________________ // 4 // कुविकल्यं धरनेवं / अव्योपार्जनहेतवे // प्रस्थानमकरोदेव-दिन्नो नगरसंनिधौ / / / // 46 // ताक्त्सुस्फारशृंगाराः / तत्रागादेवसुंदरी-॥ विनयेन पति नत्वा / सा बझांजलिरय || चरित्रं | धात् // 4 // स्वामिन् देहि खहस्तेन / तांबूलं मह्यमादरात् // तांबूलप्रमुखं जोदये। पुनः 212 // प्रत्यागते त्वयि // 4 // नानांगसगमुख्यं च / विधातव्यं-तदैव मे // त्वद्धस्तेनैव मणी|| बंधमोदो जविष्यतिः // 4 // षष्टांते पारणं कार्य / तच्चामाम्लैर्निरंतरं // षएमासांते च मर्त व्यं / तदा चेन्न त्वमागतः // 50 // श्रुत्वेति चिंतितं तेन / प्रत्याययति मामियं // संति स्त्री णां चरिवाणि / मंजीराणि समुभवत् // 59 / तथापि अनदाक्षिण्या-त्तस्यै तांबूलमायत् | सापिं धर्मरता गत्वा / गेहे शीलमपालयत् // 53 // कुविकल्पं धरन्नेव / देवदिन्नोऽचल| ततः // गछन् क्रमेण संप्राप्त-स्तीरे नीरनिस्धेरयं // 53 // अनेकवस्तुधिर्तृत्वा / समारुह्य च स खयं॥ जलधौ सपरीवासे / यानपात्रमपूरयत् // 54 // अनुकूलेन वातेन / प्रेरितो गुरुणेव सः॥ दक्षः शिष्यश्रुतस्येवां-जोधेः मध्यमगाइतः // 55 // श्तः शीलवती हर्य-चंडसालातले स्थिता // धर्मध्यानरताहान्य-वाहयदेवसुंदरी | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust