________________ चरित्रं 1 कयत् // 65 // हा हा परिजनः सर्वो। मयि पश्यति सत्यपि // बुमत्येष ततो धिग्मा-मकि- / / प्रत्येक चित्करमीश्वरं // 70 // एवं विजावयत्येव / रामे तत्रापि तज्जलं // वागाकल्पांतपायोधेः। सादृश्यं दर्शयत्ततः // 1 // आकंठमागते नीरे / जलरूपेऽखिले स्थले // स किं कर्तव्य| तामूढो / रामोऽपश्यद् हिजघ्यं // // अवदत्स युवां नूनं / गुणिनौ ज्ञानशालिनौ // अतःपरं परं ब्रूतं / अतं किं किं नविष्यति // 3 // अन्यधत्तां ततो विप्रा-वेकं प्रवहणं कपात् // अत्रैष्यति महाराजः। श्रयणीयं त्वया हि तत् // 5 // तावदेव समायातं / तत्र बोहित्यमुत्तमं // एक कुतोऽपि चिप / तत्र रामो इरेस्तनुः॥ 5 // स्वयं समाललंबे स। यावत्तावन्न तंजलं // न नावं किंतु तत्सर्वं / यथावस्थमलोकत // 76 // हरि सिंहासनासीनं / स्वं च सर्वान् जनानयं // सर्व यथास्थितं. चान्य-त्पश्यन् रानः स विस्मितः // 7 // किमेतदिति तौ विप्रौ / पृष्टौ रामेण सादरं // जजल्पतुरिंद्रजाल-मिदं प्रकटितं नृप // 7 // दणदृष्टविनष्टोऽसौ / प्रपंचो रचितो यथा // तथा सर्वोऽपि संसारो / निःसार इति निश्चितं // // जलं सर्वस्थलप्लावि / तत्क्षणं व्यगलयथा // तथा कथं न ते जाता। विन- / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust