________________ 265 हांगज संप्रति // दुरोदररसं पूरी-कृत्य अव्यमुपाय // 30 // ततः स प्राह दे मात - तोद्योगी धनाय में // तयावादि कथं वांतं / कुरुते दिवसोदयं // 31 // एवमुक्तोऽपि मा त्राय / व्यरमन्न उरोदरात् // व्यसनं नोपदेशेन / प्रायों मुंचति मानवः // 32 // एकदासी -समादिष्टो / मात्रा लात्वा कुगरकं // ययो वनांतरं लातुं / दारूणीधनहेतवे // 33 // स वि. लोक्य महावृदं / यदेणाधिष्टितं ततः // तच्छेदं कर्तुमारेने। काष्टं लातुमनाघनं // ३४॥प्रत्यक्षीभूय यदः सोऽवदत्साहसिकोत्तम // श्रास्थानं मम मानांक्षी-वरं यछामि ते वरं // 35 // जगाद स मायद / यदैतं प्रार्थये वरं // तदा यरथी यद। मित्युक्त्वा तिरोदधे // 36 // कुमारः स ततोऽन्यस्मा-दगात्काष्टान्युपाददे // मात्रे चामूनि दत्वासौं / भूयो द्यूतालयं ययौ // 3 // एकदा निजवासांसि / हारयामास तत्र सः ॥आजगाम गतदोमो। मंदिरं हसितो जनैः // 30 // पर्यावृतप्रियावस्त्र-खंझ तदनु वीक्ष्य तं // लोकः प्रियध्वजें. नाना कथयामास हासतः // 35 // स्पर्धयेव श्रिया पूर्व-नानाप्येष // विवर्जितः अय ग्रामाछिनिंगत्य / जेजे जोगवर्ती पुरीं // 30 // तत्रापि चेंडयेलुंक्तीन निरंशनोंऽनिशें / / / P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak' trust