________________ वरित्रं रंगमंगतरंगनंगसुनगा कीर्तिनरिनर्ति य-तत्सर्वं सुकृतं कृतं सुकृतिने दत्ते सुपर्वषुवत्॥ श्त्यादि देशनां श्रुत्वा / प्रबुझौ तावुनावपि // ऊचतुर्नगवन् किं कि-मावान्यां सुकृतं कृतं // // जवांतरे यदेतस्मिन् / नवे राज्यमखंमितं // आवाच्यां जुज्यतेस्मैत-ततो मुनिरजाषत // नए // गुणचंद्रो गुणधर / इतिसंझौ सहोदरौं // पूर्वनवे युवामास्तां / नक्तौ जगवदंहिषु // ए० // अभूद्या गुणचंजस्य / गुणश्रीसंझिका प्रिया // जज्ञे कुसुममाला सा ।हितीया गुणवत्यपि // 1 // पुत्री मे रत्नसिंहस्य / पत्नीयं वनसुंदरी // श्रुत्वेति जातिस्मरणं / च. तुर्णामप्यजायत // ए // वैराग्यरंजितात्मानौ / प्रवज्यां लातुमुद्यतौ // तो व्यापयतां पझ-देवमेवं मुनीश्वरं // ए३ // जगवन् विहरन्नास्ते / कुत्रामृतयशा मुनिः॥ स्ववाणीशंखशब्देन / मोहनियां व्यपोहयन् // एच // मुनिनोक्तं जवत्तातः / स संयमपयोमुचा // जप शाम्य कर्मदाहं / निर्वाणं प्राप संप्रति // एए // प्रदीपः केवलं यत्र / शय्या सिफिशिलोज्ज्व. ला॥ तत्र मुक्तिस्त्रिया साकं / क्रीमन्नस्ति जकत्पिता // एव // तान्यामवाचि हे देव ।स्थेयं || तावदिह त्वया // यावां यावदिहायावः / कृत्वा राज्यस्थिति निजां // ए७ // निजतातपदं P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust