________________ चरित्र // 3 // पुरं बदमीपुरं नाम / पुराभूद्र रिजूतिनृत् // स्थिरचित्तोऽजवलेष्टी / तत्र नाम्ना गु-|| | णेन च // 4 // सदा सद्गुरुसंयोगा-कर्ममर्माणि वेत्त्यसौ // तसशस्तदासक्त-स्तिष्टत्यलिरिवांबुजे // 5 // तस्य गेहेऽस्ति पुण्यैक-प्रनवो-विनवो न हि // तथापि व्याकुलखांतो / नासौ ब्राम्यति कुलचित् // 6 // न वंचयति लोकांश्च / पुण्यकार्य न मुंचति // न्यायोपार्जितवित्तेन / कष्टा निर्वाहयेद् गृहं // 7 // तद्गेहिनी रहस्याह / स्वामिन्न क्रियते त्वया // धर्मेकतामचित्तेन / व्यवसायो न तादृशः // 7 // अयं धर्मः कृतो नूनं / फलिष्यति जवांतरे // स्यादवश्यं हि साम्यस्या-प्यवसाने फलावली // ए॥ गृहस्य गृहिणा कार्या / चिंता सर्वापि सर्वदा // सा त्वया क्रियते नैव / नाथ तत्किमु कारणं // 10 // प्राह श्रेष्ठमतिः श्रष्टी। निये किं स्यात्वचिंतया // पूर्व यदर्जितं कर्म / तां तदेव करिष्यति // 19 // गेरकुचयोमातुर्येन सृष्टं पयोमधु // दैवं तदेव मे चिंतां / करिष्यति न संशयं // 15 // जवांतरा. जितं पुण्यं / जुज्यतेऽस्मिन् नवे प्रिये // तत्साध्य ऐहिके कायें। खिद्यते को मुधा बुधः // 13 // कदाचिन्मुंचति स्नेहं / पीड्यमानापि वालुका // परं यल्लिखितं जाग्ये / तस्मान्न PP.AC.Gunratnasuri M.S. __Jun Gun Aaradhak Trust .