________________ प्रत्येक तिष्टति व्यसनासक्त / एवं कतिपयवासरान् // 41 // अन्यदा हारिते द्रव्ये / प्रचुरे द्यूतका- || रिनिः // उजितः स निर्गत्य / पुरात्ताप वनांतरं // 45 // इंसश्रेणीमहामुक्ता-वृतं वृत्त | तयान्वितं // पृथिवीनायिकाकर्ण-भूषणायेव कुंमलं // 43 // शेषराजेन पाताला-जनोपकतिहेतवे // पीयूषकुंभमानीत-मिवाजोगविजूषितं // 4 // चंचलोत्फुलकबोल-हस्तैस्तापोपशांतये // आकारयदिव श्रांतान् / स सरः सारमैहत // 45 // त्रिनिर्विशेषकं ॥सरसेतुगते तुंग-प्रासादे दुःस्थितः स्थितः // गवतं व्यवहाराय / सार्थवाहं ददर्श सः // 6 // प. / तती वृषनस्कंधा-मोणी तत्र सरोवरे // तदा प्रियध्वजोऽद्रादी-जानातिस्म तु नापरः // 7 // वृषनो वृषचक्रेण / जवेनाथ मिमेल सः // सजया स्त्री वरेणेव / जनन्या बालको यथा // || // 7 // वीक्ष्यानारमनम्बाई / सार्थवाहः खसेवकान् ॥गोणीविलोकनायाशु ।प्रादिशत्सर्व तो नृशं // 4 // बेमुस्ते सकलामाशां / स्थानत्रष्टाः खगां इव // मोपविष्टमै क्षिष्ट / सा॥ धेशोऽथ प्रियध्वजं // 50 // ऊचे सत्त्वनिधे साधो / गोणी व पतिता मम // इति जानासि 5 कि.वा नो / यदि वेत्सि तदा वद // 55 // जलानिष्कास्य तां गोणीं / विनज्य प्रचुरं धनं || . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. .