________________ F // 56 // सान्यदैकेन केनापि / खैचरेण विलोकिता // देवताधिकरूपायां / तस्यां सोऽतीवमोहितः // 57 // अवतीर्य ननोदेशा-दर्थयामास तामिति // योगिनीव किमेकाग्र-चि त्ता ध्यायसि सुंदरि // 27 // ध्यानस्य हि फलं धर्मों / जोगा धर्मस्य चोत्तमाः // तान् जु२१३ देव मयका साकं / पूरयस्व मनीषितं // // अहं पवनवेगाख्यो। विद्याधरनराधिपः // त्वरूपदर्शनादित-चित्त आगां त्वदंतिकं // 60 // इत्यादिचाटुवाक्येषु / तेनोक्तेषु बहुष्वपि // प्रत्युत्तरं ददौ नो सा। नापश्यत्तस्य संमुखं // 61 // रुष्टो बलाद् ग्रहीतुं ता-मुत्तस्थौ दुटधीर्यदा / तावदैवत शीलेन / मलशालावृतां स तां // 6 // अदमस्तां समादातुं / सि. ककात्पतितोतुवत् // विलक्षः प्राह रोषेण / खेचरो देवसुंदरीं // 63 // श्राः पापेऽहं हनिज्यामि / गत्वेतस्तव वडनं // मदवज्ञाफलं दुःखं / तत आजन्म जोदयसे // 64 // ततस्ततः समुत्पत्या-गत्य नीरधिमंतरा // सोऽकार्षीद दुर्दिनं देव-दिन्नप्रवहणोपरि // 65 // लग्नो रुधिरधाराजि -वृष्टिं कर्तुं स तत्दणं // विद्याबलेन वायुं च / प्रचंझ स मुमोच वै // 66 // || उदछलस्तरंगौघा / उत्तुंगाः शैलश्रृंगवत् // लोका व्याकुलता नेजुर्यानपात्रांतरस्थिताः // ..P.P.AC.Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust