________________ प्रत्येक विध्वंसी / सम्यक्त्वरविरुद्ययौ // 66 // उवाच साधु साधुत्व-मुध्धृतोऽहं नवार्णवात् // परे ॥षामुपकारायो-त्पत्तिश्चंदनवत्तव // 67 // देवयूष्याण्यष्याणि / प्रदायाजरणानि च // कार्ये स्मार्योऽहमित्युक्त्वा / यक्षराजस्तिरोहितः // 6 // ततो गुणधरः स्मेर-वदनेंदीवरः प्रगे ॥दे. 13 // वष्यैरलंकार-रलंकृतवपुलतः // ६ए // नानानागरिकैर्लोकः / पीयमानोडगंचलैः // नृपधाम जगामायं / ननाम च महीपतिं // 70 // युग्मं // राज्ञापि स्वासनार्धे तं / बहुमानपुरस्सरं // निवेश्य सकलं पृष्टं / स्वरूपं तस्य सन्निधौ // 1 // तेनापि मदमुक्तेन / यथावस्थितमेव हि // निरूपितं स्वरूपं च / सना सर्वापि विस्मिता // 72 // सर्वेषां जीवितव्यस्य / दाता स्व. मिति संस्तवन् / राजा पोरैर्नरैयुक्त-स्तमत्यंतमपूजयत् // 3 // अथान्यदा गुणधरः / श्रे ष्टिश्रेष्टो व्यचिंतयत् // पूर्वपुण्यवशालक्ष्मी-लब्धा चेद्विद्यते मया // 4 // यत्सेवते श्रीविपरीतमजं / तत्तु स्वरूपं विपरीतमस्याः // आरक्ष्यमाणा नियतं प्रयाति / विस्मृज्यमाणा त्ववतिष्टते यत् // 35 // प्रासादबिंबादि जिनेश्वराणां / न कारितं येन धृतं व्रतं नो // न पू. जिताः साधुजना नृजन्म-रमादिकं निष्फलमेव तस्य // 76 // पिशाच्येव श्रिया प्रायो-खि X P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust