________________ 165 प्रत्येक जनः // 43 // तथापि पवितसिझां / गृहाणानुग्रहाण मां // आकाशगामिनी विद्यां / तथा / | च बहरूपिणी // 4 // इत्युक्त्वा जयसुंदर्या / यक्षिण्या नृपसूनवे // ददे विद्याइयं सोऽपि 'वरित्रं चारत्र / जगृहे बहुमानयन् // 45 // यदिणी सपरिवारा / जगाम निजमाश्रयं // कुमारोऽपि स्म रंस्तस्याः / दणं तस्थावधोमुखः // 46 // मातृशोकाकुलां बालां / गलन्नेत्रजलाविला // क दृश्यसे पुनर्मात-वत्सलेति विलापिनीं // 4 // कथंचिद्बोधयामास / कुमारस्तां मृशक्तिभिः // क्रीमंतौ तदहोरात्रं / दंपती तत्र तस्थतुः // 4 // अत्रांतरे दिवाधीश / आगाद् छीपांतराद्जुवः // अंशुकैः पूरयन्नाशा / जाया श्व सत्पतिः // 4 // प्रियां प्राह कुमारोऽथ / क्क ते जिगमिषा प्रिये // थाह सा नाथ मत्पित्रो-दर्शनं देहि दुःखहृत् // 50 // श्राकाशगामिनी विद्यां / स्मृत्वा स प्रियया सह // प्रतस्थे कनकपुरं-प्रत्यप्रतिमन्नाग्यवान् // 51 // गबन्नलोंगणेऽधस्ता-कामिन्याः काननांतरे // एकस्या अशृणोत् श्रुत्या / कुमारः करुणस्वरं // 55 // तात त्राहि सवित्रि मे कुरु कृपां हे बांधवा बंधवः। सारां मे कुरुताथवा किमपरैरेको मदीयो वरः // भूमीमंगलममनं नरपतिश्रीकीर्तिसारात्मभूः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust