________________ स एवं विमृश्य सोऽवादी-साहसी क्षत्रगोत्रः // जो अर्थ कांचनीभूय / ममाग्रे पत सांप्रत॥1 // 5 // // इत्येवमुक्तमात्रेण / सुवर्ण पुरुषो महान् // कुमाराग्रेऽपतत्तूणं / दीपवहिवदीधितिः | // 60 // तस्य प्रपातघातेना-परे जागरितास्त्रयः // विद्युदंमः किमुइंमः / पतितोऽथ दिवश्यु| तः॥६१ // इति संत्रांतनेत्रास्ते / संत्रस्तहरिणा श्व // सुवर्णपुरुषं सादाद् / दृष्ट्वा मुमुदिरे हृदि // 6 // सर्वेषां ग्रहणाकांदा / पृथक् पृथगजायत // हृद्गुहायां लोनसिंहो-ऽनर्थमूलं समाविशत् // 63 // एनमर्थ समादाय / बजामो निजमंदिरं // चिंतामणिमपिप्राप्या-न्यतो ब्राम्यति कोऽपि किं // 64 // बांधवान्यधिकैमित्र-मंत्रयित्वा परस्परं // चैलेऽनुखगृहं श्रोत -खिनीनीरिवांबुधिं // 65 // प्रलंवदेहं गुरुनारगेहं / नैकस्तमुत्पाटयितुं पटीयान् // उत्पाटतस्तैः सकलर्मिलित्वा / किंचिबघूभूत स्वार्थलोजात्॥६६॥ बुजुदा कुदिमध्येता-नदंशद्वृश्चिकोपमा // ततो व्याकुलीता जाता / न लगते धृति क्वचित् // 6 // महापुरपुरान्यणे तं सुवर्णमयं नरं // न्यवीविशन्नमी नावं / तीरे नीरनिधेरिव // 6 // एकः पुरोधसः सूनु|हितीयः सचिवात्मजः // भोजनानयनायैतौ / नियुक्तौ नगरांतरे // ६ए // मंत्रितं गलता PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust