________________ असे कापूरितविष्टपोऽभूतयशाः पायादपायादितः // 53 // विलपंतीमिति श्रुत्वा / बाला तां विस्मिताशयः // उत्ततार ननोदेशा--(कुमारस्तत्र कानने // 54 // गहन् शब्दानुचरित्र सारेण / ददर्शोन्नतमग्रतः // प्रासादं प्राविशत्तत्र / नेत्रप्रीतिकरेऽथ सः // 55 // तस्मिन्नादिजिनेऽस्य / प्रतिमाप्रतिमाकृतिः // उबलनक्तिनारेण / कुमारेण नमस्कृता // 56 ॥रा| जबाज्यनरं सुउर्वहतरं श्रीधर्मजारं तथा / वोढुं प्रौढतमौ दमौ महितले नान्यां समः क श्चन // एतद् ज्ञापनहेतवे कचमिषाकात्रा स्फुरलेखया / स्कंधौ यस्य सुरेखिताविव स वः श्रीमारुदेवः श्रिये // 7 // इति स्तुत्वा जिनं नक्त्या / प्रासादांतर्विलोकयन् // सोऽपश्यत्पं. जरक्षिप्तां / शुकीमेकां विलापिनीं // 57 // एषा शुकी कथं नारी-वैवं जल्पति कुःखिता / / मन्नाम च कथं वेत्ति / विस्मयादिति चिंतयन् // एए // जिनालयैकदेशे तां / कलहंसी नि. वेश्य सः // शुकीसमीपमायासी-दर्शनात्तां प्रमोदयन् // 60 // कुमारं नाषतेस्माशु। सा रुदत्यपि सत्तम // तवाद्य पंजरक्षिता / प्रतिपत्तिं करोमि कां // 6 // येन किंचिन्न कार्य स्या|| दस्मिन्नपि गृहागते // उत्तमा आसनं दद्युः / स्वशीर्षमपि हर्षतः // 6 // त्वयि दृष्टे दिने- / / AC Gunratnasun MS