________________ 20. माख्यो / रूपवान् दशवार्षिकः // तत्र प्राप्तो नृपात्रो / युतः सुमतिमंत्रिणा // 15 // मत्पुत्रयो रय मित्र-मनुरूपः सुरूपवान् // नावीति शूरसेनेन / दत्वा मानं स रक्षितः // 16 // नृचरित्र पपुत्रं हरिषेणं / प्रणम्योपाविवेश सः॥ तेन पृष्टं ततो राज्ये / देशेऽस्ति कुशलं तव // 17 // प्रत्यमाणीत्ततः सोऽपि / देदेव कुशलं तव // प्रप्रसादेन सर्वत्र / देदेहादौ विविद्यते // 17 // तत् श्रुत्वा हरिषेणेन / चिंतितं विधिना कथं // नररत्नमिदं हाहा / वाग्जमत्वेन दूषितं / ॥रणा दाता नीरदवहिवेकरहितः संतापकः प्राणिनां / तेजखी रविवद्विलति जमता रम्याकृतिश्चंऽवत् // चंचच्चंदनवत्परोपकरणोदारो डिजिह्वावृतः। प्रायः शस्तसमस्तवस्तुविषये दोपं विधत्ते विधिः // 20 // ततः सुमतिमंत्र्यूचे / परानिप्रायवेदकः // कुमारास्य महत्यस्ति / कथैकांतं विधेहि तत् // 1 // तेन चूसंज्ञया लोके / पूरमुत्सारिते सति // स्वकुमारस्य वृ. त्तांतं / मंत्री वक्तुं प्रचक्रमे // // तथाहि अस्ति लक्ष्मीपुरं नाम / पुरं परममुत्तमं // लक्ष्मीदेवो नृपस्तत्र / पवित्रो देवतेंवत् // || // 3 // तस्याभूपसंपन्ना। देवी जुवनसुंदरी // समं तया सदा क्रीमन् / स दिनान्यत्यवा P.P.AC. Gunratnasu M.S. Jun Gun Aaradhak Trust