________________ श्रेष्टी / श्रीमददिणमंमले // कुंमलाज मिलानारी-मंगनं कुंमिन पुरं // 63 // तत्रास्ति मा. निनीमान्यः। सुरूपो विषमायुधः // मकरध्वजवत्साक्षा-मकरध्वजपंतिः॥ 6 // अरयः सरयं सारे / यन्नामोचरणे रणे // दमके पतिते काका / श्व जग्मुर्दिशो दश // 65 // प्रियध्वजोऽवदत्तर्हि / गृहाणैतत्त्वमेव हि // मकरध्वजराजाय / देयं मदनिलापतः // 66 // दास्यामीति प्रपद्यास्य / वाक्यं लात्वा च तद् इयं // स्वसिझये घचालाथ / स प्रणम्य प्रि. यध्वजं // 6 // क्रमेण कुशली श्रेष्टी / कुमिन नगरं गतः // आत्मोपढौकनं चक्रे। राज्ञो रत्नादिसंचयं // 67 // प्रियध्वजानिधानेन / तद्व्यं ढौंकितं पुरः॥ विलोक्य विस्मयापन्नो। नृप एवं व्यजावयत् // ६ए:॥ स्वार्थसिध्यमत्यर्थ-मर्थ यति सर्वदा // न च दातापरः कोअपि / ताहरपथमागतः // 70 // उदारचरितो नूनं / स कोऽप्यस्ति प्रियध्वजः ॥गुणराजी रजोमुक्तो / विश्वप्रासादसुध्वजः॥ 1 ॥ध्यात्वेति नृप वाघष्ट / श्रेष्टिनं सार्थनायक nsतः क यास्यति जवान् / सोऽवग्जोगवतीं पुरीं // 7 // मिलित्वा तर्हि गंतव्यं / त्वत्करे प्रेषयिष्यते // तस्मै किंचित्प्रतिदानं / स्वं साध्यं साधयाधुना // 3 // इत्युक्तः कोणिपालेन / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. _ Jun Gun Aaradhak Tast