________________ चरित्र पोप्राप्यतेऽधिकं // 14 // प्राह प्रियाथ हे नाथा-वितथं नवतो वचः॥ परं फलंति कर्माण्यु- / पक्रमैः शस्यवजलैः // 15 // ऊचे स्थिरमतिः स्थैर्या--किमेतझाल्पमि प्रिये // यस्मादुपक मोऽप्यास्ते / सर्वकर्मवशंवदः // 16 // अपि जीवितुमिछतो / दुष्टकर्मनिरीरितं // कार्यते 42 चौर्यमुख्याणि / हंत कर्मखतंत्रता // 17 // अल्पोपक्रमवंतोऽपि / भूषितास्तत्र चामरैः॥ सुख तिष्टंति यद्भूपा-स्तत्र कर्मैव कारणं // 27 // रंकाः खोदरचिंतार्थ / रुलंतोऽपि दिवानिशं॥ न सजते सुखं कापि / तत्र कर्मैव कारणं // 15 // इत्येवं दंपती प्रीत्या / वदमानौ परस्परं // कियंत निन्यतुः कालं / तौ च संतोषतोषितौ // 20 // अन्यदा स गतः श्रेष्टी। बहिर्जुमौ कुतूहलात् // इष्टिकां चालयामास / लोजमुक्तमना मनाक् // 1 // सुवर्णटंककैः पूर्ण / जात्यरत्नैरलंकृतं ॥अधो निधानमजाक्षी-संतोषे किं न दृश्यते // 22 // एतदर्थ मया तावप्रयासः कोऽपि न कृतः // तद्यथा खयमेवैत-न्ममाध्यदमजायत.॥२३॥ तथा यद्यस्ति मे प्राप्त / तत्वयं गृहमेष्यति // एतत्कृते कृतीभूय / प्रयास कः करोत्यतः // 24 // विचिंत्येति निधानं त-त्पिधायेष्टिकया तया // निर्लोलहृदयः श्रेष्टी / समागानगरांतरा // 25 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust