________________ खलु निर्विकल्पं / सा नो जवेबंशयमंमिता यथा // 1 // एवंविधां तस्य नरस्य शेषां / गुरोः // सुशिष्याविव तौ निशम्य // श्रद्धां दधानौ पवनोपमान-वेगवजाबजतुः पुरांतः // 5 // चरित्र थारुह्य राजांगणसप्तमदणं / शय्यातले पूर्ववदेव तस्थतुः // कणांतरे तत्र च सापि सर्पिणी -समा समागादतिदुष्टमानसा // 3 // यथा दर्दुरौ सर्पस प्रियाया। यथा मूषको सह मा. र्जारिकायाः // शृगालो यथा सक्षुधो व्याधिकाया। बिनीतौ तथा दर्शनादेव तस्याः // 4 // ईषजहसतुः स्मेर-वदनौ माययाथ तौ // सापि मायावती तस्था-वालिंग्य स्नेहविह्वला // 5 // विलासहासलासाथै / रज्यते न मनस्तयोः // विषवृतफलं ज्ञातं / सरसत्वाकिमद्यते // 6 // अप्यंतगोंपितात्तापा-त्तयोबिहायतालवत् // किमु कोटरसंरथेऽग्नौ / तरुनवति शाम्बलः // 7 // गोप्यीकृतोऽपि संताप-स्तयोः किंचित्स्फुटोऽभवत् // जस्मनाहादितोऽप्य. मि-रीषत्तापं तनोति यत् // 7 // योगिनः परमात्मानं / चक्रवाका दिवाकरं // चकोरा श्व शीतांशुं / मयूरा श्व वारिदं // ए // हंसा श्व शरत्कालं / वसंतं वनराजिवत् // पुमांसौ | तावतीवेष्टं। यदागमनमैहतां // 10 // युग्मं // वार्तालापकलापेषु / सचेतचेतसावुनौ // ||