________________ / साथैशः क्रयविक्रये // कुर्वाणः प्रचुर वित्तं / दिनैरस्पैः समाजयत् // 4 // अथास्य चलतः | सार्थे सार्थेऽस्य / प्राहिणोन्नृपः // प्रियध्वजार्थमुन्मत्ते-गजपंचशती सितां // 5 // तामादाय समायासीत् / श्रेष्टी जोगवतीं पुरीं // प्रियध्वजं मिलित्वा स।प्रोचे प्रांजलमानसः॥ 76 // रे धीर भूजुजे रत्नं / फलकं च तदर्पितं // हृष्टः प्राहिणोतुंन्यं / गजपंचशतीमिमां // 7 // तदागत्य गृहाणैता-मित्युक्ते स व्यचिंतयत् // अहो कश्चिदुदारात्मा / स राजामकरध्वजः // 70 // पूर्वमपे प्रदत्तेऽपि / महांतोऽनपदायिनः // कीरं देरंति गावो हि। तृणदान तोषिताः // // राज्यचिह्नमिदं हस्ति-दं तावडुपागतं // एषां शु िकरिष्यामि / कथं 'बाहुसहायकः // 70 // अस्ति कश्चिदुपायो यो / नृत्यांश्च नगरी दिकं // संपादयति मे राज्यं / ततः कुर्वे यथासुखं // 2 // एवं चिंतां चिरं कृत्वा / स्मृतोपायोऽयमूचिवान् // श्रेष्टिंस्तावाजा रदया / गत्वा यावदिहैम्यहं ॥५॥श्रेष्टिना प्रतिपन्नायां / वाचि तस्यां चचाल सः // स्कंधे कृत्वा तीक्ष्णधारं / कुगरं सारसाहसः // 3 // गत्वा तस्यैव वृक्षस्य / संनिधौ धै|| यवान् जगौ // तं वरं यत्र यदेश / प्रपन्नो यस्त्वया पुरा // // अन्यथा प्रतिभूरेष / कु. PP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aaradhak Trust