________________ / प्रत्येक // ध्यायंताविति चेतोंत-रूचतुर्माययेति तां ॥शानिः कुलकं॥आवाच्यां न प्रियेकिंचि-त्व निषिध्य विधीयते ॥मर्यादया निषिोऽपि / स्थाने किं याति वारिधिः॥३॥ अथ सा कन्यको. चरित्र वाच।जो लोः प्राणप्रियौ कुतः // विनायता शरीरेवां। लोजनेचन शेवते // 4 // तावूचतुः प्रिये कल्ये / सुस्निग्धं सोदकादिकं // जुक्तं बहुतरं तेन / विद्यतेऽद्योदरव्यथा // 25 // व्यथायाः संगतो दीप-शिखाया व सांप्रतं // श्यामलिप्तांजनेनेव / व्यायं तनुरस्ति नौ // 16 // नुक्केन बहुना नाय / जाग्रोऽग्निर्विजूंजते // एधोभिर्बहुनिः कितै-झटपो विध्याप्यतेनलः // 7 // एवमादिप्रकारेण / तस्मिन् वदति नृत्ये // कृत्याचेतोऽनवत्तुष्टं / शांते वायाविवांबुधिः // 27 // पंचाब्दानीव पंचाथ / वासरा ऐयरुः क्रमात् // यतः श्रीधर्मराजाख्यः। समा गोदश्वरूपत्नाक् // श्ए // मनुष्यवाचा सोऽवोच-जलस्थलमयाध्वनः // योऽत्रागतो जवेन्मुग्धः / स पृष्टं मेऽधिशेहतु // 30 // राजांगणस्थिता नैषा / मानवी किंतु राक्षसी // विश्वस्तान् मानवानेषा / विनाशयति निश्चितं // 31 // त्वक्सासं कूटहेमानां / दर्शयंत्यां तनुप्र|| जां // अस्यां कल्याणमिछनि-र्मा विश्वासो विधीयतां // 35 // अनया सह यः स्नेहं / करि- || 3D P.PAC Gunratnasun Aaradhak