________________ / - - प्रत्येक / शून्य-मावान्यामाश्रयिष्यते // गुरुणांगीकृते वाक्ये / स्वं स्वं राज्यं गताबुनौ // ए॥ राज्ये निजं निजं पुत्रं / संस्थाप्य परमोत्सवैः // तौ गत्वा पद्मदेवांते-ऽगृह्णीतां सप्रियो व्रतं चरित्र // // वैयावृत्त्यं गुणगुरुगुरोराचरंतश्चरंतः / पृथ्वीपीठे विगतममतामोहमायाविकाराः॥ल. 207 ब्धं साधूचितगुणमणीन् गाहमानाः श्रुताब्धिं / चत्वारोऽपि व्रतमपमलं पालयामासुरेते // // sou // चतुर्जिरधिकाशीति-पूर्वलदान् स्थिता गृहे / व्रते षोमशसर्वायुः / पूर्वकोटिमपाखयन् // 1 // संलेखनाशोषितपूर्वपापा / अंते कृतोद्यत्परमेष्टिजापाः // जाताः सुरास्तेऽच्युतदेवलोके / महर्डिका असमाः समेऽपि ॥२॥इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे नमितृतीयनववर्णनो नाम तृतीयः प्रकारः समाप्तः // श्रीरस्तु // // अथ चतुर्थः प्रकारः प्रारच्यते // अस्त्यत्र धातकीखमं / कुंमलालमिलास्त्रियः // ज्योतिष्करत्नखचितं। जगतीपाट्यलंकृतं // // तत्रोत्तरजरतार्धे / नगरं रत्नमंदिरं // इंदिरेंदीवरं त्यक्त्वा / मंदिरं यत्र निर्ममे // 2 // शूर|| सेनो नृपस्तत्र / शूरः सुरोऽरितामसे // तस्याजूच्चंतकांताख्या। कांता कांतगुणोज्ज्वला // 3 // / - - - P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust