वदेहोऽपि न पुस्त्यजः // यतो निर्वाणमायाति / वहिर्याति न शांततां // 4 // बलादुर्ग गृहीत्वेमं / प्रणम्य निजमग्रजं // पश्चाद्राज्यघ्यैश्वर्य-मपि दास्यामि बंधवे // 35 // परं मातन वाच्यं मे-धुना युद्धविमोक्षणे // इत्युक्तं भूजुजा श्रुत्वा / साध्वी चेतस्यचिंतयत् // 6 // बालबुद्धिरयं मानी। प्रारब्धं नैव मोक्ष्यति // तमत्वा चंऽयशसं / बोधयामि विवेकिनं // 7 // वंदिता नमिराजेन / धर्मलानं प्रदाय सा // समुत्थाय ततः स्थाना-लाचाहिमलाशया // // यतिनीत्यनिरुका सा। प्राविशन्नगरांतरे // तत्क्षणं प्रत्यनिशाता / चिरं 5-! PR 4 Gunraviasuri Ms. Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं 343 रिचितैर्जनैः // ए // जनैश्चानुगम्यमाना / नम्यमाना नवैर्नवैः // साध्वी मदनरेखा सा।। राजमंदिरमासदत् // 70 // दृष्ट्वोपलदय सहसा / समुत्थाय ससंज्रमः // दत्तासनश्चंऽयशाः / खसवित्री नमोऽकरोत् // 71 // ऊचे च प्रांजलिर्मात-हते ताते शुचाकुले // मयि त्वं क गता कुत्र / गृहीतं चाईतं व्रतं // 2 // ततः साध्व्या समस्तेऽपि / वृत्तांते कथिते नृपः // अप्राक्षीत्सांप्रतं मात-मम नाता क तिष्ठति // 3 // साध्व्याजाणि वेष्टयित्वा / पुरमेत. स्थितोऽस्ति यः // स तेऽनुजो महाराज / नमिः कमपराक्रमः // 7 // श्रुत्वेति तत्क्षणं जात-हर्षोत्कर्षेण जुजा // निवार्य संगराद् नृत्यान् / प्राचालीन्नमिसन्मुख // 5 ॥प्रीत्याज्यायांतमाकर्ण्य / सोत्कंठं निजमग्रजं // नक्त्या मुक्तानिमानोऽथ / चचालानिमुखं न'मिः // 6 // नमिनम्रांग आगत्य / पपाताग्रजपादयोः // तेनाप्युत्थाप्य हस्तान्यां / गाढमालिंगितोऽनुजः // 7 // जाता दर्शनमात्रेण / पूर्वषम्नवसंनवा // स्फुटान्योन्यं तयोः प्रीति-ातृजावोनवापि च // // प्रातरौ कुंजरारूढी। ददानौ दानमद्भुतं // नवत्सू. त्सवदेषु / पुरे प्राविशतामुनौ // नए // अहो शत्रू कथं जातौ / जातराविति विस्मितैः / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक नागरैलोक्यमानौ तौ / राजीगणमुपेयतुः // ए // एकीभूताविव प्रीत्याः / सुदर्शनपुरे पुरे // || सहोदरावुने राज्ये / पालयंतावतिष्टता // ए॥ साधुः साधुपरीवारः / केवलज्ञानमंजुलः॥ चरित्र पुरोद्यानेऽन्यदीयासीत् / सूरिराम् गुणसागरः // 2 // तद्वंदनाय तत्कालं / जग्मतुव॑तरा३ya || बुनौ / देशना विदधे सोऽपि / धर्ममार्गप्रदीपिका // ए३ // तत्क्षणं प्रतिबुझात्मा।श्रीमच्चं 'अयशा नृपः // स्वराज्यं नमये दत्वा / सूरिपार्श्वे व्रतं ललौ // ए४ // पालयन् समयाचारमितिचारविवर्जित // कर्मारिमारणं कृत्वा / केवलज्ञानमासदत् ॥ए॥ विहृत्य जगतीपीठे प्रतिबोध्य धनान् जनान् // स राजर्षिश्चंद्रयशा / आरोहन्मोदमदयं // ए६ // साध्वी म. दनरेखापि / कर्माण्युन्मूख्य मूलतः // आसाद्य केवलज्ञानं / निर्वाणपदंवीं ययौ // ए // पाखयन्नथ साम्राज्य-व्यं नमिनरेश्वरः॥ आक्रमत्वप्रतापेन / निखिलदोणिनायकान् // // ए // सुदर्शनपुरे स्थित्वा / स्वयं राजा कियच्चिरं // चिरं परिचितां बाख्या-मिथिला पुरमाययौ // एए // पश्चान्मंत्रिवर#क्तै-स्तस्यैश्वर्यमबूजुजत् // नमि मितवैर्योघो। वीर्या॥ दुस्थादगंजितः // 60 // पंचप्रकारविषयान् / जुंजानस्यास्य भूजुजः // जयशेखरमुख्यास्तु / P.P. Ac-Gunratnasuri MS. Jun Gun Aaradhak Trust Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक 235 बहवः सुनवोऽजवन् // 1 // चिरात्पूर्वकर्मयोगा-न्नीरोगस्यापि भूपतेः // अकस्माद्रजनी | जागे / देहे दाहज्वरोऽजनि // 5 // जनिता वैद्यसंदोहै-रुपचारपरंपरा // मांत्रिकर्मत्रतं. चरित्रं | प्राय / तन्नियंत्रणहेतवे // 3 // परं कोऽपि गुणो नाभूत / कर्मणःप्रातिकूल्यतः॥तस्मिन्नेवा नुकले यत् / फलंत्येतेऽखिला अपि // 4 // षएमासांतेऽन्यदा दक्ष-वैद्येनैकेन भूजुजः ॥शरीरे चांदनः सेक / उपचारो निरूपितः // 5 // अष्टोत्तरसहस्रं या / अंतःपुर्यों नरेशितुः // ताः स्वयं प्रियजक्त्याथ / चक्रुश्चंदनघर्षणं // 6 // परस्परास्फलन्नाना-वलयालिसमुत्थितः घोरो रखो नमे राज्ञः / कर्णशूल मिव व्यधात् // 7 // दुःश्रवोऽयं रवो नो मे / रोचते श्रवसोरिति // नदितो भूजुजावादी-दमात्योंतःपुरीपुरः // 7 // एकैकं वलयं बाहा-ववैधव्यस्य लक्षणं // स्थापयित्वा तदन्यानि / सर्वाण्यपनयंत्वितः ॥ए॥ तथा कृत्वा समस्तानि स्तानिश्चंदनघर्षणं // सहर्षानिरिवान्योन्यं / क्रियतेस्म निरंतरं // 10 // स शृण्वन् घर्षणारावं / न ताहग्दुःश्रवं रवं // नृपोऽपृबदतिकस्थं / स्थितो घोरारवः कथं // 11 // तेनोक्तं देव देवी नि-वलयान्यखिलान्यपि // एकैकं स्थापयित्वा ता-न्यपनीतानि पाणितः // 15 // || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | अन्योन्यास्फासनाऽनावाद् / घोरो रावो न्यवर्तत॥श्रुत्वेति नमिराजेन / निर्व्याजेन विचिंतितं / प्रत्येक // 13 // मिलिता वलयावख्य / आस्फलंति परस्परं // फुःखदाश्च जवंत्येवं / संसारे सर्वजंतवः // 14 // वलयस्य यथैकस्य / दुःखदत्वं न कस्यचित् // जीवस्यापि तथैव स्या-निःसंगश्चेदयं नवेत् // 15 // यथा यथा स्यात्प्रचुरः परिग्रह-स्तथा परीवारजरस्य संग्रहः ॥लोनोऽजिमानः कलहस्तथा तथा / तथा च दुःखं परमं शरीरिणां // 16 // संसारसंगः परिमुच्यते यदा / वैराग्यरंगः परिवर्धते तदा // तथा च पापारिपरिदयः क्षणात् / दीणे च तस्मिन् सुखमयं नृणां // 17 // किं बहुना यदि कथमपि / रोगोऽयं मे निवर्तते देहात् // तदिदं विहाय राज्यं / प्रव्रज्यामाश्रये जैनी // 17 // इति राज्ञः शुजध्यान-सुधापाननिराकृतः // // उत्ततार ज्वरो दुःख-करो विषजरोपमः // 15 // चिरादातसमाधान-श्चंदनलिप्तविः / / अहः ॥षएमासांते तदा रात्रौ / निजामाप नरोत्तमः // 27 // तस्यां विनातकल्पायां। रजन्यां नरनायकः // प्रासादशिखरारूढ-मैक्षतात्मानमुज्ज्वलं // 31 // इति स्वप्नं समालो. क्य / जजागार जयारवैः // वर्यतूर्यनिनादैश्च / प्रातर्नमिनरेश्वरः // // विचारयंश्चारुबु / P.P. Ac. Gunrainasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक कि। शुज्जखमावलोकनं // सुनिश्चितमभूदय / फलमस्य विचार्यते // 3 // अचिरान्नन्वहं लोक-प्रासादस्यास्य मस्तके // थारोहणं करिष्यामि / गतपापमलोज्ज्वलः // // यादृशो. ऽद्य मया स्वप्ने / प्रासादः परमोत्तमः // विलोकितस्तादृगेव / दृष्टोऽभूत्पूर्वमप्यहो // 25 // इत्येवं स्मरतो राज्ञो / जाता जातिस्मृतिः दणात् // सर्वे पूर्वनवा दृष्टाः / षमप्यत्र निवेदि. ताः // 26 // चिंतितं च महाशुक्रे / देवलोके विलोकितं // पुष्पोत्तरविमानं यत् / प्रासादः स समीक्षितः // 27 // व तदेवं सुख केदं / क्व सिता सिकता क च // व क्षीरं झारनीर क / क रत्नं क च कर्करः॥ 27 // कल्पेऽत्रानल्पसंकल्प-मात्रलयं चिरं सुख // नुक्त्वा तृप्तो न यो जीवः। स तृप्यत्यधुना कथं // श्ए // तद्विहायाखिलं नानो-पद्रवोपयुतं पुतं ॥श्रित्वा सत्संयमाचारं / प्राप्नोमि शिवमव्ययं // 30 // शुझबुष्ट्या विचार्येति / तदेवोत्सवपूवकं // लक्ष्मीप्राज्ये निजे राज्ये / पुत्र प्रातिष्टपन्नृपः // 31 // गत्वोद्यानवनं राजा / नमिर्निः संगमानसः // बुद्धो वलयदृष्टांते-नार्हतं व्रतमाददे // 32 // तथा चोक्तं-बहूणं सहयं सोच्चा / एगस्स य असदयं // वलयाणं नमीराया / निरकंतो मिहिलाहिवो // 33 // निःसं. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गो देवतादत्त लिंगोऽनंगोलितांगकः // राजर्षिर्न मिरन्यत्र / विहर्तु प्राचलत्ततः // 3 // राज्य विदधता प्राज्य-गुणावर्जितमानसाः // सकला मिथिलालोकाः / सशोका जझिरे तदा // चरित्रं // 35 // वला विलपंत्तिस्म / नमिमार्गानुगा इति // त्वदेकनाथा हे नाथ / विहायास्मान् 340 क गछसि // 36 // अज्ञानाद्विहितं कंचि-दपराधं दमख नः // प्रणिपातेन तुष्यति / वि. पदेष्वपि सत्तमाः // 37 // लोका अपि सशोकांतःकरणाः करुणस्वरं // रुदंतो विलपंतश्चान्वगन्नमिसन्मुखं // 30 // इत्यालापैर्विलापैश्च / पाषाणमपि नेदकैः // वज्रानेयं नैव जिन्न / मनागपि मुनेर्मनः // 35 // तत्तादृगवधिज्ञाना-सौधर्मेसो व्यलोकयत् // अचिंतयदहो किंचि-निर्ममत्वं नमेर्महान् // 40 // तदितः सांप्रतं गत्वा / कृत्वा तस्य परीक्षणं // ॥प्रणम्य रम्यधैर्य तं / समायामि खसद्मनि // 41 // एवं विचिंत्य सौधर्मा-धिपतिर्देवलोकतः // एत्येति मिथिलापुर्या / विचक्रे देवमायया // 42 // अकस्मान्न मिराजस्य / वैरिणो निखिला अपि // एत्योत्पाटितशस्त्रौघा। मिथिलामुदवेष्टयन् // 3 // मार्यतामरिसंघातो। ध्रियतामपरे जनाः // व्यता पुरसर्वस्व-मिति शत्रुपति गौ // 4 // ततः प्रविश्य पुर्यंत- // .P.P.AC. Guntainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैमिगृह्यान् महानटान् // निगृह्य गृह्यतेस्माशु / सर्वस्वमपि शत्रुतिः // 45 // ततस्तैः सकला || शासु / ज्वालितो ज्वलनो घनं // ततः सर्वा पुरी जझे। ज्वालामालाकरालिता // 46 // शिचरित्रं शवो रोदनं चकु-विलपंतिस्म योषितः॥ नरा हाकारपूत्कारान् / विविधान् विदधुस्तदा // ३४ए // 4 // हा नमे नूपतेऽस्माकं / खामिनि त्वयि सत्यपि // गृह्यतेऽस्मारिनिः सर्व / दह्यते वपुरंप्यथ // 4 // अतो नृप कृपां कृत्वा / रक्ष रक्ष क्षतादितः॥ इत्यारवोऽजवद घोरस्तथा बुंबारवः पुरे // 45 // अथारिसैन्यनाथेन / प्रोक्तं रे सांप्रतं नमिः // जीवन् बध्वा समानेयः। स कुत्रास्त्यत्र नेक्ष्यते // 50 // एकेनोक्तं महाराज / त्वत्तो जीतो नमिः पुरं // |-विहायांतःपुरं सर्व-मादाय प्रपलायितः // 51 // तेनोक्तमनुगळंतु / रेरे धृत्वानयंतु तं // | उत्पाटितकरालास्त्रा / अन्वधावंस्ततो जटाः // 55 // कियत्रं प्रयासि त्व-मन्वायाता ईमे वयं // अयैव स्फोटयिष्यामो हृदयं / तव मा व्रज // 53 // मुषिता श्रीस्त्वयास्माकमोषिताश्च वयं वने // त्वया तथा कथाशेषी-कृता नोऽशेषपूर्वजाः // 54 // तत्सारोऽवस| रोऽस्मानि-चिरादयमवाप्यत // अथास्माकं कृतं पश्य / पश्यन्नपि विनश्यसि // 55 // || P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ चरित्रं जोति जल्पंत बाटोपा--सुनटा विकटार्चिषः // धावंतस्ते क्रुधा तूर्ण-माजग्मुर्नमिसन्निधौ / / // 56 // नापराध्यप्ययं नीत्या-दृतश्रमणवेषनृत् // हन्यः कौनिहंतव्यो / युध्यमानो हि सन्मुखं // 57 // करालकरवालेन / निघ्नन्नेको मुनीश्वरं // समागत्यांतरैकेन / वदतेति निवारितः // 50 // युग्मं // हा नाथ रक्ष रक्षति / विलपंत्यो नृपाग्रतः // अंतःपुर्यों बलानीता / धृत्वा केशेषु तैनटैः // एए // स्वरूपस्थेऽपि सर्वस्मि-नंतःपुरपुरादिके // श्रीमन्नमिपरीक्षायै / दर्शयित्वेति मायया // 60 // कुपितोऽयं मुनिः किंचि-युद्धश्रद्धोऽनवन्न वा // अवधिज्ञानतः स्वर्ग-लोकस्वामीत्यलोकत // 61 // अंतःपुरीपुरीराज्य-राष्ट्रादिकमिदं मया // त्यक्तं तदस्य का चिंता / निर्ममस्य ममाधुना // 6 // त्यक्तस्य नोचिता चिंतो --पछुतस्याप्यमुष्य मे // कुरैदयमाणं हि / वांतं को नाम रक्षति // 3 // एवं विचिं. त्य निश्चितं / गबंतं पथि निःस्पृहं // इंद्रो मुनींद्रमाक्षीद् / कानानिःक्रोधमानसं // 6 // अयाकंपितचित्तस्य / कोनं कर्तुमना मुनेः // हरिः पुनः समायासी-हिप्ररूपधरस्तदा // || // 65 // ऊचे चेति महासत्व / मिथिलेयं पुरी परैः // दह्यते. गृह्यते चैत-त्वत्पुतिःपुरं / / .. .P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं 351 परं // 66 // तत्तेऽधुना गतं नूनं / धैर्य वीर्य बरं च तत् // अन्यथा कथमेतादृक् / प्रत्यक्षं त्वमुपेक्षसे // 6 // नमिरुवाच-नगर्या दह्यमानायां / मम किंचिन्न दह्यते // मम किंचिछिपदै / गृह्यते च न किंचन // 67 // यौर्जिताः शक्रचक्यथा। विश्वे विश्वविमंबकैः ॥ते. षां कर्मविपक्षाणां / हननेऽहं समुद्यतः // ६ए // तन्मे धैर्य च वीर्य च / संप्रत्येवोदितं हि. ज // इंजः-प्रत्यक्षस्ते परीवारो / हन्यते पश्य शत्रुनिः॥ 70 // नमिः-अनुकूलोऽनुचारी च। तात्विको हितकारकः // धर्मों मेऽथ परीवारो / हन्यते न स केनचित् // 1 // मित्रपुत्रकलत्रादि-परिवारो न तात्विकः // सर्वः खार्थपरो लोकः / सशोकश्चात्मचिंतया // 7 // गते मृते हिते पुंसि / सर्वः स्वार्थ हि रोदिति // तस्माधर्मेतरः कोऽपि / संसारे न स्वकः खलु // 3 // इंड:-आत्रों जीतो जवेद्रयः / परोऽपि किं पुनर्निजः ॥धारककस्तवैवं हि / दात्रो धर्मोऽपि हीयते // 4 // नमिः-रदायित्वांतरंगारे-रात्मानमुपदेशतः // रक्षणीयो जनोऽप्येष / क्षात्रो धर्मोऽस्ति तात्विकः // 5 // धमों जीवदयामूलः / सर्वः प्रतिपादितः शत्रूणां हननेऽमीषां / स विनश्यति न दणं // 6 // इंद्रः-एतेषां निघ्नतां लोकान् / सत्यां P.P.AC. Gunratnasuri M.S. un Gun Aaradhak Trust Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 353 शक्तावुपेणे // दयामूलोऽपि धर्मस्ते / वीणः क्षत्रियसत्तम // 7 // नमिः-श्मे नाम स्व- / / का लोका / वैरिणोऽपि न केचन // समता मे समस्तेषु / ममतामुक्तचेतसः // // त. स्केषु' करुणां कुर्वे / हन्मि कान् हेतुवर्जितः // इंजः--सकृपोऽनेकलोकनान् / वैरिणोऽमून् विनाशय / ए॥ अनल्पप्राणिरदा स्या--द्यस्मिन्नरपे विनाशिते // पापं न जायते किंचिं -तहिनाशविधायिनः // // नमिः-एकेंद्रियादिजीवाना-मनंतानां विनाशकाः // संत्यमी जंतवः सर्वे। हंतव्यास्तर्हि तेऽखिलाः // 7 // तस्माच्चैत्यादि विध्वंस-विधायिज़नवर्जिते // प्राणिवर्गे समग्रेऽपि / कृपा कार्या विचरणैः // 2 // इंद्रः-अधुना संपदा प्राज्यं / राज्यं त्यजसि देखया // पश्चात्तापं पुनः पश्चा-सुखाकांक्षी करिष्यसि // 3 // यतश्चिरं श्रितवाय -स्तंपनातपमिछति // तप्तकायः पुनश्वाया-मेवाश्रायितुमीहते // 7 // नमिः-दुःखगर्जिततवैराग्या-नवेदेवं चलं मनः // ज्ञानगर्जितवैराग्यं / चिरं संपद्यते स्थिरं // 5 // तन्मे जामतों विप्र / मनागपि मनो न हि // जोगिनोगोपमान् लोगान् / रोगानिव समीहते // // // इंड:-दीनदुःस्थितसाधुन्यो / दिशन् दानं यथेप्सितं // गृहिधर्म समाराध्य / ख. - Jun Gun Aaradhak.Trust Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जस्व शिवमव्ययं // 7 // नमिः-आरंजाजंतुसंघात-घातको हिधर्मगन् / सवारजविमुक्कैन / साधुना तुलयेत्कथं // 7 // मेरुसर्षपयोर्याह / वार्धिगो पदयोर्यथा // अंतरं ता. दृशं विधि / गृहस्थयतिधर्मयोः // 5 // एवमादिप्रकारेण / विवाद सुरशेखरः // विधायावधिनादादी-चेतोवृत्तिं मुनी शितुः // ए.॥ ज्ञात्वा निश्चलस्वांतं / तं मुनि निर्जरेश्वरः / / परिहत्याखिला मायां / स्वरूपं. प्रकटं व्यधात् // ए१ ॥प्रणिपत्य सत्यजक्त्या / मया मायां विधाय जोः // खेदितोऽसि परीक्षायै / तत्क्षमस्व मानिधे // ए // उक्रवेति स्तोतुमारेने / नमि बिन्नजवज्रमि // समं स्तुतौ च निंदायां / निरहंकारमानसं // 3 // तथाहि-जय मेरुधराधरधीरचित्त / जय जीवदयापर मुक्त वित्त // जय सत्वसमुद्र गुणैकपात्र / जय संस्तिसागरयानपात्र // ए // जय मुक्तिसुयोषिति बहराग / जय पातकपादपनंगनाग // जय जंगमकल्पतरूपमान / जय मानविवर्जितदत्तदान // ए५ // जय पादपवित्रितऋमिनाग। जय निर्मममानस मुक्तराग // जय शोजनबुझिविशुद्धकाय / जय गंजितमन्मथमोहमायः॥ // ए६ // जय सर्वसुपर्व विनम्यपाद / जय तार्जतगार्जितधीरनाद // जय कर्मरिपूञ्चयचूरपेश / PP.AC. Gunratnasuri M.s: Jun Gun Aaradhak Trust Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर जय-संयमसार नमे मुनीश // ए // इत्थं स्तुत्वा नमिमुनिवरें देवराजः स्वनक्त्या / नत्वा तस्य स्मृतिकृतिपरो धाम सौर्व जगाम // राजर्षिश्च प्रशमिततमाः शांतचित्तः प्रवृत्तः / कर्नु / चरित्र सारानवनिवनिताहृत्सुहारान् विहारॉन् // ए // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे तृतीयप्रस्ताव ने | मिसप्तजववर्णनो नाम चतुर्थः प्रकाशः समातः // श्रीरस्तु // // // समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमचारित्रविजयसुप्रसादात् / खब्ध्वा यदीयचरणांबुजतारसारं / खादछटाधारित दिव्यसुधासमूहम् / / संसारकाननतटे पटतालिनेव / पीतो मया प्रवरबोधरसप्रवाईः / || वंदे मम गुरुतं च। चारित्रविजयाह्वयं // परोपकारिणी धुर्य चित्रं चारित्रमाश्रितम् ॥शा युग्म / चारित्रपूर्वा विजयाभिधाना। मुनीश्वराः सूरिवरस्य शिष्याः॥ आनंदपूर्व विजयानिधस्य / जातास्तपागठसुनेतुरेते // 3 // आ अंथ श्रीजामनगरनिवासि पंमित श्रावक हीरालाल हंसराजे खपरना. श्रेय माटे पोताना श्रीजननास्वोदय बापखानामां गपी प्रसिक कयौं हे. // श्रीरस्तु / मा ... Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रं समाप्त // PADMRAPA 600000.00 2 PP. AC Gunfatnasuri MS. . . : Jon Gun Aaradhak.Trust - ..