________________ प्रत्येक शनैः // 16 // कलाकलापं जग्राह / शुक्लपक्षशशीव सः // कामिनीजनसंतान-मोहनं यौः || वनं ययौ // 27 // ब्रास्यद्गूंगपरंपराविकयुतां चंचत्फलालीकुचां / श्यामां पेशलपल्लवाधरध. चारित्र धरां नव्यछदालादिता.॥ रम्यां गम्यतमां वनस्पतितति शाखाजुजत्राजितां / जायां क्रीम यितुं नवांधव श्व प्राप्तों वसंतोत्सवः // 17 // निर्धनोऽपि जनस्तत्र / गति कीमितुं वने. चिक्रीमिषुपि प्राज्य- दानेदुनों नृपात्मजः॥ 19 // अन्यदा भूपतिः प्राह / वत्स गढ़ वनेऽधुना // यथे कोम सनीम / श्व तावत्सुतोऽज्यधात् // 20 // एवं कुर्वे परं तात / द्रव्यं नास्त्युत्सवोचितं // तदेवाहूय राजेंद्रः / खजांमांगारिणं जगौ // 1 // पुत्रस्यान्वीक्ष्यते यावद् / अव्यं दातव्यमेव तत् // उमित्युक्त्वा प्रपेदे स / राजा च स्थानमाप्तवान् // 25 // कुमार आहूय पुरस्य मानवान् / दत्वा स्वतुव्याजरणांबराणि च // अनेककोटिकविणव्ययेन चिक्रीम पौरैः पुरुहूतवत्सुरैः // 13 // जहर्ष सकलो लोको-स्तोकश्लोकः स्म खेलति // भूमीतले कुमारस्य / कोकः कोकनदे यथा // 24 // नांझागारी नृपस्याये। द्रव्यत्ययमची. // कथत् // निरर्थ गमितं द्रव्यं / बहनेनेति चिंतयन् // 25 // कुमारं नूपतिः प्राह / वत्स जा- || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust