________________ - जोन करकरिति त्रयं // निर्जगाम पुरात्तस्मा-प्रत्नत्रयमिवालसात् // ए४ // नगरान्निर्गतांस्ता- // स्तान् / ज्ञात्वा कैश्चिन्महोतैः // हंतुं मृगानिवं व्याधे-रनुगंतुं प्रचक्रमे ॥ए॥ तावदेको चरित्रं | हिजो वृक्षो / वयसापि गुणेन च // थाह सुस्थी कृतान् सर्वा-नुताननुशासितुं // ए६ // 40 मात्वरध्वं कुरुष्वं मा। प्रयासं बहुधा वृथा // प्राप्यते सोद्यमेनापि / विना जाग्येन न श्रियः.. // ए७ // प्रधानानि निधानानि / विविधाः प्रधयोऽपि च // प्रादुर्नवंति तस्याये / यस्य जाग्यं शिरःस्थितं // ए॥ मानवा दानवा देवा-स्तस्य पादपयोरुहं // जतिनाजो नजंत्येव / यस्य. जाग्यं शिरःस्थितं // एए // श्रीपुण्याढ्यनरेश्वरस्य विलसत्पुण्यप्रनावात्प्रति-क्षितं वैरिषु वै. रतस्तृणमपि प्रातं ज्वलच्चक्रतां // चक्रं च प्रतिवासुदेवनृपतेः सेवाकरं नृत्यव-नाग्यस्यापचये हहा निजशिरश्छेदाय संजायते // 40 // उल्लासके सत्कमलावलीना-मुच्चैस्तरां तिष्ठति जाग्यमानौ // प्रादुर्भवत्यन्यपदार्थसाथैः / साकं निधानान्यपि संनिधाने // 1 // निर्जाग्या नैव पश्यति / निधानायं कदाचन // अंगारवृश्चिकापूर्णा-न्यथ पश्यति कुत्रचित् // 1 // श्रीजाग्याजाग्यविषये / दृष्टांतः श्रेष्टिचौरयोः // संभूय निश्चलीभूय / श्रूयतां जो द्विजोत्तमाः | PAP.AC.Gunratnasuriti. Jun Gun Aaradhak Trust