________________ धस्तत्र बनूव भूपः / शुज्रप्रनो यस्य यशोमरालः // रिपुप्रियासांजननेत्रवारि-सरस्सु नित्यं / / / कृतखेलनोऽपि // 4 // गुणमालानिधानास्य / नृपतेः पट्टपत्न्यनुत् // गुणमालां दधानापि / या नात्माश्रयदोषनाक् // 5 // एको पूतोऽन्यदा नाना-देशमालोक्य संसदि // समागतो नरेंजेण / पृष्ट एवं कृतादरः ॥६॥श्तो पूत प्रभुतेषु / ब्रांतोऽसि नृपसद्मसु // आश्चर्यकारिकिं किंचि-तत्र दृष्टं त्वया नवा // 7 // तेनोक्तं चित्रकारिण्यो / विचित्रचित्रचित्रिताः॥ चित्रशाला मया राजन् / दृष्टा अन्यमहीनुजां // 7 // तानिर्विना न ते धामा-निराममजिजासते // शोजनांजनरेखानि-मंगाया श्व लोचनं // ए // इत्याकर्ण्य नृपो नाना-जनानाहृय तत्क्षणं // चित्रशाला निवेशाय / नूमिशुधिमकारयत् // 10 // अथ मां खनतां तेषां / ज्योतिज्योतितदिक्तटः // मुकुटः प्रकटो जर्छ / रत्नराजिविराजितः // 11 // तैः समादाय साश्चर्यैः / स नूपाय समर्पितः // सोऽप्युत्सवैर्नवैर्दिव्यं / जव्यरीत्या तमर्चयत् // 12 // शिरस्योरपयामास / तत्प्रनावादसौ नृपः // हिमुखो दृश्यते तत्र / मुख्यस्य प्रतिबिंबितं // 13 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Guri Aaradhak Trust