________________ प्रो उद्यौवनान्यत्र दिने गवाद-स्थिताशु दृष्टा मणिकुंमलेन // विद्याधराणामधिपेन जझें। स 11 तत्दणं मय्यनुरक्तचित्तः / / 73 // जगाम पावे जैनकस्य सोऽथो / मामर्थयामास मृफूक्तिः | चरित्रं युक्त्या // तातो मदीयोऽथ जगाद वीर / योग्यो जवान् किं पुनरत्र वाच्य // 4 // परं पु१६७ रैषा वरिवर्चि दत्ता / श्रीकीर्तिसारदितिपात्मजाय // ततः स कोपारुणितोऽवदन्मां / निवा रयत्वेष हरंतमेतां // 45 // उत्पत्य राजांगणसप्तमक्षणे / लीला श्रयंती स्वसखीजनैः समं में मां माँसवद् गृध्र श्वातिमोहितः। कणाद् गृहीत्वा गगने चचार सः // 6 // प्रचंकोदंमधरो नरेंद्रो / यावत्समुत्तिष्टति तं नितुं // तोंवत्स वातादपि तीव्रवेगो। जगाम पूरं नयनस्य मार्गात् / / 77 // नानाविलापानपि तन्वतीं स / मामानिनायाशु विमोहितात्मा // अस्मिन् महाकानन एव मुक्त्वा / सस्नेहमाहेति पुरः स्थितः सन् // 7 // प्रिये प्रसन्नीजव.भर्तृजावं / मयि प्रपद्यस्व तवास्मि नृत्यः // जुदवाथं सौख्यानि यथेप्सितानि / विद्याधरा णामधिपा जव त्वं // ए // पराङ्मुखीभूय ततो मयाँचे / रे पाप पापापसंराक्षिमार्गात् // / दुष्टोऽस्यदृष्टव्यमुखोऽसि यो मां / हृत्वा बलात्कुर्कुरवत्प्रणष्टः // 7 // अथवा किं बहुना Jun Gu n ak P.P.AC.Gunratnasuri M.S: