________________ प्रत्येक परित्रं न् // स्वपन् क्रीमन् लताखंग-मंगपेषु गृहेष्विव // ए // फलाहारतृप्तकायः / कुमारः स निरामयः // झुंजानो विषयांस्तत्र / तस्थौ खप्रियया सह // एए // दृष्ट्वा तौ दंपती स्मृत्वा / / तन्निर्मितविलंबनं // उबसबैरवारेण / चिंतितं तेन चेतसि // 6 // स एष येन दुष्टेन / विरहो मे शुजस्त्रियः // पातितोऽस्यास्तदस्यापि / तमेवेह करोम्यहं // 1 // यतः कृते प्रतिकृतं कुर्या-त्सर्वथा न दमा वरं // पादैनिहन्यते हीन-रपि सर्वसहाः दमाः // 2 // ततः फलान्युपादातुं / पद्मदेवो ययौ वने // तावदेवः प्रियापार्श्वे / व्यधात्परनराकृति // 3 // कणात्फलान्युपादाय / प्रत्यायातो व्यलोकयत् // कुमारः परपुंसा तां / क्रीमंती देवमायया // // 4 // तत्कालोत्पन्नमन्युः स / मूलादुन्मूख्य पादपं // अनेनाहन्मि हंतैतौ / चिंतयन्नेवमा. ददे // 5 // चिंतितं च पुनश्चित्ते-ऽनर्थमेतं करोमि किं // महेलारक्तचित्तस्या-वहेला कस्य नो नवेत् // 6 // पितृमातृसुमित्रादे-वियोगो यन्ममाजनि // तत्र सर्वत्र पापिष्टा / दुष्टैषैव नि बंधनं // 7 // पूर्व स्वमातृपित्रोर्या / वचनं कुरुतेस्म सा // करिष्यति कथं मे नो / विमृष्टं न मयेत्यपि // 7 // किंच-स्त्रियो रमंते मनसान्यपुंसा / वाचापरेण क्रिययापरेण / / सूर्यप्रिया || P.PAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust