________________ प्रत्येक श्यत्येष पद्मजित् // 70 // संसारे शाश्वतः कोऽपि / धर्मचक्री न चयपि // प्रतिविष्णुंश्च || विष्णुश्च / बली नाप्यपरो बली // // रामसेन तवेयं का। ब्रांतिर्यन्मम बांधवः // निचरित्रं येतायं हि पूर्णायु-मरिष्यति जवानपि // 2 // ततो मोहममुं मुक्त्वा / कृत्वा चास्योचदेहिकं // जपादाय परिव्रज्यां। स्वसाध्यं साधयाधुना // 73 // सागराद्देवदत्ताख्यो। यो हरेर्नेदनावुभौ // अजूतां तो सुरौ भूत्वा। त्वत्प्रबोधार्थमागतौ // // हिजरूपधरावावा-मित्युक्त्वा ताजावपि // देवी जातौ दिव्यरूपी / चलकुंगलमंमितौ // 5 // तथा श्रुत्वा तथा दृष्ट्वा / रामोऽथ प्रतिबुहृत् // चकाराकृत्रिमस्नेहो / हरिदेहोर्ध्वदेहिकं // 6 // हरिघेणसुतं राज्ये / निधायकं विधानवित् // अकस्मादागतज्ञानि-मुन्यंते व्रतमगृहीत् // 7 // कृतकृत्यावथो देवो / देवलोके गतौ पुनः // अतिष्टतां महासौख्यं / झुंजानी तावुनावपिः। // // चत्वारोऽप्यथ ते देवा / एकदा समुपाययुः // नेमे समावस्त्यंतरपृष्छन् नाविनं जवं ॥ए // स्वामी नेमीश्वरः प्राह / सुधासन्निजया गिरा // मिथिलायां महापुर्या / जयसेन1 नृपात्मजा on जीवः सागरदेवस्य / जावी पद्मरथो नृपः // एष चंद्रमती जीव-स्तस्य रा- // A.QuprathasyriM.S. . Jun Gun Aaradhak TN