________________ // दास्यामि द्यूतकारेन्यो / भविष्यामि सुखी ततः // 55 // अथवा विगिमां बुद्धि / परज"|| व्यानिलाषिणीं // यादृशी मम पीमास्ति / निर्धव्यस्यास्य सा न किं // 53 // चिंतयन्निति चरित्रं स प्राह / सत्यमेव प्रियध्वजः // परोपकारं मन्यते / संतो जीवान्महत्तमं // 54 // त्रिभि|| विशेषकं // जनैस्तऽदितस्थाना-त्ता गोर्णी निरकासयत् // तया प्रमुमुदें श्रेष्टी / सार्थसर्व स्वयुक्तया // 55 // गोण्यर्ध दिशति द्रव्यं / सार्थनाथे ललौ न सः // संतः प्रत्युपकारार्थमुपकारकराः किमु // 56 // किमप्यनाददानस्य / तस्य निर्लोजतागुणात् // रंजितः सार्थवाहः स। आचचदे कृतांजलिः // 7 // सशोज लोननिर्मुक्त / जाग्यसौजाग्यनाजन // अन्यथापि प्रसादं मे / कुरु नितिहेतवे // 57 // इदं रत्नमयं दीप्रं / दीपवदेवताय // फलकं च हिरण्यस्य / गृहाणानुगृहाण मां // 5 // // अथ तस्यानुरोधस्य / ज्ञाता निगमनं तदा // ए. तयं पुरो मुक्तं / गृह्णातिस्म प्रियध्वजः // 6 // // एतद् द्यूतालयं प्राप्तो / हारयिष्यामि चेतदा // जायेत निःफलं काको-डायनायेव सन्मणीं // 61 // रत्नमेतन्नृरत्नाय'। योग्यमेवं विचिंत्य सः // ऊचे व प्रस्थितोऽसि त्वं / को राजा तत्र किं गुणः // 6 // गुणश्रेष्टोऽवदत् / / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.