________________ जाण / नष्ट्वास्मि बुटितोऽधुना // 4 // अस्मिन्मम समीपस्थे / समाधि कदाप्य भृत् // गते पु- / / नर्महाव्यांधा-विव जातं सुखं सखे // 5 // तदेतत्त्वत्समीपस्थं / दृष्ट्वा दोषजरं स्मरन् / चरित्रं जयजीतो जवत्पृष्टो / विनायवदनोऽनवं // 76 // वणिजोक्तं त्वया सत्यं / महानाग प्ररूपि तं // यस्मादेतन्मया तस्मा-देव निहाङ्पाददे // 7 // सदोषेण सुरूपेणा-प्येतेन किमु | साध्यते // सौवर्णी बुरिका तकि-मुदरे क्षिप्यते क्वचित् // 7 // तत्त्वमेव गृहीत्वैत-विक्रीणीष्व पुरांतरे // मह्य द्रव्यं प्रदातव्यं / यावदेतेन लन्यते // 7 // तेनोक्तं न करस्पर्श-मासमस्य करोम्यहं // कपिकचूलतां ज्ञात्वा / स्पृश्यते किं सुखेन्दुना // 70 // तथाप्यनिछत श्व / तस्मै रत्नमदाछणिम् // जुगुप्सवानवद्धर्षों-त्कर्षवानप्युवाच सः // 1 // नैतन्निर्लक्षणं ददो। ग्रहीष्यति गृही दितौ // तथापि तेजसा मुग्धो / गृह्णात्वेतत्तु कश्चन // 5 // इत्युक्त्वा तद्गृहं त्यक्त्वा / ब्रांत्वा च नगरांतरे // पंचाशन्निजदीनारा-नानीय वणिजे ददौ // 3 // दृष्ट्वा तान् सोऽपि संतुष्ट-स्तुष्टाव श्रेष्टिनंदनं // अहो गुणधरोऽसि त्वं / नामतो गुणतोऽपिच || // // कियन्मूल्यं समानीतं / निर्मूल्यस्यापि वस्तुनः // धिषणा तावकी ताव-वाणिज्ये / / P.P.A. Gunratnasuri M.S.I S Jun Gun Aaradhak Trust