________________ प्रत्येक ददतुः शून्यहुंकारं / पुरंध्याः पुरतस्तदा // 11 // संसर्गजा गुणा दोषा / इति सत्यापयंत्यभू / त् // चेतोवृत्तिस्तयोः शून्या / शून्यतद्रंगसंगतः // 12 // तत्र शय्यातले नैव / खेजाते तौ चारत्र || धर्ति क्वचित // मत्स्या वाल्पपानीये। मखुणा यातपे यथा ॥१३॥जीत्यालिंगितदेहत्वा२३ सापत्न्यादिव वैरतः // न बुजुदा न निद्रा च / तयोः संनिधिमागमत् // 14 // तयोर्जयशिलापट्ट-रुडचेतोंतरालयोः // मुखप्रदितमप्यन्न-मघस्तादुत्ततार नो // 15 // राक्षस्युचेऽथ साशंका / जो नवंती कुतूहलात् // अभूतां किं गतौ कापि / वनादिस्थानके बहिः // 16 // अहो निपुणतामुष्या। अहो कपटपाटवं / लक्ष्मी तिलकपुत्र्यस्मी-त्याव्यलीकं जगौ हि या // 17 // आवयोः सहचारी हि / कोऽप्यस्ति पुण्यबांधवः // येन तत्र वने नीता-वावां कौतुककैतवात् // 17 // येन पीमातुरेणापि / वाक्यदीपेन कूपिका // एषा स्फुटीकृता तं हि / हितं मन्यामहे नरं // 17 // अवगण्य निजां पीमां / संतो जंतूपकारिणः॥ तिष्टंतोऽप्या. तपे वृक्षा / लोके बायां वितन्वते // 20 // रावस्येषा जवत्येव / नरेण प्रतिपादिता // मा. ज्ञासीत्तत्र गमनं / इसंताविति हेतवे // 1 // बुटिष्यावः कथं हा हा / संकटाधिकटादतः P AC Gunratnasuri M.S.. . Jun Gun Aaradhak Trust