________________ दुश्रीः / कोपारुणितलोचना // ऊचे हारयसे कस्मा-त्पाखंमिनि नवघ्यं // ए // जुकुटी- 1/ जीषणीय / साप्यूचे रे कुकर्मकृत् // हारयामि कथं लोक-इयं सत्यं वदंत्यपि // ए३ // .. चरित्रं || अलं पापजनालापैः / स्थानं जगवति ब्रज // इत्युक्ता सा ततः स्थाना-दुत्थाय स्वाश्रयं ययौ // ए // कुकर्मकारिणि पापे / प्रत्यक्षा राक्षसी ह्यति // मद्गृहे न प्रवेष्टव्य-मितो जोहपरायणे // ए५ // एवं निर्ज वेदश्रीः / पत्या निर्धाटिता गृहात् // सांप्रतं कुत्र गबामि / कलंकेन कलंकिता // ए६ // मरणं शरणं तस्मा-चिंतयित्वेति चेतसि // पपात तटि नीपूरे / वलाजालसमाकुले // ए // तावत्तत्रागतासन्न-ग्रामनाथेन केनचित् // पतंती त. व सा दृष्टा / करुणापूर्णचेतसा // ए७ // जनान् प्रदिप्य नयंत-राकृष्यानीय तां तटे // प्रगुणीकृत्य सोऽवादी-न किं कृतमीदृशं // एए // तयोक्तमसदोषाधि-रोपोत्थं सद्गुणापहं // फुःखं च सहते नो धिक् / कियन्मानवमानसं // 107 // अनाणि ग्रामनाथेन / किं तदुःखं तवाजवत् // ततो वेदश्रिया सर्व / खवरूपं निरूपितं // 1 // त्वं मेऽसि नगिनी. / त्युक्त्वा / तेन नीता निकेतनं // यथा सुखं स्थिता तन / धर्मध्यानपरायणा // 2 // अन्ये. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus