________________ चरित्रं प्रत्येक कथय यद त्वं / विचक्षण शिरोमणे // चतुषु तेषु मित्रेषु / जाया सा कस्य जायते // 56 // || श्रुत्वा सविस्मयो यदो। बहुकालं विमृष्टवान् // नाशासीत्पृष्टमर्थ तं। तावत्तरणिरुद्ययौ // // 57 // यदेण सुप्रसन्नेन / नणितं भो महामते // त्वयाधुना स्वसत्वेन / रंजितोऽस्मि जि. | तोऽस्मि च // 50 // याचस्व विश्वप्रथितावदात / यचिंतितं ते तदहं प्रदास्ये // समुजदत्तांगरुहस्तदाह / निवर्ततां मारिदवाग्निदाहः // एए // यदेणोक्तं स्वयं सिद्ध-मेतत्त्वत्तोऽपि सत्तम // अन्यत्किंचित्प्रसद्याद्य / समादिश करोमि यत् // 60 // तेनोक्तं नास्ति मे किंचित् / प्रार्थनीयमितः परं // अहो परोपकारैक-कारित्वमिति चिंतयन् // 61 // यतः प्राह महा जाग / निरीहोऽसि तथापि च // समाधानकृते किंचि-न्मा कार्य समादिश // 6 // ज-णितं तेन यद्येवं / तदा सम्यक्त्वपूर्वकं // जिनधर्म प्रपद्यख / मन्यस्व जिनदेवतां // 63 // वंदस्व स्वबधीः शुशान् / सर्वान् गुणगुरून् गुरून् // सर्वजाषितं वाक्यं / श्रद्दधेहि प्रबु सुधीः // 64 // पश्य शाश्वतचैत्याली-विद्धि त्वं स्वयमेव जोः // प्रयुज्यावधिविज्ञानं / सहै / त्यं जलपामि किं न वा // 65 // इत्येवं शृण्वतस्तस्य / यदस्य हृदयांबरे // मिथ्यात्वध्वांत P.P. Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TN