________________ वायुवेगः खखन / तदाहत्य विनिर्ममे // स्फुलिंगानूर्ध्वगान् दीपान् / स्वर्गे गंतुमना व // 4 // एवमेते महाशूराः / सूरसेनादयस्त्रयः // शस्त्रैश्विरमयुध्यंत / महासेनादिजिस्त्रि चरित्रं जिः // 42 // अजेय्यमपरास्त्रौघै-चिराविज्ञाय वैरिणं // अस्मार्षीत्सूरसेनः स्वां / देवता धिष्टितां गदां // 43 // ज्रमयित्वा तया शत्रु-मुत्पतंतं तंमुझतं // निहत्य सहसा चक्रे / हि खं चंमविक्रमः // 4 // योधयित्वा चिरं रामो। रणकौतूहलादिव // न्यपातयबिरो नित्वा / / मुशखेन जयद्रथं // 45 // देवदिन्नोऽपि वर्षित्वा / दिव्यास्त्रांबुतिरब्दवत् // बिन्नेद विद्युतं मुक्त्वा / वायुवेगं गिरीऽवत् // 46 ॥अथो निष्कंटकं पद्म-सैन्यं ते पद्मखमवत् // अखं; खमयामासु-रनायासं गजा श्व // 4 // ध्वस्यमानं त्रस्यमान-मेव पश्यदिशो दश // दृष्वा सैन्यं निजं योध्धु-मुत्तस्थौ पद्मभूपतिः // 4 // एकेनापि प्रहारेण / पातयन् स सहस्रशः // अरीन् पुरः स्थितान् मार्ग / विदधे वेगपूर्गमं // 4 // रामसेनं रिपून नंत-मकस्मादेत्य दैत्यवत् // जघान शक्तिशस्त्रेण / यथाशक्ति स पद्मराट् // 2 // // पपात मूर्छितो | रामौ / मुखेन रुधिरं वमन् // हाकार उत्पपातोच्चै-हरिषेणबलेऽखिले // 51 // जीवंतं तं P.P.AC. Gunratnasur M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust