________________ न्मतिरप्रीते-स्तावुनावपि बांधवौ // अरमैतामचुंजेतां / सहैवातिष्ठतामपि // ए // अथामृतयशाश्चक्री / सुजन् राज्यमखमितं // अनेकपूर्वलक्षाणि / क्षणवत्सोऽत्यवाहयत् // 1 // गुरोविमलचंद्रस्य / पट्टपूर्वोचले स्थितः // बोधयन् विपानि / कीर्तिसारमुनीश्वरः // ए॥ दिनेश्वर श्वायातः / पुरासन्नवने तदा // वनपालस्तदैवैत्य / वर्धयामास चक्रिणः // ए३ // // युग्मं // दत्वा दानैमसंख्यातं / तस्मै संतोषिताशयः // चक्रवर्ती निजं तातं / राजर्षि वं. दितुं ययौं / ए४ // स निःप्रदक्षिणीकृत्य / नमस्कृत्य मुनीश्वरं // तस्थौ यथोचितस्थाने / शुश्रावेति - देशना || एy // जो जव्या नवनीमरूपविपिने किंपाकपाकोपमे / यो वै वैषयिक सुखे रतमतिर्भूत्वा चिरं तिष्टति // श्रीधेयोनगरं सुपूरमयतः श्रीसंघसंघातत-श्युत्वोन्मार्गगतः स फुःखमनिश लुंक्ते निरालंबनः // ए६ // पूर्व कृतिन् यत्सुकृतं कृतं त्वया। ते. नैव खब्धा श्ह जन्मनि श्रियः // हापि चेदात्महित करिष्यसि / जवांतरे तर्हि सुखी न. विष्यसि / ए७ // नवे ज्वलन्मदिरसोदरेऽस्मिन् / को वावतिष्टेत विशिष्टबुद्धिः॥ नावादनीया | विषयों विषेण / विमिश्रितान्नोपमिता बुधेन // ए // श्रुत्वेति देशनों राज्ञो। मानसं तस्य / / /