________________ प्रत्येक // 6 // देवदिन्नोऽस्मरत्पंच-परमेष्टिनमस्कृति // तावहियाधरेणैव-मुच्चैःशब्देन ज़ल्पितं // | // 6 // अहं विद्याधराधीश-स्त्वप्रियादोषरोषितः // एष हन्मि देवदिन्न / त्वां वराकं नि रागसं ॥६ए // इत्युक्त्वा तत्र निर्मुक्ता / तेन वज्रमयी शिला // यानपात्रं च तननं / श. 214 तखंगमजायत // 70 // केचिन्मन्ना जनाः केचि-खनास्तीरे च नीरधेः // देव दिन्नो दैवयो गा-देकं फलकमाप्तवान् // 79 // तदाधारात्तरन्नधिं / बीपमेकमवाप सः॥ पंचमे वासरे जीवन् / कारनीराकुलीकृतः // 2 // समीरणेन शीतेन / स स्पृष्टः प्राप्तचेतनः // फलैराहारमाधाय / सोऽवतस्थे तरोस्तले // 3 // चिंतयामास चित्ते च / विधत्ते हि हतो विधिः // सुखपुःखपरावर्त / सर्वेषामपि देहिनां // // जार्याधुश्चरितै रुष्ट-खेचरेणोक्तमीदृशं॥ तन्मन्येऽनेन सा बुब्धा / नविष्यति दुराशया // 35 // अधुनैतं पुनर्मुक्त्वा-परं नरमरीरमत् // तेनैवैष महारोषा-दनर्थमकरोदमुं // 76 // एतया चिंतया किं वा / मया सा साध्यते. ऽधुना // स्वसाध्यं साधयाम्येष / स्मृत्वा पंचनमस्कृति // 7 // एवं विचिंत्य सोऽस्मार्षीस्कृती पंचनमस्कृति // सुस्थिताख्यस्ततो यदा-स्तस्याग्रे प्रकटोऽनवत् // 7 // उवाच च | P.PAC.GunratnasariM.S. .... Jun Gun Aaradhak Trust