________________ सोऽपि बलिलो जनः॥ यस्ता बलति तं अन्य विचक्षण शिरोमाण // 3 // जिनप्रासादस॥ देने / व्यबीजं वपाम्यहं // प्रायानंतगुणा शुण्य-फलोत्पत्तिर्जवेन्मम // // एवं विचिंचरित्र इत्य जैनेजः / प्रासादस्तेन कास्तिः // विमानानि विमानानि / संजातानि विलोक्ययं // 7 // 140 अदियसोपानचटकनांगिना-मंगेषु जांति श्रमवारिविंदवः // वर्धापितानां सुकृतश्रिया मुदा / विजक्तलग्ना व मौक्तिकोत्कराः // 70 // यस्मिन्महानिर्मलदेवमूर्ती / संक्रांतमूर्तिजन इ. त्यतोषीत् // यथा प्रजुमें हृदयेऽयमास्ते / प्रजोस्तथाई हृदये वसामि ॥१॥स्फटिकघटितं | चित्रश्चित्रविचित्रितमुन्नतं / कनकमणिनिर्मध्ये मध्ये निबट्य विनूषितं // जिनपतिजवनं द्वेवेंद्राणां मनांस्यपि रंजयत् / त्रिजुवनजनो बोधे/जं विलोक्य समर्जयत् // 2 // अथो दं: ढल्यो राजा-न्यदा गुणधरं जगौ // कारागारसमं मन्ये / संसारं सांप्रतं सखे // 3 // तृशवदाज्यमुत्सृज्य / प्रपद्ये ब्रतमाईतं // परं राज्यधुराधार-धौरेयो न सुतो मम // 4 // एकोऽपि जायते पुत्रः / कथंचियदि मद्गृहे // तस्मै राज्यं प्रदायाहं / पूरयामि मनोरथं // // // 5 // तत्त्वं दहेषु मुख्योऽसि / कार्यकार्युपकार्यसि // तथा कुरु यथैकः स्या-दचिरान्मम Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.