________________ प्रत्येक शाने / मामकं मानसांबुजं // यदियत्ति विकाशं त-न्मन्येऽमृतयशा जवान् // 63 // अन्यच्च वाममेतन्मे / चक्षुः स्फुरति सांप्रतं // तेन प्राणप्रियेणाद्य / संगम सूचयत्यदः // 64 // ख यमेवासनं तस्माद् / गृहीत्वात्रोपविश्य च // निवेदय कृपां कृत्वा / खवरूपं मदग्रतः // 65 // 167 कुमारः प्राह सागर-दत्तश्रेष्टिसुतोऽस्म्यहं॥ दैवेनापहृतोऽत्रागां ।धनसागरसंझकः // 66 // न वंती रुदतीं श्रुत्वा / स्मृतस्वस्वजनोऽधुना // करुणारससंपूर्ण-स्त्वत्समीपं समागमं // 6 // का त्वं केन च निक्षिप्ता। पंजरे किं शुकीकृता // को वामृतयशाः स स्या-स्मर्यते यस्त्वयानिशं // 67 // उवाच साश्रुधारा निः / कदुमाजिर्महीतले // मुंचतीव कुमारस्य / पादशौचकृते जलं // 6 // तथाहि-चक्रेश्वरं नाम पुरं समस्ति / तत्र क्षितीशः सुरशेखराख्यः // तस्यास्ति राज्ञी सुरसुंदरीति / तस्या अहं पुष्पवतीति पुत्री // 70 // तातोऽन्यदा निजगृहांगणपूज्यमानां / पप्रल वत्सलतरां कुलदेवतां स्वां // को वा जविष्यति वरो मम पुत्रिकाया। ऊचेऽथ साऽमृतयशा नविता वरोऽस्याः॥ 1 // षट्खमनाथो नविता स चक्री। ततः प्रदत्ता जनकेन तस्मै // स्वचेतसा सा च दृढानुरक्ता / जातास्मि तस्मिन्नलिनीव सूर्ये // 15 // || P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust