________________ प्रत्येक तत्रान्यदा समायातो / मुनिनिघुमावनिः // ज्ञानाकरो नरेंप्रेण / वने गत्वा ,नमस्कृतः // // 15 // पृष्टश्च देशनाप्रांते / जगवन्नेष नासुरः // सुराणामसुराणां वा / किरीट इति मे मतिः // 16 // परं देवस्य कस्यैष / विशेषाञ्च कुतो जुवि // प्रयातस्तत्वरूपं. मे / निवेदय वि| दास्पद // 17 // ततस्तंपोधनः प्राह / कृतसंशयशोधनः // यशोधनधराधीश / शृणूदंतममुं समं // 17 // तथाहि नगरी तामलिप्तीति / विद्यतेऽत्र गरीयसी // धर्माब्जिन्यामलिस्तत्र / तामलिः श्रेष्टिरामजूत् // १ए // सलौकिकेन वैराग्य-रंगेणादाय तापसं // तं तस्थौ पुरोपांते / तप्यमानस्तपोधनं // 20 // पुरुषाहारमानं स / नेयमादाय पत्तनात् // गत्वा तपोवने नागां-श्चतुरः कुरुते सदा // 1 // तत्रैकं जलचा रिज्यः / स्थलचारिषु चापरं // तृतीयं व्योमचारिन्यो। द. ते नागं स तापसः // 12 // एकविंशतिवारं स्वं / भागं प्रदाय वारिणा // षष्टिवर्षसहस्रा‘णि / स जुंजानस्तपोऽकरोत् // 3 // कुशस्त्रस्तरसुप्तोऽसौ / प्रांते जीवदयापरान् ॥र्यासमितिसंयुक्तान् / ददर्श मुनिपुंगवान् // 24 // धन्या एते तपस्तथ्यं / सर्वजीवदयापरं // एषा P.R.AC.Gywotoasuri M.S..