________________ पर मंत्रि-पुत्रेणेति दुरात्मना // श्रीपतिपतेः सूनुः / सर्वेष्वस्मासु साहसी // 70 // तेनैव निज धैर्येण / सुवर्णपुरुषोऽर्जितः / तस्मादस्माभिरेतस्य / विजागो लन्यते कुतः // 31 // यः शूरः चरित्र स हि सर्वस्वं / गृह्णाति हरतोऽपि च // बृहनानोरहः काले / जानु नून् हरेन किं // 2 // न्ध तदेषोऽपि महाशूरः / सर्वस्वमपि लास्यति // अस्ति मैत्र्यधुना तेन / परं सा न स्थिराज्रवत् // 3 // अस्मिन् जीवति नामानि-लप्स्यते हेममानवः // सति सिंहेशृगालः किं / जदयं नक्षयितुं दमः // 4 // तस्य व्यापादनं बुद्ध्या / कुर्वेऽहं मन्मथस्य च // यतो देहबलाबुद्धिबलं कोटिगुणं स्मृतं // 35 // इति चिंतातुरं प्रेक्ष्य / पुरोहितसुतोऽवदत् // का चिंता जवतो जाता। ममाग्रे वद बांधव // 76 // कथंचित्कथयामास / स्वानिप्रायं स दुर्मतिः // अं. गदोऽप्याहं हे मित्र / मंत्रितं साधु साध्विदं // 7 // किं नाम क्रियते मित्र-रेका श्रीरेव युज्यते // यस्याः प्रजावतो विश्वं / मित्रमेवा खिलं जवेत् // 7 // दारिद्यजाजः श्रुतनाषि णोऽपि / क्षणादमित्रत्वमुपैति मित्रं // लक्ष्मीवतो दुर्वचसोऽपि चित्रं। जजंत्यमित्रा अपि मित्र|| भावं // 5 // श्रियाश्रितत्वेन जनार्दनोऽपि च / प्रगीयते यत्पुरुषोत्तमो जनैः॥ विजूतिदेहो || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust