________________ | राद्रिरिवांबुधिं // करकंकुजटा मत्स्या / श्व व्याकुलतां ययुः // 6 // वैरिकासारविदोनं / / / कासरेऽस्मिन् प्रकुर्वति // बभूवुः सुभटास्तीरे / दर्दुरा श्व नीरवः // 7 // यदा न कोऽप्य-- चरित्र भूवरः / सूरसेनस्य सन्मुखः // मदात्तदावदत्सोऽपि / तृणवरुणयन् जगत् // 7 ॥मा जेषु नं हनिष्यामि / क्षत्रियोऽहं प्रणश्यतः // तथा कृते मम स्वामी / लज्जते दधिवाहनः // 5 // चांमालः करकंकुराहवकलां बाल्ये न योऽन्यस्तवा-नशानः समरेऽधुना कथमसौ युझार्थमाहूयते // निःसत्वोंत्यजसेवकः किमु जयानंदः स आकार्यते / तस्मात्संप्रति मे रणांगणरसं कः पूरयिष्यत्यहो // ए // स्मरति न मृदेहां गेहिनी नापि गेहं / धनकनकसमूहं यः खः चित्त न धत्ते // मरणमनिलषेद्यो जीवितव्यान्निराशः / स समरजुवमेतां मत्पुरस्तात्समेतु // ए१ // गर्जतमिति साटोपं / सेनान्यं जितकाशिनं // श्रुत्वा कोपाजयानंद / उत्तस्थौ रण. कर्मणे // ए // सूरसेनं बनाषे स / बहु मा बेहि पौरुषं // क्षत्रिया न हि वाक्शूराः। शू राः किंतु रणांगणे // 3 // इत्युक्त्वा सोऽचलाक-सज्जीभूतवपू रुषा // सहतेऽरिपराजूति / || पौरुषान्न हि पूरुषाः // ए४ // ववर्ष शरधारानिः / स लाउपदमेघवत् // विधापि दुर्दिनं || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust