________________ प्रत्येक श्चित्कांचनरत्नादि-रूपार्थोऽस्ति महानिह // देवताधिष्टितः स्पष्टं / परं सोऽनर्थवेष्टितः // | // 47 // तत्तेनार्थेन किं साध्यं / योस्त्यनर्थेन वेष्टितः // तेन वर्णेन किं कार्य / येन कर्णस्तु| टेरपुनः // ४ए // एवमायतिमालोच्य / मा पतेति निवार्य तां // प्रथम प्रहरं स्थित्वा / सुष्वा. | प स्वयमंगदः // 50 // अथ यामे द्वितीयेऽस्मिन् / महामतिरजागरीत् // खजसाहाय्यकस्त स्थौ / सुप्तेष्वन्येषु त्रिष्वपि // 51 // पुनर्वाणी तथैवाचू-चिंतयित्वा तथैव च ॥वारयित्वा तथैवार्थ / स्वावधि सोऽप्यपूरयत् // 55 // अथ मन्मथमुछाप्य / निद्रां चक्रे महामतिः॥तादृगेवानवत्सर्व / तस्मिन् जाग्रति मन्मथे // 53 // चतुर्थे प्रहरे जाते / श्रीपति नृपतेः सुतं // उबाप्य मन्मथो जज्ञे। निद्रामुद्रितलोचनः // 54 // जाग्रन् श्रीपतिरोषी-दस्त्यर्थोऽनर्थवेष्टितः // पतामि जवतादेशः / पतेति यदि दीयते // 55 // वटमूर्धन्यमुं शब्द-माकायमचिंतयेत् // अर्थाः सर्वेऽप्यनर्थेन / वेष्टिता एव संत्यमी // 56 // अनर्थनीरवो नार्थान् / परं निःसाहसा नराः // संग्रामे जयलक्ष्मीव-प्राप्नुवंति कदाचन // 57 // विदार्यानर्थसं|| दोहान् / कुंतिकुंजस्थलानिव // गृहंति मौक्तिकान्यान् / सिंहा श्व. ससाहसाः // 5 // PPAC.GupratnasuriM.S..' Jun Gun Aaradhak Trust