________________ कोरीव सा // परं वहति विद्वेषं / सपन्यां न मनागपि // 1 // श्राद्या निर्धाव्यते गेहा तदा निकंटकं नवेत् // द्वितीया चिंतयंतीति / गमयामास वासरान् // 2 // सा परित्राचरित्र जिकामेका--मन्यदा मंदिरागतां // घृतमोदकदध्यादि-जिदादानादमोदयत् // 3 // मु दिता साप्युवाचैवं / वत्से स्वछमते त्वया // किंचिदस्मादृशं कार्य / कथनीयं निरर्गलं // // 4 // विनयश्रीस्ततोऽवादी-झगवत्येवमस्ति. चेत् // तदा साक्ष्यं त्वया देयं / कूटाखपि ममुक्तिषु // 5 // निःशूकहृदया सापि / प्रतिपद्यास्पदं ययौ // विनयश्रीस्तु शय्यायां / सुतं वस्वामिनं जगौ // 6 // श्तः पत्युरपायस्यो-पेदणं पातकं महत् // श्तश्च परमो दोषः / परफूषणकीर्तनं // // तन्नाथ किमु कुर्वेऽह-मितो व्याघ्र इतस्तटी॥ तथाप्यकृत्रिमः स्नेहो / मां प्रेरयति जल्पने // 7 // नाथ वेदश्रिया चके / कार्मणं तत्तवोपरि // यस्मिन् विघटिते नूनं / मानवो म्रियते क्षणात् // ए // यदि प्रत्येषि मां न त्वं / पृष्ठ प्रबजितां तः दा // इति श्रुत्वा वेदरुचिः। पप्रडाकार्यतामिति // ए० // जगवत्यनया वेद-श्रिया किं का|| मणं कृतं // सम्यक् त्वं वेत्सि किं वा नो / तयोक्तं कृतमेव हि // ए१ // इति श्रुत्वा च वे - P.P.AC.GunratnasuriM.S.