________________ प्रत्येक अपि सुरूपतिरेनां प्रार्थनां यहिधत्ते / वयमपि च यदि स्यात्सानुरागः स्वयंभूः // तदपि न , तु नवेऽस्मिन् प्राणनाथं तमेक-ममृतयशसमीहे नो विहायाहमन्यं // 1 // श्रुत्वेति वा || क्यानि मयोदितानि / दोषाकरेणापि समं तदास्यं // अभूतदोषातलतुव्यरूपं / क्क वा विल. को न जवेदददः // 2 // ततः समुत्थाय वनांतरेषु / ब्रांत्वा गृहीत्वौषधियुग्ममेतत् // निघृष्य शीर्षे तिलकं विधाय / तत्रैकया मां स शुकी चकार // 3 // इदं मंदिरं मंदराद्रिप्रमाणं / स्वविद्याबलाद्देवदेवस्य कृत्वा // स निःक्षिप्य मां निकृपः पंजरेऽस्मिन् // जगाम क्वचित्सांप्रतं || तन्न वेनि // 4 // इति श्रुत्वौषधीयुग्मं / कुमारेण विलोकितं // स्थापितं तल्लुकीपावें / चिंतितं च सविस्मयं // 5 // अहो अस्या महत् किंचि-न्मयि प्रेमास्त्यकृत्रिमं // चकोर्या श्व शीतांशौ / मयूर्या व वारिदे // 6 // नदीनामिव नारीणां / विभंजो न विधीयते // जमात्मिकानां वक्राणां / स्वजावान्नीचकर्मणां // 7 // तस्मादस्या विधातव्यं / बुध्या स्नेहपरीक्षणं // एवं विचार्य सोऽवादी-कुमारः सानुकंपहृत् // // कुरु सुंदरि मा शोक को वा प्राप्नोति चिंतितं // आत्मगेहे विमर्शोऽन्यो / दैवस्याफ्र एव हि // नए // हितोप . .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust